कौन करता है तीर्थ स्थलों की पवित्रता को नष्ट?

 कौन करता है तीर्थ स्थलों की पवित्रता को नष्ट?

जैन धर्म के तीर्थराज सम्मेद शिखरजी को झारखंड एवं केन्द्र सरकार की ओर से पर्यटन स्थल घोषित करने पर मचा बवाल तो अब थम गया क्योंकि सरकार ने पर्यटन ईकोटूरिज्म गतिविधियों पर तत्काल रोक लगा दी है। 



यह ज्वलंत प्रश्न है कि किसी स्थान को पर्यटन स्थल घोषित करने से उसकी पवित्रता नष्ट क्यों होती है। क्या पर्यटन स्थल का मतलब शराबखोरी मांसाहार एवं मौज मस्ती है? आमतौर पर पर्यटन स्थल या टूरिस्ट स्पॉट के रूप में लोगों के पास हिल स्टेशन, सी बीच से लेकर ऐतिहासिक इमारतों तक की लंबी चौड़ी लिस्ट होती है। इन जगहों पर लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव को कम करने और अपने परिवार या बंधु बांधव सहित मौज मस्ती के कुछ पल बिताने के लिए जाते हैं। पर्यटन स्थलों पर कोई खास पाबंदी नहीं होती है। दूसरे शब्दों में खान-पान से लेकर कपड़ों तक के लिए के कोई नियम नहीं होते हैं। 

तीर्थ स्थल पर खान-पान, आचरण और पहनावे को लेकर कुछ पाबंदियां कुछ नियम कायदे होते हैं। इसमें तिरुपति बालाजी से लेकर श्री सम्मेद शिखरजी, केदारनाथ, बदरीनाथ, हरिद्वार, मक्का, वेटिकन सिटी, अमृतसर का स्वर्ण मंदिर, यहूदियों और ईसाइयों के लिए येरूसलम है। मुसलमानों के लिए मक्का मदीना है। 

देश के लिए पर्यटन स्थल या तीर्थ स्थल, दोनों ही राजस्व के लिए भी महत्वपूर्ण है। सरकार के लिए दोनों ही दूध देने वाली गाय की तरह है। कहावत है कि दूध देने वाली गाय की दुलत्ती भी सहनी पड़ती है। कई राज्यों की तो अधिकांश आमदनी पर्यटन से होती है। जैसे गोवा, मेघालय, उत्तराखंड, राजस्थान। सरकारें दोनों की अहमियत को बना कर रखती है। रोजमर्रा की जीवन की घुटन से छुटकारे के लिए पर्यटक वह सभी करता है जिसमें उसका मनोरंजन हो। पर्यटन स्थल पर होटलों का निर्माण किया जाता है। वहां बार होना लाजमी है, खाने - पीने की सारी सुविधाएं भी जरूरी हैं।

समय बदलने के साथ देखा गया है कि तीर्थ स्थलों पर अब आस्था कम और मनोरंजन के सामान ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं। उत्तराखंड में केदारनाथ बद्रीनाथ के रास्ते होटलों की कतार है। नई पीढ़ी के अधिकांश लोग इन स्थलों पर दोनों मतलब साधने की जुगत में रहते हैं। खाने-पीने, मौज मस्ती और फिर देवदर्शन सभी उनके लिए एक समान है। यूं कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दर्शन के बहाने रमणीय स्थलों का दौरा करते हैं। बैद्यनाथ धाम में शिव जी के प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन हेतु लाखों लोग श्रावण मास में कांवरिया यात्रा के माध्यम से जाते हैं। इस क्षेत्र में 11 महीने जितनी शराब बिकती है, उससे ज्यादा श्रावण के एक महीने में बिक जाती है। शराब बिक्री के जरिए राज्य सरकार को बड़ा राजस्व प्राप्त होता है। बिहार में शराबबंदी है, लेकिन इससे हटाने की मांग भी राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही है अवैध शराब (इलिस्ट लीकर ) पीकर जब सैकड़ों लोग मर जाते हैं तो शराबबंदी समाप्त करने में लगी लॉबी को एक धारदार हथियार मिल जाता है। 

राजस्व के कारण राज्य सरकार शराब पर प्रतिबंध नहीं लगा पा रही है। कोरोना काल में भी मंदिर, मस्जिद खुलने के पहले दारू की दुकानें खोल दी गई और इन पर पीने वालों की भीड़ देखी गई। श्रद्धालुओं को श्रद्धा के साथ मानसिक प्रमोद के लिए नशे की तलब की ही परिणति है कि प्राय: धार्मिक स्थलों के आसपास देसी शराब का ठेका या विलायती शराब का आउटलेट होता है। 

दूसरी ध्यान देने वाली बात यह है कि तीर्थ स्थलों पर भू-माफिया बेरोकटोक आबाद हो रहे हैं। अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के आसपास पांच हजार रुपये क_ा जमीन का दाम पांच लाख रुपये क_े तक हो गया है। वहां भू-माफिया डेरा डाले हुए हैं। कई मठ- मंदिरों के ट्रस्टियों पर भू-माफिया के संरक्षण देने का आरोप है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि महाराज का शव प्रयागराज के उनके मठ में ही फांसी के फंदे से लटका मिला। मठ-मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों के साथ धर्म के नाम पर अपराधियों के फलते फूलते गोरखधंधे पर उस वक्त सवाल उठे।  करोड़ों की सरकारी जमीन, धार्मिक संस्थानों को कौडिय़ों के दाम पर दे दी जाती है जबकि अनाथालय, और शिक्षण संस्थान अपंग बच्चों, असहाय विधवाओं के लिए जगह मांगने वाले संस्थानों के लोग सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाते लगाते बूढ़े हो जाते हैं।

अयोध्या में भी श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग चुके हैं। ट्रस्ट द्वारा 10 मिनट पहले खरीदी गई दो करोड़ की जमीन का रजिस्टर्ड एग्रीमेंट 18.5 करोड़ रुपए में करा लिया गया। इन सब का उदाहरण है इसलिए दे रहा हूं कि हम तीर्थ स्थान की पवित्रता के पक्षधर हैं। किंतु धन के लालच में इन्हें तीर्थ स्थानों पर निहित स्वार्थ भी फल-फूल रहा है। इन सब की परिणति तीर्थ स्थलों को भी नहीं बख्शती दी है। धार्मिक स्थलों पर भी आस्था कम और मौज - मस्ती की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसे नहीं रोका गया तो पर्यटन स्थल और तीर्थ स्थलों के बीच की दीवार ढह सकती है। 

एक पहलू और भी हैं जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आस्था से इतर लोग अपनी आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने मंदिर में लाखों करोड़ों का चढ़ावा चढ़ता है। दक्षिण भारत के पद्मनाभम स्वामी मंदिर के पास $20 अरब डॉलर की संपत्ति है। तिरुपति मंदिर में हर साल 600 करोड़ रुपया का चढ़ावा आता है। महाराष्ट्र के साईं मंदिर में बैंक खातों में 1800 करोड़ रुपए के अलावा 4428 किलो चांदी और 380 किलो सोना है। ऐसे सैकड़ों मंदिर हैं जिनके पास अकूत धन संपत्ति है। इसीके चलते सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनी ने 17 बार लूटा था। कई बार सवाल उठा कि मंदिर मठों पर सरकारी नियंत्रण समाप्त होना चाहिए। पर इन पर फिर किसका नियंत्रण हो या स्पष्ट नहीं है। विडंबना है कि मंदिरों के आसपास बेइंतहा गरीबी है। मठाधीश राजनीतिक नेताओं की कठपुतली हैं। वहीं कहीं-कहीं राजनीतिक नेता मठाधीशों के इशारे पर नाचते हैं। 

तीर्थस्थान की पवित्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए सामग्र स्थिति पर विचार होना चाहिए। वरना एक दिन हमारे पवित्र आस्था स्थल पर भूमाफिया एवं अपराधियों का कब्जा होगा एवं हम आसथा की माला जपते ही रह जायेंगे। 

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