सनातन बनाम सनातन
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमम के स्टालिन के पुत्र उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म पर मिसाइलें दागते हुए कहा सनातन धर्म को डेंगू, मलेरिया आदि बीमारियों की तरह खत्म करना चाहिये। उनके इस बयान की प्रतिक्रिया भी तीव्र हुई और एक हिन्दू धर्म के मंसूबदार ने उनकी गर्दन काट कर लाने वाले को दस करोड़ का खुला ऑफर दिया है। उधर ए राजा ने भी इसकी तुलना एचआईवी और कुष्ट रोग से कर दी। इन वक्तव्यों का सनातन धर्म के मानने वाले कुछ लोगों ने भारी विरोध किया। चुनाव आसपास हैं - पांच राज्यों में चुनाव दो महीने बाद ही हैं और लोकसभा के चुनाव भी अगले वर्ष के चौथे या पांचवें महाने में होंगे। सनातन धर्म पर प्रहार को भाजपा और विशेषकर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लपक लिया और यहां तक कह दिया कि ‘‘घमंडिया एलायंस’’ वाले देश को एक हजार वर्ष पीछे धकेलना चाहते हैं। खौर राजनीति में प्रतिरोध आवश्यक अंग है किन्तु अब यह प्रतिरोध किसी भी सीमा तक जा सकता है।
मैं सनातन धर्म अवलम्बी हूं और मेरा अपना यह विचार है कि बहु धर्मावलम्बी देश भारत में किसी को भी किसी किसी के धर्म पर प्रहार करने और उसे भला बुरा कहने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिये। दुर्भाग्यवश हमारे देश में बात-बात पर दोनों तरफ तलवारें तन जाती है। सनातन धर्म जब यह कहता है- धर्म की जय हो, अधर्मियों का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो तो उस सनातन यानि इंसानियत के धर्म के मर्म को समझना चाहिए। इस मूल मंत्र को सार्थक बनाने हेतु सनातन या हिन्दू धर्म में समय समय पर सुधार हुए हैं। सुधार तभी सम्भव होता है जब धर्म के अनुयायियों में सहिष्णुता हो, धैर्य हो एवं परिवर्तन करने को आवश्यकता महसूस हों। आज जो बातें अप्रासंगकि हैं और मानवता के मूल धर्म के खिलाफ हो उन्हें निकाल देना चाहिए। अतीत में ऐसा किया भी गया है। हमारे यहां कबीर, तुलसी, मीरा, रैदास ने सनातन धर्म के कई विकारों का विरोध कर उसमें सुधार किया है। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की एवं मूर्ति पूजा का खुलकर विरोध किया। महात्मा गांधी ने हरिजनों का मंदिर में प्रवेश करवाया और इस कलंक को धोने की सफल चेष्टा की। मीरा पहली नारी है जिसने राजमहल के विरुद्ध बगावत की।
भगवान बुद्ध
भगवान महावीर
सनातन धर्म या हिन्दू धर्म का प्रचार नहीं हुआ। जबकि हमारे देश से ही उद्भव हुए बौद्ध धर्म को एशिया में कई देशों में दूर-दूर तक प्रसारित किया गया। तीर्थंकर स्वामी महावीर एवं उनके अनुयायियों ने जैन धर्म का देश के अन्दर ही प्रचार किया। लेकिन भारत भूमि की यह महानता रही कि उसने हर धर्म और विश्वास के लोगों को गले लगाया। सनातन धर्म उदार या सहिष्णु नहीं होता तो भारत में दुनिया में प्रचलित हर धर्म के लोग अपना तम्बू नहीं गाड़ पाते। यह भी सच है कि हिन्दू धर्म ही गांधी जैसा विलक्षण व्यक्ति पैदा कर सकता है। कई धर्म प्रचारकों ने सनातनी हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराके अपने अनुशासन में शामिल किया। लेकिन हिन्दू धर्म के मानने वालों ने इसका भी बुरा नहीं माना, कभी प्रतिरोध नहीं किया।
आज हममें से कुछ लोग सनातन धर्म की व्यापकता एवं उसके उदार समावेशी स्वभाव को कोसते हैं। लेकिन वे भूल जाते हैं कि हममें से ही लोगों ने बुद्ध धर्म को अंगीकार क्यों किया। बुद्ध ने अपने धर्म को लेकर कहा-‘‘एस धम्मो सनन्तनों’’ यानि मैं जो कह रहा हूं वही सच्चा सनातन धर्म है।
भारत के संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकर जैसे लोगों ने बौद्ध धर्म को क्यों अपनाया। भगवान महावीर ने अहिंसा का पाठ पढ़ाकर जैन झर्म से लोगों को जोड़ा। जैन धर्म में कड़े प्रावधानों के बावजूद कई लोगों ने जैन धर्म को स्वीकार किया। इसी तरह कई क्षेत्रों में लोगों ने ईसाई धर्म को भी अपनाया। ज्यादातर ईसाई बनने वाले बहुत पिछड़े क्षेत्रों एवं उन स्थानों से हैं जिनमें प्रगति और सनातन धर्म के सुधारों को अमल में नहीं लाया गया। जैसे नागालैंड, मेघालय, झारखंड, केरल। इन क्षेत्रों में ईसाई मिशनरी ने गरीबों की मदद के लिये हाथ बढ़ाया, उनकी चिकित्सा एवं उपचार किया एवं उन्हें शिक्षित किया। हमारी जाति प्रथाओं, हरिजनों एवं पिछली जाति के लोगों पर जमींदारों एवं भूपतियों द्वारा किये गये अत्याचार के साथ विसंगतियों के चलते बहुत लोगों ने इस्लाम धर्म को गले लगाया। अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए हमने कहा मुस्लिम शासकों ने तलवार के बल पर मुसलमान बनाया। अगर ऐसा होता तो मुस्लिम काल एवं मुगलकाल में पूरे भारत का इस्लामीकरण हो जाता। इस तथ्य को अगर हम स्वीकार नहीं करते तो कभी भी समस्या की तह तक नहीं पहुंच सकते।
भारत के संविधान में इन सब सुधारों को शामिल किया गया। एक सद्भावपूर्ण, जाति भेद, सम्प्रदाय भेद से ऊपर उठकर अम्बेडकर साहब ने संविधान की रचना की। बाबा साहब इस महती कार्य में सफल इसलिए हुए क्योंकि सनातनी वर्ण व्यवस्था एवं सामाजिक विसंगतियों का दंश उन्होंने झेला था। हमारी कुछ पुरानी जाहिल परम्पराओं जैसे बाल विवाह, विधवा विवाह वर्जना, अन्तर्जातीय विवाह को खारिज करने, बाल श्रम, बहुविवाह प्रथा, ऊंजी जात और नीची जात आदि को संविधान में वर्जित करके एक नये प्रगतिशील के साथ भारत की ऋषि परम्परा एवं महानता थे जो पंचतंत्र की कहानियों में समाहित है के अनुरूप बनाने का सफल प्रयास किया।
किन्तु हमारे देश में एक अजीब फिजा सी बन गयी है। हमारे चुनाव जनोन्मुखी नहीं होकर भावनोन्मुखी हो गये हैं। जाति, धर्म की भावनाओं को भडक़ा कर हम देश के आवाम के असली मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहते हैं। मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे सभी हमारी आस्था के केन्द्र हैं। लेकिन कोविड के समय सभी बन्द थे। आसमान तो टूट कर नहीं गिरा। क्या यह सच नहीं है कि कई मन्दिरों के पास सनातनियों मुस्लिम भाइयों को नमाज अदा करने की अनुमति दी तो कई हिन्दुओं की मृत्यु होने पर घरवाले शव लेने नहीं आये और पड़ोसी मुसलमानों ने कंधा देकर उन्हें श्मशान तक पहुंचाया।
सनातन धर्म से प्यार करने वाले यह भी सोचें कि सनातन धर्म इतना कमजोर क्यों हुआ, जैन, बौद्ध धर्म का प्रादुर्भाव कैसे हुआ। हिन्दुओं की रक्षा करने के लिए सिख धर्म को क्यों आगे आना पड़ा। पश्चिम एशिया से मुगल आकर भारत में बस गये और दो सौ वर्ष तक हुकूमत की। ब्रिटेन की एक कम्पनी ईसाट इंडिया कम्पनी ने व्यापार शुरू किया और अंगुली पकड़ते-पकड़ते पौंछा दबोच लिया। 90 साल लगे जब जाकर ब्रिटिश हुकूमत जिसने भारत की सांस्कृतिक धरोहरों को नष्ट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, को विदा होना पड़ा। इसके लिए सैकड़ों नौजवान फांसी के तख्त पर चढ़ गये, हजारों लोगों ने जिन्दगी भर काल कोठरी झेली, बहुतों ने जेल की यातना सही तब जाकर शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार ने भारत भूमि को अलविदा कहा और जाते-जाते विभाजन का नासूर छोड़ गये। यह भी सोचना चाहिये कि जब हमारे नौजवान ब्रिटिश हुकूमत से लड़ रहे थे सनातन के ही एक वर्ग ने अंग्रेजों का साथ दिया। गांधी की हत्या की गयी और जिस नफरत की आग में गांधी का दाह-संस्कार हुआ उसकी लपट एवं उसकी तपशि आज भी ठंडी नहीं हुई है।
Sanvidhan me sansodhan karna chahiye aur dharam ke dushmano ko Kari saja Dene ka prabdhan hona chahiye
ReplyDeleteएक अच्छा तुलनात्मक लेख
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