भारत की पांच ट्रिलियन इकोनॉमी
अगले पांच साल फ्री राशन
विश्व की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी बनने पर 80 करोड़ भारतवासियों को मुफ्त अनाज देना पड़ रहा है, अनुमान है कि 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनने के बाद यह संख्या 100 करोड़ के ऊपर जायेगी।
भारत अगले कुछ बरसों में 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनने के लिए कमर कस कर तैयार है। चीन, जर्मनी और अमेरिका जैसी बड़ी आर्थिक ताकतों पर छाये संकट के बीच भारत की इकोनॉमी फुल स्पीड से आगे बढ़ रही है। माना जा रहा है कि 2028 तक हमारा देश दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा।
बजट-2023 में अपने भाषण के दौरान वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने केन्द्र की मुफ्त राशन योजना को एक साल के लिए यानी 31 दिसम्बर 2023 तक के लिए बढ़ाने का ऐलान किया था। अब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इसे दिसम्बर 2028 यानि अगले पांच वर्ष तक के लिए बढ़ा दिया है।
देश के 80 करोड़ जरूरतमंदों को भोजन की गारंटी देने वाली इस योजना पर सरकारी खजाने से खर्च भी बड़ा होता है। साल 2023 के लिए इस योजना पर 2 लाख करोड़ रुपये खर्च को मंजूरी दी गयी है।
जाहिर है फ्री राशन या मुफ्त अनाज जिन 80 करोड़ लोगों को दिया जायेगा वे भारत के ऐसे नागरिक हैं जिनके पास जिन्दा रहने के न्यूनतम साधन नहीं है। स्वास्थ्य, शिक्षा, कपड़ा, आवास की बात तो दरकिनार। फिर भी आज हमारी इकोलॉमी विश्व की तीसरी बड़ी इकोनॉमी बन गयी है। फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया यानि स्नष्टढ्ढ अनाजों के भंडारण का काम देखती है। इस भंडारण में 221.67 लाख मेट्रिक टन चावल और 239.95 लाख मीट्रिक टन गेहूं है जो हमारे ही देश के किसानों ने देश की मिट्टी से उपजाए हैं। एक आंकड़े के अनुसार सरकार के पास फिलहाल जितना अनाज स्टॉक में है, उससे वो अगले लगभग एक साल तक गरीबों को मुफ्त में अनाज बांट सकती है। स्नष्टढ्ढ की स्थापना कांग्रेस काल में ही की गयी थी एवं राशन से देश के लोगों को उचित मूल्य में अन्न मुहैया करने की व्यवस्था भी कांग्रेस-काल की ही देन है। अप्रैल 2020 से दिसम्बर 2022 तक केन्द्र सरकार 1,118 लाख मेट्रिक टान अनाज मुफ्त दे चुकी है। इस पर सरकारी खजाने से 3.9 लाख करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं।
अब अनाज वितरण के मुद्दे को थोड़ी व्यापक सोच का हिस्सा बनाया जाये तो देश की दशा और दिशा को हम समझ सकेंगे। देश की बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था वर्तमान में दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था के बावजूद 80 करोड़ यानि लगभग 20 करोड़ परिवारों को मुफ्त अनाज योजना का सहारा लेना पड़ रहा है। जाहिर है अगर इन परिवारों को मुफ्त में अनाज नहीं मिले तो उसका एक बड़ा हिस्सा या तो भीख मांगेगा या फिर भुखमरी का शिकार होगा। यह अपने आप में स्वयं सिद्ध है कि 3 ट्रिलियन-5 ट्रिलियन- तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से देश के लोगों की बदहालीका कोई सम्बन्ध नहीं है। आज हमारी अर्थव्यवस्था यूके जैसे देश को भी पीछे छोड़ चुकी है किन्तु यूके में लोगों की सामाजिक सुरक्षा एवं वहां के न्यूनतम आय वाले व्यक्ति के जीवन यापन का जो स्तर है, क्या हम उसकी कल्पना भी कर सकते हैं? ये आंकड़े शिक्षित एवं शहरी लोगों को लुभावने लग सकते हैं किन्तु यह विडम्बना है कि देश की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था का आमलोगों या देश की अधिकांश लोगों की बदहाली पर कोई असर नहीं डालती। जब भारत की इकोनॉमी 5 ट्रिलियन की हो जायेगी तो अनुमान है 100 करोड़ या उससे भी अधिक लोगों के लिए सरकार को मुफ्त अनाज की व्यवस्था करनी पड़े।
देश के लाखों परिवार सडक़ पर गुजर-बसर करते हैं।
फिर यह बुलेट ट्रेन की रफ्तार से बढ़ती हुई इकोनॉमी का स्रोत कहां पर है। आक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल नवम्बर तक हमारे देश में अमीरों की दौलत में एक सौ इक्कीस फीसदी बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं इस दौरान अरबपतियों की संख्या में बहुत तेजी आई है। इस दौरान शीर्ष अमीरों की प्रतिदिन की कमाई 3608 करोड़ रुपये रही। रिपोर्ट की सबसे चौंकने वाली बात यह है कि 2021 में 5 फीसद भारतीयों के पास देश की 62 फीसदी से भी ज्यादा दौलत थी जबकि पचास फीसद आबादी के पास केवल तीन फीसदी संपत्ति थी। इस समय देश के शीर्ष इक्कीस धनाढ्यों के पास ही भारत के सत्तर करोड़ लोगों की कुल संपत्ति से भी ज्यादा दौलत है। देश के सौ सबसे अमीर लोगों की कुल संपत्ति 660 अरब डॉलर यानि करीब 54.12 लाख करोड़ रुपये हो गयी है। भारत के संबंध में रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अगर अरबपतियों पर केवल दो फीसद कर लगाया दिया जाये तो सरकारी खजाने में एक साल में 40423 करोड़ रुपये इक_ा हो जायेंगे जिससे पूरे तीन वर्षों तक कुपोषित लोगों को भोजन दिया जा सकता है। लेकिन मुफ्त में भोजन खिलाकर कोई समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
बहरहाल जिस प्रकार चंद हाथों में पूंजी सिमटती जा रही है उसके भावी खतरों की अनदेखी करना उचित नहीं होगा। असमानता या आर्थिक विषमता की खाई अगर इसी तरह चौड़ी होती गयी तो देश का विशाल मध्यम वर्ग लोप हो जायेगा जिसकी प्रक्रिया हमारे देश में शुरू हो चुकी है। आर्थिक-सामाजिक संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सरकारी योजनाओं को अधिक उत्पादनमुखी एवं वितरण व्यवस्था को अधिक जनोन्मुखी बनाने की नितान्त आवश्यकता है। इतिहास साक्षी है कि महाभारत का युद्ध हो या रूसी और फ्रांसीसी क्रांति, इसी आर्थिक विषमता की पराकाष्ठा की ही परिणति है।
धनवान बने तुम सब के सब, या धर लो भेष फकीरी का
पर भेद मिटा दो भारत से अमीरी और गरीबी का।
(गोपाल सिंह नेपाली की कविता का अंश)
Comments
Post a Comment