हमारी चिकित्सा व्यवस्था को अंगूठा दिखाता कोरोना का भूत

 हमारी चिकित्सा व्यवस्था को अंगूठा दिखाता कोरोना का भूत

कोरोना के दो वर्ष तक प्रकोप ने शायद ही किसी को बक्शा हो। कोई घर ऐसा नहीं जिसने अपना कोई आत्मीय न खोया हो। ऐसा कोई विरला ही होगा जो कोरोना की विभीषिका से किसी न किसी रूप में ग्रस्त न हुआ हो। खैर दो वर्ष के दु:स्वप्न के बाद लोगों ने कोरोना की विदाई पर राहत की सांस ली। सब कुछ स्वाभाविक हुआ। कोरोना काल में हुई बर्बादी की भरपाई में जुट गये। घर में कैद लोगों ने हाथ पांव पसारने शुरू किये जिसका मंजर सिनेमाघरों, उत्सवों एवं पर्यटन स्थलों में देखने को मिला। शादी विवाह हो या कोई सार्वजनिक आयोजन लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। एक छोटे से अन्तराल के बाद फिर खुशियों की बत्ती गुल हो गयी। अभी ताजा स्थिति यह है कि फिर सभी अस्पतालों में हाऊसफुल का बोर्ड लटक रहा है। इस बार लेकिन व्यक्ति अपनी बीमारी ठीक से बता नहीं पा रहा है। हर शख्स चलते फिरते खांस रहा है, गमगीन चेहरा लेकर अपने रोजमर्रा कामों को निपटा रहा है। खांसी, जुकाम, सीने में दर्द की अघोषित बीमारी से परेशान है। बच्चों को तरह-तरह की कई बीमारियां अपनी चपेट में ले रही है। पता चला कि एडेर्नोवायरस हर घर में बच्चों को खोज रही है। नवजात शिशुओं एवं प्ले स्कूल के नौनिहालों पर इस बीमारी की ऐसी कु²ष्टि हुई कि कई छोटे बच्चे चले गये। वर्षों बाद पहली बार ऐसी बीमारी ने 2-4 साल के बच्चों को काल-ग्रास बनाया। अभी भी बच्चों को सांस लेने में काफी तकलीफ हो रही है। उन्हें एक्टूट रेस्पीरेटरी इंफेक्शन और इंफ्लूएंजा लाइक इलनेस जैसी बीमारी ग्रसित कर रही है। प. बंगाल सरकार ने अभिभावकों के लिए एडवाइजरी जारी कर दी है।



भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद से मिले आंकड़ों से पता चलता है कि साल 2021 में एच3एन3, इन्फ्लुएंजा-ए-वायरस के एक सब-टाइप से जुड़े मामलों में आये आखिरी उछाल के बाद से भारत में इस वायरस के कारण बीमार पडऩे वालों की संख्या दोगुनी हो गयी है। लोगों के इस वायरस - जिसके संक्रमण से जुड़े लक्षणों में बुखार, खांसी और थकान शामिल हैं- के प्रति अधिक संवेदनशील होने की कोई स्पष्ट वजह न होने के कारण विशेषज्ञों का कहना है कि फ्लू के टीकों की कम लोकप्रियता, को-मॉर्विडट (पहले से घातक बीमारियों की मौजूदगी) और हवा में मौजूद एलर्जी पैदा करने वाले कण इसके कारणों में शामिल हो सकते हैं।

हालांकि तमाम डाक्टर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और सरकार लोगों से न घबराने की बातें कर रहे हैं लेकिन एच3एन2 वायरस के लम्बे समय तक सताने वाले लक्षणों ने लोगों को चिंता में डाल दिया है। एक वर्ग के लोगों को लगता है कि कोविड महामारी के दौरान लोगों को आंतरिक प्रतिरोधक क्षमता कम हो गयी थी क्योंकि वे लगभग ढाई साल तक गृह-बंदी रहे थे और अचानक ेस बाहरी दुनिया के सम्पर्क में आने के बाद वे सभी प्रकार के वायरस के प्रति अति संवेदनशील हो गये हैं। वहीं एक-दूसरे वर्ग का मानना है कि प्रतिरोधक क्षमता इस तरह से बहुत अधिक प्रभावित नहीं हो सकती है।

भारत में कोरोना के संक्रमण के बाद से ही एडिनोवायरस और इन्फ्यूएंजा जैसी बीमामियां फैल रही है। ये एक श्वसन वायरल इंफेक्शन है जो हर साल बीमारियों का कारण बनता है।

पिछले कुछ महीनों में भारत में कोरोना की रफ्तार काफी धीमी हो गयी थी लेकिन एक बार फिर से कोरोना संक्रमितों के मामले आने शुरू हो गये हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार पहले की तुलना में आज देश में कोरोना के दैनिक मामले में थोड़ी गिरावट दर्ज की गयी। भारत में 14 मार्च की जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में कोरोना के 444 नये मामले सामने आये हैं। इस दौरान एक संक्रमित व्यक्ति की मौत की खबर है। इससे पहले रविवार को देश में कोरोना के 524 नये मामले कोरोना के 80 नये केस सामने आये हैं।

एक तरफ यह परि²श्य है तो दूसरी तरफ हमारे देश में चिकित्सा व्यवस्था अपने आप में एक बीमारी है। कोरोना काल से भी लोगों ने सबक नहीं लिया। चिकित्सा पहले से महंगी थी अब तो आम आदमी की जेब के बाहर होती जा रही है। आर्थिक दबाव में दिमागी और मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है। परिणामस्वरूप आत्महत्या के मामलों में जबर्दस्त इजाफा हो रहा है। अखबार खोल कर देख लें, हर दिन दो तीन खुदकुशी की खबरें मिलेगी। इन घटनाओं का खासियत यह है कि अब परिवार के दो-तीन लोग मिलकर आत्महत्या करते हैं। पिता, पत्नी और बच्चे सब मौत की नींद सो जाते हैं। ऐसा प्राय: गम्भीर आर्थिक संकट की परिणति होता है। कुछ लोग डिप्रेशन में आकर अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं। पारिवारिक हिंसायें बढ़ रही है। मानसिक रूप से अवसाद ग्रसित होकर आदमी अपने और अपने परिजनों को मार डालता है। माता की पुत्र द्वारा और कहीं-कहीं पुत्र की माता द्वारा हत्या की अविश्वसनीय घटनायें भी प्रकाश में आयी है। नृशंसता की भी सीमा पार हो रही है। शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके फ्रीज में छिपाने जैसी जघन्य घटनायें हो रही है। कोविड के बाद लोगों में बर्दाश्त करने एवं समन्वय की इच्छाशक्ति लगभग मर चुकी है।

महंगी चिकित्सा के कारण कई लोग अपना प्राथमिक इलाज भी नहीं करा पाते हैं। इलाज के पहले कई तरह की टेस्टिंग में ही साधारण आदमी का हौसला पस्त हो जाता है। डाक्टरों के एक बड़े वर्ग ने चिकित्सा को व्यवसाय बना दिया है, यह तो कोई नयी बात नहीं है किन्तु अब तो चिकित्सकों ने जिन्हें हम भगवान का दर्जा देते हैं, रोगी को लूटना शुरू कर दिया है। रोगी के घरवालों को अपने स्वजन के इलाज में जीवन भर की आमदनी की आहुति देनी पड़ती है, फिर भी बचने की गारंटी नहीं है।

कोरोना के पश्चात् चिकित्सा की व्यवस्था पर सरकार को पूरी जांच करनी चाहिये। पैटेन्ट दवाइयों के बदले साधारण दवाइयों को जन-जन तक पहुंचाया जाना चाहिये। पूरे स्वास्थ्य एवं चिकित्सा के कल्याण हेतु जरूरी है कि डाक्टर गैर ब्रांडेड दवाइयां लिखें ताकि गरीब भी उपचार कर सके। चिकित्सा को जनोन्मुखी बनाने के लिए सारी व्यवस्था में आमूल चूल बदलाव की ओर बड़े कदम उठायने जाने की जरूरत है।


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