भारत-पाकिस्तान के लोगों में सूझबूझ का यही सही समय है

भारत-पाकिस्तान के लोगों में सूझबूझ का यही सही समय है

पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है उसमें किसी को अचरज महसूस नहीं हो रहा है। 9-10 मई को जो कुछ हुआ, वह कोई अनपेक्षित नहीं है। पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान शायद पहले ऐसे एकमात्र राजनेता हैं जिसने सीधे पाकिस्तानी सेना को ललकारा है। पाकिस्तान में शायद पहली बार इमरान के समर्थक सैनिक प्रतिष्ठानों पर हमले कर रहे हैं। पाकिस्तान में आज तक सेना का वर्चस्व रहा है। उसको पहली बार वहां की जनता की तरफ से चुनौती मिल रही है। जिस सेना के खिलाफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री एवं तथाकथित जनतनेताओं ने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं दिखायी, उस सर्वशक्तिमान सेना को उनके हथियारों का लश्कर छोटा पड़ रहा है। सैन्य अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज को वैसा जनसमर्थन प्राप्त नहीं है जैसा इमरान को मिलता हुआ दिखता है। पाकिस्तान का इतिहास बताता है कि उसके सेना प्रमुखों को वहां के शीर्ष राजनीतिज्ञों को पटखनी देने में महारत प्राप्त है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ कई अवसरों पर देश में गृहयुद्ध भडक़ने की आशंका व्यक्त कर चुके हैं जो भुखमरी के बाद इमरान की गिरफ्तारी के खिलाफ भडक़ी हिंसा, भीषण उत्पात और सैन्य अधिष्ठानों पर हमलों से स्पष्ट है। क्या पाकिस्तान के 1971 की भांति फिर दो टुकड़े होंगे? उस समय सत्ता की लड़ाई और उस पर मजहबी तडक़ा ने इस इस्लामिक देश को दो-फाड़ कर दिया था। वर्तमान परि²श्य भी 1971 के प्रकरण से मेल खाता है। इमरान और उसकी पार्टी सत्ता खोने के बाद अब इस्लामी शरण में है। इमरान रैलियों में पाकिस्तान को ‘‘रियासत-ए-मदीना’’ बनाने का दम भर रहे हैं। इसी से भडक़ कर एक जिहादी ने इमरान पर पिछले साल जानलेवा हमला कर दिया था, जिसमें वे बच निकले, तो अभी 6 मई को उन्मादी भीड़ ने एक इमरान समर्थक को इसलिए पीट-पीट कर मार डाला, क्योंकि उसने इमरान की तुलना पैगम्बर मुहम्मद साहब से कर दी थी।

पाकिस्तान में भुखमरी का आलम।

यहां यह समझाना जरूरी है कि पाकिस्तान में यह सब क्यों हो रहा है? जहां भारत एक आर्थिक व सैन्य शक्ति के रूप में अग्रसर है वहीं उसका पड़ोसी देश जो कभी उसका अंग रहा है, आग में जल रहा है। इस स्थिति का कारण वह विषाक्त मानसिकता है, जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान का जन्म हुआ था। उसी घृणा और मजहबी उन्माद के चलते हिन्दू शोभायात्राओं पर मुस्लिम समाज के एक वर्ग को पत्थरबाजी हेतु उकसाती है। यही नहीं पाकिस्तान अपने संसाधनों का एक बहुत बड़ा हिस्सा ‘‘काफिर’’ भारत के खिलाफ आतंकवाद को पोषित करने में व्यय कर रहा है, वही रक्तबीज अब उसके लिए भी भस्मासुर बन रहे हैं।

पाकिस्तान में भारत या हिन्दू समाज के विरुद्ध विषवमन तक ही मामला सीमित नहीं है। वहां हर महीने किसी मस्जिद में बम विस्फोट सैकड़ों नमाजियों की जान ले लेता है। घृणा, प्रतिशोध के उपक्रम की यहीं इतिश्री नहीं होती है। वह प्रारम्भ तो गैर मजहबी से होता है किन्तु उसकी परिणति अपने ही धर्मावलम्बियों के खून खराबा में होती है। पाकिस्तान की यही आज की तस्वीर है।

पाकिस्तान का आवाम त्रस्त है। एक तरफउसका एक हिस्सा मजहबी उन्माद से ग्रसित है। वह हताश हो चका है। भूखे और अभावग्रस्त पाकिस्तानी आवाम भारत की तरफ देख रहा है। जैसे रस्सी जल जाती है पर ऐंठन नहीं जाती वही पाकिस्तानी आवाम की स्थिति है। वह खुली पलक से भारत का विरोध करता है किन्तु बन्द पलक में भारतीय समाज के प्रति सद्भावना भी रखता है। आज पाकिस्तान के लोग अपने सैनिक अधिनायकों के कुशासन से त्रस्त है। वे ऐसा मान रहे हैं कि सैनिक शासन एवं कथित प्रजातंत्र में भी सेना के वर्चस्व का ही यह परिणाम है कि पाक का आवाम अपने ही शासकों से रौंदा जा रहा है।

पाकिस्तान की इस परिस्थिति में भारत सारी स्थिति पर नजर रख रहा है। यह एक सरकारी विज्ञप्ति हो सकती है किन्तु पाकिस्तान के लोगों को इस वक्त भारतीय आवाम का साथ वक्त की मांग है। वे अपनों के ही सत्ताये लोग हैं और ऐसे में हम भारतवासी भी अगर उनके प्रति विरक्ति का भाव दिखायें तो उनकी आकांक्षाएं घुट-घुट कर दम तोड़ देगी। निराशा और हताशा हो तो पड़ोसी सिर्फ तमाशा देखे यह मुनासिब नहीं है। यही वक्त है कि भारत और पाकिस्तान के लोग एक-दूसरे के नजदीक आयें। पाकिस्तान में मजहबी जनून का नंगा नाच हो चुका है और वहां के लोग उसकी आग में जल चुके हैं। दूसरी तरफ हमारे मुल्क में भी कुछ लोग धर्म के आधार पर राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करना चाहते हैं। उन्हें पाकिस्तान के हालात जो 1947 के 15 अगस्त के जुनून से शुरू हुआ था और अब उस जुनून के परिणामों की पराकाष्ठा भोग रहा है से सबक लेना चाहिये। धर्म जब तक व्यक्तिगत रहता है हमारे जीवन पथ का प्रदर्शक रहता है उसे राजनीति एवं सत्ता सौंपने का वही परिणाम होता है जो पाकिस्तानी भुगत रहे हैं।

भारत-पाक के लोगों की भावनायें एक जैसी है एवं उन्हें एक दूसरे के नजदीक लाने का यही सही समय है। इससे भारतीय महाद्वीप में एक नये युग की शुरुआत होगी।

हमारा संघर्ष पाकिस्तान की हुकूमत से है। भारत में जनतांत्रिक व्यवस्था है एवं जीवन के हर क्षेत्र में लोकतांत्रिक व्यवहार को हम श्रेष्ठ मानते हैं। हमारे संस्कार लोकोन्मुखी है। पाकिस्तानी आवाम से हमारा वैमन्सय नहीं है। दुर्भाग्यवश स्थितियां कुछ ऐसी बनी कि पाकिस्तान के नाम से ही हम भडक़ जाते हैं। पाकिस्तान की हुकूमत भी भारत के नाम से अपनी जनसंख्या को डराती रहती है एवं भारत व भारतीयों के बारे में कई भ्रामक प्रचार किया जाता है। समय की जरूरत है कि हम अपनी तरफ से दिल बड़ा करें एवं वहां के कलाकारों, साहित्यकारों, स्कॉलरों, छोटे-मझौले व्यापारियों या दुकानदारों के साथ हमारा सौहाद्र्रपूर्व सम्पर्क बने। जो ‘‘कम्युनिकेश गैप’’ है उसे दूर किया जाये तो पाकिस्तानी जनता भारतीय लोक मानस में सम्मान पैदा कर सकती है। यह काम मुश्किल है पर असंभव नहीं है। पाकिस्तान के वर्तमान हालात का तकाजा है कि भारत-पाक के आवाम में मैत्रीपूर्ण सम्पर्कों की शुरुआत की जाये।



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