दुर्गापूजा उत्सव का समापन - दिवाली की प्रतीक्षा

दुर्गापूजा उत्सव का समापन

दिवाली की प्रतीक्षा

दुर्गापूजा उत्सव का समापन हो गया। मां दुर्गा की विधिवत या अश्रपूर्ण विदाई बंगाल की दुर्गापूजा का अभिन्न अंग रहा है। कोलकाता एवं बंगाल के हर हिस्से में दुगने उत्सव के साथ इस बार महापर्व को मनाया गया। पंचमी से लेकर दसमी तक पूजा पंडालों में दर्शनार्थियों की भीड़ रही। जैसा कि पहले भी परम्परा रही है पंडालों की भव्यता एवं थीम को राज्य सरकार की ओर से पुरस्कृत किया गया, उनके आयोजकों का सम्मान हुआ। शुक्रवार को पिछले वर्ष की तरह पूजा कार्निवल रेड रोड पर आयोजित हुआ। दिल्ली में गणतंत्र दिवस की पैरेड के तर्ज पर यह कार्निवल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का अत्यन्त पसंदीदा प्रोजेक्ट है जिसे वे अपनी देखरेख में मनाती हैं। इस बार दीदी पांव में चोट की वजह से व्यक्तिगत रूप से कहीं नहीं गयी। कार्निवल में ह्वील चेयर के सहारे वह पहुंची एवं कार्निवल का अभिवादन किया। इस कार्निवल के अद्भुत ²श्य एवं एक सौ मूर्तियों के मार्च पास्ट को 18 हजार लोगों ने देखा। एक अद्भुत एवं नयनाभिराम ²श्य था। कुछ लोगों का अभियोग है कि ममता-राज में दुर्गापूजा मनाने की अनुमति नहीं है, उनके इस प्रचार को कार्निवल ने न सिर्फ ध्वस्त किया बल्कि आधारहीन कुत्सित प्रचार की हवा निकाल दी। आलोचना किसी भी आयोजन की हो सकती है किन्तु उसके तथ्य को इस तरह से नजरंदाज करना दिमागी दिवालियापन ही होगा।


बंगाल में दुर्गापूजा सिर्फ एक धार्मिक पर्व ही नहीं अपितु इससे भी अधिक एक सांस्कृतिक पक्ष है। पंडालों में सजावट, रोशनी, परिधान के साथ अलग-अलग थीम पर आधारित पूजा की इस समय बहुत चर्चा भी होती है। सन्तोष मित्रा स्क्वायर में राम मन्दिर की झांकी जैसी थीम पर बनी पूजा देखने लोगों की भीड़ उमड़ी। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूजा में ट्राफिक नियंत्रण संतोषजनक रहा। लेकटाऊन की श्रीभूमि पूजा को देखने में इतनी भीड़ उमड़ी कि एयरपोर्ट का रास्ता अवरुद्ध हो जाने के परिणामस्वरूप कई हवाई यात्रियों की प्लेन छूट गयी। एयरपोर्ट अथॉरिटी ने पुलिस से शिकायत की तो मुख्य आकर्षण ‘लेजर शो’ बन्द करवा दिया गया। इसी तरह संतोष मित्रा स्क्वायर में अयोध्या में निर्माणाधीन राम मन्दिर की तर्ज पर बनवाया गया पंडाल आकर्षण का केन्द्र हो गया। भीड़ सम्भालना मुश्किल हो गया तो पंडाल का दरवाजा बन्द करना पड़ा। कहते हैं कि इस बार पूजा की भव्यता और थीम में उत्तर कोलकाता ने दक्षिण कोलकाता को पटकनी दे दी। श्रीभूमि डिजनीलैंड, ऋतुमती (महिलाओं के मासिक), संभावना थीम में सकारात्मक सोच, अहिरीटोला में सोमनाथ मन्दिर एवं आदि बाड़ी, बड़ा बाजार में द्वारिकाधीश अपनी भव्यता के लिए आकर्षण का केन्द्र बने रहे।

पूजा के दिनों में समानान्तर डांडिया ने भी धूम मचायी। नि:सन्देह नेताजी इंडोर स्टेडियम में सप्तमी, अष्टमी और नवमी को हुए ताजा डांडिया पर तीन दिनों में पचास हजार पांव थिरके और डांडिया का युवाओं ने भरपूर आनन्द लिया। इस डांडिया की विशेष बात यह है कि इसमें परिवार के लोग सामूहिक रूप से भाग लेते हैं। चार पीढिय़ों को एक साथ नृत्य करते देखा गया। कुछ महिलायें जोधपुरी लिवास में डांडिया कर रही थी एवं उन्होंने पुरस्कार भी जीते। लिवास एवं माथे पर राजस्थानी बोरिया में इन महिलाओं के साथ सेल्फी एवं फोटो लेने की होड़ मच गयी थी। ताजा डांडिया में अमरीकी कौंसुल जनरल मलिन्डा के साथ अमेरिकन सेन्टर की एलिजाबेथ ली एवं राज्य की दो महिला मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य एवं डा. शशि पांजा ने डांडिया खेलकर ताजा डांडिया शो में चार चांद लगा दिये।

दसमी की शाम से ही मूर्ति भसान का सिलसिला शुरू हो गया। मूर्तियों का विसर्जन भी एक अजीब ²श्य उपस्थित करता है। विसर्जन के पूर्व सिंदूर खेला में महिलायें एक-दूसरे को सिंदूर से लेपती हैं एवं उनके मुख पर लालिमा एक मनोरम ²श्य प्रस्तुत करता है।

दुर्गापूजा की छुट्टियां बैंकों और दफ्तरों में सात दिन की एवं स्कूलों में बारह दिनों से एक महीने की होती है। दफ्तर एवं कारोबार विश्राम लेते हैं किन्तु रास्ते पर रेस्तरां में खाने वालों की भीड़, पुचके वाला खोमचा के सामने खड़े होकर पुचका से मुंह फुलाकर गटकने का आनन्द लेने वाले कभी बोर नहीं होते। दुर्गापूजा का आनन्द पंडालों की तरह बाहर भी बिखरा रहता है। बंगाली इन छह-सात रातों में सोता नहीं है, खूब परिक्रमा लगाता है। बूढ़ी मां हो या ठाकुर दा उम्र को लांघ कर घूमने-फिरने का आनन्द लेते हैं।

दुर्गापूजा दुनिया भर के बंगाली समाज को कनेक्ट करती है। विदेशों में बंगाली परिवार दुर्गा की मूर्तियों के पास जमा रहते हैं। इन दिनों बंगाली प्रवासी पार्टियां करते हैं एवं समाज के आन्तरिक मेलजोल का भरपूर आनन्द लेते हैं। इस दौरान वे विदेशों में बंगाली बनकर ही जीना पसन्द करते हैं। भारत के दूसरे हिस्सों में प्रवासी भी पूजा के दौरान बंगालियों के भाईचारे में कोई दखल नहीं देते।

दुर्गापूजा के बाद कुछ दिन का विराम। तूफान के पहले शान्ति से उलट यहां दूर्गापूजा के बाद कोलाहल शान्त हो जाता है। पूजा भसान के बाद सडक़ें सुनसान सी लगती है। बड़ी संख्या में लोग पूजा की छुट्टियां मनाने बाहर चले जाते हैं। अब विदेश जाने वालों की संख्या भी काफी बढ़ गयी है। विदेश में दुबई जाने वालों की संख्या काफी होती है। इन दिनों दुबई शहर में 80 फीसदी विदेशी लोग होते हैं जिनमें सबसे अधिक भारतीयों की संख्या होती है।

अक्टूबर-नवम्बर-दिसम्बर त्यौहारों का मौसम कहलाता है। देश भर में मौसम रुमानी रहता है और प्रकृति का आनन्द उठाने का यही सबसे सटीक समय है। ट्रेवलिंग एजेंसी जो कोविड काल में अपने अस्तित्व का खतरा झेल रही थी, तीन वर्षों के दुर्दिन के बाहर आ गयी है। पिछले वर्ष में उनका बाजार सामान था पर इस बार ट्रेवलिंग बाजार गर्म रहा और इस क्षेत्र में कारोबारी के चेहरे पर फिर चमक आ गयी। ट्रेवलिंग एजेन्सी के साथ इन्टरटेनमेन्ट इंडस्ट्री के भी अच्छे दिन लौट आये। होटल, रेस्तरां, सिनेमाघरों एवं मनोरंजन के अन्य साधनों की कमाई हुई।

हिन्दीभाषियों का अब बड़ा पर्व दिवाली आने ही वाला है। लेकिन पटाखों की आवाज अब अतीत की बात हो गयी। आवाज वाली कानफाड़ू आतिशबाजी कुछ वर्षों से बन्द है। दीपावली मनाने के पीछे मान्यता कुछ भी हो, लोग त्यौहार का आनन्द सभी लेते हैं। दु:ख की बात है कि समृद्धि तो आयी है लेकिन मूल्यों का क्षरण हो गया है। मध्यम श्रेणी के एक वर्ग के पास इतना पैसा आ गया है कि इसका अतिशय दुरुपयोग हो रहा है। आज महंगे-महंगे उपहार देना, जुआ खेलना, शराब पीना इस त्यौहार का अभिन्न अंग बन गया है।

दरअसल रोटी कपड़ा और मकान की जद्दोजहद में एक आम इंसान अवसाद में घिर ही जाता है। इसीलिए समाज ने हर ऋतु के अनुरूप थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद त्यौहारों की संरचना की, ताकि जीवन में आनंद और समरसता के साथ-साथ शक्ति और प्रफुल्लता का संचार हो सके। जीवन की कषुणता और स्वार्थ को मिटाने के वास्ते ही हमारे पूर्वजों ने त्यौहारों की रचना की है।


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