टैगोर कैसल का बालकृष्ण बिट्ठलनाथ विद्यालय - स्कूल बंद होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ‘प्रमोटर’

 टैगोर कैसल का बालकृष्ण बिट्ठलनाथ विद्यालय

स्कूल बंद होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ‘प्रमोटर’

65 वर्ष पूर्व टैगोर कैसल (पी के टैगोर स्ट्रीट) में श्री तुलसीदास मूधड़ा जी ने अपने इस किले में जहां कई आवासीय मकान, दुकान, बाजार आदि का निर्माण किया वहीं किले के लगभग एक बड़े हिस्से में एक स्कूल भी शुरू की। विद्या के इस मंदिर का नाम उन्होंने अपने ईष्ट भगवान श्रीकृष्ण को नमन करते हुए बालकृष्ण बि_लनाथ विद्यालय रखा। मूंधड़ा जी ने बड़े जतन से स्कूल को न सिर्फ स्थापित किया बल्कि बड़ाबाजार क्षेत्र में एक आदर्श एवं विराट शिक्षा केन्द्र बनाने का स्वप्न देखा और उसे बहुत हद तक साकार भी किया। इस विद्यालय में प्राईमरी, सेकेन्डरी, इंग्लिश मीडियम, लड़कियों की स्कूल आदि कई विभाग शुरू किय गये। यथायोग्य शिक्षक व शिक्षिकाओं को अपनी स्कूल के साथ जोड़ा एवं स्कूल के रिजल्ट को भी अन्य स्कूलों की तुलना में बेहतर करने की पुरजोर चेष्टा की। उस कालखंड में माहेश्वरी विद्यालय, माहेश्वरी बालिका विद्यालय की तूती बोलती थी। पास में ही ज्ञान भारती भी खुल गई थी जिसके साथ कई हजार छात्र-छात्राओं का शैक्षणिक भविष्य जुड़ गया था।

वृहत्तर बड़ाबाजार में एक के बाद एक स्कूलें खुली। व्यवसायिक केन्द्र तो था ही शिक्षा के मामले में भी बड़ाबाजार किसी से कम नहीं था। बड़ाबाजार वालों को दुकानदारी, सब्जी बाजार, दूध, शिक्षा सभी सुविधायें उपलब्ध थी। लेकिन बड़ाबाजार में व्यवयाय जहां फूलता फलता रहा, वहीं जीवन की अन्य आवश्यकताओं के मामले में बड़ाबाजार की अहमियत कम होती गई। चिकित्सा को ही लीजिए। एशिया के इस सर्वाधिक विशाल व्यवसायिक क्षेत्र में अस्पताल स्वयं बीमार हो गये। हरीसन रोड का हरलालका अस्पताल इतिहास के पन्नों में सिमट गया, स्ट्रैण्ड रोड में मेयो अस्पताल बन्द हुए भी मुद्दत हो गई। हाल ही में पोस्ता में भिवानीवाला अस्पताल जिसे सुचारू रूप से चलाने भी कुछ संस्थाआं ने भीष्म प्रतिज्ञा की थी, बन्द हो चुका है। पोलक स्ट्रीट का गुजराती अस्पताल बिक गया। लोहिया अस्पताल में अब फिल्मों की शूटिंग हो रही है।

क्षमा शंकर पांडे

जरा सामने तो आओ छलिये!

अस्पतालों के साथ स्कूलों पर भी प्रमोटरों की गिद्ध दृष्टि लगी हुई है। मदान मैन्सन (रवीन्द्र सरणी) में छपते छपते का शुभारंभ हुआ था। काफी बड़ा मकान था। एक स्कूल भी था। एक साल गर्मी की छुट्टी के बाद जब छात्र लौटे तो देखा स्कूल में ताला लगा हुआ था। पता चला कि स्कूल बिक गया है। टैगोर कैसल के किले  के अन्दर बालकृष्ण बि_लनाथ विद्यालय जहां कभी सात-आठ हजार छात्र-छात्रायें पढ़ते थे, एक खास एजेन्डे के अन्तर्गत ‘टाइटैनिक’ जल प्रपोत की तरह धीरे-धीरे डूबने लगा। तुलसीदास जी मंूधड़ा के स्वर्गवास के पश्चात् उनकी सुपुत्री श्रीमती बीना लोहिया जी ने प्रारंभ में स्कूल की बिगड़ती व्यवस्था पर चिन्ता प्रकट की किन्तु बाद में स्कूल प्रबन्धन से उन्होंने अपने को दूर कर लिया। वहां क्षमा शंकर पांडे नाम के एक शिक्षक का स्कूल के सचिव के रूप में अवतार हुआ। क्षमा शंकर जी स्कूल पर काबिज थे किन्तु पता चला कि 2019 वर्ष के मार्च से वे अपने गांव जाकर बैठ गये। स्कूल का फंड भी क्षमा शंकर जी के साथ ही ओझल बताया जाता है। बीना जी से कुछ शिक्षिकाओं ने स्कूल के गिरते हुए स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो उन्होंने अपना पल्ला झाड़ दिया।

बालिका विद्यालय (इंग्लिश मीडियम) की एक शिक्षिका श्रीमती उर्मिला साव से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि स्कूल की शिक्षिकाओं का प्रोविडेंट फंड जमा नहीं किया गया। उर्मिला जी के अनुसार उनसे कहा गया कि पीएफ जमा कर दिया गया है किन्तु उन्होंने पीएफ कमिश्नर से पता लगाया कि वह आज तक जमा नहीं हुआ। क्षमा शंकर जी ने अपनी पुत्रवधु संध्या पांडे जी को स्कूल का टीचर इन्चार्ज बना दिया। अपने भतीजे मनीष पांडे को स्कूल का क्लर्कबना कर उनका पीएफ जमा करवा दिया किन्तु अन्य शिक्षिकाओं के भविष्य की बत्ती गुल कर दी। सेकेन्डरी विभाग की अवकाशप्राप्त शिक्षिका रीता भट्टाचार्य का दावा है कि अब स्कूल की रेक्टर है जबकि उनके पास इसक पुख्ता प्रमाण नहीं है।

पता चला कि प्राय: सभी  शिक्षक स्कूल की बदहाली के कारण स्कूल छोड़ कर चले गये हैं। अब कुछ पार्ट टाइम टीचर्स से जैसे तैसे स्कूल को घसीटा जा रहा है। स्थिति यह हो गई है कि कोरोना काल के बाद जब स्कूल खुली तो क्लास रूम की सफाई तक नहीं हुई।

उर्मिला साव टैगोर कैसल के ही एक छोटे से कमरे में अकेली रहती है। उन्हें यह कमरा भी स्वर्गीय तुलसी दास जी ने दिया था ताकि रोज उन्हें अपने घर जो काफी दूर था, जाना नहीं पड़े। उर्मिला साव का कहना है कि उन्हें वेतन भी नहीं मिला। पूछने पर बताया गया कि स्कूल में नुकसान चल रहा है। उर्मिला साव कुछ फाइटिंग मूड में हैं तो उन्हें कई तरह से परेशान करने की चेष्टा चल रही है।

आज आठ हजार छात्र-छात्राओं वाली इस स्कूल की यह स्थिति है कि बालिका विद्यालय सेकेन्डरी विभाग में जो कक्षा 5 से 10 तक है मात्र 25 छात्रायें पढ़ रही हैं। प्राइमरी में लगभग 20-25, केजी में एक सौ से कम और लडक़ों की स्कूल जहां चार हजार छात्र थे अब एक हजार से भी कम हैं।

नूतन बाजार में टैगोर कैसल यानि टैगोर किले की चार दिवारी में बसा यह स्कूल अंतिम सांस ले रहा है। स्कूल में कुल 26 क्लास रूम हैं, दफ्तर आदि के चार रूम हैं, प्ले ग्राउंड भी है जहां सन्नाटा पसरा रहता है।

स्कूल के संस्थापक स्व. तुलसी दास जी मूंधड़ा की सुपुत्री बीना लोहिया ने चुप्पी साध रखी है, स्कूल के सिपहसलार सेक्रेटरी महोदय क्षमा शंकर पांडे संभवत: अपने गांव से ही स्कूल चला रहे हैं।

स्कूल के कुछ अन्य शिक्षक, शिक्षिकाओं के अलावा टैगोर कैसल के वासिन्दों से बात हुई। उनका यह अनुमान है कि प्रबन्धक स्कूल के बन्द होने का इन्तजार कर रहे हैं। लावारिस की तरह इस स्कूल में दो चार लोगों की मिली भगत से स्कूल प्रबन्धक मां सरस्वती के इस मन्दिर के बंद होने की प्रतीक्षा में हैं। उनका मक्सद इस ‘सोने की खान’ को किसी प्रमोटर के हवाले करने का है।

बड़ाबाजार की त्रासदी यह है कि यहां स्कूल, अस्पताल बंद हो रहे हैं या बंद होने की कगार पर हैं। बस क्षेत्र में दो नये पुलिस स्टेशन- पोस्ता एवं गिरीश पार्क खुले हैं। प्राय: सभी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की संख्या कम हो रही है। अस्पताल जिसमें बीना लोहिया का लोहिया अस्पताल भी शामिल है भी बंद प्राय: है।

 जन प्रतिनिधियों  को इस दु:खद स्थिति से कोई सरोकार नहीं है। मारवाड़ी समाज को अपने पुरखों के लगाये हुए लोक कल्याण कार्यों पर नाज है, किन्तु एक के बाद एक इन केन्द्रों में ताले लगता देखकर उनकी कुम्भकर्णी नींद में अभी तक कोई खलल नहीं पड़ा है।

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