जीवन के 80वें पड़ाव पर उम्र चर्चा

जीवन के 80वें पड़ाव पर उम्र चर्चा

अक्षय तृतीया के दिन जीवन के 80वें पायदान को पार कर चुका हूं। बसन्त और उतने ही पतझड़ को आत्मसात करते हुए सफर जारी है। इस मुकाम पर अपनों से अपनी बात करने का लोभ संवरण नहीं कर सका हूं। उम्र के बहाने देश और दुनिया में लोगों की आयु के परि²श्य का जायजा ले लिया जाये।

भारत जब आजाद हुआ था, तब देश की औसत आयु महज 32 साल थी. यानि उस समय भारतीय औसतन 32 साल ही जी पाते थे, लेकिन अब ये औसत आयु बढक़र 69 साल के पार चली गयी है। आजादी से अब तक भारतीयों की औसत आयु में दोगुनी से ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।

वैसे हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ‘‘हानि लाभ जीवन ररण, यश अपयश विधि हाथ’’ लेकिन यह एक दर्शन मात्र है जिसमें इस विषय पर चिन्तन मनन पर विराम लगाने हेतु हम अक्सर उपयोग करते हैं। इस पर काफी चर्चा परिचर्चा एवं बहस की गुंजाइश है। अलग-अलग कालखंड एवं भौगोलिक स्थिति में उम्र का ग्राफ बदलता रहा है। जीवन और मरण अपने हाथ में नहीं होने से उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद जिसमें करने के लिए न तो कुछ हो और न ही कुछ करने की इच्छा हो लेकिन उम्र का खाता बंद न हो रहा हो और अपने को असहाय बेचारा समझने और दूसरों पर निर्भर रहने की स्थिति हो जाये तो मन उदास रहने लगता है, शरीर और मस्तिष्क दोनों ढीले पडऩे लगते हैं। तो क्या जीवन अगर बाकी है तो उसे आनंद लेते हुए और मनोरंजन के साथ नहीं जीना चाहिये, यह प्रश्न उन लोगों को अपने आप से करना जरूरी हो जाता है जो पहले की तरह स्वतंत्र, मुक्त और बेफिक्र होकर जिंदगी व्यतीत करना चाहते रहे हैं? 1950 में आयु 35 वर्ष की थी अब वह दोगुनी यानि 70 पहुंच गयी है। इसका अर्थ यह हुआ कि इसके बाद भी 80 से 100 वर्ष तक जीने की कल्पना की जा सकती है। इसी तरह दुनिया में ऐसे बहुत से देश हैं जिनमें औसत आयु 80-85 वर्ष है अर्थात् वहां रहने वाले सौ साल से अधिक जीने के बारे में सोच सकते हैं।

इन देशों में ऐसे देश भी हैं जिनमें शुद्ध वायु, हरियाली और प्राकृतिक रूप से जीवन बिताने की अपार संभावनायें हैं और इसके विपरीत कनाडा, हांगकांग जैसे देश भी हैं जो प्रदूषण के मामलों में काफी आगे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि कुदरत की नियामत के कारण तो लम्बी उम्र हो ही सकती है लेकिन औद्योगिक देशों में प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाने पर भी सौ या इससे अधिक का जीवन होना सामान्य बात हो सकती है। क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि उम्र का ताल्लुक हमारी सोच और जिन्दगी जीने के तरीके पर ज्यादा निर्भर करता है बजाय इसके कि हम कहां रहते हैं, हमारी भौगोलिक स्थिति कैसी है, प्राकृतिक संसाधनों के मामले में कितने मालामाल हैं। इसके स्थान पर इस बात का अधिक महत्व है कि किसी भी देश के वासियों की सोच कैसी है, वहां स्वस्थ रहने के प्रति कितनी जागरुकता है और इसके साथ ही चिकित्सा संबंधी सुविधाओं की क्या स्थिति है?

‘‘यथो जीवेत्, सुखम जीवेत’’।  -ऋषि चारवाक

अगर सोच यह है कि अब तो बस जैसे-तैसे जीना है, मन का हो जाये तो ठीक, न हो तो वह भी ठीक या फिर अपनी इच्छाओं के पूरा न हो पाने या अपनी मर्जी के अनुसार कुछ न कर सकने का आरोप परिवार या समाज पर डाल देना, तो यह किसी भी ²ष्टि से सही नहीं है। जीवन जब अपना है तो उसे जीने का तरीका भी अपना होना चाहिए। इसमें और परिवार को आपत्ति है या समाज इसमें कुछ रुकावट पैदा करता है तो उसकी अनदेखी करने में ही भलाई है क्योंकि तब आप दूसरों के भरोसे रहने या हर बात में उनकी राय लेकर कोई भी काम करने से मुक्त हो जायेंगे।

अक्सर आपने देखा होगा कि फिल्म या नाटक का कोई अभिनेता अपने से आधी उम्र की अभिनेत्री के साथ अभिनय करते हुए अटपटा नहीं लगता बल्कि दोनों की उम्र पर ध्यान न देते हुए बहुत ही सामान्य और स्वाभाविक लगता है। ऐसा क्यों होता है? इस बारे में विश्लेषण करेंगे तो पता लगेगा कि बड़ी उम्र के अभिनेता ने अपनी सोच को इस तरह मोड़ दे दिया कि वह अपने को अपने सह-कलाकार की ही उम्र का सोचकर अभिनय करने लगता है। उसकी यह सोच ही उसे उम्र के फासले पर ध्यान न देने के लिए प्रेरित करती है और यही प्रेरणा उसकी दिनचर्या का अंग बन जाता है। ऐसे व्यक्ति को हम सदाबहार चिर युवा और उम्र का असर न दिखाई देने वाला व्यक्ति मानकर उसकी प्रशंसा करते हैं।


लहराते हुए बादल मेरे जीवन में आये, बारिश या तूफान लाने के लिए नहीं, बल्कि मेरे सूर्यास्त वाले आकाश में रंग भरने।    -रवीन्द्र नाथ टैगोर

बढ़ती उम्र में यदि इसी सोच के साथ जीने की कोशिश की जाये कि हमारी सोच अभी भी वैसी है जैसी कि तब थी जब अब से आधी उम्र के थे तो वृद्धावस्था का डर नहीं रहेगा और व्यक्ति आनंदपूर्वक जी सकेगा। अपने शौक हों या कोई भूली बिसरी इच्छा हो अथवा घूमने फिरने, नयी जगहों पर जाने का मन हो, यहां तक कि अपने रिश्तों का दायरा बढ़ाने की ईच्छा हो तो इस उम्र में पीछे मुडक़र न देखना और उम्र को मनोरंजन की एक शैली मानते हुए जीना ही सबसे बेहतर है। और अब तो सरकार भी रिटायर्ड लोगों को नौकरी देने के बारे में सोच रही है क्योंकि उम्र कभी भी युवा होने की सोच पर हावी नहीं हो सकती। उम्र के असर से बचकर रहना है तो अपने खाने पीने सोने जागने, सेहत का ध्यान रखते हुए अपने शरीर और मन की जांच पड़ताल कराते हुए ही जीना सर्वश्रेष्ठ है।

इसी संदर्भ में कहा गया कि जिन्दगी लंबी नहीं बड़ी होनी चाहिए। वैदिक काल के ऋषि चारवाक ने कहा है- ‘‘यथो जीवेत्, सुखम जीवेत’’ यानि जीवन की लम्बाई अहम् नहीं है अहम् है कि आदमी अपना जीवन सुख से पीये। सुखी और सार्थक जीवन ही सर्वश्रेष्ठ है। इतिहास में उन्हीं का नाम दर्ज है जिन्होंने अपने जीवन को सार्थकता के साथ जीया है। ²ढ़ इच्छा शक्ति की ऊर्जा से मानव अंतिम सांस तक कार्य में जुटा रह सकता है। इतिहास में ऐसे बहुत से उदाहरण है जहां व्यक्ति ने अपनी ढलती उम्र में भी नये संकल्प लिये हैं और उन्हें पूरा किया है। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की ये पंक्तियां इस संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है।

धर्मराज संन्यास सोचना कायरता है मन की

है सच्चा मनुजत्व ग्रन्थियां सुलझाता है जीवन की।

यानि संन्यास लेना तो दूर की बात संन्यास लेने की सोच ही कायरता है। जो जीवन की ग्रन्थियों या उलझनों को सुलझा दे वही आदर्श जीवन है। हालांकि हमारे देश में संन्यास लेने के बाद भी लोक कल्याण का कार्य किया गया है। इसीलिये विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था- ‘‘लहराते हुए बादल मेरे जीवन में आये, बारिश या तूफान लाने के लिए नहीं, बल्कि मेरे सूर्यास्त वाले आकाश में रंग भरने।’’


Comments

  1. "उम्र को मनोरंजन की एक शैली मानते हुए जीना ही सबसे बेहतर है। और अब तो सरकार भी रिटायर्ड लोगों को नौकरी देने के बारे में सोच रही है क्योंकि उम्र कभी भी युवा होने की सोच पर हावी नहीं हो सकती। उम्र के असर से बचकर रहना है तो अपने खाने पीने सोने जागने, सेहत का ध्यान रखते हुए अपने शरीर और मन की जांच पड़ताल कराते हुए ही जीना सर्वश्रेष्ठ है।"आपने उम्र के आठवें दशक पार होने पर भी विचारों को नवीनता प्रदान की है। प्रदूषित वातावरण और प्रदूषित सोच उम्र को निराशा से भर देती है। अवकाश प्राप्त करने वाले उसी दिन से अपने मृत्यु दिवस को गिनने लगते हैं। घर वालों की नजरें अलग हो जाती हैं समाज भी उनका फायदा उठाता है। सरकार को रिटायर शब्द हटा कर आनंदमय अवकाश नाम रख देना चाहिए। मानसिकता और सोच बदलने की आवश्यकता है। भारतीय समाज ने एक ओर संन्यास की अवधारणा रखी जो गलत संदेश देती है। आप काम करते हैं जो उम्र को जीवन पर हावी नहीं होने देता।
    "यूं ही तो हंगामा मचा रखा है
    उम्र किसने देखी है" स्वस्थ और ऊर्जावान बने रहें 💐 💐 💐 💐 डॉ वसुंधरा मिश्र भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज कोलकाता

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  2. Age is just a number.

    जीवन जीना एक कला है। आपने साबित किया। शुभकामनाएँ। आलेख सफलतापूर्वक चिंतन को एक दृष्टि देता है। साधुवाद।

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  3. Commendable article, congratulations on your 80th year. The way you lead your life, should be an inspiration to everyone. Thank u for always supporting and encouraging the truth. Keep writing such articles because these are absolutely satisfying to read

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