शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद जी को नमन्
एकमात्र धर्मगुरु जिन्होंने स्वतंत्रता
संग्राम में भी भाग लिया
ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ एवं शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती लम्बे समय तक बीमार रहने के बाद 99 वर्ष की आयु में 11 सितम्बर को परलोक सिधार गये। इस उम्र तक सचेतन जीवन विरले लोगों को ही मिलता है। स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती को हिन्दुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था। शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परम्परा के साधु-संतों को भू-समाधि दी जाती है। भू-समाधि में पद्मासन या सिद्धि आसन की मुद्रा में बैठाकर भूमि में दफनाया जाता है। स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती को भू-समाधि उनके आश्रम में दी गयी। 9 साल की उम्र में अपना घर छोड़कर स्वरुपानंद सरस्वती ने धर्म यात्राएं प्रारम्भ कर दी थी। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांता, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने की लड़ाई चल रही थी। वे देशकाल व परिस्थितियों के प्रति हमेशा सजग रहे। परतंत्र भारत में गुलामी की टीस उन्हें परेशान करती थी। साधु होने के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भी रहे। जब 1942 में अंग्रेज भारत छोड़ा का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह क्रांतिकारी एवं देशभक्त के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में 9 और मध्यप्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य-परिषद के अध्यक्ष भी थे। संभवत: वे एकमात्र धर्मगुरु हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
जगद्गुरु शंकराचार्य को गंगा पर प्रकाशित छपते छपते के विशेषांक की प्रति भेंट करते हुए लेखक।
शंकराचार्य जी सभी धर्मगुरुओं से भिन्न थे। धार्मिक के साथ सामाजिक मुद्दों पर लगातार सक्रिय रहे। वे अपने बेबाक बोलों के लिए जाने जाते रहे हैं। वहीं उन्हें कांग्रेस पार्टी के नेताओं के साथ नजदीकी के लिए भी जाना जाता रहा है। स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती को उनके बेबाक बयानों को लेकर खूब चर्चा एवं सुर्खियां मिली। राम मन्दिर से लेकर बेटियों के तर्पण के मामले में उनका बयान खासा चर्चा में रहे थे। उन्होंने कई बार केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार को घेरा था। आरएसएस के स्वरुप को बिगाडऩे पर भी करारा हमला बोला था। साथ ही ताजमहल के नीचे शिवलिंग होने की बात भी कही।
अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण पर स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने बड़ा बयान दिया था। 6 फरवरी 2021 को प्रयागराज में माघ मेले के दौरान मौनी अमावस्या स्नान के लिए पहुंचे स्वामी जी ने जो बयान दिया उससे राम मन्दिर पर हो रही राजनीतिक बेनकनाब हुई थी। मन कामेश्वर मंदिर से मीडिया से बातचीत करते हुए शंकराचार्य जी ने कहा था कि अयोध्या में भगवान श्री राम का मंदिर नहीं बन रहा है। वहां विश्व हिन्दू परिषद का कार्यालय बनेगा। मंदिर वह बनाते हैं, जो राम को आराध्य मानते हैं। राम को महापुरुष मानने वाले लोग मंदिर नहीं बनाते। शंकराचार्य ने कहा था कि भगवान राम महापुरुष नहीं भगवान हैं। उन्होंने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन पर भी सवाल उठाया था। पैसा जमा करने से लेकर आंदोलन की बात लिखने तक विश्व हिन्दू परिषद को घेरा था। उन्होंने कहा था कि केवल भगवा पहन लेने मात्र से कोई सनातन धर्म को मानने वाला नहीं बन जाता है।
स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने किसान आंदोलन पर भी अपनी राय रखी थी। इसको लेकर उन्होंने केन्द्र की मोदी सरकार को हल निकालने का संदेश दिया था। नोटबंदी से लेकर किसान बिल तक को उन्होंने सरकार का एक पक्षीय फैसला करार दिया था।
कोरोना संक्रमण को लेकर भी शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती का बड़ा बयान सामने आया था। उन्होंने कहा था कि जहां पर भी दूषित खाना और दूषित जल है, वहां बीमारी का प्रसार हुआ है।
केन्द्र सरकार की नमामि गंगे कार्यक्रम पर वे लगातार निशाना साधते थे। गंगा जल को शुद्ध करने पर काम नहीं हुआ है। कल्पवासी क्षेत्र में गंगा के किनारे रहने वाले लोग अब बोतलबंद पानी पी रहे हैं। शंकराचार्य जी ने ही बताया था कि बद्रिकाश्रम और गंगोत्री आदि उद्गम स्थलों से ही इसमें प्रदूषण प्रारम्भ हो जाता है। क्योंकि वहां से ही आसपास के नगरों का मल-जल नदियों में आ रहा है। ऋषिकेश और हरिद्वार में आकर यह प्रदूषण और भी बढ़ जाता है। हरिद्वार का पवित्र माना जाने वाला गंगाजल आज आचमन के योग्य भी नहीं रह गया है। स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती ने स्पष्ट कहा था-जब हरिद्वार में ही गंगाजल आचमन के योग्य नहीं रहा तो इलाहाबाद और वाराणसी का क्या कहना? ऋषिकेश और हरिद्वार के बीच में एक रासायनिक फैक्टरी है, जिसका अवशेष गंगा में गिरता है। प्रयाग के पूर्व ही कन्नौज एवं कानपुर तक गंगा अत्यंत प्रदूषित हो जाती है। जनता का सहयोग प्राप्त करने के लिए शंकारार्य गंगा सेवा प्रयास का गठन किया। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से शंकराचार्य ने मुलाकात की एवं इस बात पर संकोथ प्रकट किया कि श्री मोदी ने उनकी बातें ध्यान से सुनी और कहा कि गंगा मेरी मां है, मैं इसके लिए ईमानदारी से कार्य करूंगा।
स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती बेटियों को तर्पण का अधिकार दिये जाने के खिलाफ थे। एक बार उन्होंने कहा था कि लड़कियां अपने माता-पिता की संपत्ति पर अपना हक जताने के लिए उनका दाह-संस्कार और पिंडदान करती हैं। लड़कियों के लिए ऐसे कर्मकांड हिन्दू धर्म शास्त्रों के खिलाफ है। उन्होंने कहा था कि बेटियों की ओर से इस प्रकार के कर्मकांड से घरों में विवाद बढ़ा है।
स्वामी स्वरुपानंद जी से मिलने एवं बातचीत करने का मुझे कई बार अवसर मिला। उनसे शास्त्रार्थ करने का तो प्रश्न ही नहीं, लेकिन मेरे मन में कई जिज्ञासाओं का उन्होंने उत्तर दिया। लोग अपनी निजी समस्याओं को लेकर भी उनके पास पहुंचते थे। वे सबकी बात सुनते और भरसक उनसे संवाद करते थे। एक बार सालासर (राजस्थान) में धर्मशाला के शिलान्यास समारोह में स्वामी जी की सभा में मैंने उनसे कई यक्ष प्रश्न किये। उन्होंने एक-एक करके सभी का उत्तर दिया। वहां उपस्थित उनके कई शिष्यों को बुरा लगा कि मैं उनसे क्यों तर्क कर रहा हूं पर शंकराचार्य जी ने इस बात पर खुशी प्रकट की कि मैंने उनसे सवाल किया। उनके जवाब से कई मुद्दों पर मेरा पूर्वाग्रह समाप्त हुआ, हालांकि उनके कई जवाब मेरे गले नहीं उतरे। ऐसे धर्मगुरु के सान्निध्य में धर्म को समझने एवं धार्मिक मूल्यों के प्रति आस्था प्रबल होती है एवं कई भ्रमों का निवारण होता है।
शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद जी के महाप्रयाण पर उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि।

https://youtu.be/80NyUrOwK14
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