ये बिन बुलाये मेहमान नगरवासी हैं परेशान

ये बिन बुलाये मेहमान

नगरवासी हैं परेशान

कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम साहब ने शुक्रवार को एक सवाल के जवाब में कहा कि मकानों में मरम्मत के अधिकांश कामों में कलकत्ता म्युनिसिपल कार्पोरेशन की इजाजत की जरूरत नहीं है। मेयर साहब की इस सफाई से शहर की जनता ने बड़ी राहत महसूस की, वहीं कार्पोरेशन के वार्ड-पार्षदों को यह बयान नागवार गुजरी। दरअसल मेयर का कथन कोई नया नियम या कानून नहीं है, बल्कि यह पहले से ही व्यवस्था थी कि मकान या अपने कमरे में ढांचागत परिवर्तन किये बिना अगर उसकी मरम्मत करानी हो तो इसके लिये निगम हस्तक्षेप नहीं कर सकता। लेकिन हकीकत कुछ और है। प्रत्येक मोहल्ले में कुछ लोगों की तीसरी आंख इसी पर रहती है कि कौन व्यक्ति अपने यहां मरम्मत या रंग रोगन करा रहा है। उन्हें स्थानीय गुर्गों के उत्पीडऩ का सामना करना पड़ता है। ऐसे में पुलिस का भी रोल अहम् होता है। किरायेदार दौड़कर पुलिस के पास आता है और फिर स्थानीय थाने हरकत में आ जाते हैं। इस प्रकार सारे खेल में तीन दलों के बीच रस्साकसी शुरू हो जाती है। किरायेदार या मकान अथवा फ्लैट मालिक, स्थानीय पार्षद या उसके सिपहसालार एवं लोकल पुलिस स्टेशन। इसमें पुलिस बड़ी चालाकी से काम करती है। पुलिस को यह जानकारी है कि मरम्मत के काम में कार्पोरेशन का परमिशन नहीं चाहिये किन्तु किरायेदार और वार्ड पार्षद के विवाद की बहती गंगा में वह भी हाथ धोने की फिराक में अपनी सक्रियता बढ़ा देता है। उसे अपना खेल खेलने के लिए यह दिखाना पड़ता है कि मरम्मत के काम से क्षेत्र में अशांति भंग हो सकती है। इसी बीच में फ्लैट के आसपास का कोई दूसरा किरायेदार यह शिकायत भी कर देता है कि इस मरम्मत कार्य से हमारी नींद खराब होती है या हमारी पारिवारिक शांति में खलल पड़ता है। बस एक लड़ाई जैसी स्थिति पैदा होती है। फिर अंतोतगत्वा घर की मरम्मत की इस प्रक्रिया में किरायेदार की मरम्मत हो जाती है। किरायेदार को पुलिस वार्ड कौंसिलर के 'भाई दा' के साथ ले देकर समझौता करना पड़ता है। अधिकांश मामलों में ऐसा ही होता है। इसमें किरायेदार कहीं अड़ गया तो उसे पुलिस और स्थानीय भाइयों की नाराजगी की कीमत चुकानी पड़ती है।

महानगर का एक जीर्णशीर्ण मकान।

मेयर सप्ताह में एक बार नागरिकों से सीधी बात का उपक्रम करते हैं जो अपने आप में बेजोड़ है। इस कार्यक्रम को जनोपयोगी एवं नागरिकों के कष्ट निवारण का निदान तलाशने में एक बड़ा कदम है किन्तु बेचारे किरायेदारों पर 'पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं करना चाहियेÓ वाली सलाह सबसे व्यवहारिक एवं वजनदार लगती है।

मेयर के इस कार्यक्रम में दक्षिण कलकत्ता के किसी नागरिक ने फिरहाद साहब को बताया कि पुलिस उसे मरम्मत का काम करवाने से रोक रही है। मेयर ने किरायेदार से बातचीत करते हुए अपने चेम्बर में बैठे कार्पोरेशन के सम्बन्धित अधिकारियों से भी कहा कि मरम्मत हेतु कार्पोरेशन हस्तक्षेप या किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं कर सकती है। मेयर ने अपने अधिकारियों से यह भी कहा कि कृपया पुलिस को भी यह बात समझा दें।

'छपते छपतेÓ ने कार्पोरेशन के जिम्मेवार लोगों से पूछताछ कर यह पता लगाया कि सिर्फ घर के वर्तमान ढांचे में परिवर्तन करने वाले किसी कार्य को करने हेतु कार्पोरेशन की अनुमति जरूरी है, अन्य मामलों में नहीं। किसी ऐसे स्थान पर जो कॉमन पब्लिक के लिये हो या किरायेदार के अख्तियार में नहीं हो, में कोई कार्य नहीं किया जा सकता। अपने फर्श पर अगर टाइल बदलनी है तो उसके लिए इजाजत लेनी जरूरी नहीं है।

मेयर से जिस सज्जन ने बात की उनका यह कहना है कि उन्होंने पहले भी मेयर साहब से सम्पर्क किया था और कार्पोरेशन से उन्होंने एक पत्र भी ले लिया था पर जब पुलिस स्टेशन में पत्र सौंपने गये तो पुलिस ने लेने से इनकार कर दिया।

मरम्मत के मामले में कार्पोरेशन की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, यह नियम पुराना है। किन्तु इसके बावजूद किरायेदारों के गले की हड्डी बना हुआ है रिपेयर का मामला। यहां यह उल्लेखनीय है कि कलकत्ता लगभग तीन सौ पचास वर्ष पुराना शहर है। पुराने कलकत्ता यानि- बागबाजार, बड़ाबाजार, सहित केन्द्रीय कलकत्ता शहर के अधिकांश मकान पुराने हैं एवं मरम्मत मांगते हैं। कई हजार मकान जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है जिसे देखने से ही लगता है कि यह कभी भी गिर सकता है। मकान मालिक ऐसे मकानों पर कार्पोरेशन से बात कर एक तख्ती लगवा देता है ''विपदजनक बाड़ी''। इस तरह वह अपने उत्तरदायित्व से बच जाता है एवं कार्पोरेशन भी पल्ला झाड़ लेती है। लेकिन समस्या मुंह बाये खड़ी रहती है कि किरायेदार कहां जाये? ऐसी हालत में वह उसी मकान में अपनी एवं अपने परिवार वालों की मौत की प्रतीक्षा करनी होती है। अब भगवान भरोसे कई मकान उस अवस्था में भी टिके हुए एवं गाहे-बगाहे बीच-बीच में मकान के धराशायी होने की घटना होती है जिसमें कहीं-कहीं किरायेदारों की मृत्यु भी हो जाती है। पर एक लाइलाज रोग की तरह यह स्थिति महानगर में बनी हुई है और इसका कोई समाधान निकट भविष्य में होता नजर नहीं आता।

नियमानुसार मकान की सीढ़ी की मरम्मत हो या लिफ्ट बदलने, रंग रोगन, फर्श की टाइल बदल, छत के डाइमेन्शन में बिना बदलाव कर उसकी रिपेयर, फाल्स सीलिंग या एयरकंडीशन हेतु सीलिंग में आवश्यक परिवर्तन, प्लास्टरिंग या पैचवर्क प्लम्बिंग रिपेयर या नवीनीकरण सेनिटरी एवं अन्य दैनदिन उपयोगी सेवा, बाउन्डरी वॉल की मरम्मत आदि सभी कार्य कार्पोरेशन या स्थानीय निकाय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

मकान मालिकों को संकट से बचाने हेतु कार्पोरेशन ने एक फार्म तैयार किया है जिसमें मरम्मत एवं अन्य कार्य जिन्हें करने हेतु इजाजत नहीं चाहिये की पूरी सूची दी गयी है। कार्पोरेशन ने बताया कि यह सूची हम वितरित कर रहे हैं जिन्हें मकान के बाहर उपयुक्त स्थान पर वासिन्दों की जानकारी हेतु लगाया जा सकता है। अगर इस सूची से इतर कोई अवैध निर्माण कार्य हो रहा है तो निगम अधिकारी वहां जाकर मकान मालिक को यह नोटिस देंगे कि चल रहा कार्य गैरकानूनी है। मकान को गिराने के पहले उस प्रापर्टी के मालिक को सीएमसी से अनुमति लेनी होगी।

इस प्रकार इस रोजमर्रा विवाद एवं नागरिक जीवन को झंझट मुक्त बनाने हेतु कदम उठाये गये हैं किन्तु उसे समझना आवश्यक है।



Comments

  1. इस लेख के माध्यम से नागरिकों को उम्दा जानकारी देने के लिए धन्यवाद।

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  2. कोलकाता के नगरवासियों के लिए आप ने काफी सवेदनशील विषय को प्रकाशित किया है, समस्या को सही उजागर किया है और समाधान की ओर भी इशारा किया है, निसंदेह आपने अपनी कलम से नगर परिषद, पुलिस, छूट भैया नेताओ की पोल भी खोली है। आपको साधुवाद।।।।

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  3. ज्ञानवर्धक लेख! धन्यवाद🙏

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