सादा जीवन उच्च विचार
राजनीति में आज भी जिन्दा है
भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार की तूती बोल रही है। आये दिन उच्च पदों पर बैठे लोगों के भ्रष्टाचार से समाचारपत्र की सुर्खियां बनती हैं। आम आदमी के दिमाग में यह बात बिल्कुल धर कर गयी है कि बड़े पदों पर बैठे सभी भ्रष्ट हैं। ईमानदार और सादगीपूर्ण जीवन बिताने वालों के लिए देश की राजनीति में अब कोई जगह नहीं है। सिर्फ राजनीति ही नहीं सभी प्रवृत्ति में भ्रष्टाचार की पैठ हो चुकी है। ऐसा माना जाता है कि आजादी के बाद भारत में राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार की यह घनिष्टता तेजी से पनपी है। ऐसा नहीं कि भ्रष्ट लोगों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं होती किन्तु ऐसे बहुत कम उदाहरण है कि भ्रष्टाचारी जेल के सलाखों के पीछे होते हैं। सच्चाई यह भी है कि जेल में भी कुछ बाहुबली अपराधी अपना साम्राज्य बाजाब्ता चलाते हैं, जेलर से लेकर पुलिस तक उनकी सेवा में नतमस्तक रहते हैं। देश में जब भी चुनाव होते हैं, भ्रष्टाचार का उन्मूलन एक बड़ा मुद्दा होता है, लेकिन सत्ता में आने पर राजनीतिक भ्रष्टाचार खत्म करना एक चुनौती बन जाता है।
आज देश का यह आलम है कि ईमानदारी एवं सादगी दुर्लभ वस्तु बन गयी है। ऐसी बात नहीं है कि सभी बेईमान हैं एवं ऐशोआराम का जीवन जीते हैं। समाज में ऐसे लोग भी हैं जो कीचड़ में कमल की तरह इन सारे विकारों से दूर हैं। ईमानदार लोग भी हैं उच्च पद पर रहते हुए भी उनका व्यक्तिगत जीवन सादगीपूर्ण है। वे समाज के आदर्श हैं, भले ही उनकी संख्या बहुत कम है। यह दुर्भाग्य है कि मीडिया एवं प्रचार के साधन भी आडम्बर एवं हाई फाई प्रोफाइल वालों को फोकस करती है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
ममता सात बार सांसद, केन्द्र के रेल मंत्रालय सहित कई विभागों की मंत्री रह चुकी हैं। यही नहीं हुगली के धनियाखाली हाथकरघा से बनी सूती साड़ी पहनती हैं। पैरों में अति साधारण हवाई चप्पल उनका राजनीतिक ट्रेड मार्क है। कालीघाट के जिस घर में वे रहती हैं वह आदिगंगा के किनारे है। मकान के बगल में एक खाल है जिसे देखकर उनका घर लगता है किसी बस्ती में है। कई वर्ष पहले मैं एक सांसद के साथ उनके कालीघाट स्थित एक छोटे से कमरे में दीदी के साथ था। सोने के लिए खाट थी और दो-तीन पुरानी कुर्सियां। आज भी वह इसी कालीघाट वाले घर में है, सुरक्षा आदि की ²ष्टि से पुलिस ने आसपास चौकी बना ली है। मुख्यमंत्री के साथ कई दौरे कर चुके लोग बताते हैं कि उन्हें आमलोगों के काम बेहद पसंद हैं। वे जिलों के अपने दौरे में रेहड़ी देखकर उतर जाती हैं। कभी चाय बनाती हैं कभी पान का बीड़ा लगाती है तो कभी पकौड़े छानने लगती हैं। पहाड़ के अपने दौरे के दौरान उन्हें मोमो बनाते भी देखा गया। बहुत ही सादगीपूर्ण दो जून भोजन के बावजूद वे एक बहुत अच्छी मेजबान हैं। मेहमानवाजी कोई ममता से सीखे। अपने मेहमानों की तहेदिल से खातिर करती हैं एवं अपने हाथ से व्यंजन परोसती है। पूजा के समय भोग अपने हाथ से बनाती है।
इसका अर्थ यह नहीं कि ममता ही सादगी का अवतार है। प. बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री अजय मुखर्जी अपने हाथ से अपने कपड़े धोते थे। अपने हाथ से कपड़े सिलते थे। मोटा कुर्ता और मोटी धोती एवं अति सादगीपूर्ण जीवन अजय बाबू ने जीया। सिद्धार्थ शंकर राय बड़े घर में पैदा हुए किन्तु उनका निजी जीवन बहुत सादा था। कॉलेज स्ट्रीट से गुजरते हुए वे एक बार कॉफी हाऊस चले गये। प. बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री एवं माक्र्सवादी नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य मुख्यमंत्री रहते हुए भी पाम एवेन्यू के पास तीन कमरों के फ्लैट में ही रहे। इसी तरह त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री मानिक सरकार अपना वेतन पार्टी को देते थे एवं उनकी निजी सम्पत्ति शून्य थी। आसाम के पूर्व मुख्यमंत्री शरत चन्द्र सिन्हा अपने सादे एवं बेदाग राजनीतिक जीवन के लिये जाने जाते थे। पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारी लाल नन्दा की कुल सम्पत्ति कुछ सौ रुपये थी। गोवा के मुख्यमंत्री भाजपा नेता मनोहर पार्रिकर ने हमारी प्रेस काउन्सिल को दावत दी। एक कोने में बैठे हुए पैंट, शर्ट पहने बैठे को हम पहचान नहीं सके कि यही गोवा के मुख्यमंत्री हैं जबकि गोवा जैसी जगह पर देश-विदेश के पर्यटक एशोआराम करने जाते हैं। एक वाकया बताना चाहूंगा। केन्द्रीय गृहमंत्री वाई वी चव्हान का एक पत्र मैंने पूना के म्यूजियम में देखा जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी को गांव के किसी मित्र से एक बार सौ रुपया ले ले, कुछ दिनों में ही आकर वे उसे लौटा देंगो। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिसमें बहुत बड़े ओहदों पर रहकर भी उन्होंने सादा जीवन यापन कर एक उदाहरण पेश किया। रामकृष्ण सरावगी प. बंगाल के मंत्री हुए। उस वक्त भी वे सिंघी बगान के फ्लैट में ही रहते थे। जिस दिन उनका मंत्री पद गया, उन्होंने सरकारी गाड़ी छोड़ दी एवं फिर वही भाड़े की गाड़ी या बस में सफर करते नजर आये। सादगीपूर्ण एवं ईमानदारी पर किसी राजनीतिक पार्टी, राज्य या जाति का एकाधिकार नहीं है। ऐसे धनकुबेर भी हैं जो सफल उद्योगपति हुए किन्तु उनका निजी जीवन विकाररहित, अनुशासित एवं अत्यन्त सादगीपूर्ण था। लक्ष्मी नारायण झुनझुनवाला (भीलवाड़ा), एक असाधारण उदाहरण है जबकि सुरेश नेवटिया, परमानन्द चूड़ीवाल, रामेश्वर टांटिया, भागीरथ कानोडिय़ा, राहुल बजाज आदि-आदि बड़े उद्योगपतियों ने सादा जीवन उच्च विचार कर उदाहरण रखा।
मेरे इस आलेख का एकमात्र उद्देश्य है कि लोगों में यह भ्रम है कि ऊंचे पदों पर सभी लोग भ्रष्ट, उच्छृंखल एवं अय्यासी जीवन व्यतीत करते हैं। लोगों ने आदर्श जीवन जीकर भी बड़े-बड़े कार्य किये हैं उनके बारे में भी जानकारी मिलनी चाहिये ताकि हमारी युवा पीढ़ी गलतफहमी में न हो।
भारत के आम जनमानस में भ्रष्टाचार की जो एक सामाजिक स्वीकार्यता बन चुकी है, उसे बदलने की आवश्यकता है। आइये कोशिश करें कि भ्रष्टाचार हमारी राजनीति का हमेशा के लिए अंगवस्त्र न बन पाये।
बुद्धदेव भट्टाचार्य
मानिक सरकार



बहुत अच्छी जानकारी दी। राजनीति में सभी लोग भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होते हैं। कहते हैं कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। काम में ईमानदारी और सकारात्मक विचार देश को आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं। नेताओं को जनता के सामने अपनी पारदर्शिता का प्रमाण देना होगा और कार्यों की समीक्षा करनी होगी तभी जनता का विश्वास प्राप्त कर सकेंगे। बधाई और शुभकामनाएँ 💐 💐 🙏-डॉ वसुंधरा मिश्र, कोलकाता
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