गुलाब बाड़ी के शास्त्रीय परिवेश में 'शाही भोज'
हर्ष नेवटिया ने रखा एक अनुकरणीय उदाहरण
सामाजिक क्षेत्र में छोटे-बड़े विकारों पर काफी कुछ लिखा, लोगों ने पढ़ा और दाद भी दी। कुछ को भले ही नागवार गुजरा हो पर समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने सामाजिक कुंठाओं पर दागी गई वैचारिक मिसाइल की सराहना की, कुछ ने साहसिक लेखन पर बधाई दी। कहीं आलोचना भी झेलनी पड़ी। किंतु कुल मिलाकर प्रोत्साहन मिला। दिन पर दिन बढ़ रहे आडंबर कुसंस्कृति, दिखावा और सामाजिक मूल्यों में हो रही गिरावट पर चोट की जानी चाहिए ताकि आवाम में जागृति पैदा हो। इसका असर अगर बहुत नहीं हुआ तो वार खाली भी नहीं गया और चौपालों में चर्चा हुई। एक बड़े वर्ग ने महसूस किया कि जब लगभग सभी सामाजिक मंच निष्प्रभावी हो गए हैं एवं जहां सामाजिक सुधारों पर चर्चा हल्के-फुल्के संवादों तक सीमित रह गई है ऐसे में कोई धारदार कलम चलती है तो ठहरे हुए पानी में कुछ हलचल होगी।
इसी संदर्भ में मैंने चिंतन प्रक्रिया में यह भी महसूस किया कि समाज में कहीं कुछ अच्छा होता है तो उसकी भी सुर्खियां बननी चाहिए। आखिर सब कुछ तो समाप्त नहीं हुआ है। कुछ तो ऐसा हो रहा होगा जिसकी तरफ नजर घूमनी चाहिए। जहां कुछ अनुकरणीय है या जिस घटनाक्रम में कोई संदेश छिपा हो उसे भी उजागर करना उतना ही अहम है जितना हमारा विकारों और चिंताओं पर फोकस करना। ऐसा नहीं हुआ तो कोई भी व्यक्ति नेक कार्य या आदर्श क्यों रखेगा। यह बात बिल्कुल विचारणीय है कि जो बंधु समाज के व्यापक हित को साधते हैं एवं आदर्शों एवं सौजन्य को जीवन में उतारते हैं, उनका जिक्र अवश्य होना चाहिए एवं उन कृतियों को फोकस किया जाना चाहिए। मीडिया की कलम चाकू की तरह दो धारी होती है जिसका एक हिस्सा प्रतिवाद के निमित्त है और दूसरे हिस्से से सृजन भी किया जा सकता है। इसी परिपेक्ष में मैंने कई बार उन घटनाओं एवं आयोजनों पर भी लिखा है ताकि दूसरा पक्ष भी लोगों के बीच जाए। इसी दृष्टि से आलोचनाओं के साथ सकारात्मक प्रवृत्तियों को भी इस स्तंभ में उतनी ही वरीयता दी गई। इस आलेख में कुछ का उल्लेख कर रहा हूं- वैवाहिक परिचय सम्मेलन का दौर, अंदाज कुछ अलग है मेरे सोचने का सबको मंजिल का शौक है और मुझे सही रास्तों का (राहुल बजाज को विनम्र श्रद्धांजलि), गौ हत्या पाप है तो गाय का दूध नाली में बहाना महापाप, सोनू सूद फिल्म एक्टर से बना प्रवासी श्रमिकों का मसीहा, सामाजिक क्रांति की लौ से निकली चिंगारी मारवाड़ी बालिका विद्यालय, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा (बसंत कुमार बिरला), महिला उद्यमियों का बढ़ता हौसला ओलंपिक, सावे में 130 जोड़ा परिणय सूत्र में बंधे, मुरारी बापू की सामाजिक क्रांति, युवा पीढ़ी पर भरोसा रखें, रुद्राभिषेक: नारी शक्ति ने रखा एक अनुकरणीय उदाहरण, पदम श्री डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र, कलम के सिपाही गुलाब कोठारी को सलाम, सुनील मित्तल की तरह उदार पहल या खूनी क्रांति, महाश्रमण जी का एक सफल सार्थक चातुर्मास, आदि आदि कुछ पुष्प हैं जिन्हें हमने रविवारीय चिंतन की माला में पिरोया।
पद्म विभूषण उस्ताद अमजद अली खान का गुलाब बाड़ी में सितार वादन।
अभी हाल ही की बात है। विगत 26 फरवरी रविवार को क्वींस पार्क में स्थित गुलाब बाड़ी में एक आयोजन हुआ। महानगर के जाने-माने उद्योग स्वामी श्री हर्ष नेवटिया एवं उनकी अर्धांगिनी मधु जी ने अपने निवास में एक अनुष्ठान किया। इस कार्यक्रम के दो पहलू थे। एक तो पद्म विभूषण उस्ताद अमजद अली खान का सितार वादन जिसमें तबले पर साथ दिया उत्कृष्ट तबला वादक अनुब्रत चटर्जी एवं ईशान घोष ने। इस शास्त्रीय अनुष्ठान का मकसद था सुपुत्र पार्थिव से मल्लिका की सगाई कर अपने परिजन, स्वजन मित्रों एवं सहयोगियों का इस जुगल जोड़ी से तारुफ (परिचय) कराना। यह परिचय भी हर्ष जी ने बड़ी संजीदगी एवं नपे तुले शब्दों में दिया। मैं यह नहीं कहता कि ऐसा कभी किसी दूसरे ने नहीं किया किंतु अगर ऐसा हुआ भी है तो मैं उससे वंचित रहा हूं। राजस्थानी मांड से लेकर रविंद्रनाथ टैगोर के सर्वप्रिय गीत 'एकला चलो रेÓ के तबले की धुन पर सितार से झंकृत कर जुगलबंदी को गुलाब बाड़ी के सुरम्य रमणीक वातावरण में महानगर के विभिन्न विधाओं के 300 से अधिक लोगों ने रुचि और तन्मयता के साथ सुना और उसका आनंद लिया। नेवटिया जी की इस गुलाब बाड़ी में पहले भी एक ऐसे ही संगीतमय कार्यक्रम में शरीक हुआ पर वह संगीत संध्या तक ही सीमित था। किंतु इस बार नेवटिया दंपत्ति ने अपने सुपुत्र एवं उनकी मंगेतर को परिमार्जित एवं श्रेष्ठ अभिरुचि की विरासत सौंपी।
इस पारिवारिक किंतु सांस्कृतिक आयोजन की इतिश्री भी कम नैसर्गिक नहीं थी। कार्यक्रम का पटाक्षेप एक प्रीतिभोज से हुआ जिसमें सुखद आश्चर्य की बानगी भी सबको याद रहेगी। महानगर में एक जाने-माने शिल्पपति, सभी भौतिक साधनों से संपन्न नेवटिया परिवार के भोज में मात्र वही छह व्यंजन रखें जो आमतौर पर हम घर पर खाने में परोसते हैं। पूड़ी, दो सब्जियां, राजस्थानी दही बड़ा, कचौड़ी, मिठाई के नाम पर बूंदिया और लंूजी की चटनी। कई बार मुझे पूरी नजर मार कर देखना पड़ा कि कहीं कोई व्यंजन चूक तो नहीं गया। एक कुटिया का परिवेश और मेहमानों की सुविधा हेतु पांच टेबलों पर इन्हीं व्यंजनों का परोसा। मैंने अनगिनत विवाह एवं सामाजिक आयोजन में शिरकत की है। जहां इससे अधिक संख्या में तो सिर्फ सलाद होते हैं। अन्य व्यंजनों की तो गिनती करना मुश्किल है। हां, निकलने से पहले ठंडाई और मसाला चाय का भी छोटा सा स्टॉल था। आपको मैं यह अतिशयोक्ति नहीं बता रहा हूं, पर भरोसा कीजिए। विवाह शादियों में इतने विविध और भारी संख्या में खाने का आइटम होते हैं कि उनका चयन करना मुश्किल हो जाता है और कई बार किसको खाऊं, किसको तजंू की दुविधा में आधा पेट खाकर ही निकलना होता है पर गुलाब बाड़ी में इस 'शाही भोजÓ में खाकर बड़ी तृप्ति हुई। सजावट भी इतनी शालीन थी बायें दायें एक कतार में गुलाब की पंखुडिय़ों पर दीप माला। ऊपर फूलों की लटकती बेल।
कार्यक्रम का कई परिचितों से परिवेश की चर्चा में व्यंजनों की माइक्रो लिस्ट के हर जुबान पर चर्चा थी। हम बड़े बड़े आयोजनों में शरीक होते हैं किंतु कभी चर्चा नहीं करना चाहते क्योंकि वैसे आयोजन अक्सर हो रहे हैं। इस पर चर्चा सिर्फ इसलिए है कि सागर में द्वीप की तरह गुलाब बाड़ी का यह कार्यक्रम जोश मलीहाबादी के इस शेर को चरितार्थ करता है-
हम तो बिक जाते हैं उस अहले कर्म के हाथों
करके एहसान भी जो नीची नजर रखते हैं।।

हर दृष्टि से संपन्न नेवटिया परिवार ने सादगी का जो आदर्श उपस्थित किया वह सचमुच सराहनीय है और पत्रकारिता की दृष्टि से आपने जो इसे जन जन के सम्मुख प्रस्तुत किया उसके लिए आप भी बधाई के पात्र हैं
ReplyDeleteवाह!!! आदर्श शुरुआत हो समाज की विसंगतियों का नाश हो
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