।। राम से बड़ा राम का नाम।।
घट घट वासी राम अपने भक्तों को अपनी किसी खास छवि का बंदी नहीं बनाते संभवत: इसलिए राम के मन्दिर नजर नहीं आते
रामनवमी का पर्व बड़ी धूमधाम से और पूरी गरिमा के साथ मनाया। देश के कुछ हिस्सों में झगड़े-फसाद भी हुए जिसे दुर्भाग्यजनक के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे हमारे देश में रामनवमी हो या मुहर्रम इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण वारदातें होती हैं या करायी जाती है। हिन्दू धर्म में छत्तीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है। सभी की कहीं न कहीं पूजा होती है। विविधता में एकता भारतीय समाज की सांस्कृतिक पहचान है। हमारे यहां विविधता को बिखराव नहीं हृदय पटल की विशालता का अभिप्राय माना जाता है। छत्तीस करोड़ देवी-देवताओं में लेकिन राम का नाम भारतीय जीवन में अमिट है। जन्म से मृत्यु तक किसी विधाता का नाम जुबान पर आता है तो वह राम और सिर्फ राम है। गीत, संगीत, साहित्य के अलावा कहावतों, मुहावरों में भी राम का उपयोग सर्वाधिक है। ऐसे लगता है राम सिर्फ आवाम के ईष्ट ही नहीं, एक पथिक के लिये पाथेय हैं, आषाढ़ की गर्मी में संतप्त के लिए पेड़ की छांव, बेसहारा के सहारा और दुर्दिन में राम के नाम से राहत महसूस होती है। ‘‘निर्बल के बल राम’’ तो कहा ही गया है। शायद इतना फैलाव किसी अन्य देवी-देवताओं का नहीं हुआ। रामचरित मानस ने राम के नाम को अनन्त फलक प्रदान किया। बाबा तुलसी दास की ‘‘स्क्रिप्ट’’ घर-घर पहुंच गयी और राम किसी मन्दिर या देवालय के मोहताज नहीं रहे। वह गरीब की कुटिया में भी रम गया, किसी पंडित के ध्यान से भी जुड़ गया, अबला नारी का वाणी बन गया तो सताये और शोषित की वाणी में प्रस्फुटित हुआ। देश ही नहीं विदेशों में भी भारत की संस्कृति का पर्याय बन गया राम। राम इसलिये भी घट घट वासी हैं कि अपने भक्तों को अपनी किसी खास छवि का ‘बंदी’ नहीं बनाते। अपनी भावनाओं के अनुसार कोई नयी ‘मूरत’ गढ़ ले तो कोई हर्ज नहीं। संत कबीर कभी कहते हैं ‘‘हरि मोर पिउ मैं राम की बहुरिया’’ और वही कबीर कहते हैं- ‘‘कबीर कुत्ता राम का, मुतिया मोरा नाउं, गले राम की जेवड़ी जित खैंचे तित जाऊं।’’
मैंने कई बार राम उपासकों से जिज्ञासा प्रकट की कि कण कण में रमने वाले राम और जीवन के हर मोड़ पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले राम जी के मन्दिर बनाने में भक्तों की दिलचस्पी क्यों नहीं थी? प्रश्न पर एक बार तो लगा शायद मैंने राम भक्त को छेड़ दिया हो पर वह भी विचार करने लगा कि भारतीय आत्मा में सबसे अधिक रच बसने वाले राम के मन्दिर अन्य देवी-देवताओं की तुलना में नगण्य है। मसलन वृहत्तर कोलकाता को ही ले लीजिये जिसकी एक करोड़ की जनसंख्या में लगभग 80 लाख हिन्दू धर्मावलम्बी हैं। चित्तरंजन एवेन्यू पर राम मन्दिर को सभी जानते हैं। इसके अलावा दूसरा राम मन्दिर के बारे में कोई नहीं बता पाता। पर दो-चार मन्दिर और भी होंगे जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं है। भगवान शिव और हनुमान जी के मन्दिरों की तो संख्या बताना बहुत मुश्किल है। सिर्फ बड़ाबाजार में सौ से अधिक मन्दिर हैं महादेव और बजरंगवली के। फुटपाथों पर छोटे-छोटे शिवजी के मन्दिर बने हुए हैं। पेड़ के नीचे और गली कूचे में शंकर जी और हनुमान जी विराजमान हैं। पर मर्यादा पुरुषोत्तम और भारत की अस्मिता के प्रतीक माने जाने वाले राम के मन्दिर हमारे इस सांस्कृतिक शहर में दो-चार के अलावा नहीं बनाये गये। यही स्थिति मुम्बई, दिल्ली, चेन्नैई, बेंगलुरू, इलाहाबाद, पटना, भोपाल और यहां तक कि मंदिरों के शहर वाराणसी की भी है। देवों की भूमि उत्तराखंड में भी राम घट घट में बाजाब्ता वास करते हैं पर भक्तों ने मन्दिर निर्माण करने का नहीं सोचा। पूरे देश में कुल 6 लाख 46 हजार से अधिक मंदिर हैं। एक अनुमान के अनुसार इनमें राम मन्दिर कुल मिलाकर दो हजार से अधिक नहीं है। क्या श्री राम फलदायक नहीं हैं? या क्या राम से मन्नत मांगने का रिवाज हमारे राम भक्तों में नहीं है?
राम जन्म भूमि को लेकर विवाद छिड़ा। विवाद के चलते उसमें ताला लगा दिया गया। फिर लोग भूल गये कि राम जन्मभूमि या रामलला ताले में बन्द हैं। भारत के युवा प्रधानमंंत्री राजीव गांधी एक बार संकट में पड़ गये क्योंकि शाहबानों के तलाक वाले मामले में उन्होंने भारतीय संविधान में संशोधन कर मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा की थी। इस पर राजीव गांधी को हिन्दुओं की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है, इस आशंका से उबरने हेतु राजीव गांधी ने राम मन्दिर का ताला खोल दिया। राम भक्तों को राम जी मिल गये और राजनीतिक खिलाडिय़ों को नये दांव खेलने का अखाड़ा। फिर क्या हुआ, सभी को विदित है।
खैर, दीर्घ काल तक मामला मुकदमें के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार वहां राम मन्दिर बनेगा। अयोध्या में राम मन्दिर बनना वैसे स्वाभाविक है क्योंकि भगवान राम की वह जन्मस्थली है। हिन्दुओं की भावना इससे जुड़ी है। अयोध्या में विशाल ही नहहीं भव्य राम मन्दिर बनाने की तैयारी जोरों पर है। प्रधानमंत्री ने स्वयं इसका शिलान्यास किया। 2024 लोकसभा चुनाव के पूर्व मन्दिर तैयार हो जायेगा हालांकि बताया गया कि चुनावी रणनीति से इसका कोई संबंध नहीं है। अयोध्या में राम की भव्य एवं विशाल नगरी बसेगी। यहां एयरपोर्ट भी बनेगा। बहुत संभव है कि अयोध्या का राम मंदिर भारत के सर्वाधिक भव्य पर्यटन स्थल बन जाय। ताजमहल के साथ अयोध्या में राम मन्दिर देखने भी देशी-विदेशी पर्यटकों का मन ललचायेगा। किन्तु यह भी तय है कि यह राम मन्दिर राम भक्तों की आस्था का केन्द्र नहीं बन सकेगा। आस्था एवं विश्वास से मन्दिर के भव्य या विराट होने का सम्बन्ध नहीं है। वाराणसी में बाबा विश्वनाथ, सालासर में हनुमान जी, फतेहपुर में राणी सती, खाटू में श्याम जी, बैद्यनाथ धाम में शिव पार्वती मन्दिर, गंगासागर में कपिल मुनि जैसे अनेकानेक उदाहरण है जहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। अयोध्या में धर्म और मान्यता से परे लोगों का आगमन होगा पर उसकी मान्यता वैसी नहीं होगी जो उपरोक्त मंदिरों की है। भक्तिभाव से उपासक किसी गली कूचे में छोटे से मंदिर में जाकर भी लाइन में खड़ा हो जाता है। अक्षर धाम का मन्दिर विराट है, विशाल है पर वहां भक्तों का सैलाब नहीं उमड़ता।
राम के मन्दिर देश में बहुत कम या नगण्य है सवाल किये जाने पर उत्तर यही है कि राम को लोगों ने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजा और राम का आदर्श जीवन जीने का प्रयास किया जिसके लिए उन्होंने मंदिर की चौखट पर जाने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।
मशहूर शायर अल्लामा इकबाल कहते हैं कि ‘‘है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज, अहले-नजर समझते हैं उनको इमाम-ए-हिन्द।’’
राम पर आपका लेख पढ़ा बहु विचारणीय है। वाराणसी का संकटमोचन मंदिर है जिसमें राम दरबार है। बडे-बडे मंदिर आकर्षण के केंद्र और घूमने के उद्देश्य के लिए हो सकते हैं लेकिन आस्था और विश्वास घर के छोटे से मंदिर में ही होता है। राम की उपस्थिति हृदय में है। भक्ति का दिखावा सडकों पर हिंसात्मक ढंग से होगा तो कोई भी भगवान हमारे नहीं हो सकते। मनुष्य - राक्षस और बंदरों की संस्कृति में सामंजस्यपूर्ण स्थिति राम की संस्कृति ने स्थापित की है। राम राजनितिक मुद्दों में चर्चित रहे हैं क्योंकि वे भारत को अपने में समेटे हुए हैं। राम को मंदिर में ढूंढने की आवश्कता नहीं है वह हृदय का विश्वास है। शुभकामनाएँ 💐 💐 🙏
ReplyDeleteगुरु ग्रंथ साहिब में राम का नाम सैंकड़ों बार आया है , जिसमें दशरथ पुत्र राम का जिक्र तो कम है लेकिन निराकार ब्रह्म या ईश्वर के रूप में अधिक है । मैं यहां महज गुरु नानक देव जी के शब्दों में कहना चाहूंगा कि जिनके ह्रदय में राम का निवास है,वे मर कर भी अमर हैं और वे किसी ठगी का शिकार नहीं -
ReplyDeleteना ओहि मरिह न ठागे जाहिं
जिनके राम वसे मन माहिं।
वैसे इस विषय पर मेरा एक लम्बा आलेख है।
नेवर जी का आलेख सर्वथा समयोपयोगी है।
धर्म के नाम पर दंगा करने वालों को राम एक ईश्वरीय शक्ति के रूप में सद्बुद्धि दें....
मेरी शुभकामनाएं .