ताजा डांडिया - महानगर की सबसे बड़ी सांस्कृतिक धूम

ताजा डांडिया

महानगर की सबसे बड़ी सांस्कृतिक धूम

वर्ष 2012 में नेताजी इन्डोर स्टेडियम में ताजा डांडिया अपने पूरे परमान चढ़ चुका था। इस सांस्कृतिक आयोजन का यह तीसरा साल था। स्टेडियम में किसी का बेसब्री से इन्तजार हो रहा था। और समय से पन्द्रह मिनट पहले ही वे आये जिन पर लोगों की नजरें बिछी हुई थी। वे और कोई नहीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी थी। टाऊन हॉल में किसी सरकारी कार्यक्रम के बाद वह स्टेडियम की ओर कूच कर गयी। दीदी ने अपनी गाड़ी का भी इन्तजार नहीं किया और पैदल ही मार्च कर दिया अपने मंत्रिमंडल के कुछ सहयोगियों के साथ। मुख्यमंत्री बहुत तेज चलती है। उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना हर किसी के बूते की बात नहीं। राज्य के मंत्रियों में कुछ ही हैं जो तेज चलकर दीदी के साथ कदम रख पाते हैं। फिरहाद हकीम साहब, उस वक्त कलकत्ता के मेयर शोभन देव चट्टोपाध्याय, अरुप राय के साथ कुछ देर में ही नेताजी स्टेडियम के पीछे वाले दरवाजे से अपने काफिले के साथ प्रवेश किया। दीदी मंच पर जाने की बजाय स्टेडियम में उपस्थित लोगों से मिली। किसी से हाथ मिलाया तो किसी को देखकर हाथ हिलाया और बिजली की तरह चमकती और अपने चिर परिचित अन्दाज बिखेरती हुई कुछ देर में ही वह मंच पर थी। दीदी का प्रवेश बड़ा धमाकेदार हुआ, इसलिए मैंने विशेष रूप से उसका एक रनिंग कमेन्टरी की तरह जिक्र किया। ममता जी का आना हमारे लिए बड़ा महत्व रखता था क्योंकि देश की सबसे चर्चित मुख्यमंत्री का हम पर वरदहस्त है, इस अहसास से हम गद्गद् थे।




कार्यक्रम शुरू हुआ। राज्य मंत्रिमंडल के कई सदस्य, शहर के मेयर जैसी कई हस्तियों से मंच शोभा तुंग पर धी। स्वागत आदि की औपचारिकताओं के बाद भषण शृंखला शुरू हुई। नेताजी इन्डोर खचाखच भरा हुआ था। और दीदी चारों ओर नजर घुमाकर सबका सांकेतिक अभिवादन कर रही थी। मुझे स्वागत भाषण देना था। ताजा डांडिया, क्यों और कैसे शुरू हुआ, संक्षेप में मुख्यमंत्री का अभिनन्दन करते हुए मैंने बताया। इसी संदर्भ में दीदी की ओर मुखातिब होकर मैंने कहा- दीदी ‘’Politics Divide But Culture Unites’’ और मेरे यह कहने से मुख्यमंत्री के चेहरे पर कुछ हलचल सी हुई और लगा वह तुरन्त कुछ प्रतिक्रिया देना चाहती हैं। पर उन्होंने अपने ‘टर्म’ का इन्तजार किया। ममता ने कुछ शिष्टाचार मूलक बातों से अपना भाषण शुरू किया और फिर उन्होंने मेरे .....Culture Unites  वाले वक्तव्य का हवाला देते हुए बंगाल में ‘कल्चर’ को किस तरह समावेशी बनाया है- इस पर ही अपना वक्तव्य केन्द्रित किया। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री ने भी मेरे वक्तव्य को अपनी ओर से अन्डरलाइन यानि रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि बंगाल में सभी धर्मों का हम हाथ फैलाकर स्वागत करते हैं। हम धर्म अपना-अपना, उत्सव सबका। ममता ने इन्डोर में हजारों लोग जो अधिकांश हिन्दी भाषी थे को हिन्दी में ही सम्बोधित किया। इस बात को दोहराया कि ताजा टीवी का डांडिया हर साल यहीं होगा और हम सब उसमें पूरे जोश के साथ शरीक होंगे। ममता ने कहा कि डांडिया हो या गरबा, छठ पूजा हो या ईद, दिवाली हो या होली, हम सब मनाते हैं और मनाते रहेंगे। यही बंगाल है और यही हमारा Culture  है- और हम भरोसा देते हैं कि बंगाल किसी भी जाति या धर्म की खुशी में हमेशा शरीक होता रहेगा।

ताजा डांडिया इसी संस्कृति का एक जीवन्त उदाहरण है। इसका प्रारम्भ गुजरात से हुआ हो पर कोलकाता या बंगाल में यह उतनी ही गरिमा और उत्साह के साथ मनाया जाता है बल्कि गुजरात या महाराष्ट्र में रात बारह बजे तक ही डांडिया खेला जाता है किन्तु हम नेताजी इन्डोर में सारी रात डांडिया एवं रास गरबा खेलते हैं। परम्परागत डांडिया में हृदयस्पर्शी गीत, मनमोहक नृत्य के साथ नयनाभिराम वेशभूषा देखते ही बनते हैं। दिलचस्प बात यह है कि परम्परा का निर्वाह जहां बखूबी होता है वहीं आधुनिक नृत्य एवं गीत पर भी हजारों युवा युवतियां थिरकते हैं। परम्परा और आधुनिकता का अपूर्व संगम देखते ही बनता है। साथ में फूड कोर्ट और खाने-पीने का भी उत्तम प्रबन्ध ताजा डांडिया का अभिन्न अंग है।

हमें इस बात का फक्र है कि गत तेरह वर्षों से हो रहे इस महोत्सव में हर बार पचास-साठ हजार लोगों का मजमा रहता है। अधिकांश युवक और युवतियां, चार पीढिय़ां एक साथ पारिवारिक माहौल में डांडिया पर थिरकती हैं। पर देवी कृपा से एक अनुशासित हुजूम ने डांडिया खेल कर यह महोत्सव मनाया है। पुलिस एवं सादी पोशाक में सुरक्षा का पूरा बंदोवस्त रहता है किन्तु अभी तक हस्तक्षेप की नौबत नहीं आई। निश्चित रूप से इसका श्रेय आगन्तुक परिवारों को है।

ताजा डांडिया का ध्येय सिर्फ मनोरंजन नहीं रहा है। मुख्यमंत्री ममता जी ने ठीक ही कहा था- धर्म अपना-अपना पर उत्सव या त्योहार सबका। वैसे भी बंग भूमि ने पूरे देश को एकता और भाईचारे का संदेश दिया है। भारतीय संस्कृति की यही खूबसूरती रही है कि इसने वसुधैव कुटुम्बकम का मंत्र फूंका। पूरी पृथ्वी ही हमारा कुटुम्ब यानि परिवार है। प्रधानमंत्री जी ने कई बार यह मंत्र दोहराया है। यह सच है कि भारत विश्व गुरु तभी बन सकता है जब वह हमारे इस वैदिक सिद्धान्त को अमल में लाये। आज के वैश्विक माहौल में जहां दो दिशाओं में युद्ध की विभीषिका में मानवता शर्मसार हो रही है। रूस-यूक्रेन में कई लाख लोगों का संहार हो चुका है, दूसरी तरफ इजराइल-हमास संघर्ष ने अस्पताल के मरीजों तक को नहीं बख्शा।

इस पाश्विक माहौल में भले ही नक्कारखाने में तूती की आवाज सा लगता है पर अंत में न्याय और सत्य की ही विजय होती है। कम से कम भारत इस बात को समझता है।

सभी पाठकों एवं शुभचिन्तकों को नवरात्रि एवं दशहरा की शुभकामना।

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