छठ व्रतियों की वेदना
कब समझेगी हमारी सरकार?
15-16 नवम्बर हावड़ा स्टेशन। 6 नम्बर प्लेटफार्म। ट्रेन में यात्रियों का चढऩा। ²श्य देखकर आपका माथा चकरा जायेगा। भेड़-बकरियों की तरह आरक्षित या गैर आरक्षित डब्बों के दोनों दरवाजे पर हुजूम बनकर चढ़ते यात्रीगण। ट्रेन जब चलने लगी तो कई यात्री तो प्लेटफार्म पर ही गिर पड़े। किसी का सामान अन्दर था तो यात्री बाहर गिरा पड़ा था तो कई यात्री अन्दर थे पर उनका सामान बाहर बिखरा हुआ था। भारत के बंटवारे का जब लोग ट्रेन की छत पर चढक़र अपने गंतव्य स्थान पर जा रहे थे, छठ पर भी लोग कुछ इसी तरह का नजारा देखने को मिलता है। उसके पहले हिन्दू-मुस्लिम दंगों में हजारों यात्रियों को मजबूरी में अपना घर छोडऩा पड़ा था। संभवत: उस वक्त भी ऐसा ही या इससे कुछ अधिक भयावह चित्र रहा होगा। हर वर्ष छठ पूजा पर कोलकाता एवं अन्य स्थानों से बिहार प्रवासी अपने गांव जाते हैं परिवार के साथ छठ पर्व माने के लिए। सभी अंचलों से सिर्फ ट्रेन ही नहीं ट्रकों, बसों पर सवार होकर बिहारी भाई अपने घर जाते हैं। ट्रेन की भीड़ में घुटकर कुछ लोगों का दम निकल जाता है और सांस तो सबकी फूल जाती है। छठ पर कुछ स्पेशल ट्रेन चलायी जाती है किन्तु जरूरत की तुलना में नगण्य।
छठव्रतियों का अपने गांव जाने के लिए हावड़ा स्टेशन पर रेल में पेलम पेल।
बिहार जाने वाली ट्रेनों की संख्या आवश्यकता से बहुत कम है। पहले चलने वाली कुछ ट्रेनें रद्द हो गयी हैं एवं जे ट्रेनें हैं उनमें सेकेण्ड क्लास के डब्बे कम हो गये हैं। इस दोहरी मार के चलते छठ पर्व मनाने के लिए जाने वाले कई लाख यात्री जान हथेली पर लेकर अपने गांव जाते हैं। इस भीड़ और वेदना के बावजूद शायद ही कोई व्यक्ति हो जो इनसे सहानुभूति रखता हो। आखिर इनसे सहानुभूति कोई क्यों रखेगा, ये भारतीय समाज के निचले पायदान के लोग हैं जो अपने रोजी रोटी के लिए गांव छोडक़र शहर की बस्तियों या जूट मिलों के इर्द-गिर्द संकरी गलियों में रहते हैं। सभी हिन्दू हैं। किन्तु हिन्दुओं के बारे में रात दिन चिन्ता करने वाले लोगों का इनके दुर्भाग्य से कोई सरोकार नहीं रहता। इनके रिजर्वेशन के चुनावी मुद्दे के लिए कई पार्टियां लड़ती हैं पर ट्रेनों में ये किसी तरह बैठकर चले जायें इसके लिए किसी पार्टी ने आज तक अपना एजेंडा नहीं बनाया, चुनावी घोषणापत्र में इसके लिए दो शब्द जोडऩे की बात तो दूर की बात है।
वैसे पूर्वी भारत से निकलकर यह पर्व दुनिया भर में प्रचलित हो गा है। छठ सिर्फ आस्था का पर्व नहीं है, ये उस विश्वास का त्यौहार है जहां कमाने के लिए परदेश गए बेटों की मां इस दिन लौट आने का भरोसा रखती हैं। कोलकाता, मुंबई समेत देश के कई नगरों एवं महानगरों में भर-भर कर जाने वाली ट्रेनें इस बात की गवाही देते हैं कि ये परिवारों को पास लाने का भी त्योहार है।
मैं कई बार सोचता हूं कि पूरे शरीर की हड्डियों को गला कर घर जाने की तडफ़ड़ाहट क्यों? पर्व तो और भी हैं होली-दिवाली-दशहरा पर ऐसा पलायन छठ पर्व पर ही क्यों होता है। कहते हैं कि छठ पूजा इतनी कठिन मानी जाती है कि किसी गैर प्रदेश में इसे मनाना असंभव सा है। इसीलिए तो छठ पूजा पर बिहार और यूपी के क्षेत्रों में जाने वाली ट्रेनों में पैर रखने की जगह नहीं होती। हर वर्ष एक ही तरह का ²श्य ट्रेनों में दिखता है। सारे कष्ट एवं मशक्कत के बावजूद हर वर्ष भीड़ कम होने का नाम नहीं लेती। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो जहां है वहीं छठ मना लेते हैं एवं अपनी परम्परा और मान्यता को जिन्दा रखने का प्रयास कर रहे हैं।
कैसी विडम्बना है कि बिहार प्रदेश ने देश को सबसे अधिक रेल मंत्री दिये हैं। आज बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी रेलमंत्री थे। इसके पूर्व लालू जी भी रेल मंत्री रह चुके हैं। देश की शीर्षस्थ नेता बाबू जगजीवन राम से लेकर बिहार के कई वरिष्ठ नेता रेलमंत्री रहे हैं। पर बिहार में रेल सेवा सबसे अधिक दुरावस्था में है।
यह व्रत काफी कठिन माना जाता है इसलिए इसे महापर्व छठ कहते हैं। छठ व्रत में व्रती महिलाएं करीब 36 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं। छठ का व्रत सन्तान की लम्बी आयु, परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। छठ में पूरा परिवार एकजुट होकर महापर्व को मनाता है। ऐसे में छठ पूजा को लेकर लोगों में एक अलग ही भावना है।
छठ पूजा से जुड़ी हुई कई मान्यताएं एवं कहानियां हैं। छठ मइया के पति का नाम बहुत कम लोगों को मालूम है। छठ मैया के पति कार्तिकेय हैं। कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र हैं और भगवान गणेश के भाई हैं। कुछ लोग जो अपने को भगवान शिव की सन्तान मानते हैं को शायद नहीं मालूम की छठ मैया उनके भाई की पत्नी यानि भाभी होती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक लंका के राजा रावण का वध करने के बाद श्री राम जब पहली बार अयोध्या पहुंचे थे उस समय श्री राम और सीता ने राम राज्य की स्थापना हेतु छठ का व्रत रखा था। दूसरी मान्यता यह भी है कि छठ व्रत की शुरुआत द्रौपदी से मानी जाती है। द्रौपदी ने पांडवों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए छठी मइया का व्रत रखा था। उसके बाद पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया था। महाभारत के मुताबिक दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और वे हमेशा सूर्य की पूजा करते थे। सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना की थी।
भातीय रेल की तरक्की अभूतपूर्व है। रेल किराया हवाई जहाज से सिर्फ टक्कर ही नहीं ले रहा है, बल्कि उससे आगे निकल गया है। छठ पूजा के दौरान प्रीमियम सुविधा ट्रेन का मुम्बई से पटना का सेकेण्ड क्लास एसी का रेल किराया 9395 रुपये पहुंच गया है। -प्रियंकर पालीवाल का पोस्ट
दर्दनाक मंजर सिर्फ कोलकाता में नहीं पंजाब में ओर भी भयावह दृश्य देखा गया।
ReplyDeleteछठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं