भारत में मन्दिर-मठ, यूरोप में चर्च बिकाऊ हैं - शांति और अहिंसा के केन्द्र को अपने घर की तरह बचाया जाना चाहिये
भारत में मन्दिर-मठ
यूरोप में चर्च बिकाऊ हैं
शांति और अहिंसा के केन्द्र को अपने घर की तरह बचाया जाना चाहिये
भारत एक कृषि प्रधान के साथ धर्म प्रधान देश भी है। धर्म में आस्था हर भारतीय की घुट्टी में है। यह बात अलग है कि किसी की आस्था हिन्दू धर्म में है, किसी की इस्लाम में तो कोई जैन धर्मावलम्बी है एवं कोई भगवान बुद्ध के धर्म का अनुयायी या फिर किसी की आस्था इसाई धर्म के प्रति है। हमारे दश की यह खूबसूरती है कि हमने दीन दु:खी की मदद को भी ईश्वर की सेवा का पर्याय माना है। सभी धर्मों ने इस बात को स्वीकार किया है कि गरीब की सेवा, अभावग्रस्त व्यक्ति को सहयोग का हाथ बढ़ाना हम धर्म का ही एक अभिन्न हिस्सा मांगते हैं।
बावजूद इसके मन्दिरों एवं मठों में हमारी आस्था अक्षुण्ण है। एक वर्ग है कि जो भव्य मंदिर बनाने में अपने जीवन की सार्थकता मानता है। शानदार या भव्य मन्दिरों को देखकर एवं वहां नतमस्तक होकर हम अपनी आस्थओं को अभिव्यक्त करते हैं। हाल ही में वाराणसी में विश्वनाथ मन्दिर। भक्तों एवं धार्मिक सैलानियों के लिए काया पलट की गई है। राम मन्दिर का अयोध्या में निर्माण कार्य प्रगति पर है और सरकार ने घोषणा की है कि अगले वर्ष जनवरी महीने तक निर्माण कार्य पूरा हो जायेगा। इस मन्दिर को विशाल एवं भव्यता का उत्कृष्टता का नमूना बताया जा रहा है। आशा है कि देश विदेश से पर्यटक बड़ी संख्या में राम मंदिर देखने आयेंगे। यह अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन केन्द्र भी बन रहा है। अयोध्या भरत ही नहीं विश्व पटल का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन जायेगा।
लेकिन एक दूसरी कहानी भी है। हमारे आस्था एवं विश्वास को कुछ लोगों ने अपने गोरखधंधे का लक्ष्य बना लिया है। आस्था स्थलों में भू माफिया सक्रिय हैं। राम मंदिर जब अयोध्या में बनना शुरू हुआ तो वहां इदगिर्द कुछ लाख रुपये की भूमि कई करोड़ की हो गई। यही कहानी अन्य मठ-मंदिरों की है। बागम्बरी गद्रदी मठ में अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीठाधीश्वर नरेन्द्रगिरी महाराज प्रयागराज के अपने मठ में पंखे से लटकते हुए पाये गये। पता चला कि लैंड माफिया उनपर दबाव डाल रहा था, उन्हें ब्लैकमेल कर रहा था और स्वामीजी का अन्तर्मन इतना व्यथित हो गया कि उन्हें आत्महत्या का सहारा लेना पड़ा।
यही नहीं, वृन्दावन में जहां भगवान कृष्ण रासलीला करते थे, के कई धर्म कुंड अब लापता हो गये हैं। लैंड माफिया वहां कब्जा जमा चुके हैं एवं धार्मिक इतिहास का सबसे बड़ा आकर्षण धूमिल हो चुका है। वृन्दावन या मथुरा में विशाल धर्मशालायें एवं गेस्ट हाउस और तीन चार सितारा होटलें बन गई हैं पर प्रेम व आस्था में विश्वास की धरोहर मटियामेट हो चुकी है।
मठ मन्दिरों की संपत्ति हथियाने को लेकर अयोध्या में एक दर्जन से ज्यादा महंत मारे जा चुके हैं। सभी हत्याओं में कहीं न कहीं मठ से जुड़े गेरुआधारी शिष्य थे। सन् 2001 में कानीगंज स्थित सोना मंदिर के महंत का अपहरण कर लिया गया था जिनका आज तक पता नहीं चला। यह वारदात भी मंदिर पर कब्जे के विवाद को लेकर की गई थी। इसी तह 1984 में बंसतिया पट्टी के महंत शुभकरण दासजी, 1987 में सागरीय पट्टी के हरि भजनदास, 1990 में उज्जैनिया पट्टी के बाबा बजरंगदास, 1999 में महंत रामाज्ञा दास, 1988 में सनातन मंदिर के महंत मोहन चंद्र झा, 90 के दशक आते आते लाडली मंदिर के महंत जगत नारायण दास, 1996 में शुक्ल मंदिर के महंत राम शंकर दास, 1997 में बाबा राम कृपाल दास, सन् 2000 में महंत जगदीश दास, 28 मई 2000 को मणिराम दास छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास, इनमें कुछ उदाहरण हैं जो लैंड माफिया की साजिश के शिकार हुए।
हाल ही में 25 जून को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संतों के साथ जलपान ग्रहण करने के बाद कहा कि वृन्दावन में मठ और मंदिर नहीं बिकने चाहिये। मुख्यमंत्री की संतों से हुई चर्चा का विवरण देते हुए अखिल भारतीय चतु सम्प्रदाय के अध्यक्ष फूलडोल महाराज ने बताया कि मुख्यमंत्री ने संतों से इसकी जिम्मेदारी लेने का अनुराध किया और कहा के जो माफिया दबाव डालकर खरीदना चाहेगा इसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
यह परिदृश्य भारत में ही नहीं यूरोप में भी है। हाल ही हमने छपते छपते में नीदरलैंड में प्रवासी, हिन्दी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. पुष्पिता अवस्थी का एक आलेख ‘‘यूरोप में इर्साइयत का सिमटता स्वरूप, लोभ और साजिश के शिकार हो रहे हैं चर्च’’ दिनांक 3 जून ’23 को प्रकाशित किया था जिसमें उन्होंने यूरोप के कुछ देशों में पुराने चर्चों की बिक्री का उल्लेख किया था। उन्होंने लिखा था ‘दुनिया में धर्म का जितना और जैसा असर होना चाहिये। धर्म के उन प्रवक्ताओं के द्वारा संभव नहीं हो पा रहा है। सभी धर्मों का लक्ष्य शांति और अहिंसा है लेकिन अशांति का शोर और हिंसा का आर्तनाद ही विश्व जीवन का सत्य हो गया। यूरोप न्यूज चैनल में खबर थी कि ग्रीस शहर के चर्च लोगों के आवासीय घर में बदल रहे हैं। अल्कमार शहर के वर्षों पुराने खड़े चर्च एक पूंजीपति के द्वारा सुविधाभोगी महंगे अपार्टमेंट बना दिए गए हैं। चर्च बिक रहे हैं, खरीदे जा रहे हैं। यूरोपीय देशों में धर्म का उपयोग कम हो रहा है। यहां का जीवन लोगों के जीवन की कमाई की मु_ी से बाहर निकल गया है।’ विश्व में बढ़ते हुए भोगवाद और उसका तृप्ति के लिए बढ़ती हुई हिंसा ने लोगों को संवेदनहीन बना दिया है। मनुष्य और ईश्वर दोनों से विश्वास उठ गया है।
यूरोप में एक चर्च के बाहर खरीद कर अपार्टमेंट बनाने वाले के पोस्टर।
जिस तरह महामारी में सभी अस्पताल मनुष्य को बचाने में लगे हुए थे, मुझे लगता है इस हिंसा और संवेदनहीनता की इस महामारी में शांति और अहिंसा के केंद्र स्थलों को अपने घरों की तरह ही बचाया जाना चाहिये। धर्म को बचाने वाली ये इमारतें वस्तुत: मनुष्यता और अहिंसा के घर हैं। फिर चाहे किसी धर्म के हों।


Comments
Post a Comment