कलकत्ता क्लब जैसा साहस नहीं दिखा पाया हिन्दुस्तान क्लब, नतीजा नौ महीने की सजा भुगतनी पड़ी

कलकत्ता क्लब जैसा साहस नहीं  दिखा पाया हिन्दुस्तान क्लब, नतीजा नौ महीने की सजा भुगतनी पड़ी

हिन्दुस्तान क्लब महानगर की एक मशहूर क्लब है जिसके अधिकांश सदस्य मारवाड़ी एवं गुजराती समाज के सभ्रान्त लोग हैं। 1946 में स्थापित इस क्लब का एक लम्बा इतिहास है। क्लब अपने शाकाहारी जायकेदार व्यंजनों एवं मनोरंजन गतिविधियों के लिए जाना जाता है। कुछ वर्ष पहले क्लब ने अपने पुराने भवन को तोड़कर नयी आलीशान इमारत बना ली जिसमें स्वीमिंग पुल के साथ खेल घर एवं आधुनिक रेस्तरां हैं। क्लब का प्रति वर्ष चुनाव होता है। कई बार विवाद के बाद वरिष्ठ सदस्यों के हस्तक्षेप से सर्वसम्मत चुनाव सम्भव हो सके।


गत वर्ष के अंत में हिन्दुस्तान क्लब का चुनाव होने वाला था। इसी बीच जोड़ासांको क्षेत्र के विधायक विवेक गुप्ता ने क्लब अध्यक्ष बनने के लिए दबाव बनाया। वैसे विधायक महोदय क्लब में पहले कभी नहीं देखे गये। सदस्यों में हलचल मच गयी। क्लब के नीति निर्धारकों को ऐसा लगा कि विधायक के साथ पंगा लेना उचित नहीं होगा। शासक दल के विधायक महोदय को चुनने हेतु दबाव और बढऩे लगा। अन्त में कलब ''थिन्क टैंक ने यही उचित समझा कि विवेक गुप्ता को निर्विरोध चुन लिया जाये क्योंकि उनका किसी प्रकार का विरोध क्लब के लिए अनिष्ट साबित हो सकता है। इस वर्ष के पहले दिन यानि पहली जनवरी को सन्मार्ग के प्रबन्ध निदेशक एवं ग्रुप एडिटर जोड़ासांको क्षेत्र के वर्तमान विधायक विवेक गुप्ता को निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिया गया। क्लब की कमिटी भी तय कर ली गयी। गुप्ता साहब को जिनसे एलर्जी थी उन्हें बाहर कर दिया गया। यही नहीं सचिव पद का विवाद भी सुलझा लिया गया। कुल मिलाकर विवेक गुप्ता को हिन्दुस्तान कलब की थाली परोस कर दे दी गयी। नये अध्यक्ष ने क्लब के हॉट सीट पर बैठने के किछ दिनों में ही अपने पत्ते खोलना शुरू कर दिया। क्लब में मनमाना परिवर्तन लाने की मुहिम शुरू हुई। पहले तो क्लब की सबसे महत्वपूर्ण ''कैटरिंग कमिटीÓÓ के चेयरमैन पद पर अपनी पत्नी को बैठा दिया। बुरा लगा पर किसी ने खुलकर विरोध करने की हिम्मत नहीं दिखायी। संस्था के मेमोरेन्डम में कई परिवर्तन करने का प्रस्ताव रखा। क्लब में कुछ प्रभावशाली लोगों को नि:शुल्क सदस्य बनाने यानि ''ओनेरेरी मेम्बरशिपÓÓ  देने की मनसा जाहिर की। क्लब के कार्यालय में कैफे खोला और उस पर अपने नाम की प्लेट लगा दी। सदस्यों के अनुसार क्लब के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। संविधान बदल कर यह परिवर्तन करना भी चाहा कि सदस्य सिर्फ अध्यक्ष का चुनाव करे एवं पूरी समिति को स्वेच्छा से अध्यक्ष मनोनीत करेगा। सदस्यों ने समझ लिया कि नवनिर्वाचित अध्यक्ष क्लब का पूरा दोहन करने की फिराक में हैं। दबे स्वर से विरोध शुरू हुआ। आलोचना के स्वर फूटने लगे। फिर भी लोगों ने धैर्य रखा और समय का इन्तजार करना उचित समझा। आखिर में जब बर्दाश्त करने की जब हद पार हो गयी तो सितम्बर के अंतिम दिन यानि 30 सितम्बर को विधायक महोदय को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। क्लब के इतिहास में पहली बार सम्मानित अध्यक्ष नौ महीने में ही क्लब से बाहर हो गये। क्लब में कई लोग दो बार और कई तीन बार अध्यक्ष बन चुके हैं। पर गुप्ता जी नौ महीने में ही भारी पडऩे लगे क्लब के संचालकों ने राहत की सांस ली कि क्लब एक निरंकुश शासन से मुक्त हुआ। एक राजनीतिक हस्तक्षेप को क्लब ने भले ही बेमन से लेकिन स्वीकार किया, उसकी सजा नौ महीने भुगतनी पड़ी।


कलकत्ता की ही एक पुरानी और पूरे देश में नामचीन कलकत्ता क्लब का इत्तफाक से हाल ही में चुनाव सम्पन्न हुआ। डॉक्टर, बैरिस्टर एवं कार्पोरेट सेक्टर के लोग कलकत्ता क्लब के सदस्य हैं। चार हजार सदस्यों वाली इस क्लब में एक बड़ी राजनीतिक हस्ती ने चुनाव में अपना दांव लगाया। दो राज्यों के पूर्व गवर्नर, भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रादेशिक अध्यक्ष जैसे एक ''हेवी वेट नेता तथागत राय ने कलकत्ता क्लब के अध्यक्ष पद हेतु चुनावी मैदान में ताल ठोकी। लेकिन क्लब के सद्सयों ने प्लेट परोस कर तथागत राय को नहीं सौंपी। वरिष्ठ राजनीतिक नेता जिसकी पार्टी केन्द्र की सत्ता पर काबिज है को भी चुनावी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। तमाम कोशिशों के बावजूद तथागत बाबू कलकत्ता क्लब का चुनाव नहीं जीत सके। बहुतों को विश्वास नहीं हुआ कि एक भारी भरकम नेता  कलकत्ता क्लब का चुनाव हार सकता है। क्लब चुनाव में विजयी वरिष्ठ एडवोकेट प्रमित कुमार दे ने कहा कि सदस्यों ने उनको इसलिए चुना क्योंकि वे क्लब में किसी तरह का प्रत्यक्ष राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं चाहते।

हिन्दुस्तान क्लब के संचालकों ने विवेक गुप्ता जो मात्र एक विधायक हैं के लिए रेडकार्पेट बिछा दिया। ठीक इसके विपरीत कलकत्ता क्लब ने केन्द्र में शासक दल के बड़े नेता को खारिज कर दिया। हिन्दुस्तान क्लब को नहीं चाहते हुए भी विधायक की कथित चौधराहट को नौ महीने सहना पडऩा। दूसरी तरफ कलकत्ता क्लब ने राजनीति को एक सिरे से खारिज कर दिया एवं पूर्व गवर्नर और वरिष्ठ भाजपा नेता अपने मंसूबे में सफल नहीं हुए।

हिन्दुस्तान क्लब और कलकत्ता क्लब का यह ²ष्टांत मैं इसलिए पाठकों के जहन में लाना चाहता हूं ताकि हम हिन्दी भाषी भी अपनी ताकत को पहचाने। हमें यह समझना होगा कि राजनीतिक नेता हमारे दम पर है हम उनकी कृपा पर नहीं हैं। विजय सिंह नाहर, ईश्वरदास जालान, रामकृष्ण सरावगी, देवकीनन्दन पोद्दार विष्णुकान्त शास्त्री, सत्यनारायण बजाज जैसे नेताओं ने प. बंगाल और हिन्दी भाषियों के सम्मान को बढ़ाया। खैर हमें कलकत्ता क्लब के ²ष्टांत से सबक लेना चाहिये। देर से ही सही हिन्दुस्तान क्लब ने आखिर राजनीतिक हस्तक्षेप को बाहर का रास्ता दिखाया जिसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।

पाठक भूले नहीं होंगे कि गत 6 नवम्बर को मैंने इसी स्तम्भ के अन्तर्गत श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति पर विवेक गुप्ता के सर्प कुंडली मार कर बैठने का जिक्र किया था। अस्सी वर्ष पुरानी सेवा संस्था श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति जिसका विगत तीस वर्षों से चुनाव नहीं हुआ, पर विधायक महोदय ने कब्जा कर लिया। इस संस्था के वे सदस्य भी नहीं थे लेकिन उन्हें समिति के लोगों ने सर्वोच्च पद सौंप दिया। जिस दिन अध्यक्ष बने उसी दिन उन्हें सदस्य बनाकर खानापूर्ति की गयी। अब समिति भी गुप्ता जी को वैसे ही झेल रही है जैसे हिन्दुस्तान क्लब ने उन्हें नौ महीने झेला। सुगबुगाहट वहां भी शुरू हो गयी है। इधर सुना है मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी के अध्यक्ष की कुर्सी पाने हेतु विधायक जी की जीभ लपलपा रही है। हमारी प्रार्थना है मारवाड़ी समाज की इस एक सौ वर्ष पुरनी प्रतिष्ठित सेवा संस्था की ईश्वर रक्षा करे।


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