अब ये देश हुआ बेगाना!

 अब ये देश हुआ बेगाना!

परदेस में तिरंगा देखकर हम गर्व से भर जाते हैं। अपना वतन... अपनी माटी, अपनी बोली-अपनी भाषा में ये चीजें विदेश में मिस करते हैं। जैसे ही हवाई जहाज अपनी धरती को चूमता है मन भावुक हो उठता है, हम अपनी सरजमीं की माटी को माथे पर लगा लेते हैं। सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा...... इकबाल का यह अमर गीत हमारी हमारी रूह में रच बस गया। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जब विदेशों में जाकर भारत की आजादी के लिए आइएनए फौज बनायी उस समय वे जब दक्षिणी महासागर से गुजर रहे थे, भारत में जलनेवाली बत्तियां देखकर उन्होंने गाना गुनगुनाया था- ए वतन, प्यारे वतन, तम पर  हम कुरबां। खैर यह सब तो स्वतंत्रता संग्रामियों के जज्बात थे जिनकी हम आज कल्पना ही कर सकते हैं फिर भी हम दुनिया के जिस भी कोने में हों दिल में इसकी गूंज रहती है। इतना ही नहीं खेल के मैदान में जब तिरंगा शान से ऊपर उठता है तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं, ये एहसास अलहदा होता है।

ऐसे में लाखों की संख्या में भारतीयों के देश छोडऩे की खबर हैरान करती है। जी हां, यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सरकार ने संसद में बताया है कि साल 2021 में 1.63 लाख भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी। 2015 से 2021 तक सात साल का आंकड़ा देखें तो 9.24 लाख भारतीय देश छोडकर परदेसी हो गए। वैसे, हम शख्स के लिए वजह अलग अलग हो सकती है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में भारतीयों के देश छोडऩे की प्रमुख वजह क्या है?

एक महीने पहले ही ब्रिटिश फर्म की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि करीब 8000 करोड़पति इस साल विदेश में शिफ्ट हो सकते हैं। इसी बीच 14 जून को हेनले प्राईवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 के मुताबिक इस वर्ष 6500 हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स यानी एच.एन.आई देश छोडक़र  जा सकते हैं। हालांकि यह संख्या पिछले साल से कम है। जब 7500 एचएनआई भारत छोडक़र गए थे।



करोड़पतियों के देश छोडऩे के मामले में भारत से भी आगे नंबर पर चीन है। चीन में साम्यवादी शासन है। यह ऐसी व्यवस्था मानी जाती है जो धनपतियों को कभी रास नहीं आती। किन्तु भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था है। 1991 में डा. मनमोहन सिंह ने उदार आर्थिक नीति लागू की थी जिसके फलस्वरूप भारत के पूंजी बाजार में नयी ऊर्जा का संचार हुआ। उस उदार आर्थिक नीति का सिर्फ बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों ने ही नहीं मध्यम एवं लघु स्तर के उद्योग एवं व्यवसायी जगत ने दिल खोलकर स्वागत किया। शेयर बाजार तो रॉकेट की गति से उडऩे लगा है।

डोमिनिक वोलेक ने कहा कि हालिया और लगातार उथल पुथल एक बदलाव का कारण बना है। ज्यादातर निवेशक अपने परिवारों को सुरक्षा से लेकर शिक्षा, हेल्थ, सर्विस, जलवायु परिवर्तन और यहां तक कि किप्टो फ्रेंडली माहौल जैसे कारणों को लेकर किसी और देश में बसने पर विचार कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के हाई टैक्स कानून के साथ - साथ आउटबाउंड रमिटेंस से संबंधित और ऐसे आन्य मुद्दे हैं जिसके चलते करोड़पति भारतीयों ने भारत में अपने निवेश को दसरे देश में ले जाने के लिए मजबूर किया है।

गौर करने वाली बात यह है कि ये लोग उन देशों में जाना चाहते हैं जहां का पासपोर्ट ज्यादा पावरफुल माना जाता है। इसके अलावा बेहर लाइफस्टाइल, बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की चाह में कई भारतीय विदेश में बसना चाहते हैं। ऐसे में युवा भारतीय दूसरे देशों में बिजनेस और निवेश की संभावनाएं तलाश रहे हैं।

ऐसा नहीं है कि भारतीय हाल के ही वर्षों में विदेश में बसना शुरू किया हैं। यह पलायनतो दशकों से जारी है लेकिन इन वर्षों में जब लोगों के हाथों में पैसा आने लगा तो परदेस में बसने की चाहत बढ़ गई। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया गया कि पिछले तीन साल में 3,92,643 भारतीयों ने अपनी नागरिका छोड़ दी। दिलचस्प यह है कि सबसे ज्यादा भारतीयों को अमेरिका में नागरिकता ली है। वैसे भी, अमेरिका की तडक़-भडक़ लाइफस्टाइल, ‘अमेरिकन ड्रीम’ का सपना ज्यादातर युवा भारतीय देखेते हैं। सरकार ने बताया हे कि ऑस्ट्रेलिया में पिछले तीन वर्षों में 58,391 भारतीयों, कनाड़ा में 64,071 भारतीयों, ब्रिटेन में 35,435 भारतीयों, जर्मनी में 6,690 भारतीयों, इटली में 12,131 भारतीयों, न्यूजिलैंड में 8,8,82 भारतीयों और पाकिस्तान में 48 भारतीयों को नागरिकता मिली।

भारत में पुरानी पीढ़ी के उद्योगपति देश में ही जमे हुए हैं लेकिन आज की पीढ़ी के उभरते बिजनेसमैन अपने कारोबार का विदेश में प्रसार करने हेतु आतुर हैं। वे देश छोडक़र जाने में नहीं हिचकिचाते। ये उद्योगपति ऐसे देशों में अपने पैसे का निवेश करना चाहते हैं जहां उन्हें ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके। उनके लिए अपना देश, देश  की मिट्टी, राष्ट्रप्रेम, अपने बुजुर्गों की धरती आदि का कोई माने नहीं है।

सबसे दु:ख की बात यह है कि आज भारत की बढ़ती हुई एवं उदार अर्थव्यवसथा का जिन्हें सबसे ज्यादा फायदा मिला, वे धन कमाकर अपना जीवन मस्त करने के लिए विदेश जा रहे हैं। भारत में संसाधनों का सबसे अधिक लाभ उठाने वाले नागरिक जिन्हें हम आम तौर पर ‘बड़े लोग’ मानते हैं, दुनिया के उन देशों में बसना चाहते हैं जहां भारतीय संस्कृति और संस्कार से उनका कोई सरोकार नहीं रह जाता है। जैसे-जैसे भारतीय अमीर हो रहा है, बड़ी संख्या में नागरिक बाउंड्री के बाहर जा रहे हैां। ऐसे में हम उनके कुछ भारतीय मजदूरों को सलाम करते हैं जिन्होंने ठीक उसके उलट विदेशों में जाकर मेहनत मजदूरी की और वहां से बड़ा धन कमाकर अपने वतन में उसका निवेश कर रहे हैं।

यह सवाल खड़ा होना लाजमी है कि आखिर भारतीय के अमीर लोग अपना देश छोडक़र क्यों चले जाते हैं। अमीर भारतीय उन देशों में जाना पसंद करते हैं, जहां टैक्स से जुड़े नियमों को आसान बनाने की बात मान भी लें तो क्यों वे खुश हो जायेंगे। अपने देश में रहकर यहां के नियम कानूनों में तबदीली लाने की मांग होती रही है। आखिर उसी का परिणाम है कि देश में उदार आर्थिक नीति का उद्घोष हुआ किन्तु इतना तुनक मिजाज भी ठीक नहीं कि कुछ व्यवस्था से नाराज होकर शादी में फूफा की तरह रूठ जायें। फूफा तो आखिर में मान जाता है किन्तु लगता है कि देश से बाहर जाने वाले भारतीय समाज से अपने को अलग थलग करने में ही नैसर्गिक सुख का अनुभव करते हैं।

दूसरे किसी संदर्भ में रची गई ये लाईनें स्मरण होती हैं-

देखो ये कैसे भागे जा रहे हैं

धर डगर गिरिवर छलांगें जा रहे हैं

कौन सा सुख इस धरा पर नहीं है

खोज में जिसकी अभागे जा रहे हैं।


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