बड़ाबाजार का तेजी से बदलता सामाजिक परिवेश
दुष्चिन्ताओं से परेशान हैं कुछ लोग
बड़ाबाजार नाम आते ही दिमाग के सामने घूमने लगती है मारवाड़ी समाज के व्यापारियों की गद्दियां, छत पर मारवाड़ी महाराजों द्वारा संचालित बासे। उस बासों में बैठकर जीमते कारोबारी। बड़ाबाजार व्यापार एवं मारवाड़ी परिवारों का मोहल्ला बन गया। फिर ²श्य बदला। जिस व्यापारी की पॉकेट भारी होने लगी तो वह दक्षिण में बसने लगा। दक्षिण कलकत्ता में सैठों का और उनसे कम आमदनी वालों ने हावड़ा, फूलबगान, कांकुडग़ाछी में डेरा डाल दिया। जीवन स्तर पहले से बेहतर हो गया किन्तु कारोबार का केन्द्र बड़ाबाजार ही बना रहा। फिर समाज ने अंगड़ाई ली और गद्दियों के गद्दे मसनद के साथ उठ गय्। व्यापार बढ़ा, लक्ष्मी और मेहरवान हुई तो दक्षिण कलकत्ता में शीतताप नियंत्रित यानि एसी दफ्तरों के युग का सूत्रपात हुआ। कारोबारियों के इस क्रमश: विकास रथ से सभी भलीभांति जानते हैं।
बीसवीं सदी के उतराई एवं इक्कीसवीं सदी में बड़ाबाजार का परि²श्य अब नये आयाम में पहुंच गया है। मारवाड़ी अपने बड़ाबाजार में नगण्य रह गये हैं।
लेकिन सबसे बड़ा परिवर्तन व्यवसायिक लॉबी में हुआ जिसके परिणामस्वरूप बड़ाबाजार की डेमोग्राफी यानि सामाजिक विकास का चेहरा तेजी से बदल गया है। अब इसकी चर्चा सामाजिक चौपालों में होने लगी है। बदले स्वरूप से बहुत से लोगों के माथे पर बल पडऩे लगे हैं एवं कई लोग नयी डेमोग्राफी को लेकर गहरी चिन्ता में पड़ गये हैं।
मारवाड़ी समाज से लगभग मुक्त हो चुके बड़ाबाजार में मारवाड़ी समाज ने जहां कहीं भी अपना ठिकाना बना लिया हो पर ‘‘ऊधो मोसे वृन्दावन बिसरत नाहीं’’ की तर्ज पर उनकी बेचैनी बढ़ रही है जिसका मुझे कई बार एहसास हुआ। कुछ दिन पूर्व ही समाज के एक दिवाली प्रीति सम्मेलन में भोजन के दौरान समाज की दो प्रमुख महिलाओं ने बड़े चिन्तित स्वर में बोली- नेवर साहब आपको पता है मारवाड़ी बालिका विद्यालय में अब मुस्लिम लड़कियां भर गई हैं।
जहां तक शिक्षण संस्थाओं का सवाल है यह बिलकुल सही है कि वृहत्तर बड़ाबाजार क्षेत्र की सभी हिन्दीभाषी स्कूलें जो मारवाड़ी समाज द्वारा विगत एक सौ वर्षों में बनायी गयी हैं, में मुस्लिम छात्र-छात्राओं का बाहुल्य हो गया है। इन स्कूलों के ुच्च अधिकारियों से मैंने इस बारे में जानकारी ली तो चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी। टांटिया हाईस्कूल में अब लगभग 40 प्रतिशत छात्र मुस्लिम परिवारों के हैं। श्री विशुद्धानन्द सरस्वती विद्यालय जो अब को-एड हो गया है में इनकी संख्या 80 प्रतिशत के आसपास है जबकि आड़ी बांसतल्ला में स्थित लड़कियों की सबसे पुरानी स्कूल मारवाड़ी बालिका विद्यालय में आज के दिन 60 प्रतिशत छात्रायें अल्पसंख्यक समाज से आयी हैं। चित्तरंजन एवेन्यू में राम मन्दिर के नाम से विख्यात सेठ सूरजमल जालान बालिका विद्यालय में लड़कियों की संख्या 70 प्रतिशत के आसपास पहुंच गयी है। मेरी कुछ आशंकाओं का जवाब देते हुए श्री विशुद्धानन्द स्कूल के प्रधानाध्यापक श्री पांडे ने बताया कि ये मुस्लिम बच्चे वेद मंत्रों का पाठ भी करते हैं और बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की आराधना भी। टांटिया हाईस्कूल के सचिव श्री कैलाश शर्मा जी का कहना है कि पढ़ाई में किन्तु मुस्लिम छात्र किसी से कम नहीं। खेल, कला आदि में भी वे अग्रणी हैं। अन्य स्कूल कॉलेजों में भी इन छात्र-छात्राओं की संख्या बढ़ रही है। सुकियस लेन वाले जैन विद्यालय, नन्दो मल्लिक लेन स्थित श्री नोपानी विद्यालय, श्री शिक्षायतन कॉलेज में भी कहीं 10 प्रतिशत तो कहीं 15-20 प्रतिशत छात्र अल्पसंख्यक समुदाय से हैं।
बड़ाबाजार आज भी व्यवसाय का बड़ा केन्द्र है। क्षेत्र के कटरों या सडक़ की दुकानों में मुस्लिम महिलायें धड़ल्ले से खरीददारी करती हैं। सत्यनारायण पार्क एसी मार्केट में एक तिहाई के लगभग खरीददार बुर्का पहनी हुई महिलायें होती हैं। सिर्फ ग्राहक ही नहीं दुकानदारों में भी मुस्लिम भाई बढ़ रहे हैं। कोट्टी यानि चेम्बर ऑफ टेक्सटाइल्स ट्रेड एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष श्री महेन्द्र जैन ने बताया कि विगत पांच-छह सालों में क्षेत्र में एक सौ के आसपास दुकानें बिकी हैं जिनको मुस्लिम व्यापारियों ने खरीदा है।
कुछ लोग इसे गम्भीर समस्या मानते हैं। उन्हें मुसलमानों का प्रसार रास नहीं आ रहा है। विगत वर्षों में साम्प्रदायिक सद्भाव में आई दरार के कारण इसे हिन्दू समाज के लिए खतरा तक मान बैठे। लेकिन एक दूसरी भी ²ष्टि है जिसके नजरिये से देखा तो यह महानगरों में बदलता हुआ सामाजिक संतुलन है। अस्पतालों की भी स्थिति इससे भिन्न नहीं है। मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी के सचिव श्री प्रह्लाद राम गोयनका ने स्वीकार किया कि अस्पताल में भर्ती रोगियों में 50 से 60 प्रतिशत मुस्लिम हैं।
शिक्षालयों में बढ़ती हुई संख्या का कारण ढूंढऩे पर पता चला कि मुस्लिम समाज में भी अब शिक्षा के प्रति विशेषकर लड़कियों की शिक्षा के महत्व को वे समझने लगे हैं। एक मुस्लिम परिवार के मुखिया इसरुद्दीन एवं बुक बाईंडिंग का काम करने वाले राजा बाइन्डर से जब मैंने बात की तो उन्होंने कहा कि वे पेट काटकर भी अपने बच्चों को एवं लड़कियों को पढ़ाना चाहते हैं। साथ ही उनका मानना है कि हिन्दी या अंग्रेजी मीडियम से पढक़र ही वे जीवन में कुछ काम कर पायेंगे एवं नौकरी मिल जायेगी। उर्दू मीडियम में पढ़ाकर कोई लाभ नहीं मिलेगा। दूसरी तरफ बड़ाबाजार एवं आसपास स्कूलों में मारवाड़ी समाज के बच्चे अब बहुत कम रह गये हैं। दक्षिण कलकत्ता की नामचीन एवं महंगी अंग्रेजी माध्यम की स्कूलों में उनके बच्चे पढ़ रहे हैं। कुछ देश के बाहर भी बड़े खर्चा कर अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप पुरानी स्कूलों में छात्रों की कमी हो गयी। माहेश्वरी विद्यालय में चार हजार छात्रों में अब मुश्किल से आठ सौ छात्र बचे हैं। रिक्त स्थानों की बहुत हद तक मुस्लिम बच्चों ने पूर्ति की है। साथ ही मुस्लिम समाज के लोगों का अब मदरसों से मोह-भंग हो गया है। वे मजहबी शिक्षा में अपना भविष्य नहीं तलासते। उनकी नजर में मारवाड़ी समाज द्वारा शुरू की गयी एवं संचालित स्कूलें आदर्श हैं एवं उनकी धारणा है कि यहां अच्छी शिक्षा प्राप्त कर बच्चों का भविष्य सुरक्षित होगा। उर्दू मीडिया से भी हटकर अब बच्चे हिन्दी व इंगलिश मीडिया स्कूलों में अपना भविष्य तलासते हैं।
बड़ाबाजार की इस बदलते हुई टोपोग्राफी से बेचैन न होकर मारवाड़ी समाज को यह सोचना चाहिये कि कभी स्थान खाली नहीं रहता। कोई न कोई उसे भरेगा। समाज की स्कूलों में चाहे जो पढ़ें, समाज के बुजुर्गों का ध्याय देश में शिक्षा का प्रसार है। इसे सकारात्मक ²ष्टि से सोचना चाहिये एवं सरस्वती के मंदिर में जो भी आयें ुसका स्वागत होना चाहिये। व्यवसाय में भी हर व्यक्ति को बाजार में बैठने का अवसर मिलना ही चाहिये। तभी तो होगा सचमुच में सबका साथ और सबका विश्वास।

बदलाव होना स्वाभाविक है जहाँ भी हम नहीं रहेंगे वहाँ अन्य लोगों को आना ही चाहिए। डेमोग्राफी बदल रही है यह कोलकाता में भी अधिक है।
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