भारत की खोज
108 स्कूलों के 50 हजार विद्यार्थियों की अभूतपूर्व भागीदारी
चलिये पहले हम जान लें आदिकाल में ‘‘भारत की खोज’’ की वास्तविकता। 15 वीं सदी के अंत में यूरोप अंधकार युग से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा था। भारत जो उस समय सोने की चिडिय़ा कहा जाता था, के बारे में यूरोप में लोग अरबों के जरिए ही जानते थे। तभी 1498 में पुर्तगाल का वास्को डि गामा पहले यूरोपीय व्यक्ति था जो समुद्र के रास्ते भारत पहुंचा था। इससे पहले यह प्रयास कोलंबस ने किया था। लेकिन अनजाने में अमेरिका तक पहुंच गया था। वह जहां पहुंचा थे उन द्वीप संमूहों को आज वेस्ट इंडीज के नाम से जाना जाता है। वहां के लोगों को रेड इंडियन के नाम से जाना गया। बताया जाता है कि वास्को डि गामा एक बढिय़ा कप्तान हुआ करता था। वह पहले अफ्रीका के पश्चिमी तट से होते हुए दक्षिण अफ्रीका केप ऑफ होप से होते हुए हिंद महासागर में दाखिल हुआ।
रास्ते में उसके साथी बीमार हो गये और खाना भी खत्म होने लगा। वास्को ने मोजाम्बिक के सुल्तान से मदद मांगी, एक अरबी जहाज लूटा और मालिन्दी एवं मुम्बासा के रास्ते भारत का पता पूछते वे कालिकट के तट तक पहुंचे। उसके बाद वास्को तीन बार भारत आये।
भारत सरकार के उपक्रम जीआरएसई यानि गार्डेनरीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स जो पानी के जहाज यानि जलपोत का निर्माण करता है ने अब तक भारत की प्रतिरक्षा हेतु 108 जलपोत बनाये हैं। यह एक सुखद संयोग है कि मेरे कनिष्ट पुत्र विक्रम को इस जीआरएसई के बड़े अधिकारी ने बातचीत के दौरान एक प्रस्ताव दिया कि किशोर एवं युवाओं में भारत के बारे में जानकारी बढ़े, इसके लिये क्या प्रभावशाली कार्यक्रम हाथ में लिया जा सकता है। विक्रम के सुझाव पर आपसी बातचीत एवं विचार मंथन के पश्चात् इस निर्णय पर पहुंचा गया कि वरिष्ठ छात्रों में ‘‘भारत को जानो’’ की एक प्रतियोगिता करायी जाये। ज्येष्ठ पुत्र बिपिन और विक्रम दोनों इस खोज में लग गये कि क्या ऐसा कार्यक्रम किया जाय जो अब तक नहीं हुआ है और उसके जरिये आज की नयी पीढ़ी में अपने देश के बारे में जानकारी और बढ़े। और फिर ताजा टीवी ने यह दायित्व अपने हाथ में लिया। 108 युद्ध जलपोत बना चुके जीआरएसई के द्वारा प्रायोजित क्विजडोम (द्म2द्ब5स्रशद्व) में 108 स्कूलों में यह प्रतियोगिता कराने का निर्णय लिया गया। इस क्विजडम के माध्यम से छात्र-छात्राओं के बीच इस दिलचल्प ज्ञानवद्र्धन माथापच्ची का खाका तैयार हुआ। भारत के बारे में भिन्न-भिन्न ²ष्टि से पचास सवाल के 8 सेट तैयार किये गये। एक प्रश्नपत्र के रूप में स्कूल के आठवीं, नौवीं एवं दसवीं कक्षा यानि वरिष्ठ छात्रों का यह ‘‘मेगा इवेन्ट’’ संभवत: सिक्षा की अपनी तरह की पहली घटना है।
क्विजडम के इस विराट आयोजन में वाओ मोमो, इमामी, एडवांस सोयाचेक के साथ नेचुरल ग्रुप, विनपेन, सुराइट का भी सहयोग रहा और इस तरह आधुनिक वास्कोडिगामा का भारत की खोज का एक सारस्वत प्रयास शुरू हुआ। प्रश्नपत्र में भारत के इतिहास, भूगोल, स्वतंत्रता संग्राम, भाषा, संचार, परिवहन, रेल, क्षेत्रीय गौरव, आध्यात्म, देशभक्ति, विज्ञान, कला, फिल्म, संस्कृति, वैज्ञानिक अनुसंधान, आर्थिक विकास, वित्तीय संसाधन, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक एवं आधुनिक भारत के इतिहास पुरुष, प्राकृतिक संसाधन, परमाणु सम्पदा आदि-आदि से संबंधित प्रश्नावली का उत्तर देकर हमारी नयी पीढ़ी इस बात को प्रमाणित करेगी कि आज का युवक देश के सरोकार से पूरी तरह अभिज्ञ है। यह क्विज प्रतियोगिता आमतौर पर फैले इस भ्रम का निवारण करेगा कि नयी पीढ़ी देश की मिट्टी से अलग-थलग हो गया है। यह भी एक सुखद संयोग है कि भारत का चन्द्रयान सफलतापूर्वक अपनी यात्रा कर रहा है। योजना है कि इसरो अंतरिक्ष में गगनयान प्रोजेक्ट हेतु तीन लोगों को तीन दिन के लिए अंतरिक्ष में भेजेगा। ऐसे में भारत की भावी पीढ़ी अपने देश के हर पहलू को ज्ञान भंडार में समापित कर ले।
भारत की खोज एक अनुसंधान प्रक्रिया है जो कभी समाप्त नहीं होगी। इस सफल आयोजन ने इस अवधारणा को खारिज कर दिया है कि नयी पीढ़ी अपने को विश्व नागरिक एवं पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण की प्रक्रिया में वतन के प्रति निर्लिप्त एवं निस्पृह हो गयी है। बल्कि इसने यह साबित कर दिया कि अपने देश के इतिहास से लेकर वर्तमान के सभी पक्ष की जानकारी उसके पास है एवं इस ज्ञान भंडार की श्रीवृद्धि के लिये वह हमेशा तत्पर है। कोलकाता एवं आसपास की 108 स्कूलें इस विराट आयोजन में एक माला की तरह पिरोई गयी है। शायद ही कोई नामी ग्रामी स्कूल इस महती आयोजन से वंचित रह सकी है। छात्रों में अपूर्व उत्साह का हमें पहले अनुमान नहीं था। यही कारण है कि इतना बड़ा इवेन्ट अपनी प्रगति के पथ पर है।
ताजा टीवी के इस क्विजडम में सफल प्रतियोगियों की जो टोली क्वार्टर फाइनल तक पहुंच जायेगी जीआरएसआई के एक ऐतिहासिक आयोजन में भाग ले सकेगी। 108वां युद्धपोत का निकट भविष्य में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी जलावतरण करेंगी एवं इस अवसर पर जीआरएसई के सौजन्य से वे सफल प्रतिभागियों को राष्ट्रपति आशीर्वाद प्रदान करेंगी।
जीआरएसई के प्रमुख कैमाडोर श्री पी आर हरि ने इस मेगा प्रोजेक्ट पर व्यक्तिगत तौर पर दिलचस्पी दिखायी है। साथ ही वरिष्ठ अधिकारी कैप्टन सुनील कुमार, स्वागता सेनरॉय के हरसंभव सहयोग से हमारा उत्साह बढ़ा है। हम कर सकते हैं भारत की यह खोज जो वास्कोडिगामा से शुरू हुई थी वह अनवरत जारी रहेगी। यह एक संयोग है कि 15वीं शताब्दी में नौका लेकर खोजने गये वास्कोडिगामा ने भारत को खोज निकाला। 21वीं सदी में युद्धपोत बनाने वाले राष्ट्रीय प्रतिष्ठान जीआरएसई ने देश की नयी पीढ़ी को भारत की खोज के सारस्वत व अप्रतिम कार्य का दायित्व दिया।


बहुत सराहनीय प्रयास...🙏
ReplyDelete