गीता प्रेस, गोरखपुर

गीता प्रेस, गोरखपुर

केन्द्र सरकार द्वारा गीता प्रेस, गोरखपुर को गांधी शांति पुरस्कार दी जाने की घोषणा की गई है। जहां एक तरफ देशभर में इस फैसले से खुशी की लहर है, तो वहीं दूसरी ओर इस फैसले के सामने आते ही सियासत का दौर शुरू हो गया है। कुछ प्रगतिशील एवं धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने उसका विरोध यह कहकर कर दिया कि यह वास्तव में सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है।

इससे पूर्व कि हम किसी फैसले पर पहुंचे, पहले यह जान लें कि गीता प्रेस क्या है? इसकी अहमियत क्यों है?

वर्ष1923 में स्थापित गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है। इस प्रेस ने अब तक 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इनमें से 16.21 करोड़ श्रीमद्भागवत गीता की प्रतियां शामिल हैं। गीता प्रेस की स्थापना कुछ हिन्दू धर्म परायण मनीषियों ने की जिसका उद्देश्य था कि धर्म के मूल्यों एवं संस्करों का प्रसार हो। लोगों ने नैतिकता का प्रादुर्भाव हो और इसी उद्देश्य से धर्म सम्बन्धी पुस्तकों का प्रकाशन किया जाये ताकि लोगों में अंधविश्वास या धर्म के बारे में भ्रामक प्रचार पर विराम लगा सके। इसी उद्देश्य से कल्याण पत्रिका भी प्रकाशित की गई जो बहुत ही सस्ते दर पर लोगों को उपलब्ध कराई जाती है। कल्याण में प्रकाशित धार्मिक आलेखों को लोग पढ़ते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि उनमें हिन्दू समाज के आपसी विरोधाभास अथवा मतभेदों पर बात नहीं होती थी। गीता प्रेस दलितों के मंदिर प्रवेश के विरुद्ध था, जबकि हिन्दू महासभा इसके पक्ष में था। हिन्दू महासभा का कहना था कि दलितों को उच्चजाति के चंगुल से निकलना चाहिये। ‘कल्याण’ का कहना था कि मंदिर में प्रवेश अछूतों के लिए नहीं है और अगर आप पैदा ही ‘नीची’ जाति में हुए हैं तो ये आपके पिछले जन्म के कर्मों का फल है। इसके बावजूद गीता प्रेस ने कभी भी हिन्दू महासभा की आलोचना नहीं की।



1951-52 में तत्कालीन गृहमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत, गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार को भारत रत्न देना चाहते थे। हनुमान  प्रसाद जी बहुत ही प्रतिष्ठित व्यक्ति माने जाते थे, लेकिन 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद जब 25 हजार लोग जिन्हें हिरासत में लिया गया, उनमें पोद्दार भी थे। संभवत: इसीलिए फिर पंत जी ने अपना प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ाया। लेकिन हनुमान प्रसाद जी के निकटस्थ लोगों का कहना है कि हनुमान प्रसाद पोद्दार विशुद्ध धार्मिक एवं धार्मिक मल्यों में विश्वास रखने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने कभी भी ऐसी कोई बात न लिखी न कही जिससे कि उन्हें गांधी हत्या के मामले में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी प्रकार से दोषी ठहराया जाये।

गीता प्रेस का मुख्य प्रकाशन केन्द्र गोरखपुर में है और इसे 2021 का गांधी शांति पुरस्कार दिया गया है। ये पुरस्कार गीता प्रेस को अहिंसा और गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन में योगदान के लिए दिया गया है। गीता प्रेस हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के लिए दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशक माना जाता है, इसकी स्थापना 29 अप्रैल 1923 को जय दयाल गोयनका, घनश्याम जालान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी। शुरूआत से ही इसका उद्देश्य सनातन धर्म या हिंदू धर्म को बढ़ावा देना और इसका प्रचार प्रसार करना था। कहा जाता है कि स्थापना के 6 महीने बाद गीता प्रेस ने पहली प्रिंटिंग मशीन मशीन खरीदी थी जिसकी कीमत 600 रुपये थी। श्रीमद्भागवत गीता, तुलसी दास की रचनाएं, पुराण, उपनिषद् को 14 भाषाओं में प्रकाशित किया जिसमें मराठी, उडिय़ा, संस्कृत, तेलगू, कन्नड़, नेपाली, अंग्रेजी, बांग्ला, आदि भाषायें शामिल हैं। गीता प्रेस की वेबसाइट को देखें तो इस संस्था का प्रबंधन गविर्निंग काउंसिल यानी ट्रस्ट बोर्ड संभलती है। गीता प्रेस न तो चंदा मांगता है और न ही विज्ञापन के जरिये पैसा कमाती है। प्रेस की ओर से दावा किया जाता है कि इसका सारा खर्चा किताब बेचकर किया जाता है। इसके अलावा कई संगठन भी प्रेस को पैसा देते हैं।

अगर इस बात पर गौर करें कि गीता प्रेस धार्मिक ग्रंथों को छापते वक्त किस ऑडियंस को टागेट करता है तो इसमें बच्चे भी शामिल हैं। प्रकाशन कहता है कि बच्चों में भी धर्म की समझ बढऩी बहुत जरूरी है। यही कारण है कि इस प्रेस में अभी तक बच्चों के लिए 11 करोड़ से ज्यादा किताबें छप चुकी हैं। इसके अलावा हर महीने, ‘कल्याण’ नाम की पत्रिका निकालती है जिसमें भक्ति, ज्ञान, योग, धर्म, वैराग्य, आध्यात्म जैसे विषयों को शामिल किया गया है। इसके साथ ही हर साल किसी विशेष विषय या शास्त्र को कवर करने वाला एक विशेष अंक भी निकालता है।

गीता प्रेस में कई बार हड़ताल भी हो चुकी है जिसमें पहली बार 2014 में गीता प्रेस के कर्मचारियों ने अपने वेतन को लेकर हड़ताल की थी। इसके बाद गीता प्रेस ने अपने तीन कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया था। बाद में कर्मचारी संगठन और गीता प्रेस के ट्रस्टियों के बीच मामला सुलझ गया। तीन कर्मचारी वापस ले लिये गये। पहली बार तीन हफ्ते प्रेस बंद रही।

गांधी शांति पुरस्कार की शुरूआत महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर 1995 में की गई थी। जिसमें तय किया गया कि हर साल ये पुरस्कार किसी ऐसी संस्था या व्यक्ति को दिया जाये जो समाज में शांति, अहिंसा और नि:स्वार्थ भाव से काम करते हैं । इसके तहत 1 करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि और प्रशस्ति पत्र राष्ट्रपति के हाथों से राष्ट्रपति भवन में दिया जाता है। इस पुरस्कार से सम्मानित संगठनों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ‘इसरो’, रामकृष्ण मिशन, ग्रामीण बैंक ऑफ बांग्लादेश, विवेकानन्द केन्द्र, अक्षय पात्र, एकल अभियान टृस्ट, सुलभ इंटर नेशनल शामिल हैं। वहीं महान व्यक्तियों में नेल्सन मंडेला, ओमन के सुल्तान बिन सैद अल सैद और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबर रहमान को अब तक गांधी शांति पुरस्कार मिल चुका है।

गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि वे केन्द्र की ओर से दिए इस पुरस्कार को स्वीकार करेंगे लेकिन इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की राशि नहीं लेंगे।

गांधी शांति पुरस्कार प्राप्त करने वाली गीता प्रेस, गोरखपुर के बारे में पूरी जानकारी मैंने इसलिए पाठकों को दी है ताकि इस अति प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त करनेवाली संस्था के बारे में विस्तृत जानकारी मिल सके।  वैसे इस एक सौ वर्ष पुरानी  संस्था के बारे में पाठक जानते ही होंगे और आपमें से बहुतों ने कल्याण सचित्र मासिक पत्रिका भी पढ़ी होगी। पर इसके कुछ दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष भी है जो सच होते हुए भी हमारे गले नहीं उतरते। खैर, जो हो गीता प्रेस हिन्दू धर्म सम्बन्धी साहित्य को सस्ते दास में लोगों तक उपलब्ध कराये, ताकि धर्म के बारे में भ्रांतियां दूर हों एवं सनातन धर्म के मूल तत्वों एवं उसके विभिन्न संदर्भों के बारे में आम हिन्दू धर्मावलम्बी को जानकारी मिल सके। दुर्भाग्यजनक है कि हमारे धर्म के बारे में कई भ्रामक एवं तर्कहीन प्रचार करते हैं और ऐसा करने वालों में वे भी शामिल हैं जिनके कंधों पर धर्म प्रचार का प्राथमिक दायित्व है। लोगों को सही सही जानकारी मिले इस निमित्त गीता प्रेस जैसे संस्थानों का सुदृढ़ होना जरूरी है।

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