पितृपक्ष: मरणोपरान्त सम्मान
जीते जी...!
हिन्दू समाज में पितृ पक्ष पन्द्रह दिनों का पखवाड़ा है जब हम अपने दिवंगत आत्मीय परिजनों को स्मरण करते हुए रस्मी तौर पर विधि-विधान से आयोजन करते हैं। पितरों के लिए श्रद्धा से किये गये मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध पक्ष का माहात्म्य उत्तर व उत्तर पूर्व भारत में सर्वाधिक है। तमिलनाडु में आदि अमावसाई, केरल में करिकडा वावुबली और महाराष्ट्र में इसे पितृ पंधरवडा नाम से जानते हैं। पितृ पक्ष या श्राद्ध में पितरों की मरण-तिथि को ही उनका श्राद्ध किया जाता है। और अन्तिम दिन सर्वपितृ अमावस्या को कुल के उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिन्हें हम नहीं जानते हैं। तर्पण, पिंडदान और धूप देने से आत्मा की तृप्ति होती है। तृप्त आत्माएं ही भूत-प्रेत नहीं बनतीं। हमारे यहां मान्यता है कि जो परिजन अपने मृतकों का श्राद्ध कर्म नहीं करते उनके प्रियजन भटकते रहते हैं। यह कर्म एक ऐसी विधि है जिसके माध्यम से आत्मा को सही मुकाम मिल जाता है और वह भटकाव से बचकर मुक्त हो जाता है। पितृपक्ष में सात्विक आहार खाने का निर्देश है। प्याज, लहसुन, मांस मदिरा सेवन से सख्त मनाही है। यह भी कहा गया है कि पितृ पक्ष में नित्य भागवद्गीता का पाठ करना चाहिये। कर्ज लेकर या दबाव में कभी भी श्राद्ध कर्म नहीं करने को कहा गया है। जिनके पास श्राद्ध कर्म करने का सामथ्र्य नहीं है उनके लिए भी व्यवस्था बनायी गयी है। वे प्रात:काल स्नान करके सूर्य देव को जल अर्पित करें। तत्पश्चात् गाय को चारा खिलाकर पितरों से कृपा याचना करे तो उनका श्राद्ध कर्म सम्पूर्ण माना जाता है।
हमारे धर्म या परम्परा के अनुसार मृत्यु के बाद दिवंगत की आत्मा की शान्ति हेतु कर्म को बड़ा महत्व दिया गया है। औसत परिवारों में इसका अक्षरश: पालन भी होता है। ग्रामीण इलाकों में पितृपक्ष किसी परिवार की पहचान का सशक्त माध्यम है। ऊपर लिखे विधि विधान को मानना अघोषित रूप से अनिवार्य है। भला कौन चाहेगा कि उसके दिवंगत पिता या माता की आत्मा भटके। आधा पेट खाकर, उधार लेकर भी इस पारिवारिक धर्म को अतीत में परिजनों के लिए किये गये श्राद्ध का अनुसरण आवश्यक होता है। लकीर से हटकर कुछ भी करना अपनी पारिवारिक प्रतिष्ठा पर बट्टा लगाने जैसा कर्म माना जाता है। इसीलिए श्राद्ध कर्म का मनोयोग से निर्वाह करना जरूरी होता है। कई परिवार इसके लिए जमीन बेचते हैं तो कई जमीन को गिरवी रखकर अपने पितरों के प्रति पितृ पक्ष धर्म का विधि विधान से पालन करते हैं।
इस स्थिति का सर्वे भी किया गया। जो तथ्य सामने आये वह रुलाने वाले हैं। शादी से पहले जो बेटा काम या ऑफिस से वापस आकर मां-बाप से दिनभर का हालचाल पूछता था, वही बेटे अब परायों से व्यवहार करते अधिकतर घरों में दिखाई देते हैं। घर लौटने पर बच्चे अपनी दुनिया में मस्त होकर जी रहे हैं वे यह भी भूल जाते हैं कि बचपन में इन्हीं माता-पिता के बिना उनको चैन नहीं आता था। शादीशुदा बेटा हम दो हमारे दो में विसर्जित हो जाता है और अगर वह शादीशुदा नहीं है तो मोबाइल व सोशल मीडिया ही उसका घर बन जाता है, उसका परिवार बन जाता है। मिलाजुलाकर परिवार के बुजुर्ग के लिए जिंदगी को और दुश्वार कर दिया गया है। बुजुर्गों और नये परिवार बसाते बच्चों के बीच एक दूरी-सी पैदा हो गयी है। और ये दूरी गांव और छोटे कस्बों से ज्यादा छोटे-बड़े शहरों में देखने को मिलती है। प्रेमचन्द की कहानी बूढ़ी काकी घर-घर की सच्चाई बन गयी है। उम्र की संध्या में पहुंचकर बुजुर्गों का जीवन पर - बस बन जाता है और बच्चों की रुसवाई या उनकी घोर उपेक्षा आत्मा को कचोटने लगती है। अनदेखी और घोर उपेक्षा उनके लिये मानसिक अवसाद की वजह बन जाती है। कई बुजुर्गों का कहना है कि चार लोगों के बीच सार्वजनिक स्थान पर उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है।
वृद्धों के लिए दुनिया की सबसे बेहतरीन और दुनिया की सबसे खराब जगहों की वैश्विक रैंकिंग में स्विट्जरलैंड का नाम सबसे ऊपर और भारत का नाम सबसे नीचे शुमार किया गया है। हेल्पेज इंटरनेशनल नेटवर्क ऑफ चैरिटीज की ओर से तैयार ग्लोबल एज वॉच इंडेक्स में 96 देशों में भारत को 71वां स्थान दिया गया है। पूरे संसार में भारत ही वह देश है जहां तीन पीढिय़ां सप्रेम एक ही घर में रहती थी। आज स्थिति बिलकुल उलट है। ऐसे पीडि़त बुजुर्गों के संरक्षण के लिए कानून है लेकिन जानकारी के अभाव और बदनामी के डर से बुजुर्ग कानून का सहारा लेने में हिचकिचाते हैं। सबसे बुरी स्थिति बुजुर्गों के लिये तब होती है जब बुजुर्ग दम्पत्ति में कोई एक चल बसता है। उस स्थिति में दूसरा घुट-घुट कर जीता है। मैं व्यक्तिगत तौर पर कुछ ऐसे परिवारों को जानता हूं जहां बुजुर्ग दमघोंटू माहौल में रह रहे हैं। सच्चाई तो यह है कि वे अपनी मौत का इन्तजार करते हैं औैर भगवान से यही प्रार्थना करते हैं कि उन्हें बुला ले।
2007 में डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने माता-पिता तथा वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण कानून बनाया। कई बुजुर्गों ने या उनकी तरफ से किसी हितैषी ने अदालत की शरण ली एवं उन्हें न्याय भी मिला किन्तु अधिकांश बुजुर्ग अत्याचार बर्दाश्त करना ही पसन्द करते हैं। कई मामलोंमें अदालत का फैसला बुजुर्ग के पक्ष में ही आया पर सामाजिक तौर पर ऐसे बुजुर्गों को कोई सहारा नहीं मिला।
कैसी विडम्बना है कि हमारे समाज में बुजुर्गों को सम्मान पाने के लिए मरना पड़ता है क्योंकि जीते जी उन्हें प्रताडि़त एवं लांछित ही होना पड़ता है। हां, मृत्यु के उपरान्त उनका श्राद्ध बड़ी धूमधाम के साथ किया जाता है। जीते जी उन्हें भोजन के लिये भले ही तरसना पड़े किन्तु मृत्यु के उपरान्त उनकी आत्मा की शांति हेतु श्राद्ध भोजन आयोजित होते हैं एवं उनके पुत्रों को अपने बुजुर्ग का श्राद्ध करने हेतु वाहवाही मिलती है।
ऐसे बुजुर्ग विरले ही होते हैं जिन्हें जीवन की संध्या में संतान सुख प्राप्त हो। कुछ भाग्यशाली लोग भी हैं भले ही उनकी संख्या कम हो। इस पितृ पक्ष में सन्तान सुख का नैसर्गिक आनन्द लेने वालों के लिए यह धरती स्वर्ग से कम नहीं। इस संदर्भ में मुझे उस लोकप्रिय गीत की पंक्ति का स्मरण हो रहा है-
प्यासे को पानी पिलाया नहीं
बाद अमृत पिलाने का क्या फायदा।


बहुत ही सारगर्भित और व्यवहरिक लेख। बधाई। यह विडंबना है सनातन वैदिक दर्शन के अनुयायी मातृ पितृ के प्रति क्या व्यवहार करने लगें हैं और उनकी मृत्यु के पश्चात श्राद्ध कर्म करते हैं। श्राद्ध कर्म का क्या औचित्य है यह विस्तार से उपनिषदों में बताया गया है। कई लोग मुझसे प्रश्न करते हैं कि जब व्यक्ति का देहांत हो जाता है तो वह पुनज म लेलेता है तब पित्तर या भूत कैसे बनता है और उनके नाम का दिया या अन्न उन तक कैसे जाता है। सीधा उत्तर है जिसे गत वर्ष श्राद्ध पक्ष में ज्ञानगंगा की तीन श्रृंखला में बताया था।
ReplyDeleteअब प्रश्न है जीते जी कुछ किया नहीं मरने के बाद करने से क्या फायदा। मैं बस वैसे प्राणी के लिए इतना ही कहूंगा कि अगर वे सच्चे मन से प्रायश्चित कर श्राद्ध करते हसीन तब तो फायदा है नहीं तो मात्र आडम्बर और दिखावा है।
आधुनिक कहे जाने वाले आज के भारतीय समाज को आईना दिखाने वाला अति सारगर्भित लेख के लिए बधाई।
ReplyDeleteपितृपक्ष अपने पितमहों को स्मरण करने, अपनी भावी पीढ़ियों को भावनात्मक रूप से जोड़े रखने की स्वस्थ परम्परा है. नमन 🙏सर्वकालिक, सर्वमान्य, सर्वव्यापक पूर्वजों को
ReplyDeleteसराहनीय एवं अनुकरणीय
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