भारत में विकास मैराथन के तीन अग्रणी

भारत में विकास मैराथन के तीन अग्रणी

भारत का खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना बीसवीं सदी की दुीनिया की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। इसके नायक प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन का निधन 98 वर्ष की उम्र में 28 सितम्बर को हो गया। स्वामीनाथन के निधन से एक युग समाप्त हुआ है। डॉ. स्वामीनाथन को भारत में कृषि क्रान्ति के लिए याद किया जायेगा। भारत एक कृषि प्रधान देश है, अत: स्वामीनाथन के उपकार को भारत कभी नहीं भूलेगी।

इसी संदर्भ में मैं स्मरण करना चाहता हूं ऐसे तीन महान लोगों को जो विकास के मैराथन में सबसे आगे हैं। डा. स्वामीनाथन कृषि क्रान्ति के नायक एवं भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने वाले महानायक हैं तो श्वेत क्रांति के जनक हैं वर्गीज कुरियन जिन्होंने भारत को दुनिया में दूध उत्पादन के मामले में सबसे बड़ा देश बनाया। तीसरे महानायक हैं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह जिन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था का पासा ही पलट दिया।

एमएस स्वामीनाथन

सबसे पहले हम बात करें डा. एम एस स्वामीनाथन की। आजादी के बाद भारत के सामने सबसे बड़ा सवाल भूख का था। भारत को आजादी 1943 के बंगाल के भीषण अकाल के चार साल बाद मिली थी। स्वतंत्रता के बाद भारत को अमेरिका और कनाडा से जहाजों से अनाज मंगवाना पड़ता था। भारत यदि उन हालात से बाहर निकला है तो यह एम एस स्वामीनाथन के नेतृत्व से ही संभव हुआ। कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने अपनी पुस्तक में लिखा4 है कि 1966 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ स्वामीनाथन कार से पूसा स्थित कृषि अनुसंधान संस्थान आ रहे थे, जिसके वे निदेशक थे। रास्ते में इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा- क्या आगले कुछ साल में आप 10 मिलियन टन की सरप्लस पैदावार सुनिश्चित कर सकते हैं, क्योंकि मैं इन बदमाश अमरीकी लोगों से पिंड छुड़ाना चाहती हूं। स्वामीनाथन ने कहा- यस मैम, उन्होंने मुझे बताया कि कार में हुई उस आधे घंटे की यात्रा में इतिहास लिखा गया। उन्होंने बताया कि मेक्सिको से बीजों को लेकर कई तरह के तर्क-वितर्क चल रहे थे। लेकिन श्रीमती गांधी से किये गये उस वादे के बाद सब दुरुस्त हो गया।

स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में हुआ था। इस कृषि वैज्ञानिक ने दो कृषि मंत्रियों सी सुब्रमण्यम और जगजीवन राम के साथ मिलकर देश में हरित क्रांति लाने का काम किया। स्वामीनाथन ने अपने कार्यकाल के दौरान कई प्रमुख पदों को संभाला था। वे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक, आईसीआर के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव, कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव नियुक्त किये गये थे। स्वामीनाथन ने देश में धान की फसल को बढ़ावा देने में अहम् भूमिका निभाई थी। उन्होंने धान की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में बड़ा योगदान दिया था। इस पहल के चलते पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को काफी मदद मिली थी। 1960 के दशक के दौरान उन्होंने अकाल के खतरे को रोक दिया था। वे पौधों के जैनेटिक साईंटिस्ट थे। 1966 में मेक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ हाइब्रिड करके हाई क्वालिटी वाले गेहूं के बीज विकसित किये थे। विश्व खाद्य पुरस्कार (1987) पाने वाले पहले व्यक्ति बने। 1987 में कृषि के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार कहे जाने वाला प्रथम खाद्य पुरस्कार मिला था। उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। कृषि के क्षेत्र में स्वामीनाथन को 40 से अधिक पुरस्कार मिले थे।

महात्मा गांधी ने कहा ता- अगर भगवान रोटी के रूप में गरीबों और भूखों के सामने प्रकट होते हैं तो वह भगवान डा. स्वामीनाथन हैं। हर भारतीय को रोज भोजन करते समय उनकी पूजा करनी चाहिए।

वर्गीज कुरियन

भारत के गौरव की त्रिमूर्ति में दूसरे हैं श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन जिनके भागीरथ प्रयास से भारत को डेयरी डेवलपमेंट को नई उड़ान मिली। इसके साथ ही देश में मिल्क और मिल्क प्रोड्क्ट्स बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनी अमूल की शुरुआत भी डा. कुरियन ने ही की थी। उनके प्रयास एवं दूर²ष्टि से अमूल ब्रांड भारत के घर-घर में पहचाना जाने लगा। 1965 में भारत में आपरेशन फ्लड की शुरुआत डा. वर्गीज कुरियन की अध्यक्षता में की गयी। अमूल की सफलता के बाद साल 1965 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने डा. कुरियन को नेशनल डेवलपमेंट बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया। डा. कुरियन के प्रयासों के कारण भारत में श्वेत क्रांति शुरू की गयी। इसके बाद में आपरेशन फ्लड का नाम दिया गया। 1998 में भारत ने अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादन करने वाला देश बन गया। साल 2010-11 में भारत में पूरी दुनिया का कुल 17 फीसदी दूध का ुत्पादन होता है। साल 2012 में डॉ. वर्गीज कुरियन का 90 साल की उम्र में निधन हो गया।

डॉ. मनमोहन सिंह

भारत के विकास पुरुषों में डा. मनमोहन सिंह का नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। जब पी वी नरसिंहा राव देश के प्रधानमंत्री थे तब देश का विदेशी मुद्रा भंडार चिंताजनक स्तर तक गिर गया था। तब नरसिंहा राव ने डा. सिंह को वित्तमंत्री बनाकर उनकी काबिलियत का भरपूर उपयोग किया था। डा. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 में अविभाजित भारत में हुआ था। वह दो बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। डा. मनमोहन सिंह ने देश में हुए आर्थिक सुधारों में अहम् रोल निभाया था। उन्होंने उस समय बजट पेश करते हुए वैश्विकरण, उदारीकरण और निजीकरण जैसी अहम् घोषणाएं की जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती और रफ्तार मिली और उन्हीं घोषणाओं की बदौलत ही देश में व्यापार नीति, औद्योगिक लाइसेंसिंग, बैंकिंग क्षेत्र में काफी तरक्की हुई।


डॉ. मनमोहन सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक और वियना में मानवाधिकार पर हुए विश्व सम्मेलन में 1993 में साइप्रस के भारतीय प्रतिनिधिमंडल का आपने नेतृत्व किया था। 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। बाद में योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे।

डा. मनमोहन सिंह के आर्थिक पांडित्य का भारत ही नहीं पूरी दुनिया लोहा मानती है। वे जब वित्तमंत्री थे, तब एशिया का उन्हें सर्वश्रेष्ठ वित्तमंत्री घोषित किया गया था।स डा. सिंह दो बार प्रधानमंत्री रहे किन्तु अपनी सरलता एवं ईमानदारी के लिये भारत के राजनीतिक इतिहास में उनका व्यक्तित्व अनूठा था। राजनीतिज्ञ के रूप में नहीं अपितु एक आर्थिक सुधारक एवं वित्तीय मसीहा के रूप में उन्हें जाना जाता है।

इस तरह भारत के विकास-मैराथन में इन तीन महापुरुषों का व्यक्तित्व एवं कृतित्व अतुलनीय है। डा. सिंह 91 वर्ष के हो चुके हैं। लोकंतंत्र के सजग प्रहरी डा. सिंह हाल ही में अस्वस्थता के बावजूद अविश्वास प्रस्ताव पर अपना वोट देने ह्वील चेयर पर आये थे। इस महान अर्थशास्त्री को भारत का नवरत्न कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।


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