आईना मलने की बजाय अपने चेहरे की धूल साफ कीजिए विवेक गुप्ता जी
दरअसल 6 रुपये की डियर लॉटरी बड़ी संख्या में निम्न मध्य वित्त परिवार के लोग खरीदते हैं। उनके लिए एक करोड़ जीतना उनकी काया पलट कर सकता है, लेकिन रुचिका तो एक संभ्रांत परिवार की महिला है। लगभग 80 वर्षों से प्रकाशित सन्मार्ग एक बड़ा प्रतिष्ठान है। जिसका संचालन सन्मार्ग प्राइवेट लिमिटेड कंपनी करती है, जिसके डायरेक्टर विवेक गुप्ता के साथ उनकी पत्नी भी हैं। उसकी मालकिन बाजार की किसी दुकान या फुटपाथ से 6 रुपये की लॉटरी का टिकट खरीदेगी एवं एक करोड़ रुपए जीतने का ख्वाब देखेगी ऐसी कल्पना कोई अनपढ़ व्यक्ति भी नहीं करेगा। डीयर लॉटरी जीतने पर रुचिका जी ने बयान दिया कि ''बड़ी बात यह है कि अपने बैंक खातों में 1 करोड़ होना हमारे जीवन में उर्जा और उमंग भर देता है ....साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अपने परिवार की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए मैं इस पुरस्कार राशि का निवेश करुंगी। (यह पंक्तियां डियर लॉटरी के सन्मार्ग में विज्ञापन में प्रकाशित हुई है)।
रुचिका जी परिवार की स्थिति ठीक करेंगी यानी उनके परिवार की स्थिति अभी ठीक नहीं है? ऐसा फूहड़ एवं स्टंट भरा बयान में किसी को रत्ती भर भी सच्चाई नहीं लगेगी। और फिर उनके लिए यह गौरवपूर्ण एवं खुशियां मनाने की घड़ी है तो विज्ञापन में अपना चेहरा क्यों छुपाना चाहती है? कोई भी व्यक्ति अपना चेहरा कब छुपाता है?
सन्मार्ग के मालिक विवेक गुप्ता विधायक भी हैं। विधायक बनने के बाद उन्होंने बहुत से मुकाम हासिल कर लिए हैं। वह प्रसिद्ध हिंदुस्तान क्लब के एक साल अध्यक्ष रहे। मर्चेंट चेंबर के भी मुखिया थे। पुरानी एवं सुप्रसिद्ध संस्था श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति के अध्यक्ष बन बैठे हैं। इतनी सारी उपलब्धियों के बाद अपनी पत्नी के चेहरे को धुंधला करवा कर विज्ञापन के पीछे आखिर क्या शातिर मंशा हो सकती है? दरअसल आजकल कॉरपोरेट क्षेत्र में काले धन को छिपाने के लिए महिलाओं के नाम से फाइलें बनाई जाती है। लेकिन कभी-कभी उन महिलाओं को इसकी सजा भुगतनी पड़ती है। फाइनांस के बड़े दलाल शांति सुराणा ने ऐसे ही हथकंडे अपनाए जिसका परिणाम यह हुआ कि आज उनकी पत्नी और पुत्री दोनों जेल में हंै। रुचिका गुप्ता एक बहुत प्रतिभाशाली महिला है और सन्मार्ग को बढ़ाने में उनकी अहम भूमिका है। सफल पुरुष के पीछे महिला का हाथ होता है यह बात अक्षरश: विवेक गुप्ता पर लागू होती है। नारी सशक्तिकरण का नारा लगा कर अपराजिता का सफल कार्यक्रम सन्मार्ग कर रहा है। पर जैसे दीपक तले अंधेरा होता है सन्मार्ग का नारी शक्ति अभियान विवेक जी की धन पिपाशा के लालच का शिकार हो गया।
विवेक गुप्ता जी हिंदुस्तान क्लब के अध्यक्ष कैसे बने और एक साल में वहां कमेटियां भी नहीं बना सके। एक टर्म के बाद ही उन्हें बामुलायजा विदा भी कर दिया गया। श्री काशी विश्वनाथ सेवा समिति के सदस्य ना होते हुए भी कौन से दांव से इस पुराने संस्था पर काबिज हो गये? मर्चेन्टस चेम्बर के अध्यक्ष पद से जब वे निवृत्त हुए, सदस्यों ने राहत की सांस ली बताते हैं। अभी शनिवार को मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी के प्रधान सचिव श्री गोविन्दराम अग्रवाल ने पच्चीस साल प्रधान सचिव रहने के बाद अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है। सोसाइटी में संकट आ गया है। खबर है कि विवेक गुप्ता सोसाइटी का अध्यक्ष बनने के लिये वहां भी कोई दांव खेलने वाले हैं। इन की विस्तृत जानकारी हम फिर कभी पाठकों को देंगे। पर यह बता देना उचित समझते हैं कि अपने जोड़ासाँको विधानसभा क्षेत्र में विधायक को लेकर कई किस्से चल रहे हैं जिसके कारण उनकी पार्टी भी असमंजस में है। कुछ दिन पहले विवेक गुप्ता और उन्हीं की पार्टी के पूर्व विधायक संजय बक्शी के बीच दुर्गा पूजा पंडाल में सांसद सुदीप बंदोपाध्याय के सामने विभत्स ढंग से धक्का मुक्की का वीडियो वायरल हुआ लोगों ने छी! छी! कर घटना पर प्रतिक्रिया दी। पं. बंगाल के राजनीतिक इतिहास में ऐसी शर्मनाक घटना पहले कभी नहीं हुई। विजय सिंह नाहर, ईश्वर दास जालान, विष्णुकान्त शास्त्री, रामकृष्ण सरावगी, देवकीनन्दन पोद्दार, राजेश खेतान, सभी ने हिन्दी भाषियों की प्रतिष्ठा बनाकर रखी जो इस एक घटना से तार तार हो गई।
आनंदलोक अस्पताल में भी वे ट्रस्टी बन गए हैं। इस अस्पताल के सुप्रीमो देव कुमार सराफ ने हाल ही में एक बड़ा विज्ञापन छपवा कर यह बताया कि किसी प्रतिष्ठित दैनिक पत्र के मालिक ने उनका गला पकड़ कर उनको उनको किडनैप करने एवं जान से मारने की धमकी दी। बाद में पता चला कि यह अभियोग मनगढ़ंत था। प्रभात खबर के प्रतिनिधि के साथ यह घटना हुई लेकिन राज्य सरकार के हिंदी अकादमी के चेयरमैन विवेक गुप्ता सारी घटना से निर्लिप्त रहे। हिंदी अकादमी के चेयरमैन के नाते उन्होंने यह पता लगाने की भी जरूरत नहीं समझी कि किस प्रतिष्ठित हिन्दी पत्र ने आनंदलोक जिसके वे ट्रस्टी हैं ने सराफ जी को जान से मारने की धमकी दी और यह क्या मामला है?
सारी बातों का सारांश यह है कि विवेक गुप्ता अपने चेहरे को साफ करने की बजाय पत्नी के चेहरे को छुपाने की हास्यास्पद चेष्टा कर रहे हैं। यह भूल गए कि पत्नी का भी सम्मान होना चाहिए और खासकर रुचिका गुप्ता जिसके सत् प्रयास से स्वर्गीय राम अवतार गुप्ता जी का यह दैनिक पत्र आज एक बड़े मुकाम पर पहुंचा है। इस तरह के घटनाक्रम पर मुझे राष्ट्रकवि दिनकर जी की एक कविता की पंक्तियां स्मरण हो उठती है -
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है।
Kans aur ravan rakshas aur devta ki kami nahi hai
ReplyDeleteBahut hi accha post h
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