हरियाणा हिंसा के पीछे किसका हाथ?
कोई मजबूरी रही होगी वर्ना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता
मुझे कतई आशंका नहीं थी कि हरियाणा में साम्प्रदायिक हिंसा हो सकती है। मैं हरियाणा का नहीं हूं लेकिन मेरे कस्बे से हरियाणा सटा हुआ है। राजस्थान में नोहर (मेरा पितृ स्थान) से सडक़ का अगला पड़ाव सिरसा है और ट्रेन से अगला स्टेशन है एलनाबाद, दोनों ही हरियाणा में है। वैसे भी कुछ दूर से सही पर्यवेक्षण किया जा सकता है। इसलिये मेरे इस दावे में कुछ दम है कि हरियाणावासियों के बारे में मेरा अध्ययन बड़ा बारीक और सटीक है।
हरियाणा का आदमी लड़ाई पसंद नहीं करता। वहां की हवा और मिट्टी का असर है कि जुबान खूब चलती है। जुबान से हरियाणावी बड़े-बड़े पराक्रमियों को निपटा सकता है किन्तु वह कभी हथियार नहीं उठाता।
महाभारत युद्ध की तरफ नजर घुमाइये। कुरुक्षेत्र हरियाणा में ही है। अर्जुन ने लडऩे से साफ इनकार कर दिया। भाइयों ने अन्याय की पराकाष्ठा कर दी किन्तु अर्जुन ने कहा कि वे नहीं लड़ेंगे। कृष्ण ने अर्जुन को समझाने के लिए पूरी गीता सुनायी। अ_ारह अध्यायों के 700 श्लोकों में भर कर ज्ञान अर्जुन के सामने परोस दिया। तब जाकर कहीं अर्जुन ने कृष्ण की बात मानी और हथियार उठाया। मैं समझता हूं इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है जिसके जरिये मैं आपको बता सकूं कि हरियाणा की मि_ी हथियारबाजी के अनुरुप नहीं है। वहां का आदमी जैसा मैंने ऊपर लिखा कि जुबान से बाहुबलियों को ध्वस्त कर सकता है पर लड़ाई उसे रास नहीं आती।
हरियाणा के नूंह-मेवात में हुई हिंसा, इसी संदर्भ में मुझे थोपा हुआ यथार्थ लगता है। खैर जो हो जुलाई के अंतिम दिन जो हिंसा हुई उसकी आग अभी तक शांत नहीं हुई है। दुर्भाग्यवश तनाव की लहर गुडग़ांव, फरीदाबाद और पलवल तक फैल गयी है। यानि लहलहाते खेतों में जो आग भडक़ी थी अब उसने औद्योगिक नगरी को भी चपेट में ले लिया। पिछले कुछ दशकों में गुडग़ांव एक डिजिटल हब में तब्दील हो गया है जहां देश के कई बड़े कार्पोरेट प्रतिष्ठानों ने अपना खूंटा गाड़ रखा है। दिल्ली से सटा होने के कारण गुडग़ांव या गुरुग्राम को देश की राजधानी ने आत्मसात कर लिया। विगत वर्षों में भारत में एक बड़ी औद्योगिक नगरी के रूप में अगर कोई छोटे से कस्बे ने दिग्गज वाणिज्यिक भीमकाय का रूप लिया है तो वह है गुडग़ांव। आज गुडग़ांव से कई परिवार अपना घर छोडक़र दिल्ली एवं अन्य कुछ सुरक्षित स्थानों में शरण लेने के लिए बाध्य हुए हैं। कुछ श्रमिकों ने बंगाल में आकर सांस ली।
दिल्ली से सटे हरियाणा का नूंह इलाका अचानक जिस तरह से हिंसा, तोडफ़ोड़ और आगजानी की चपेट में आ गया, वह कई लिहाज से चौंकाने वाला है। हिंसा का अचानक फूट पडऩा ही नहीं, उसकी व्यापकता भी चिंताजनक थी। नूंह-मेवात से शुरू हुई हिंसा, आराजकता और तनाव की लहर गुडग़ाव, फरीदाबाद और पलवल तक फैल गयी। सरकार का यह कहना है कि इन घटनाओं के पीछे वे लोग हैं, जो पहले से ही राज्य में अशांति फैलाना चाहते थे। लेकिन ऐसे तत्व हर राज्य में होते हैं। सवाल यह है कि वे सब अशांति फैलाने की साजिश कर रहे थे, उसे अंजाम देने की तैयारियां कर रहे थे और पुलिस प्रशासन को उसकी भनक तक नहीं लगी, ऐसा क्यों? कई घटनाएं पुलिस की मौजूदगी में हुई। पुलिस ने माना है कि उपद्रवी बड़ी संख्या में थे, इसलिए वह उन्हें रोकने में नाकाम रही। रही सही कसर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर साहब ने यह कर पूरी कर दी कि राज्य की पुलिस हर व्यक्ति की सुरक्षा नहीं कर सकती।
बृजमंडल जलाभिषेक यात्रा का गुडग़ांव से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया। इस यात्रा की सुरक्षा हेतु पुलिस पिछले वर्ष की तुलना में मात्र एक तिहाई थी। 2022 में यात्रा हेतु 2500 पुलिस बल तैनात था, जो इस बार उसकी संख्या मात्र 800 थी। इनमें भी कई होमगार्ड एवं कुछ पर्सनल सिक्योरिटी ऑफिसर्स थे। ये भी सिर्फ भीड़ को नियंत्रित करने के लिए तो प्रशिक्षित हैं किन्तु कानून-व्यवस्था बिगडऩे की हालत में नियंत्रण करने का उनके पास कोई कौशल नहीं है। पुलिस सूत्रों के अनुसार कुछ पुलिस को रेवाड़ी भेज दिया गया था जहां कुछ वीआईपी की सुरक्षा आवश्यक थी। पुलिस व्यवस्था लचर थी क्योंकि नूंह के एसपी वरुण सिंगला छुट्टी पर थे उनकी जगह पलवल के एसपी लोकेन्द्र सिंह को अतिरिक्त भार दिया गया था किन्तु वे भी यात्रा के समय वहां नहीं थे।
गुडग़ांव के सांसद और केन्द्रीय मंत्री राव इन्द्रजीत सिंह जिन्होंने यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था ने यह सवाल उठाया है कि दोनों सम्प्रदायों को हथियार कहां से मिले? क्या यह पुलिस इन्टेलिजेन्स की विफलता नहीं थी जिसके कारण दंगे भडक़े और हथियारों का खुलकर इस्तेमाल किया गया।
हरियाणा में इस तरह की परिस्थिति के लिए कौन जिम्मेवार है यह लाख टके का सवाल है। नूंह-मेवात के इस पूरे क्षेत्र में तनाव की स्थिति 31 जुलाई को ही पैदा नहीं हुई थी। यहां लम्बे समय से तनाव बना हुआ था, जिसे सरकारी तंत्र ने नजरंदाज कर रखा था। जिस तरह गो रक्षकों के एक पूरे गैर सरकारी तंत्र के यहां फलने-फूलने दिया गया और उसे सरकारी संरक्षण मुहैया कराया गया उस पर लम्बे समय से सवाल उठ रहे थे। ऐसी शिकायतें आती थीं कि कथित गोरक्षकों की टोली कई बार कानून को हाथ में ले लेती है। हत्याकांड के एक आरोपी मौनू मानसेर ने एक दिन पहले सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर यात्रा में शामिल होने की बात कही थी और लोगों को बड़ी संख्या में पहुंचने की अपील की बात कही थी जिससे तनाव बढ़ा। यह आरोपी पुलिस रेकार्ड में लम्बे समय से फरार बताया जा रहा है। जाहिर है सही या गलत, लेकिन एक धारणा यह भी बनी है कि पुलिस मौनू मानेसर जैसे आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सख्ती नहीं बरत रही। हालांकि 31 जुलाई को भडक़ी हिंसा में इनमें से किन फैक्टर्स की कितनी भूमिका रही, इस बारे में अंतिम निष्कर्ष विश्वसनीय और प्रामाणिक जांच से ही निकाला जा सकता है। मोनू हो या मामन खान, जिसने भी हिंसा करायी या फैलायी उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिये। मोनू का कहना है पिछले चार साल से यात्रा निकल रही है। इसी यात्रा पर पत्थरबाजी के बाद हिंसा फैली है। जब मोनू से पूछा गया कि उसे शोभायात्रा में नहीं आना था तो उसने ये पोस्ट क्यों डाली? इस पर मोनू ने कहा कि हमने कह दिया था कि हम नहीं आयेंगे। कुछ यू ट्यूबर ने सारा मामला खराब किया है। यानी कहीं न कहीं किसी के उकसावे पर ही हिंसा फैली है।
मोनू ने दावा किया उसे इस हिंसा का मोहरा बना दिया गया है। मोनू ने आरोप लगाया कि स्थानीय विधायक ने सब गड़बड़ी करायी है। मौनू मोनू ने विधायक को गिरफ्तार करने की मांग की है।
कुल मिलाकर हरियाणा का हिंसा घटनाक्रम राज्य पर थोपी हुई एक साजिश है। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भी इस तरह की हिंसा किसको फायदा पहुंचा सकती है, जोड़ घटाव कर इसका भी हिसाब करना चाहिये।
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