भारत विश्व फुटबॉल में बेगानी शादी का अब्दुल्ला कब तक बना रहेगा?

भारत विश्व फुटबॉल में बेगानी शादी का अब्दुल्ला कब तक बना रहेगा?


फुटबॉल ऐसा खेल है जो दुनिया में सबसे अधिक खेला जाता है। दो सौ देशों में फुटबॉल टीम है और 300 करोड़ से अधिक लोग इसे देखते हैं। बहुप्रतीक्षित फीफा (अन्तर्राष्ट्रीय फुटबॉल महासंघ) वल्र्ड कप 2022 रंगारंग कार्यक्रमों के साथ कतर तथा इक्वाडोर के बीच खेले मैच के साथ शुरू हो गया। खेल का जुनून करोड़ों लोगों के बीच इस कदर सिर चढ़ कर बोल रहा है कि क्रिकेट का करिश्मा फीका नजर आ रहा है। इस आयोजन की मेजबानी एशिया को मिलना इस बात का प्रतीक है कि आने वाले दिनों में अमेरिका व यूरोप जैसा फुटबॉल का जुनून इस महाद्वीप में भी नजर आये। इस आयोजन को लेकर कतर लगतार पश्चिमी देशों के निशाने पर रहा है। इस छोटे से देश की आयोजन क्षमता को लेकर भी लगातार सवाल उठाये जाते रहे हैं। लेकिन इस पिद्दी से देश के जज्बे ने दिखाया है कि एशियायी देश भी ऐसे भव्य आयोजन करने में सक्षम है। पूरा एशिया भी अब फुटबॉल के खुमार में डूबता नजर आ रहा है।  इस आयोजन की खास बात यह भी है कि 1978 के विश्व कप के बाद यह 29 दिन वाला सबसे कम अवधि का आयोजन होगा। बहरहाल, फीफा वल्र्ड कप का यह आयोजन अपनी तमाम विशिष्टताओं के लिए याद किया जायेगा। दरअसल कतर एक छोटा सा देश है जो आकार के मामले में दुनिया के शीर्ष सौ देशों में भी नहीं गिना जाता है। अनुमान है कि करीब पन्द्रह लाख लोग इस आयोजन में शामिल होने के लिए आयेंगे। बहरहाल एशिया में फुटबॉल के जुनून के आगे क्रिकेट के कुछ दिन फीके रहने वाले हैं। 18 दिसम्बर इसका फाइनल होगा।


विश्व कप के दौरान भारत में लाखों फुटबॉल प्रेमी दुनिया के सबसे बड़े फुटबॉल खेल को देखने के लिए अपने टेलीविजन सेट से चिपके देखे गये हैं। अनिवार्य रूप से यह सवाल आता है कि भारत विश्वकप में कब हिस्सा लेगा?

भारत को आखिरी बार ओलंपिक में फुटबॉल खेले हुए साठ साल बीत चुके हैं। एशियायी फुटबॉल में भी भारत की स्थिति इतनी गिर गयी है कि कम से कम 15 एशियायी देश हमें हराने में सक्षम हैं। देश में फुटबॉल के अनुयायी सचमुच असमंजस में है कि हमारी नेशनल लीग कौन सी है? पांच वर्ष पहले फीफा का पहली बार टूर्नामेंट भारत में हुआ। तब आशा जगी कि फुटबॉल का भारत में पुनर्जागरण होगा। फीफा के अध्यक्ष ने एक बयान में कहा था कि भारत फुटबॉल में सोयी हुई शक्ति है।

भारतीय फुटबॉल की स्थिति के बारे में कुछ कहना अरण्य रोदन से अधिक कुछ नहीं है। फुटबॉल में भारतीय मेधा किसी के कम नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में हमारे किशोरों की प्रतिभा को अगर प्रोत्साहित किया जाये तो कई माराडोना, पेले और मेस्सी तैयार हो सकते हैं। राजनेताओं को फुटबॉल से या वास्तव में, हमारे देश के लगभग सभी अन्य खेलों से अलग नहीं किया जा सकता है। क्रिकेट को छोड़कर किसी भी भारतीय खेल गतिविधि को देखें तो आप पायेंगे कि राजनेता या उनके साथी व रिश्तेदार उनमें से कई पूरी तरह से भ्रष्ट होने के कारण, संगठनात्मक निकायों में महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा कर रहे हैं। नतीजा यह है कि राजनेताओं की रुचि और पैसा कमाने की लालसा पहले आता है और खेल केमानक बाद में। उचित मार्गदर्शन और प्रशिक्षण से भारतीय युवा अपने देश को अंतर्राष्ट्रीय ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं। भारत में सॉकर पिछड़ गया क्योंकि यह फुटबॉल नहीं बल्कि क्रिकेट था जिसने ध्यान और संसाधनों को इससे दूर कर दिया।

भारत पहला एशियायी देश था जहां सौ वर्षों से प्रतिस्पर्धी फुटबॉल खेला जा रहा है। फीफा एआईएफएफ को जो पैसा भाजता रहा है वह काफी बड़ी राशि है। उस धन का उपयोग भारत में फुटबॉल के बुनियादी ढांचे के लिए किया जा रहा है या नहीं, इसकी घनी जांच पड़ताल होनी जरूरी है। भारत में खेल प्रशासन के अधिकारियों को कभी भी जवाबदेह नहीं ठहराया गया है, एआईएफएफ और आईएफए ने कथित गलत काम करने वालों को मुक्त होने की अनुमति दी है।

एक ज्वलन्त उदाहरण जब प्रसिद्ध फुटबॉलर मारोडाना को कलकत्ता लाया गया था, एक फुटबॉल अकादमी के निर्माण के बारे में अखबारों में विज्ञापन थे- जिसका नाम 'माराडोना इंटरनेशनल फुटबॉल अकादमीÓ था। इसका उद्घाटन महेशतल्ला में माराडोना के रूप में होना था। इस बात का स्पष्टीकरण नहीं था कि आईएफए इसकी अनुमति कैसे दे सकता है? तथाकथित अकादमी के लिए धन कहां से आयेगा, इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं था। माराडोना को महेशतल्ला लेजाया गया और उनके पदचिह्न तथाकथित अकादमी के लिए एक स्मृति चिह्न के रूप में एकत्र किये गये। पहली भारतीय टीम के लिए खेलने वाले कुछ खिला़ी इस अवसर पर मौजूद थे। अकादमी आज तक नहीं बनी है। माराडोना के भारत दौरे के लिए पैसा कहां से आया यह प्रश्न कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने किया। अकादमी कानिर्माण क्यों नहीं किया गया? तत्कालीन बाममोर्चा सरकार ने माराडोना दौरे पर करीब 1 करोड़ रुपये खर्च किये। पैसा जनता का था। इसे बिना किसी दस्तावेजी सबूत के क्यों और कैसे खर्च किया गया? आय-व्यय दिखाने के लिए कोई बैंक खाता सूचीवद्ध नहीं था। दिलचस्प और हैरान करने वाली बात यह है कि माराडोना ने एक भी प्रदर्शनी मैच में हिस्सा नहीं लिया, उन्होंने साल्टलेक स्टेडियम में वीआईपी बॉक्स से मैच देखा।

ऐसा ही तब हुआ जब मेसी को कलकत्ता लाया गया। इस बार सरकार तृणमूल की थी। यह फीफा के अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय मैच था, इस पर प्रफुल्ल पटेल का आशीर्वाद था। दौरे की आय और व्यय के बारे में कोई कुछ नहीं जाता। राजनीतिक नेताओं को फुटबॉल मैनेजमेंट में रुचि दिखाने, अपने पसंदीदा को गद्दीदार पुरस्कार की पेशकश करने के लिए जाना जाता है, हालांकि कुछ पर उनके खिलाफ हानिकारक आरोप थे।

वास्तव में हमारे पास आज तक कोई राष्ट्रीय लीग नहीं है, यद्यपि 125 साल पहले हमारे देश में फुटबॉल आया था।


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