भारत भाग्य विधाता
जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति की ओर से दिए जाने वाले रात्रिभोज के आमंत्रण पत्र पर ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखे जाने से देश की राजनीति में महाभारत छिड़ गई है। विपक्ष ने तुरंत यह प्रतिक्रिया दी कि विपक्ष दलों के इंडिया गठबंधन के बाद नरेन्द्र मोदी की नींद हराम हो गई है और आनन फानन में ‘इंडिया’ का नाम बदल कर भारत का ऐलान कर दिया गया है।
आओ रानी हम ढोयेंगे पालकी.... (कवि नागार्जुन)
विक्टोरिया मेमोरियल : भारत के गौरव का प्रतीक या गुलामी की यादगार?
संविधान की प्रस्तावना में ही देश का नाम ‘इंडिया दैट इज भारत’ का उल्लेख है यानि इंडिया जो भारत है। देश और दुनिया में भारत और इंडिया दोनों का प्रयोग किया जाता रहा है। भारत सरकार द्वारा अतीत में और हाल के वर्षों में अनेकानेक प्रकल्पों के नाम के साथ इंडिया जुड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नये प्रकल्पों में अधिकांश इंडिया के नाम से ही हैं। मसलन स्टार्ट अप इंडिया, स्किल इंडिया, खेलो इंडिया आदि आदि। स्वतंत्र भारत में भारत के विकास को अग्रगति देने के लिए प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर मोदी जी तक देश के आकाओं ने भारत सरकार के प्रोजेक्ट एवं प्रतिष्ठानों के नाम इंडिया से शुरू होते हैं या इंडिया शब्द पर खत्म होते हैं। ऐसे भारत गौरव एवं नवरत्न में शामिल हैं- इंडिया गेट, इंडियन आर्मी, इंडियन नेवी, इंडियन ऑयल कार्पोरेशन, फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडिया, प्लानिंग कमीशन ऑफ इंडिया, आईआईटी, इसरो, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया, इंडियन रेलवेज, एयर इंडिया, आईपीएल, एम्स, बीसीसीआई, गेट वे ऑफ इंडिया सूची बहुत लम्बी है। देश में हजारों की संख्या में निजी संगठन एवं मंच इंडिया के नाम से हैं।
बीच बीच में कई बार इंडिया की जगह देश को भारत कहलाये जाने की मांग हुई है। किन्तु इस ओर कभी कोई गंभीर मंत्रण या चिन्तन नहीं हुआ। भाजपा दल और सरकार दोनों ने ही अनगिनत मौकों पर इंडिया और भारत के नाम का विभिन्न संदंर्भों में उल्लेख किया है। भारत के प्रमुख अंग्रेजी अखबार का नाम है टाइम्स ऑफ इंडिया, अंग्रेजी का मशहूर पत्रिका इंडिया टुडे। अखबारों के पंजीकरण कार्यालय का नाम है रजिस्ट्रार ऑफ न्यूज पेपर्स ऑफ इंडिया (आर.एन.आई.), भारत सरकार के सूचना कार्यालय का नाम है प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी)। दो प्रमुख समाचार एजेन्सियों के नाम हैं प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया और यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया। सरकार इस झूठ को प्रसारित करने की कोशिश कर रही है कि ‘इंडिया’ भारत की गुलामी का प्रतीक है जबकि स्वतंत्र भारत के दो ऐतिहासिक प्रतीकों का नाम इंडिया पर है- गेट वे ऑफ इंडिया, मुम्बई और इंडिया गेट दिल्ली जहां देश की आजादी के लिए प्राण न्यौछावर करनेवाले लगभग साठ हजार भारतीयों के नाम अंकित हैं। राष्ट्रीयकरण के बाद प्राय: सभी बैंकों के नाम के साथ इंडिया जुड़ा हुआ है -बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार की बैंकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई)।
प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा नोटबन्दी के बाद जो अफरातफरी मची की उसका सबसे अधिक खामियाजा साधारण लोगों को भुगतना पड़ा। भारत बनाम इंडिया में भी गाज जन साधारण पर गिरने वाली है। सारे नोट पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया लिखा है जिसे बदलना होगा। इंडिया शब्द खारिज होते ही फिर नोटबंदी जैसी स्थिति पैदा होगी। नोटबंदी का लक्ष्य देश में कालाधन का संहार बताया गया था, यह बताने की जरूरत नहीं कि उसके बाद ब्लैक मनी का असुर मारा गया है या आज मूंछ पर ताव देकर बाजार में पूरी ऐंठ के साथ घूम रहा है। इसरो जिसने चन्द्रयान भेजा और सूर्य के रहस्य का पता लगाने का प्रयास भी शुरू किया गया है, उसे क्या नाम देंगे?
प्रधानमंत्री जी आखिर क्या चाहते हैं? भारत और इंडिया के विवाद के जिन्न को बोतल से निकालकर वे क्या हुक्म देंगे? यही न कि देश के लोगों को इन दो शब्दों की नकली जंग में झोंक दो और तमाशा देखो। देश का साधारण आदमी आधार कार्ड, मतदाता पत्र, पहचान पत्र को बदले जाने से आतंकित है। क्या फिर से उसे सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने होंगे। जनता ऐसे ही परेशान है, महंगाई की डायन नोचे जा रही है, बेरोजगारी से मध्यम श्रेणी के पसीने छूट रहे हैं, इस पर यह भारत बनाम इंडिया लोगों को एक अनावश्यक एवं माननीय प्रधानमंत्री जी की महंगी सनक प्रतीत होती है। वन नेशन वन इलेक्शन पर सरकार कहती है कि चुनाव में देश का धन बचेगा, इसके विपरीत इंडिया बनाम भारत में देश के अपार धन की बर्बादी होगी।
संसद के विशेष अधिवेशन में कुछ लोगों का अनुमान है देश का नाम बदलने का बिल आयेगा पर मुझे इस अशंका में कोई दम नहीं लगता है। संसद का विशेष अधिवेशन पर सरकार की तरफ से कोई कारण बताने पर चुप्पी साध रखी है। संभवत: प्रधानमंत्री, गृहमंत्री के अलावा कोई नहीं जानता कि विशेष अधिवेशन क्यों बुलाया जा रहा है। हो सकता है लोगों की आशंकाएं खोदा पहाड़ निकली चुहिया साबित हो और विशेष अधिवेशन में कुछ भी विशेष नदारद हो।
भारत नाम का किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति ने सिद्धांतत: कोई विरोध नहीं किया है। अतीत काल से देश का नाम भारत है इसमें किसी को संदेह नहीं है। यह कहना भी गलत है कि इंडिया नाम ब्रिटिश शासन की देन है।
इंडिया तो कोई अंग्रेजी नाम नहीं है। सिंधु नदी के तट पर बसी सभ्यता को ‘इंडस वैली सिविलाइजेशन’ (Indus Valley Civilization) कहा जाता है। वहीं से इंडस शब्द से इंडिया बना। फिर इतना बवाल क्यों? सचमुच शिक्षा का बड़ा महत्व है और शिक्षा के अभाव में कैसा लंका-कांड रचा जा सकता है, उसी का यह ज्वलंत उदाहरण है।
कोलकाता में कई एकड़ में फैला हुआ विक्टोरिया मेमोरियल ब्रिटिश रानी के नाम का म्यूजियम है जहां कपड़े और उनके इस्तेमाल करने वाले सामानों की नुमाइश है। महानगर की छाती पर गुलामी का घोर प्रतीक आज भी इठला रहा है। किसी ने तो विरोध नहीं किया। इंडिया पर काल्पनिक आशंका से जंग छिड़ी हुई है। यह बात स्वयंसिद्धा है कि देश की बड़ी समस्याओं में बेरोजगारी, निरक्षरता, गरीबी, हिंसा, सामाजिक विसंगतियां बढ़ती हुई आर्थिक विषमता, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, आतंकवाद जैसी विभिषिकाओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए यह एक सोची समझी साजिश है वरना कौन है जिसे भारत नाम से परहेज होगा? अम्बेडकर से बढक़र राष्ट्रभक्त क्या कोई होगा जिन्होंने संविधान की शुरूआत इस पंक्ति से की इंडिया दैट इज भारत! ठ्ठ

गंभीर मुद्दे पर तथ्यपरक विवेचना
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