अडानी को छोटे निवेशकों ने दिया श्राप
पुन: मूषको भव:
अंग्रेजी में एक कहावत है - A pet has no friend. यानि किसी का बहुत अजीज या पालतू को दूसरों की दोस्ती नसीब नहीं हो पाती। प्रधानमंत्री श्री मोदी के चहेते गौतम अडानी का भी लगता है यही हस्र हुआ है। अडानी समूह के मालिक गौतम अडानी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खास मित्र बताये जाते हैं। विपक्ष कहता है सरकार ‘‘हम दो हमारे दो’’ की है। हमारे दो से मतलब अडानी और अम्बानी है। मोदी-अडानी रिश्ते पर यह कहावत सटीक है कि खुदा मेहरबान तो गदहा भी पहलवान। ऐसा नहीं होता तो अडानी भारत के सबसे बड़े एवं दुनिया के तीसरे नम्बर के धनकुबेर नहीं बन पाते। भारत में पूंजीपतियों के नाम पर पहले टाटा-बिड़ला का नाम लिया जाता था। लेकिन इन दोनों घरानों का अपना इतिहास है। प्रथम प्रधानमंत्री प.ं जवाहर लाल नेहरू के नाम को कभी टाटा-बिड़ला के साथ नहीं जोड़ा गया। विपक्ष ने भी कभी टाटा-बिड़ला के आर्थिक साम्राज्य पर सवाल नहीं उठाये। लेकिन अब परि²श्य बदल गया है। अम्बानी तो अपे बलबूते पर पम्प में पेट्रोल भरने से लेकर रिलायंस उद्योग की स्थापना के इतिहास पर बैठे नजर आते हैं। धीरूभाई की कर्मठता एवं उनकी वित्तीय यात्रा के बारे में सभी जानते हैं। धीरूभाई के बाद मुकेश एवं अनिल में हुए द्वन्द भी सुर्खियों में रहे। अनिल अम्बानी का उत्थान और पतन दोनों अखबारों की सुर्खियां बनी है। धरूभाई के आर्थिक विस्तार पर एक फिल्म ‘‘गुरु’’ बनी जिसमें काफी कुछ उनके संघर्ष का बयां किया गया है। शेयर बाजार में हर्षद मेहता के उत्थान और पतन का इतिहास भी दिलचस्प एवं रोमांचकारी है। हर्षद मेहता शेयरों के कारोबार से कैसे ऊपर उठे एवं फिर उनका पतन हुआ, इस पर वेब सीरीज की फिल्म बन चुकी है। हर्षद ने करोड़ों का खेल खेला एवं साधारण व्यापारी से अरबों रुपये का इम्पायर खड़ा कर लिया। सरकार को भी उसकी वजह से कठघरे में खड़ा होना पड़ा। फिर किस तरह बड़े प्लेयरों ने एवं एक महिला पत्रकार ने हर्षद मेहता की पोल खोल कर उनके गुब्बारे की हवा निकाल दी, यह सभी जानते हैं। किन्तु गौतम अडानी का नाम 2014-15 के बाद ही सुना गया। उन्होंने ने तो कोई कारखाना खोला और न ही शेयर बाजार के खिलाड़ी बने। बहुत बाद में बस इतनी खबर ब्रेकिंग न्यूज की तरह सामने आयी कि नरेन्द्र दामोदर दास मोदी गौतम अडानी की व्यक्तिगत प्लेन में दिल्ली आकर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। अी तक प्रधानमंत्री सचिवालय से इस खबर का खंडन नहीं किया गया है।
अडानी ने देश के मूलभूत ढांचे को खरीदना शुरू किया। पोर्ट यानि बंदरगारों की खरीददारी फिर हवाई अड्डों को अपनी झोली में डाली। देश की दो सबसे बड़ी सीमेन्ट कम्पनियां गुजरात अम्बुजा व एसीसी सीमेंट खरीदी। इस तरह बने बनाये बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों को खरीदा जो किसी भी विकासशील देश के आधार स्तम्भ होते हैं। इधर मोदी सरकार ने भारतीय उपक्रमों को जिस प्रकार के एक के बाद एक बेचना शुरू किया, लोगों में यह आशंका धर गयी कि अडानी हमारे देश का भाग्य विधाता बनजा जा रहा है। आर्थिक बाजार में यह सुगबुगाहट शुरू हुई कि अडानी के पास सब खरीदने के पैसे कहां से आ रहे हैं। कौन पूंजी लगा रहा है अडानी को देश का सबसे बड़ा धनकुबेर तैयार करने में। पता चला कि सभी सरकारी बैंकों ने अडानी को मुंहमांगा धन देना शुरू कर दिया है। कुछ बड़े समाचार पत्रों में यह विचार मन्थन भी शुरू हुआ कि अडानी जिस प्रखार से देश के आधारभूत ढांचे का मालिक बनता जा रहा है, कहीं ऐसा न हो कि भविष्य में किसी आर्थिक भूचाल में अडानी देश के आधारभूत ढांचे के साथ धराशायी हो जाये और यह कहावत चरितार्थ कर दे ‘‘हम तो डूबे हैं सनम तुमको भी ले डूबेंगे।’’
अभी हाल फिलहाल गौतम अडानी ने अडानी इन्टर प्राईजेज के बीस हजार करोड़ रुपये का एफपीओ यानि फोलोऑन पब्लिक आफरिंग जारी किया। इसके पहले एक अमरीकी प्रतिष्ठान हिन्डनवर्ग जिसे दुनिया की कम्पनियों के पूंजी ढांचे के आंकलन में महारथ हासिल है, ने यह सनसनीखेज रिपोर्ट जारी कि अडानी की कम्पनियों के शेयर वास्तविकता से कहीं अधिक आंके गये हैं एवं अडानी ने विश्व के कुछ देशों में जो ‘‘टैक्स हैवन’’ कहलाते हैं का उपयोग कर टैक्स वंचना में सफलता प्राप्त की है। इसके बाद से अडानी की कम्पनियों के शेयर धूल चाटने लगे एवं उसकी वास्तविकता सामने आ गयी। अडानी ने जब 20 हजार करोड़ रुपये की आफरिंग जारी की तो उसे खुदरा निवेशकों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी।
6 बड़े निवेशकों या उद्योगपतियों का सहारा लेकर किसी तरह इस इश्यू की इज्जत बचाई गयी। अडानी ने अपने शेयरों के दाम पर जबर्दस्त मंदी को देखते हुए इस पब्लिक ऑफरिंग को रद्द कर दिया। इस प्रकरण से पूरा पूंजी बाजार तो दहला ही संसद में भी विपक्ष ने अडानी के गोरखधंधे की जांच की मांग कर डाली। विपक्ष ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति सारे घपले गी जांच करे या सुप्रिम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की देखरेख में एक जांच समिति बनायी जाये। अडानी के शेयरों के खोखलेपन पर एक नजर डालियेृ 31 मार्च 2020 को उसके शेयर की कीमत थी 120. रु. जो 21 दिसम्बर 2022 को हो गयी 4190 रु., 2 फरवरी ’23 को 1565 रुपये, किन्तु उसकी बुक वैल्यू 2.2.23 को मात्र 228 रुपये कूती गयी।
अडानी द्वारा छोटे निवेशकों को लूटने का षडयंत्र टाईं टाईं फिस्स हो गया क्योंकि 50 प्रतिशत से अधिक शेयर इनके लिये रिजर्व रखा गया था, लेकिन जब छोटे निवेशकों को लूट-प्लान समझ में आ गया तो सारी योजना खटाई में पड़ गयी। अडानी ने सन्तों की भाषा बोलनी शुरू की और परमवीर चक्र पाने के लिए यह कहकर अपना इश्यू रद्द कर दिया कि वे नहीं चाहते निवेशकों का नुकसान हो? पर गौतम अडानी ने यह बताने का कष्ट नहीं किया कि फिर आपने शेयरों के दाम को बैलून की तरह फुलाया क्यों था?
दो वर्ष में अडानी इन्टरप्राइज के शेयरों के न्यूनतम दाम 556 रुपये थे। लेकिन औंधे मुंह गिर कर 27 प्रतिशत कम होकर 1565 रुपये अब भी है। जाहिर है अभी और नीचे गिरने की पूरी गुंजाइश है।
अडानी प्रकरण भारत जैसे विकासशील देश के लिए एक बड़ी धोखाधड़ी है जिसे सरकार के सर्वोच्च कमान की मदद से अंजाम दिया गया। अडानी की अवकात वापस वही हो गयी जहां से उनकी धमक शुरू हुई थी यानि पुन: मूषको भव:। भारतीय आम निवेशकों की ताकत ने उन्हें फिर से शेर से चूहा बना दिया। चूहे का दांत, लेकिन अभी भी बहुत तीखे और नौकीले हैं।

Comments
Post a Comment