107 वर्ष पुराना श्री माहेश्वरी विद्यालय टाइटेनिक जहाज की तरह डूब रहा है

 107 वर्ष पुराना श्री माहेश्वरी विद्यालय टाइटेनिक जहाज की तरह डूब रहा है

समय रहते ही इसको बचाया जाना चाहिए

कलकत्ता में श्री माहेश्वरी विद्यालय की स्थापना 1916 की 5 मई अक्षय तृततिया के दिन हुई थी। माहेश्वरी समाज की अक्षय तृतिया के प्रति आस्था सदियों पुरानी है। इसलिये बीकानेर जो माहेश्वरी समाज की धडक़न माना जाता है, का स्थापना दिवस भी इसी पवित्र तिथि को ही मनाया जाता है। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मेरा भी इसी हिन्दी तिथि के दिन जन्म हुआ। अक्षय तृतीया के दिन स्थापित संस्था या पैदा हुआ व्यक्ति का क्षय नहीं होता, ऐसी मान्यता है इसीलिए बहुत से लोग अपने प्रतिष्ठान का मुहूर्त इसी दिन करते हैं।

श्री माहेश्वरी विद्यालय का स्थापना काल से समाज में किंवदंती बिड़ला परिवार का सम्बन्ध रहा। धर्मप्राण जुगल किशोर जी बिड़ला इसके संस्थापक अध्यक्ष रहे। महात्मा गांधी के अन्यतम सहयोगी एवं स्वतंत्रता संग्राम के सारथी घनश्याम दास जी बिड़ला ने इस महान शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया। यही नहीं उस समय के वरेण्य भागीरथ जी कानोडिय़ा, मंगनीराम जी बांगड़, प्रभुदयाल जी हिम्मतसिंहका, मंगतूराम जी जयपुरिया, माधोदास जी मूंधड़ा, बृजरतन चांडक जैसे वरिष्ठ शिक्षाप्रेमी महाजन इस विद्यालय से सम्बद्ध रहे। इससे एक बात और स्पष्ट होती है कि इसकी स्थापना माहेश्वरी समाज ने अवश्य की किन्तु दूसरे समाज विशेषकर अग्रवाल समाज भी इस संस्थान से समान रूप से जुड़ा रहा एवं इनका माहेश्वरी विद्यालय को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। यह जानकर खुशी होगी कि मंगतूराम जी जयपुरिया ने अपने अध्यक्ष काल में स्कूल के एक समारोह में कॉलेज बनाने की घोषणा की एवं उत्तर कलकत्ता में सेठ आनन्दराम जयपुरिया कॉलेज की स्थापना की गयी। इस तरह जयपुरिया कॉलेज को भी माहेश्वरी विद्यालय की ही मानस उपज माना जा सकता है।

कालान्तर में माहेश्वरी विद्यालय फलता फूलता रहा। इस विद्यालय के कभी प्रधानाध्यापक बाबू मूलचन्द्र अग्रवाल भी रहे जिन्होंने कलकत्ता से दैनिक विश्वमित्र का प्रकाशन शुरू किया। वे एक सफल प्रधानाध्यापक भी साबित हुए और कलम के धनी तो थे ही। बिड़ला परिवार के वरिष्ठ श्री लक्ष्मीनिवास बिड़ला समेत तत्कालीन बड़े औद्योगिक एवं व्यवसायी परिवार के सदस्य इसी स्कूल से पढक़र निकले हुए हैं। बाद के वर्षों में ईमामी उद्योग समूह के राधेश्याम जी अग्रवाल, राधेश्याम जी गोयनका, रिजर्व बैंक के गवर्नर हुए डॉ. बिमल जालान इत्यादि भी अपने स्कूली जीवन में माहेश्वरी विद्यालय के छात्र रहे हुए हैं।

श्नै: श्नै: शिक्षा का बहुतआयामी प्रसार हुआ। साथ ही साथ स्कूलें भी खुली। सभी स्कूलों में छात्रों की बड़ी संख्या थी। टांटिया हाईस्कूल, श्री जैन विद्यालय, ज्ञान भारती, नोपानी विद्यालय, हिन्दी हाईस्कूल, आदि-आदि कई स्कूलें खुली और उसमें हिन्दी भाषी छात्रों ने शिक्षा ग्रहण की। हाल के वर्षों में लिलुआ जो औद्योगिक नगरी थी में भी अग्रसेन बालिका शिक्षा सदन, एमसी केवी स्कूल, डॉन बास्को आदि कई स्कूलें खुली।

एक तरफ जहां उपरोक्त सभी स्कूलों में छात्रों की संख्या बढ़ती गयी अपने समय की सबसे बड़ी स्कूल टाइटेनिक जहाज की तरह डूबता जा रहा है। आज यह स्थिति है कि श्री माहेश्वरी विद्यालय में कोविडकाल के पहले तक लगभग 1200 छात्र थे, वहीं कोविडकाल के बाद जब स्कूल खुली तो अब वहां मुश्किल से 700 छात्र रह गये हैं। हमने शुरू में ही उल्लेख किया कि सन् 1984-85 में इसी स्कूल में साढ़े चार हजार छात्र पढ़ते थे। स्कूल का अवसान जिस गति से हो रहा है और स्कूल जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है, उससे यह आशंका होनी स्वाभाविक है कि विद्यालय कहीं इतिहास के पन्नों में सिमट नहीं जाये।

कोविड काल को दोष देना किन्तु न्यायोचित नहीं होगा क्योंकि उस दौरान सभी शिक्षण संस्थायें संक्रमित थी। लेकिन आज जहां शिक्षा केन्द्र अपने पुराने स्वाभाविक रूप में आ गये वहां माहेश्वरी विद्यालय की स्थिति बेहद चिन्ताजनक हो गयी है। बताया गया कि 27 महीने से शिक्षकों को तनख्वाह नहीं दी गयी है। कोविड काल में 18 महीने भी इसमें शामिल हैं। वैसे माहेश्वरी विद्यालय की आर्थिक स्थिति कई वर्ष पहले से डांवाडोल है। विद्यालय के पूर्व सचिव श्री महेश मिमानी ने एक मीटिंग विद्या मंदिर में विद्यालय की बिगड़ती आर्थिक अवस्था को लेकर की थी जिसमें स्कूल के एल्यूमनी यानि पूर्व छात्र भी काफी संख्या में आये थे। पूर्व छात्रों में कइयों ने आर्थिक सहोयग भी देना का वचन दिया था। पता चला है कि धन एकत्र भी हुआ। समाज के कई सम्पन्न लोगों ने भी सहयोग किया। कई दानदाताओं की किन्तु यह शिकायत थी कि उन्हें खर्च का हिसाब देने का आश्वासन दिया गया था पर नहीं दिया गया। माहेश्वरी सभा जो स्कूल की अभिभावक संस्था है कि विगत चुनाव में माहेश्वरी विद्यालय के सचिव पद पर कोई बैठने हेतु तैयार नहीं हुआ। परिणामस्वरूप वहां श्री सुरेश बागड़ी को मनोनीत किया गया और इसी तरह अध्यक्ष पद का श्री हरिशंकर झंवर को उत्तरदायित्व सौंपा गया। दोनों ही सज्जन स्कूल की गहन पेंचीदगियों एवं गुत्थियों को सुलझा नहीं पा रहे हैं। माहेश्वरी सभा भी अपने इस सबसे प्रतिष्ठित एवं गौरवशाली संस्थान को बचाने में बहुत आग्रही दिखाई नहीं दे रहा है। विद्यालय में विद्यार्थियों की संख्या तेजी से घट रही है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि हावड़ा-लिलुआ में कई स्कूलें खुल गयी हैं अत: वहां से छात्र नहीं आते हैं। यह कारण बहुत तर्कसंगत इसीलिए नहीं है कि विगत 20-25 वर्षों में जनसंख्या भी तेजी से बढ़ी है। हावड़ा का जैन विद्यालय, लिलुआ का अग्रसेन स्कूल आदि पूरी क्षमता से चल रहे हैं फिर माहेश्वरी विद्यालय में छात्र क्यों नहीं आना चाहते हैं। घनी आबादी वाले क्षेत्र के बीच स्कूल स्थित है। माहेश्वरी विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन की महत्ती गुंजाइश है किन्तु प्रबंधक पुराने ढर्रे से ही चला रहे हैं। जैन विद्यालय (ब्रेबर्न रोड) में दाखिले हेतु मारामारी होती है, यही हाल हावड़ा, लिलुआ की स्कूलों का है।

इधर प्रबन्धकों ने ही स्कूल के पर कतरने शुरू कर दिये हैं। माहेश्वरी विद्यालय के स्थान पर माहेश्वरी सभा ने गेस्टहाऊस, शादियों के लिए बेनक्वेट आदि खोल दिये हैं। कुल मिलाकर पांच मंजिल में व्ेयवस्थित स्कूल अब मात्र तीन तल्ले में ही सिकुड़ गया है। शिक्षकों एवं प्रबन्धकों के बीच कोई संवाद नहीं होता। दोनों पक्ष सिर्फ कोर्ट में ही मिलते हैं। एक शिक्षक ने तो आत्मदाह तक की धमकी दे डाली है। स्कूल में विगत 35 वर्षों से कोई हेडमास्टर नहीं है, शिक्षक प्रभारी से ही काम चलाया जा रहा है। स्कूल पश्चिम बंगाल बोर्ड के अंतर्गत है जबकि अधिकतर स्कूलों में केन्द्रीय बोर्ड का सिलेबस है। लिलुआ की स्कूलों में बासुदेव टिकमानी जो अब दिवंगत हो गये हैं ने सूझबूझ से स्कूल को स्थापित किया एवं विस्तार दिया। एस के श्रीवास्तव को प्रिंसिपल पद पर नियुक्त किया गया। वैसे मूल चूल परिवर्तन यहां प्रतीत नहीं होता। प्रबंधक सिित में माहेश्वरी समाज के अलावा दूसरे समाज के लोगों की ‘‘नो इंट्री’’ है जो कि आज के समय में संकीर्ण सोच कही जायेगी। जो भी लोग स्कूल के संचालन में सहयोग करे उन्हें आत्मसात करना चाहिये। शुरू में ही मैंने लिखा है कि माहेश्वरी विद्यालय के कई अध्यक्ष समाज के बाहर से भी लिये गये थे। कुल मिलाकर वय्वस्था हो यो शिक्षकों के साथ सम्बन्ध, अविश्वास का माहौल है। शिक्षा में नये प्रयोग एवं नयी व्यवस्थायें तेजी से आ रही है। माहेश्वरी विद्यालय के प्रबन्धकों को अपने नजरिये में सकारात्मक परिवर्तन करना चाहिये ताकि मां सरस्वती के इस मंदिर को बचाया जा सके।


Comments

  1. यह लेख शिक्षा और विद्यालयों की स्थिति को दर्शाने वाला है। सही प्रबंधन की कमी है।बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठाया है। बधाई। 🙏 🙏 डॉ वसुंधरा मिश्र, कोलकाता

    ReplyDelete
  2. A very good article written beautifully. The question must arise surely. Keep writing such informative articles for these topics are really important for everyone to know. Thank you for enlightening us on this topic.

    ReplyDelete
  3. श्री माहेश्वरी विद्यालय, जो कोलकाता के महत्वपूर्ण शिक्षा-संस्थानों में एक रहा है, की अत्यन्त गम्भीर एवं चिन्ताजनक स्थिति पर आलोकपात कर आपने अपने सामाजिक दायित्व का समुचित निर्वाह किया है

    ReplyDelete

Post a Comment