ऋषि सुनक के अलावा और भी बहुत हैं भारत का सात समंदर पार डंका बजाने वाले

 ऋषि सुनक के अलावा और भी बहुत हैं भारत का सात समंदर पार डंका बजाने वाले



200 वर्षों तक ब्रिटेन का भारत में शासन था। भारत को दो सदियों तक अपना गुलाम बनाकर रखने वाले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद पर भारतीय का आसीन होना नि:संदेह एक ऐतिहासिक घटना है। वैसे दुनिया के कई मुल्कों में भारतीय उच्च पदों पर है। अमेरिका में उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी भारतीय मूल की हैं। ऋषि सुनक ने मात्र 42 वर्ष की आयु में ब्रिटिश प्रधानमंत्री पद को संभाला है। किसी जमाने में ग्रेट ब्रिटेन कहा जाने वाला यह देश अब ना ग्रेट रहा और ना ही वह सही मायने में एकजुट है, ने अपनी अर्थव्यवस्था को चंगा करने के लिए एवं राजनीतिक स्थिरता लाने के लिए एक नौजवान को जिसकी जड़ें भारत में है, अपनी बागडोर सौंपी है। सुनक ने शायद लॉर्ड मैकाले जिसने भारत को गुलाम बनाने का नुस्खा दिया था, को भी गौरवान्वित किया होगा जिनकी बनाई व्यवस्था ने एक ऐसे वर्ग को तैयार किया जो खून और रंग से तो भारतीय हैं, लेकिन विचारों एवं नैतिकता व मानसिकता से इंग्लिश है। यह भविष्य ही बताएगा कि सुनक केवल अपने वर्ग और धर्म के कारण इतिहास की किताबों में जगह पाते हैं या वास्तव में यह सबकी उम्मीदों पर खरा उतर कर सफलता हासिल करते हैं। ब्रिटिश संसद ने सुनक को चुनकर उदार लोकतंत्र का एक बड़ा उदाहरण पेश किया है। औपनिवेशिक साम्राज्य के प्रवासी माता-पिता की संतान और एक हिंदू ऋषि सुनक का चुनाव सांप्रदायिक होती जा रही दुनिया में असलियत के लिहाज से बड़ी जीत है। 

भारत में ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की जो प्रतिक्रिया हुई वह बड़ी अजीबो-गरीब है। राजनीतिक माहौल यह कहकर गर्म हो गया कि एक अल्पसंख्यक जब ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है तो भारत में अल्पसंख्यक क्यों नहीं ? ऐसा बयान देने वाले हमारे सूक्ष्म बुद्धि के नेता भूल गए कि भारत का प्रधानमंत्री अल्पसंख्यक समुदाय का हो चुका और 10 वर्ष तक उसने शासन पद संभाला। भारत के उच्चतम राष्ट्रपति पद पर डॉ जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद और एपीजे अब्दुल कलाम काबिज हो चुके हैं। मुख्य न्यायाधीश और न जाने  कितने उच्च पदस्थ अल्पसंख्यक वर्गों के रहे हैं। दूसरी तरफ भारतीय मूल के बहुतेरे कई देशों में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति रहे हैं। 


सोनिया गांधी और डा. मनमोहन सिंह

(दोनों अल्पसंख्यक)

भारत ब्रिटेन से कहीं अधिक उदार देश है। भारत के प्राचीन इतिहास को जिन्होंने पढ़ा है वह कम से कम ऐसा नहीं कहेंगे कि सुनक के विलायत में प्रधानमंत्री बनना कोई अल्पसंख्यकों की जीत का जश्न है। फिर यह नहीं भूलना चाहिए कि सुनक को प्रधानमंत्री बनाना ब्रिटिश राजनीति की मजबूरी है। वह चुने गए पीएम नहीं है। संकटग्रस्त ब्रिटेन उन्हें पीछे से दरवाजे से लेकर आया है। राजनीतिक अस्थिरता का अंदाज लगाइए कि 6 साल में वहां 5 प्रधानमंत्री बन चुके हैं। सुनक को स्वीकार करने के सिवा उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा था। उन्हें प्रधानमंत्री इसलिए नहीं बनाया गया कि ब्रिटेन अपने अल्पसंख्यकों के प्रति अपने प्रेम का इजहार कर सके। सुनक ने वित्त मंत्री के रूप में अपने वित्तीय प्रबंधन कौशलता का परिचय दे चुके हैं। ब्रिटेन में घनघोर वित्तीय संकट छाया हुआ है उसके सुनाक संकटमोचक सिद्ध होंगे। इस उम्मीद से उनके सिर पर ताज पहनाया गया है। इटली से भारत की बहू बनकर आए कैथोलिक महिला सोनिया गांधी का चुनाव कर चुका था। पर कुछ तथाकथित राष्ट्रवादियों को उनका प्रधानमंत्री बनना अपशकुन लगा। सोनिया ने फिर अपने बदले भारत के वित्तीय कौशल में महारत प्राप्त कर चुके अल्पसंख्यक सिख समुदाय के डॉक्टर मनमोहन सिंह को सत्ता सौंप कर अल्पसंख्यक के गौरव को अक्षुण्ण रखा। ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनने का अल्पसंख्यक मुद्दों से बाहर का मामला है। उन्हें संख्या के आधार पर नहीं योग्यता के चलते यह पद हासिल हुआ है। ब्रिटेन के 7 करोड़ की जनसंख्या में भारतीय मूल के लोगों की संख्या 20 लाख से भी कम है। स्पष्ट है कि वे ब्रिटिश नागरिक हैं और वर्तमान परिस्थिति में ब्रिटेन को वर्तमान महाजनी संकट से वे ही उबार सकते हैं। 

भारतीय नस्ल के लोगों का विदेश में जाकर भारत का डंका बजाने की बात आती है तो उन गरीब और लाचार बंधुआ मजदूरों को मत भूलिये जिन्हें जिन्हें 19वीं सदी के प्रारंभ में मवेशियों से भी बदतर व्यवहार कर पानी के जहाजों में लादकर ब्रिटिश उपनिवेश के अन्य देशों में स्थानांतरित किया गया। अधिकतर बिहारी कृषक मजदूरों को छल, बल से मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम गुयाना, त्रिनिदाद-टोबैगो आदि देशों में ले जाए गए एवं वहां दमन-शोषण, प्रताडऩा का सामना करना पड़ता था। हाड़-तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी। कई पीढिय़ां शोषण मे खप गई। इस अकाल्पनिक दूर्दिन में भी उन्होंने अपने भारतीय संस्कारों एवं संस्कृति को जीवंत रखा। अपने श्रम-स्वेद का विनियोग कर उन भारतवंशियों ने ना केवल उन देशों को पहचान दी बल्कि उन समाजों में भी उस तरह मिल गए जैसे दूध में शक्कर। इन मजदूरों ने उन देशों की तकदीर बदल दी और आज डेढ़ सौ वर्ष बाद उनकी ही संतति वहां राज कर रही है। पर पुरखों की भूमि भारत से उनका आज भी लगाव है, अपनी मूल भाषा  से आज भी उनका प्रेम है। भारतीय संस्कृति और अपने धर्म से उनका आज भी जुड़ाव बना हुआ है।

ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने 2015 में एक साक्षात्कार में उल्लेखनीय टिप्पणी की थी- ''मैं तो पूरी तरह से ब्रिटिश हूं। यह मेरा घर और देश है। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल में एक वर्चुअल बैठक कर 'रोडमैप 2030 पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें साल 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार तेज करने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन जॉनसन के इस्तीफे के बाद ब्रिटेन में राजनीतिक उथलपुथल की वजह से इस समझौते पर काफी असर पड़ा। बोरिस जॉनसन के बाद प्रधानमंत्री बनी लिज ट्रस को मुक्त व्यापार के अलावा माइग्रेशन और मोबिलीटी पार्टनरशिप को लेकर भी एतराज था। लिज प्रशासन का मानना था कि इससे ब्रिटेन में भारतीयों के आने की रफ्तार बढ़ जाएगी। ऋषि सुनक रोडमैप-2030 को फिर पटरी पर क्या ला पायेंगे, देखना है।




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