केशरी नाथ त्रिपाठी
लाट साहब की कोठी में बहाई प्रेम रस की काव्य गंगा
वर्ष 2014 की 24 जुलाई को पश्चिम बंगाल के 21वें राज्यपाल के रूप में पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी ने राजभवन में शपथ ली। पांच वर्ष के कार्यकाल में राज्यपाल के रूप में वे कितने सफल हुए इसकी समीक्षा अलग-अलग की जा सकती है पर राज्यपाल के रूप में एक सहृदय, काव्य रसिक, कवि, मृदुभाषी, सर्वसुलभ, आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होने के साथ मुख्यमंत्री तेज तर्रार ममता बनर्जी, जो अपने विद्रोही एवं सा$फगोई के लिए जानी जाती हैं के साथ सामंजस्य और सद्भाव बनाकर रखना एवं जस की तस धर दीनी चदरिया की तरह कार्यकाल पूरा होने पर वापस इलाहाबाद चले गए। 8 जनवरी रविवार को सुबह जब कोलकाता नए वर्ष की रुमानी मौसम का आनंद ले रहा था कि श्री केशरी नाथ जी के निधन का समाचार लोगों को स्तब्ध कर गया। 12 जनवरी को उनकी स्मृति सभा कुमार सभा पुस्तकालय ने आयोजित की। केशरी नाथ जी संभवत किसी भी राज्य के अकेले राजपाल हैं जिनके निधन के बाद उनके प्रशासित राज्य में कोई सार्वजनिक स्मृति सभा हुई हो। त्रिपाठी जी का राज्यपाल होना कोई बड़ी बात नहीं, क्योंकि वह उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे बड़े राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष, केंद्र में मंत्री और विधिवेत्ता थे। वैसे भी राज्यपाल का पद जब से बना है, इस पद को ही खत्म करने की आवाज राजनीतिक गलियारे में उठती रही है। लेकिन केशरी नाथ जी ने इस पद पर रहकर इसको सार्थकता प्रदान की और यह साबित कर दिया कि राजभवन लाट साहब की कोठी नहीं है। केशरी नाथ जी ने अपने 5 साल के कार्यकाल में राजभवन के बुलंद दरवाजे को खोल दिया। अपने संवैधानिक दायित्व का बखूबी पालन करते हुए केशरी नाथ जी ने कुछ कार्य ऐसे किए जिसके कारण उनकी स्मृति हमेशा बनी रहेगी।
कवि ही नहीं, वे सहृदय व सर्व सुलभ थे। मिलने की औपचारिकता लगभग नहीं के बराबर थी। साहित्य और कविता के प्रति उनकी आसक्ति इस हद तक थी कि जब किसी कार्यक्रम में वे कविता सुनते थे या अपनी कविताएं सुनाते थे तो उनके एडीसी को उन्हें बार-बार समय सीमा की याद दिलानी पड़ती थी। हिंदी और कविता उनका फस्र्ट लव ही नहीं उनकी कमजोरी बन गई थी। नवांकुर एवं किशोर प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने में उनकी बेजोड़ महारथ थी। राज्यपाल पद पर रहते हुए उन्होंने डेढ़-दो सौ पुस्तकों का अपने हाथ से विमोचन किया। कवि की आर्थिक मजबूरियों को बखूबी समझते थे अत: उनके लिए राजभवन भी उपलब्ध कराते रहे। मैंने छपते छपते के उत्सव अंक पर एक गोष्ठी हेतु निवेदन किया तो उन्होंने खुद कहा कि यहीं कर लो, राजभवन में कई छोटे-बड़े हॉल हंै। वहां के एक शानदार सभागार में मैंने वह आयोजन किया जिसमें लगभग सवा सौ कवि एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित थे जिनमें दो तिहाई ऐसे थे जिन्होंने राजभवन पहली बार देखा था। कार्यक्रम के बाद चाय-नाश्ता की भी व्यवस्था राजभवन की तरफ से करवाई गई थी। हर कवि ने केशरी नाथ जी के साथ अपनी फोटो खिंचवाई और ऐसा करने में भूल गए कि वे राज्यपाल हैं एवं इस पद के कई प्रोटोकॉल होते हैं। सभी औपचारिकताओं को लांघ कर त्रिपाठी जी लोगों से आत्मीयता से मिलते रहे एवं अपने उच्च पद और आवाम की दूरी अपनी सहृदयता और प्रेम से मिटाते रहे।
त्रिपाठी जी राज्यपाल पद की शपथ लेने जब 24 जुलाई 2014 को कोलकाता आए तो उनके साथ एक बड़ा काफिला भी आया था। इलाहाबाद-लखनऊ-कानपुर से उनके कई स्नेह भाजन भी उनके साथ आये। इससे पहले राज्यपाल की इतनी बड़ी बारात नहीं देखी गई। सब लोग नये राज्यपाल से मिल रहे थे। मैंने सोचा त्रिपाठी जी पांच साल रहेंगे, फिर मिलूंगा। क्यों ना उनके काफिले के कुछ सदस्यों से मिल लें। उनमें एक कानपुर के व्यापारी थे और एक अखाड़े के पहलवान भी साथ आए। तब मुझे उनकी जन प्रियता एवं जमीन से जुड़े होने का आभास मिल गया था। इसके कुछ दिन बाद मैं उनसे मिला। नेताजी इनडोर स्टेडियम में ताजा टीवी के डांडिया महोत्सव में मेरे निमंत्रण पर वे आए। इसके पश्चात मरुधर मेले में भी त्रिपाठी जी का आगमन हुआ। यह एक संयोग है कि इन दोनों कार्यक्रमों में उनकी पत्नी भी उनके साथ आयीं। वे कोलकाता दो तीन बार ही आई थी। उनका कुछ समय बाद देहांत हो गया। इसके बाद तो एक के बाद एक कई कार्यक्रमों में मैंने उन्हें आमंत्रित किया।
84 वर्ष की उम्र में भी उनकी स्फूर्ति काबिले तारीफ थी। एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में वह गोर्की सदन में पधारे थे। स्टेज पर पर उठते समय माइक्रोफोन के तार में उनका पांव उलझ गया और वे मंच पर ही गिर पड़े। दो मिनट बाद ही वे उठ खड़े हुए एवं अपने स्थान पर जा बैठे। एक घंटे से अधिक बैठे रहे। कार्यक्रम के बाद ही वहीं से बेलव्यू अस्पताल जाकर उन्होंने लगी चोट का उपचार किया।
त्रिपाठी जी ने लोगों को प्यार दिया तो लोगों ने भी उन्हें असीम आदर एवं सम्मान से सराबोर किया। कोलकाता देश के सांस्कृतिक राजधानी है और साहित्य का कुंभ भी है। महानगर की कई साहित्यिक एवं सार्वजनिक संस्थाओं के लिए त्रिपाठी जी ने संजीवनी का काम किया। बहुत सी मृत संस्थाओं को नया जीवन त्रिपाठी जी के आगमन से मिला। मैं उनसे कई बार उपकृत हुआ। मेरी आत्मकथा ''यादों के उजालेÓÓ की उन्होंने भूमिका लिखी। त्रिपाठी जी ने पूरी आत्मकथा, उद्योपरांत पढ़ी एवं कई संस्मरणों पर उन्होंने अपनी टिप्पणी भी दी। मैं चाहता था कि वे उसका विमोचन करें लेकिन इसी बीच उनके कार्यकाल समाप्त होने पर उन्हें जाना पड़ा। नए राज्यपाल जगदीप धनखड़ जी ने इसका विमोचन किया। यही नहीं विश्व हिंदी सम्मेलन जो 2018 में मॉरीशस में हुआ, उसमें भारत के अधिकृत प्रतिनिधि के रुप में भाग लेने का शुभ अवसर मुझे त्रिपाठी जी की पहल पर ही मिला। मेरे कई पारिवारिक कार्यक्रमों में पधार कर मुझे $कृतज्ञ किया। उनसे राजभवन में एवं बाहर कई बार विभिन्न विषयों पर गुफ्तगू होती थी। मेरे इस रविवारीय चिंतन स्तंभ के वे सुधि पाठक थे एवं कई विषय भी उन्होंने सुझाये।
त्रिपाठी जी यादों में रचे बसे रहेंगे। इलाहाबाद जाने के पश्चात भी फोन पर कई बार बातचीत हुई। उनके स्वास्थ्य के बारे में मैं पूछता रहा। लेकिन पिछले दो वर्षों से एक बड़े जहाज की तरह डूबते चले गए और अन्तध्र्यान हो गए।
जहां भी होगा वहीं रोशनी लुटायेगा
किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता।

बहुत ही मार्मिक स्मृतियों से ओतप्रोत संस्मरण अपने लिखे, कोई व्यक्ति अपने पांवो के निशां छोड़ जाता है जो पत्थर पर उकेरे गए होते हैं कोई समंदर की लहरों में मीट जाते हैं। त्रिपाठी जी से हर कोई का संबंध ऐसा था कि वह कहे कि त्रिपाठी जी का वह खास था। सच तो यज है वे सबके खास थे जब तक रहे दिलों पर राज किया। उनके संबंध की बात करूं तो कार्यकाल समाप्ति के बाद भी जब जब उननको आमंत्रित किया वे रचनाकार के आभासी मंच पर आये और स्वास्थ्य की बाध्यता के पश्चात भी पूरा समय दिया। दिवंगत आत्मा को शत शत नमन।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक एवं आत्मिक चित्रण किया गया है.धन्यवाद
ReplyDeleteलेकिन
प्रशासन में काफी कवि आते हैं लेकिन उन्हें मंच नहीं मिलता ऐसे में उन्हें जहाँ मंच मिले वहीं एडजस्ट करना पङता है
ये सत्य है कि केसरीनाथ त्रिपाठी जी बंगाल के राज्यपाल रहते हुए अपने प्रशासनिक दायित्वों को निभाने के साथ एक सहृदय कवि थे और कोलकाता के अधिकतर लेखकों के साथ उनके नजदीकी सम्बन्ध से बन गये थे।
ReplyDeleteउनके कारण ही राजभवन कई बार जाने का मौका मिला.
रविवारीय चिन्तन में उन्हें स्मरण करना सर्वथा उचित था.उपयोग की गई शेर की पंक्तियां कुछ यों हैं -
जहां जायेगा वहीं रौशनी लुटायेगा
चिराग़ का कोई मज़हब नहीं होता.