अब के सावन शरारत ये मेरे साथ हुई
मेरा शहर छोड़ तमाम बरसात हुई
ऊपर लिखी ये दो लाइनें कविवर नीरज की एक कविता पर आधारित है जिसमें उन्होंने लिखा- ‘‘...... मेरा घर छोड़ सारे शहर बरसात हुई।’’ नीरज का दर्द छलका जब किसी की उपेक्षा से भावुक होकर उन्होंने अपनी चोट का इस तरह से बयां किया था। आज मैं कोलकाता के सहवासियों के साथ प्रकृति की आँख मिचौनी से उसी चोट को महसूस कर रहा हूं। काले बादल उमड़ते घुमड़ते हैं तो हमें भरोसा हो जाता है कि बस अब बारिश होने वाली है। लेकिन कुछ देर बाद बादल और और कहीं कूच कर जाते हैं। फिर सूर्य अपने आगोश में आकर हमें चिढ़ाने लग जाता है। लगता है कह रहा हो, जरा सी देर को क्या बदली में आ गया, कि शोर मच गया, देखो सूरज ढल गया। अब आप ही बतायें यह दिल पर चोट है कि नहीं!
बादल है पर बरसात नहीं!
खैर, बंगाल में बारिश का युगों से चोली दामन का साथ रहा है। यहां की शस्य श्यामला भूमि इतराती और इठलाती है इसी बारिश की उदारता पर। यहां पाट की सुनहरी फसल बारिश की ही तो नियामत है, धान के लहलहाते खेत इसी बारिश की ही परिणति है। फिर इस बार सावन क्यों रुठा हुआ है। हमी से से ऐसी बेरुखी क्यों? मुम्बई भारी बारिश से तबाह हो रही है। समुन्दर पर बारिश करके क्या फायदा?
बरसी वहां-वहां वे, समंदर थे जिस जगह
ऊपर से हुकूम था, तो घटाएं भी क्या करें
चलिये अब कुछ गम्भीर चर्चा भी हो जाये। बंगाल-बिहार में मानसून क्यों कमजोर पड़ गया। हम तो महज गर्मी और उमस से परेशान हैं किन्तु हमारे चासी यानि किसान भाई की चिंता जीने मरने की है।
पिछले कुछ दिन पहले कोई पूर्वानुमान नहीं था, लेकिन कोलकाता और आसपास के इलाकों में सुबह कुछ देर बारिश हुई। मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों में उत्तर बंगाल में भारी बारिश की भविष्यवाणी की है। लेकिन कोलकाता समेत दक्षिण बंगाल में फिलहाल मौसम की भविष्यवाणी भी नहीं की। दूसरी ओर पड़ोसी बिहार में बारिश नहीं होने के कारण उमस से लोग बेहाल हैं और तापमान बढ़ा है। बिहार ने बंगाल का साथ निभाकर भरोसेमंद पड़ोसी का फर्ज निभाया है।
अलीपुर के मौसम विभाग के अनुसार 22-23 जुलाई को आसमान में आंशिक रूप से बादल छाये रहेंगे और गरज के साथ बौछारें पड़ेंगी। हमारे धैर्य का इस तरह कई बार इम्तिहान लिया गया। हम हमेशा से आशावादी रहे हैं और धैर्य की भी कमी नहीं रखी। इसीलिए मौसम विभाग की बातों पर सिर हिलाते गये। पर बादलों की तरफ से पूरी कोशिश हुई कि हम मौसम विभाग पर विश्वास खो बैठें। फिर भी हिम्मत नहीं हारी क्योंकि मौसम विभाग एक वैज्ञानिक उपक्रम है जो मौसम की अग्रिम जानकारी देती है। फलस्वरूप हम भगवान भरोसे नहीं रहते। दो-तीन दशक पहले लोग मौसम विभाग का यह कहकर मजाक उड़ाते थे कि इसने भविष्यवाणी की है कि कल बारिश होगी तो समझ लो कल सूखा ही रहेगा। दरअसल लोग टोटकों में ज्यादा और वर्षों की प्रक्रिया के बाद बनाये गये मौसम विभाग की भविष्यवाणी पर सवाल खड़े रहते हैं। किन्तु ऐसा करना हमें कभी भी गंवारा नहीं हुआ। भविष्यवाणी भले ही कई बार फेल हुई पर हमें भरोसा था कि वह दिन दूर नहीं जब मौसम की भविष्यवाणीसे हजारों मछुआरों के जीवन को बचाया जा सकेगा।
बारिश नहीं होने से राज्य के किसानों की चिंता बढ़ गयी है क्योंकि इस साल 41 फीसदी से कम बारिश हुई है। रोपनी के साथ बारिश नहीं होने से किसान दु:खी हैं।
इस वर्ष जुलाई का महीना इतिहास रच रहा है। वैसे यह मामला भूगोल पाठ्यक्रम का हिस्सा है पर जुलाई ने इतिहास और भूगोल दोनों में अपना दखल किया है। पिछले 30 साल का रेकार्ड है कि जुलाई में कोलकाता शहर को खूब भिगोता है। लेकिन इस बार अभी तक 60 प्रतिशत कम बारिश हुई है। 1 से 26 जुलाई में कोलकाता महानगर में कम से कम 317 मिलीमीटर बारिश होती है। मौसम विभाग का पिछले तीस सालों का यही रेकार्ड दर्ज है। लेकिन इस अन्तराल में मौसम विभाग के रेकार्ड के अनुसार मात्र 129 मिलीमीटर ही बारिश हुई। यानि बारिश के खाते में 59 प्रतिशत का भारी घाटा हुआ है। जुलाई के माह में औसतन 370 एमएम बारिश दर्ज की गयी है। पिछले कुछ दिनों से आसार नजर आता है किन्तु दूर दूर तक कहीं बरसात नजर नहीं आ रही। पिछले सोमवार से गुरुवार को मात्र 42 एमएम बारिश दर्ज की गयी है।
पूरे जुलाई में बारिश ने अभी तक एक दिन भी अपना रौद्र रूप नहीं दिखाया। इस मानसून एक बार भी भारी वर्षा नहीं हुई। इसलिए बारिश के खाते में बड़ा घाटा चल रहा है। पकौड़े बनाकर बारिश के भीगे भीगे मौसम में खाने का आनन्द अभी तक कोलकातावासियों को नहीं मिला।
निचले गैंगेटिक बंगाल में बारिश खाड़ी में निम्न चाप व्यवस्था पर निर्भर करती है। जून में लम्बे अर्से से निम्नचाप क्षेत्र शांत है। दो सप्ताह में दो बार निम्नचाप तैयार हुआ किन्तु दोनों ही मरतबे यह कोलकाता से काफी दूर खिसक गया। खाड़ी के उत्तर पूर्व बंगलादेश के पास समुद्री किनारेे में भौगोलिक व्यवस्था कोलकाता में भारी वर्षा के लिये सबसे अनुरूप है किन्तु इस मानसून मौसम विभाग के सूत्र से पता चला है कि अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनी है। 1 से 26 जुलाई तक महानगर में 600 एमएम बारिश का कोटा हुआ करता है लेकिन इस दरम्यान शहर को मिली मात्र 303.5 एमएम। क्या यह हमारे महानगर पर प्रकृति का सौतेला व्यवहार नहीं है?
चौंकियेगा नहीं एक लाख बीस हजार वर्षों के सृष्टि काल में इस बार का जुलाई सबसे गर्म हो सकता है। जब से यह प्लेनेट यानि ब्रह्माण्ड की रचना हुई है कोलकाता जलावन, तेल, गैस एवं दूसरी मानवीय गतिविधियों से हुई गरमाहट से उत्पन्न ऊर्जा से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक है। यह कहना है जलवायु वैज्ञानिक कर्सटेन हौस्टिन का।
वर्ष 2023 का जुलाई महीना एक नया ग्लोबल रेकार्ड स्थापित करने वाला है। कहने को हिन्दी पंचांग के अनुसार यह पुरुषोत्तम मास है, जिसे बड़ा पवित्र माना गया है और इस दौरान धर्म कर्म का बड़ा महत्व है। लेकिन मानसून इससे बिलकुल बेखबर है। पूरा कोलकाता शहर धर्ममय हो गया है, जगह-जगह भागवत कथा चल रही है, कहीं नानी बाई को मायरो, तो कहीं रामकथा तो कहीं शिव रुद्राभिषेक। फिर क्यों हमारी उपेक्षा हो रही है - भगवन्!

सावन, समस्याओं और भगवान से शिकायत
ReplyDeleteअच्छा लेख
बहुत सुंदर, विस्तृत विश्लेषण....
ReplyDeleteसावन और मानसून पर आपका, अब के सावन शरारत ये मेरे साथ हुई
ReplyDeleteमेरा शहर छोड़ तमाम बरसात हुई 'पढ़ते हुए बहुत अच्छा लगा। नीरज जी की ये पंक्तियाँ अमर हैं। आपने बहुत सही लिखा है कि बंगाल में वारिश से जूट और चावल दोनों ही का पोषण होता है। व्यापार और उद्योग भी चलते हैं रोजगार बढ़ते हैं। बधाई और शुभकामनाएं 🙏 🙏 डॉ वसुंधरा मिश्र, कोलकाता 30.7.23