'पप्पू' की भारत जोड़ो यात्रा
आग का दरिया है और डूब के जाना है
विगत 7 दिसम्बर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से राहुल के द्वारा हरी झंडी दिखाते हुए भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की गयी थी। 150 दिन यानी 5 महीने चलने वाली 3500 किलोमीटर की यह यात्रा किसी भी राजनीतिक नेता द्वारा की जा रही पदयात्राओं में अनोखी है। प्रतिदिन लगभग 25 किलोमीटर टूर कर इस यात्रा को भारत जोड़ो यात्रा का नाम इसलिए दिया गया है कि भारत को एकजुट करने, एक साथ लाने और राष्ट्र को मजबूत बनाने के उद्देश्य से यह यात्रा शुरू की गयी जिसे राहुल ने स्वयं गैर राजनीतिक यात्रा बताया है। राहुल के साथ प्रारम्भ में 100 से अधिक नेता शामिल हुए एवं कई विपक्षी दलों को भी इसमें शामिल होने का आग्रह किया गया है।
भारत जोड़ो यात्रा पर संवाददाताओं से बात करते राहुल गांधी
राहुल गांधी ने 2019 लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से राहुल गांधी कांग्रेस को मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं। अब इस भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल जनता के बीच हैं और अपनी एक नयी छवि बनाने के 'मिशन' पर जुटे हैं।
आलोचकों ने राहुल गांधी की छवि राजनीतिक विरासत के राजकुमार से 'पप्पू' तक बना दी थी। उन्हें पप्पू साबित करने की लगातार कोशिशें की गयी और उसके पक्ष में कई तरह के तर्क दिये जाते रहे हैं। लेकिन इसके पीछे भारतीय जनता पार्टी द्वारा इसे साबित करने के लिए लगातार कुछ न कुछ तर्क देना और कांग्रेस एवं गांधी परिवार और उनकी टीम द्वारा इसका काउंटर करने में विफल होना है।
दरअसल राजनीति को राहुल ने अपने प्रोफेशन के रूप में अपनी रुचि के अनुसार नहीं चुना है बल्कि शायद थोपा गया है। यही कारण है कि राजनीति में उनकी अपेक्षित गंभीरता की कमी दिखती रही है। कई अहम मौकों पर जब एक विपक्षी पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में उनकी मौजूदगी अहम थी, तब वो छुट्टियां मनाने विदेश चले गये। ऐसे में उनकी पप्पू वाली छवि को विपक्ष ने न्यायोचित ठहराया। दूसरी तरफ कांग्रेस लगातार कमजोर होती गयी है और संकट के समय कई नेताओं ने पार्टी छोड़कर किनारा कर लिया।
भारत जोड़ो यात्रा के जरिये ऐसा लगता है कि स्थितियां बदल रही हैं। 52 साल के जीवन में पहली बार ऐसा लग रहा है कि राजनेता को जहां होना चाहिए वहां राहुल गांधी अब जाकर खड़े हैं। एक राजनेता को सफल होने के लिए जनता को समझना जरूरी है। महात्मा गांधी ने भी ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जंग छेडऩे के पूर्व पूरे देश की परिक्रमा की थी यह समझने के लिए कि भारत की जनता आखिर क्या चाहती है। अब राहुल गांधी इस बात को समझ रहे हैं कि कांग्रेस की मजबूती का नारा देने मात्र से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि समझना होगा कि इन 75 वर्षों में भारत की जनता में क्या बदलाव आये हैं एवं वर्तमान भाजपा के शासन में जनता जनार्दन की क्या मंशा है।
भारत जोड़ो की लंबी यात्रा राहुल को जनता के नजदीक लाकर खड़ा कर रही है। वे चल रहे हैं और लोग उनके साथ। उन्हें देखने के लिए भी भीड़ उमड़ रही है और राहुल भी राह में आये दीन-दु:खी सबको गले से लगाते हुए दिखते हैं। राहुल अब तक यह छवि बनाने में सफल हुए हैं कि देश की जनता के साथ उनका सीधा सम्पर्क बन गया है और उन्हें बिचौलियों की कोई जरूरत नहीं है। भाजपा ने पहले तो यात्रा को हल्के में लिया फिर उनकी 40 हजार रुपये की टी शर्ट का प्रचार किया गया ताकि उनकी छवि राजकुमार से ऊपर नहीं उठ सके। इसके पश्चात यात्रा के दौरान उनके साथ चलने वालों को टुकड़े टुकड़े गैंग के सदस्य से लेकर भारत विरोधी मंसूबे वालों का प्रचार कर राहुल की यात्रा में विघ्न डालने की कवायद की। पर इन सब छवितोड़क प्रचारकों का सामना करते हुए राहुल आगे बढ़े। इसके पहले किसान आंदोलन को भी भाजपा ने खालिस्तानी समर्थकों का हुजूम बताकर बिगाडऩे का प्रयास किया था।
अब सब कुछ पटरी पर नजर आ रहा है। अहम ये है कि राहुल उस अवसर के साथ क्या करते हैं जो एक मेगा वाकथॉन प्रदान कर रहा है। भारत जोड़ो यात्रा के जरिये राहुल हर रोज लोगों के सामने आ रहे हैं जो उनके राजनीतिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। यानि भारत की जनता, राहुल उनके जीवन, उनकी रोजमर्रा समस्या, युवाओं की आकांक्षाओं से रुबरू हो रहे हैं।
हां, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह राहुल गांधी अपने सीबी पर जननेता या मास लीडर की छवि अभी तक स्थापित नहीं कर पाए। लेकिन अब तक की यात्रा ने उनका एक मकसद पूरा किया है कि राहुल गांधी के पास आखिरकार लुटियन जोन ने पालन-पोषण होने वाले एक राजनीतिक विरासत के राजकुमार वाली छवि तोडऩे में उनकी यात्रा को कामयाबी मिली है। राजनीतिक भविष्य के लिए राहुल की पप्पू वाली इमेज का विसर्जन होना प्राथमिकता है।
इस यात्रा का क्या असर होता है यह देखना बाकी है। यात्रा के बाद क्या राहुल गांधी एक नयी छवि लेकर जनता के बीच महीनों सड़क पर बिताने के बाद उनकी समस्याओं को समझ पायेंगे एवं उन्हें कांग्रेस के घोषणा पत्र में शामिल करा पायेंगे? अंतोतगत्वा अब तक मिले जन समर्थन की वोटों में परिणति होगी यह सब भविष्य के गर्भ में है। जनता एवीएम मशीन का बटन दबाने के पहले सोचती है कि कौन सी पार्टी उन्हें क्या देने जा रही है?
भारत जोड़ो यात्रा खूब संभवत: एक नया राहुल तैयार करेगी। यात्रा के पश्चात् कांग्रेस के अन्दर बदलाव एक बड़ी चुनौती है। हिमाचल प्रदेश में जिस प्रकार उन्होंने नये नेता के रूप में जमीन से जुड़े सुखविंदर सिंह सुक्खू को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी और वहां दो पावर सेन्टर के बीच तालमेल के लिए मुकुल अग्निहोत्री को उप मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया, उसको बैरोमीटर माना जाय तो लगता है कि वे संगठन को जमीन से जोड़कर रख सकते हैं। पैरासूट से नेता उतारने की परिपाटी खत्म होगी ऐसा माना जा सकता है।
राहुल की भारत जोड़ो यात्रा का एक महत्वपूर्ण चरण बाकी है। वे जम्मू-कश्मीर भी जायेंगे। वहां उनकी यह यात्रा कई संदेश देगी। उनमें परिपक्वता नहीं आने की कोई वजह दिखायी नहीं देती है। नरेन्द्र मोदी भी यह महसूस करने लगे हैं कि राहुल एक नये अवतार में सामने आयेंगे एवं वे यह भी जानते हैं कि राहुल की संसद से बाहर ज्यादा अहमियत होगी। 2024 का युद्ध जीतना है तो संसद के बाहर राहुल एवं कांग्रेस को संघर्ष तेज करना होगा। महागठबंधन या विपक्ष की एकता से कहीं ज्यादा महत्व इस बात का होगा कि नरेन्द्र मोदी की नायक वाली छवि को कौन काउंटर कर सकता है। कई राज्यों में वहां के नेताओं ने भाजपा को अपना दांव नहीं खेलने दिया लेकिन केन्द्र में मोदी का कद अभी भी बहुत ऊंचा है। इस ऊंचाई पर चढऩे या उनके कद को छोटा करने, दोनों तरफ से पुरजोर कोशिश करनी होगी। भारत जोड़ो यात्रा इस नये महायुद्ध के लिए जमीन तैयार कर रही है। पप्पू वाली छवि को पीछे छोड़कर एक जननायक वाली छवि बनाने के बीच की पगडंडी बहुत लम्बी और कांटों भरी है या बस समझ लीजिये कि आग का दरिया है और डूब के जाना है। लोकतंत्र की रक्षा एवं भारत में सामाजिक ताना बाना बचा रहे इसके लिए जरूरी है कि कांग्रेस मजबूत हो।
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