अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन : अध्यक्ष पद चुनाव का पटाक्षेप

अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन

अध्यक्ष पद चुनाव का पटाक्षेप

बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

विगत 29 जनवरी के इसी स्तम्भ के अन्तर्गत मैंने लिखा था अश्वमेध के काले घोड़े को कौन रोकेगा? इस पर बहुत सारी प्रतिक्रिया आईं। कई महानुभावों ने फोन पर तो बहुतों ने मोबाइल के वाट्सअप पर एवं कुछ ने पत्र लिखकर अपनी प्रतिक्रिया को अंजाम दिया। सभी किन्तु सामाजिक संस्थाओं के भविष्य पर चिन्तित थे। मारवाड़ी सम्मेलन के चुनाव में मुकाबला हो अथवा सर्वसम्मति से किसी को अध्यक्ष बना दिया जाय, इस पर लोगों की दिलचस्पी नहीं थी समाज की पुरानी संस्थाओं के भविष्य को लेकर, लेकिन सभी दु:खी थे। इन संस्थाओं में कुछ लोग अंगद के पांव की तरह जम गये हैं, इस पर सभी ने अपनी चिन्ता प्रकट की। समाज में परिवर्तन एवं कुरीतियों एवं विकारों को खत्म करने या कम करने के प्रति लोगों में आ रही उदासीनता से लोग निराश नजर आये।




अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन में होने वाले अध्यक्ष पद के चुनाव पर किसी बाहुबली की इन्ट्री रोक दी गयी, इस सुखद खबर से समाज के शुभचिन्तकों ने राहत की सांस ली और छपते छपते द्वारा की जा रही सकारात्मक पहल का भी समाज के आवाम ने स्वागत किया। सम्मेलन के अध्यक्ष पद हेतु इस संस्था में अभी तक आम सहमति बनती रही है। आम सहमति का अर्थ यह नहीं कि इस उच्च पद हेतु लोगों के नाम नहीं आते। नाम प्रस्तावित होते हैं किन्तु चुनाव के नाम पर किसी तरह की उठापटक को टालने हेतु समाज के लोग अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। यहां इस बात का उल्लेख करना सापेक्ष होगा कि कुछ वर्ष पूर्व मेरा नाम भी एक प्रान्त ने प्रस्तावित किया था। नागपुर में चुनाव होना था, जहां कुछ प्रान्तों ने मुझसे आग्रह किया कि मैं अपना नाम वापस ले लूं ताकि उद्योगपति श्री हरिप्रसाद कानोडिय़ा सर्वसम्मत अध्यक्ष बन सके। मैंने नाम वापस लेने की घोषणा कर दी, चुनाव टल गया और हरिप्रसाद जी अध्यक्ष बन गये। इस बार की स्थिति किन्तु काफी अलग और दुर्भाग्यजनक थी। सन्मार्ग (हिन्दी दैनिक समाचारपत्र) के प्रबन्ध निदेशक, समूह के सम्पादक, पूर्व सांसद एवं वर्तमान में जोजड़ासांकू से विधायक श्री विवेक गुप्ता ने सम्मेलन के सभापति पद को हथियाने की यथाशक्ति चेष्टा की। आपके मन में स्वाभाविक प्रश्न उठेगा कि मैं चुनाव प्रक्रिया में 'हथियाने' शब्द का प्रयोग क्यों कर रहा हूं। इसे स्पष्ट करने की आवश्यकता है। विवेक गुप्ता जी का सम्मेलन से कभी सम्बन्ध नहीं रहा। मैं पचास वर्ष से इस संस्था में सक्रिय हूं एवं विभिन्न पदों पर भी रहा हूं। किसी अधिवेशन या कार्यक्रम में उनकी भूमिका मुझे नजर नहीं आयी। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वे सम्मेलन के किसी कार्यक्रम में नहीं पधारे। एक प्रमुख दैनिक पत्र के सम्पादक के रूप में उन्होंने आतिथ्य स्वीकार किया होगा, आये होंगे और अपना वक्तव्य रखकर या माला पहनकर रुकसत हो गयें, ऐसा हुआ है। विवेक गुप्ता को कुछ पुराने किन्तु अब सम्मेलनी गतिविधियों से अलग थलग हो गये लोगों ने आगे किया और 88 वर्ष पुरानी इस संस्था को उनकी झोली में डालने का मंसूबा बनाया। इधर विधायक जी ने समाज की कुछ संस्थाओं पर अपना राजनीतिक सत्ता वाला रोब दिखाकर काबिज होने में सफलता प्राप्त की तो उनकी महत्वाकांक्षा में पंख लग गये फलस्वरूप कुछ और बड़ी संस्थाओं पर सर्पकुंडली मारकर बैठने का स्वप्न देखने लगे। हिन्दुस्तान क्लब उनके इस मंसूबे का कायल हो गया जहां दो-तीन पुरोहितों को मिलाकर उन्होंने क्लब पर कब्जा जमा लिया। अनुभव की कमी और उनकी 'हिडन एजेन्डा' जब उजागर होने लगा तो क्लब की सूबेदारी उन्हें नौ महीने में छोडऩी पड़ी। क्लब के पश्चात उनकी दुखती रग को सहलाते हुए उनके कुछ जी हजुरी करने वालों ने मारवाड़ी सम्मेलन का राष्ट्रीय अध्यक्ष बने का ख्वाब दिखाया। उन्हें लगा श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति पर बिना सदस्य बने वे मुखिया बन गये तो उनकी यह चौधराहट सम्मेलन में भी सफल हो जायेगी। किन्तु यहां  हिन्दुस्तान क्लब, काशी विश्वनाथ में उनके कार्यकलापों की कीर्ति पहुंच चुकी थी। विवेक गुप्ता जी ने पुरजोर कोशिश की किन्तु सत्रह में मात्र तीन प्रांतीय इकाइयों के अध्यक्ष ने उनकी उम्मीदवारी का प्रस्ताव किया। हालांकि इन तीन प्रान्तों के सिर्फ अध्यक्षों ने विवेक गुप्ता का नाम प्रस्तावित किया। मालूम हुआ कि इन इकाइयों के अन्य कार्यकर्ताओं ने किन्तु किसी बाहरी व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने पर सहमत नहीं थे। बारह प्रान्तों के अध्यक्षों ने सम्मेलन के पुराने कार्यकर्ता, भूतपूर्व प्रधान सचिव जो हिन्दुस्तान क्लब के भी अध्यक्ष रहे, श्री शिवकुमार लोहिया का नाम अध्यक्ष पद हेतु प्रस्तावित कर चुनाव अधिकारी के पास प्रेषित कर दिया। चुनाव अधिकारी श्री नंदलाल सिंघानिया ने विवेक गुप्ता को संवैधानिक आवश्यकता के अनुसार अपना मनोनयन पत्र दाखिल करने का आग्रह किया। पर सम्मेलन में अपनी मिट्टी पलीत की आशंका से विवेक गुप्ता ने मनोनयन पत्र ही दाखिल नहीं किया।

इस तरह मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया का पटाक्षेप हो गया एवं सम्मेलन विवेक गुप्ता जी की राजनीतिक अखाड़ेबाजी से बच गया, वर्ना समाज की इस पुरानी संस्था का क्या हस्र होता, कहना मुश्किल है। इस बार समाज के किसी गणमान्य ने सर्वसम्मत चुनाव का प्रयास नहीं किया क्योंकि विवेक गुप्ता बैठते नहीं और शिवकुमार लोहिया को बैठाना वर्तमान परिस्थिति में सम्मेलन के लिये विनाशकारी साबित होता। खास बात यह है कि समाज के किसी वरिष्ठ व्यक्ति ने विवेक गुप्ता जी को अपना नाम वापस लेने का आग्रह नहीं किया।

खैर सम्मेलन में जो हुआ, उससे स्पष्ट है कि विधायक जी राजनीतिक रुतबे को मारवाड़ी समाज के लोगों ने खारिज कर दिया और इस प्रक्रिया में यह भी स्वयंसिद्ध हो गया कि विधायक जी मारवाड़ी समाज के प्रतिनिधि नहीं है जिसका भ्रम लोगों में अब तक बना हुआ था। यह बात ऊपर तक भी पहुंच गयी या पहुंचा दी गयी कि जोड़ासांकू के विधायक की उसके अपने ही समाज में कोई वकत नहीं है। इसी बीच मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी के अध्यक्ष बनने का उनका स्वप्न भी ध्वस्त हो गया बताते हैं। विवेक गुप्ता जी को चाहिये कि वह संस्थाओं पर हमला करने की बजाय उनके क्षेत्र में बन्द अस्पतालों को खुलवाने का प्रयास करें, कई स्कूलें बंद हो गयी हैं, कई बंद होने की कगार पर हैं, उनकी स्थिति को समझें एवं उन्हें चंगा करने के प्रयास करें। जोड़ासांकू बड़ाबाजार से प. बंगाल विधानसभा के चुने गये सदस्यों जैसे ईश्वर दास जालान, रामकृष्ण सरावगी, देवकीनन्दन पोद्दार, पं. विष्णुकांत शास्त्री, सत्यनारायण बजाज प्रभृति ने अपने राजनीतिक प्रभाव को इस्तेमाल कर सामाजिक संस्थाओं में जान फूंकी थी पर विधायक जी अपने बैलून को फुलाने में लगे हैं और वह पता नहीं कब फट जायेगा?

Comments

  1. सामाजिक सेवा क्षेत्र में उतारने की पहली शर्त होती है समर्पण भाव से कार्य करें सेवा करें उसके बाद लोग अपने आप सजिर्ष पर पहुंचाएंगे। यूँ पैराशूट एंट्री से कोई बड़ा नहीं होता। बहुत सुंदर आंख खोलता आलेख। आवश्यक है समाज मे हो रही इस प्रकार की कुचेस्टा को हम उजागर करें। धन्यवाद।

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  2. रविवारीय चिंतन में प्रकाशित लेख वाकई में आई ओपनर है।जरूरत है सामाजिक संस्थाओं में राजनैतिक प्रभुत्व की बजाय सामाजिक नब्ज़ जानकर लोगों को जिम्मेदारी दी जाय।इसके लिए आप जैसे लोगों को पूरी निष्ठा से अपनी जिम्मेदारी का पालन करना होगा।वास्तविकता लिखने के लिए बहुत बहुत अनुमोदना।

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  3. तरह-तरह हथकंडे अपनाकर बाहुबली मठाधीश बन कर बैठे हुए है। अपने प्रभुत्व के बल पर ऐसे लोगों ने चुनाव की परिभाषा को ही बदल दिया है । ऐसी सामाजिक संस्थाओं के प्रति उम्मीदवारों में समर्पित भाव होने चाहिए। जिससे की संस्था फलीभूत हो सके। प्रासप्रासंगिक आलेख!!

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  4. चुनाव ,चयन व संस्थाओं की राजनीतिक उठापटक वर्तमान समय में भी चिंतनीय ।

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