भारत बढ़ रहा है आर्थिक अधिनायकवाद की ओर
हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भारत में कुल एक लाख 63 हजार व्यक्तियों ने आत्महत्या की है। इनमें एक चौथाई से कुछ अधिक वे लोग हैं जो दैनिक मजदूरी पर निर्भर करते हैं। दूसरी तरफ खबर यह भी है कि हमारे देश के एक उद्योगपति गौतम अडाणी विश्व के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति बन गये हैं। भारत का एक उद्यमी विश्व कुबेरों में तीसरे नम्बर का हो यह तो वैसे ही खुशी की बात है जैसे भारत ने ओलम्पिक में तीन स्वर्ण पदक ले ले। लेकिन हम इस उपलब्धि पर वह खुशी नहीं मना सके क्योंकि हमारे दैनिक मजदूरी करने वालों में आत्महत्या की संख्या तेजी से बढ़ी है। हमारा मीडिया भी अब एक विशेष ढांचे में ढल चुका है। कुबेर के खजाने पर सर्प कुंडली मारकर बैठने की खबर तो सुर्खियों में छपती है लेकिन आत्महत्या में एक चौथाई दिहाड़ी मजदूर वाली बात कहीं दूर धकेल दी जाती है। खैर इससे सच्चाई छिप नहीं सकती। दुनिया में पहले तीसरे नम्बर पर फ्रांस के बर्नाड अरनॉल्ट थे जिनको गौतम अडाणी ने रन आउट कर दिया। अडाणी दुनिया के शीर्ष-10 की सूची में शामिल एक मात्र भारतीय हैं। दिलचस्प बात यह है कि जब दुनिया भर में कोरोना फैला हुआ था, उस समय अडाणी की कुल सम्पत्ति बढ़कर 57 अरब डॉलर हो गयी थी। इसी काल में जब भारत का मध्य वित्त और गरीब अपने कारोबार चौपट होने का मातम मना रहा है उसी 2021-22 में अडाणी की सम्पत्ति दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ी है। एक बात और महत्वपूर्ण है कि अडाणी की सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि इसलिये नहीं हुई उनके कारखानों में उत्पादन बढ़ गया या उन्होंने विश्व बाजार में भारत का निर्यात बढ़ाकर विदेशी मुद्रा अर्जित कर व्यापार संतुलन में मदद की हो। शेयर बाजार में अडाणी की सात कम्पनियां सूचीबद्ध हैं। आपको हैरत में डालने का क्रम अभी खत्म नहीं हुआ है। अभी क्लाइमेक्स बाकी है। अडाणी समूह पर लगभग 2.2 लाख करोड़ रुपये का ऋण भी है। इतना भारी उधार होने के बाद भी अडाणी समूह बहुत तेजी से अन्य कम्पनियों का अधिग्रहण कर रहा है। बैंक उन्हें ऋण देने के लिये सारे नियम कायदों को ताक पर रख दिया है। आज अडाणी साहब ने भारत के सबसे बड़ा और सबसे अधिक बंदरगाहों पर नियंत्रण कर लिया है। सबसे अधिक हवाई अड्डे उनके अधीनस्थ है। बुनियादी ढांचे में अडाणी का वर्चस्व है। खनन, गैस वितरण, बिजली उत्पादन जैसे प्रभावशाली क्षेत्रों में अडाणी साहब का आधिपत्य हो गया है। अर्थशास्त्रियों को यह चिन्ता भी सता रही है कि किसी भी कारण से यह जहाज डूब गया तो भारत की अर्थव्यवस्था को भी ले डूबेगा और हम रसातल में पहुंच जायेंगे।
विश्व के तीसरे सबसे धनी व्यक्ति उद्योगपति गौतम अडाणी
एक दूसरी तस्वीर भी है। आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर जुलाई में धीमी पड़कर 4.5 प्रतिशत रही। उत्पादन वृद्धि की यह दर छह महीने में सबसे कम है। एक साल पहले (कोविड काल) इसी महीने में यह 9.9 प्रतिशत थी। इसी बीच एक साल पहले के मुकाबले जुलाई 2022 में कोर सेक्टर के आउटपुट में सुस्ती रही। इसका ग्रोथ 4.5 फीसदी पर रहा। जबकि वहीं जुलाई 2021 में कोर सेक्टर का ग्रोथ 9.9 फीसदी रहा था। ग्रोथ की यह दर छह महीने में सबसे कम है।
इस संदर्भ में यह उल्लेख करना संदर्भ संगत है कि आजादी के बाद हमारे देश पर अब तक दो बार गहन आर्थिक संकट की मार पड़ी थी। 1991 में भारत के पास बस इतनी विदेशी मुद्रा बची थी कि महज 3 सप्ताह के आयात के खर्चे भरे जा सकते थे। भारत कर्जे की किश्तें भी नहीं चुका पा रहा था। देश का सोना बिक रहा था। उस वक्त नरसिम्हा राव की सरकार जिसमें डा. मनमोहन सिंह वित्तमंत्री थे ने आर्थिक उदारीकरण जैसे बड़े कदम उठाकर देश को बड़े संकट से उबारा था। दूसरा संकट सन् 2008 में। तब भारत में तो आर्थिक मंदी नहीं आयी थी किन्तु अमेरिका समेत अन्य देशों के संकट से भारत अछूता नहीं रह पाया था। अब देश का उदारीकरण लगता है मात्र एक दो धनकुबेरों की धरोहर बन गया है।
देश में चल रहे मुफ्त राशन, स्वस्थ्य चिकित्सा, शिक्षा फ्री की बात को मुफ्त रेबड़ी बांटने की संज्ञा देकर गरीब को उससे भी वंचित रखना चाहते हैं। संसद में पूछे गये सवाल के जवाब में सरकार ने यह माना कि 10 लाख करोड़ का ऋण कुछ बड़े पूंजीपतियों को माफ कर दिया गया है। मुफ्त खैराती बांटने को कुछ स्वयम्भू अर्थशास्त्री देश को दिवालियेपन की ओर ले जाने का कुचक्र मानते हैं पर दस-ग्यारह लाख करोड़ का बकाया ऋण को भारत की इकोनॉमी को चुुस्त रखने के लिए प्राण वायु बताते हैं।
जिस देश का बचपन भूखा हो....!
सबसे दुर्भाग्यजनक बात यह है कि असमानता की बढ़ती खाई और देश के आर्थिक अधिनायकवाद के खतरे को कुछ बुद्धिजीवियों एवं बामपंथी विचारकों का प्रलाप मानकर उसकी ओर आंख मूंदें हुए हैं। 1969 में जब श्रीमती इन्दिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था, देश के बड़े मझले उद्यमियों ने एक स्वर में स्वागत किया था। व्यवसाय से जुड़े हुए सभी वर्ग के लोगों ने इस बात की सराहना की थी कि पूंजी का कुछ हाथों में रहना देश की अर्थव्यवस्था के लिये अच्छी बात नहीं है। जमींदारी प्रथा का उन्मूलन, लैंड सीलिंग एक्ट, बैंकों का राष्ट्रीयकरण जैसे कदम देश में औद्योगिक क्रान्ति लाने हेतु जरूरी था। इसके अच्छे परिणाम भी सामने आये। उद्योगों का जाल बिछा, बड़े दिग्गज कारखानों एवं लघु उद्योगों दोनों की समानान्तर प्रगति से पूंजी का धरातल विशाल हुआ।
इसके ठीक विपरीत पूंजी को फिर कुछ लोगों की तिजोरी में कैद करना सिर्फ लखु और मध्यम उद्यमियों के लिये ही नहीं बड़े उद्योगपतियों या यूं कहें उच्च मध्यम श्रेणी के लोगों को भी पूंजी बाजार से बाहर कर सकता है। भारत जैसे विकासशील देश में भारी उद्योग, एमएसएमई, सूक्ष्म व कुटीर उद्योग सभी के सह अस्तित्व को अर्थव्यवस्था में शामिल करना होगा वर्ना हमारी अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो सकती है।


नेवर जी क्षमा सहित , प्रथम दृष्टया आपकी बातें बहुत सही लगती हैं पर अर्थ शास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते बहुत कुछ गलत है। सिलसिलेवार उत्तर देना चाहूंगा।
ReplyDelete1. गौतम अडानी विश्व का तीसरा धनी व्यक्ति है , धनी होने का मापदंड होता है उसकी निजी संपत्ति । जो किनसे निजी शेयर जिन कंपनियों में हसीन उसके बाजार के मूल्य के अनुसार । NDTV के शेयर खरीदने के पश्चात NDTV के शायर में भारी उछाल आया और इससे अडानी की निजी संपत्ति भी बढ़ी। व्यवसाय में कहां कब निवेश करना है यह उद्योगपति के विवेक पर निर्भर करता है और उससे ही कमाई होती है। आज व्यवसाय 20 वर्ष पूर्व के तरीके से नहीं होता,ब्रिक्स और मोर्टाल कंपनियां सर्वाधिक नुकसान में हैं जिनकी ग्रोथ .6% तक चली गयी थी खभी नेगेटिव भी हो सकती है। अडानी कीअडानी विल्मर छोड़ कोई कंपनी उत्पादन में नहीं है सभी इंफ्रा में हैं।पत्रकार गहराई में झांक कर देखें तो पता चलेगा देश मे क्या चल रहा है किसान आंदोलन क्यों हुआ और क्यों फटाफट किसान बिल वापस लिया गया। और कैसे अनाज के खास कर गेहूं और दलहन के दाम बढ़े इस पर विचार कीजिये।
2. उद्योग पतियों का ऋण मेफी किया गया यह एक बकवास है रिन मेफी किया ही नहीं जा सकता उसके लिए संसद में प्रस्ताव लेकर बहुमत से पास करना होता है जैसे किसान ऋण माफ किया गया। एकाउंटिंग के तरीके में जो बेड लोआन होते हैं उसे क्रमवार बैलेंस शीट में डूबतदिखाते हैं इसका मतलब माफ नहीं होता। मार जय कोई तो बेटे तक से वसूल सकते हैं डूबत का पैसा और जिन पर जोर चलता है उस पर यह अन्याय होता भी है।
3 मुफ्त राशन या कोई भी वस्तु मुफ्त देना अच्छे आर्थिक निर्णय नहीं पर कोरोना काल मे 80 करोड़ लोगों को दोनो समय का भोजन देने का निर्णय उचित था इसकी सराहना सभी ने की। हमारे देश मे अनं भंडारण की सुविधा नहीं है और अन्न आवश्यकता से अधिक है ऐसे में सड़ता है तो इसका सदुपयोग इससे अच्छा क्या होगा कि जरूरत मन्दों को दिया जाय।
बातें बहुत हैं कितना लिखा जाए।