आनन्दलोक से ''देव-वाणी''
झूठ बोलता हूं- झूठ के सिवा कुछ नहीं बोलता हूं
आनन्दलोक के प्राण पुरुष देव कुमार सराफ ने जैसा कि वे पहले भी करते रहे हैं मारवाड़ी समाज और बुद्धिजीवियों पर कीचड़ फेंकने के लिए समाचारपत्रों में करोड़ों रुपयों के विज्ञापन छपा कर अपने झूठे अहम् को पोष रहे हैं। सराफ जी ने मेरा नाम लिये बिना गत रविवार 21 अगस्त को मेरे द्वारा रविवारीय चिन्तन में सराफ जी के झूठ एवं घोटाले का पर्दाफाश करने के बाद बौखलाहट में 25 अगस्त को अखबारों में फुल पेज विज्ञापन देकर अपने विकारों एवं दुष्चिन्ताओं की भड़ांस निकाली है। हालांकि उसमें कोई नयी बात नहीं है पर पहली बार उन्होंने मेरी पत्रकारिता के प्रति निष्ठ पर जो सवाल खड़े किये हैं उस पर एक दो बातें बता देनी जरूरी है। छपते छपते ने अपने प्रकाशन में विगत 50 वर्षों में पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखा है। समाचारपत्र सम्पादकों के सबसे पुराने एवं सबसे बड़े संगठन अखिल भारतीय समाचारपत्र सम्पादक सम्मेलन का गत 6 वर्षों से मैं प्रधान सचिव हूं। भारत सरकार की पत्रकार मान्यता समिति का दोबार सदस्य मनोनीत किया जा चुका हूं। प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया जो संसद के विशेष अधिनियम द्वारा गठित प्रेस स्वतंत्रता की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था है का तीन-तीन बार सदस्य रहा हूं। जस्टिस सरकारिया, जस्टिस जी. एन. राय, जस्टिस सावंत एवं जस्टिस मार्कण्डेय काटजू के साथ प्रेस काउन्सिल में उनकी चेयरमैनशिप में काम करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है। ये चारों सज्जन सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं। कई अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका हूं। यह सब मैं आत्म प्रशंसा के लिये नहीं बल्कि डी के सराफ या उनके दो चार दरबारियों की जानकारी के लिये लिख रहा हूं क्योंकि गत विज्ञापन में ही उन्होंने मुझे वह गन्दी मछली बताया है जो पूरी पत्रकारिता को दूषित कर सकती है। मुझे डी के सराफ जैसे दम्भी और धनी लोगों से चन्दा लेकर अपने झूठ का ढोल पीटने वाले देव कुमार सराफ से किसी सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं। मेरे समाचारपत्र में आनन्दलोक के विज्ञापन छपते थे फिर बन्द क्यों हुए? चलिये इसका भी खुलासा कर देता हूं। सराफ जी ने जब आनन्दलोक के नाम पर जगद्गुरु शंकराचार्य एवं मारवाड़ी समाज के विरुद्ध विषवमन करना शुरू किया, मैंने सराफ को साफ कह दिया था कि इस तरह के विज्ञापन मेरे अखबार में नहीं छप सकते। किसी भी धर्मगुरु एवं समाज को गाली गलौच वाले विज्ञापन को मैंने ठुकराये हैं वर्ना आनन्दलोक के विज्ञापन पहले की तरह मेरे अखबार में भी छपते। खैर सराफ के विज्ञापन लाखों की संख्या में छपने वाले अखबारों में प्रकाशित होते होंगे, लेकिन दु:ख की बात है कि 25 अगस्त को अखबारों में छपे विज्ञापन में डीके सराफ ने खुद माना है कि-''.....मैं कहीं जाता भी नहीं हूं और मुझे कोई चंदा देता भी नहीं।....'' उनकी यह वेदना सही है कि अब सराफ कहीं जाने लायक नहीं रहे हैं, अपने हास्यास्पद एवं गाली गलौच वाले उलूल जलूल विज्ञापन का यही असर है कि डीके सराफ अब कहीं जाने लायक नहीं हैं। लोग उनको देख कर हंसते हैं, तरह-तरह की बात करते हैं। सच्ची बात तो यह है कि कहीं चन्दा मिलने की जरा सी उम्मीद होती है वे किसी के कन्धे का सहारा लेकर भी चल पड़ते हैं, लेकिन उन्हें चंदा नहीं मिल रहा है।
सराफ जी जब किसी पर सवाल उठाते हैं तो मुझे बंगला की एक लोकप्रिय कहावत याद आ जाती है जिसका हिन्दी में अर्थ होता है-''हजारों छेद वाली छलनी, शरीर में एक छेद वाली सूई को देख कर उसका मजाक उड़ाती है।''
सभी लोग जानते हैं कि डी के सराफ कपड़े ही सफेद नहीं पहनते उनके सारे दावे भी सफेद झूठ हैं। बहुत से लोग हैं जो उनसे कहीं ज्यादा और कई गुना ज्यादा सेवा का काम करते हैं- फर्क सिर्फ इतना है कि वे देवकुमार जी की तरह सफेद झूठ नहीं बोलते।
सराफ जी के सारे दावे झूठ के पुलिन्दे हैं। सराफ उन सारे विज्ञापनों में किये गये दावे को चार्टर्ड एकाउन्टंट इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया की ईस्टर्न इंडिया रिजनल काउंसिल जो सीए प्रोफेशन की सबसे बड़ी प्रतिनिधि संस्था है के अध्यक्ष श्री रवि पटवा सीए स्वयं या उनके द्वारा मनोनीत किसी भी सीए के सामने सारे दस्तावेज एवं झूठे दावों का पुलिन्दा लेकर आ जायें - मैं उनके सभी दावों को उन्हीं के कागजातों एवं दस्तावेजों से प्रमाणित कर दूंगा कि वे सिर्फ झूठे हैं एवं झूठ के सिवा कुछ नहीं है। उन्होंने शुरू में जरूर अच्छा काम किया और कई लोगों ने उनकी मदद की लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वे सिर्फ लोगों की आंखों में धूल झोंक कर मूर्ख बनाने के अलावा कुछ नहीं करते। जिन कुछ बड़े उदारमना उद्योगपदियों ने उनको मोटा चन्दा दिया, आज उनके यहां देवकुमार सराफ की ''नो एंट्री'' है।
आनन्दलोक का शर्मनाक झूठ उनके 25 अगस्त के विज्ञापन में पढिय़े। वे लिखते हैं- आनन्दलोक ने दावा किया कि उसने 18000 झोपडिय़ं को तोड़कर ग्रामीण-भाइयों के लिए पक्के मकान बनाकर दिये। इस सत्य को स्वयं भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक में स्वीकार किया है। आप स्वयं समझ सकते हैं कि राष्ट्रपति का स्वीकार करने का मतलब District Magistrate Label में Check हुई है। पुस्तक में मकान की संख्या, मालिक का नाम एवं पूरा विवरण दिया गया है। इस तरह की झूठ लिखकर वे किसको मूख बना रहे हैं। इस ढ़पोलसंख को इतना साधारण ज्ञान भी नहीं है कि राष्ट्रपति संविधान का सर्वोच्च व्यक्ति हैं- यह उसका दायित्व नहीं है कि सराफ के झूठे तथ्यों को स्वीकार या अस्वीकार करें। सराफ इसका प्रमाण दें कि किस राष्ट्रपति ने उनके इन ''झूठ'' तथ्यों को स्वीकार किया है। उनका इशारा किस तरफ है, मैं जानता हूं। देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आप जैसे मामूली हैसियत वाले को कीचड़ उछालने का कोई अधिकार नहीं है। कानून एवं भारत के संविधान को इस तरह कंलकित मत कीजिये। मैं चुनौती दे रहा हूं कि आपके चेयरमैन अरुण पोद्दार जी ही प्रमाणित कर दें कि भारत के राष्ट्रपति ने आनन्दलोक के पक्के मकान वाले आंकड़ों को प्रमाणित किया है।
देव कुमार सराफ झूठ के सहारे महान समाजसेवी बनने का प्रपंच रचने की कोशिश कर रहे हैं। मारवाड़ी समाज जिसके चन्दे से आनन्दलोक बना उसी समाज को रात-दिन गाली बकते हैं - अपनी शर्मनाक हरकतों पर प्रायश्चित करने के बजाय धर्मगुरुओं के लिए ओछी बातें लिखने वाले इस व्यक्ति ने भारी भरकम रेकार्ड तोड़ विज्ञापनों पर आनन्दलोक के करोड़ों रुपये स्वाहा कर दिये जिनसे हजारों मरीजों की मुफ्त सेवा हो सकती थी। अपना ढोल तो पीटते ही हैं - दूसरी हर संस्था एवं समाज सेवकों को अपनी मन्द बुद्धि से तीखा व्यग्य करते हैं - बुद्धिजीवियों को गाली देते हैं। भागवत का आयोजन करने वालों को गाली देते हैं पर बाद में खुद ने भागवत कथा आयोजन करवा कर थूक चाट लिया। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए काला धब्बा है। समाज सेवा की चादर ओढ़े ऐसे तथाकथित सेवक को मैं चुनौती देता हूं कि वह विज्ञापनों में किये गये ''स्टन्ट'' को साबित करे। मेरे पास वे सारे आंकड़े हैं जो देकुमार के झूठे दावों की हवा निकालने के लिए काफी है।
राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद को तो अपनी झूठ में मत
लपेटिये दे.कु. उर्फ फें.कु. सराफ जी
अरुण पोद्दार
झूठ की सारी सरहदें पार हो गयी जब देवकुमार सराफ ने 25 अगस्त 2022 के कुछ समाचारपत्रों में विज्ञापन में यह छपवाने की धृष्टता की-
''आनन्दलोक ने दावा किया कि उसने 18,000 झोपडिय़ां तोड़कर ग्रामीण-भाइयों के लिए पक्के मकान बना कर दिये। इस सत्य को स्वयं भारत के महामहिम राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक में स्वीकार किया है। आप स्वंय समझ सकते हैं कि राष्ट्रपति के स्वीकार करने का मतलब District Magistrate Label में Check हुई है। पुस्तक में मकान की संख्या, मालिक का नाम एवं पूरा विवरण दिया गया है।
-सराफ जी आप किसको मूर्ख बना रहे हैं? किस राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक में स्वीकार किया है। कम से कम देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे महामहिम को तो बख्श दीजिये अपने झूठे दावों से। मैं चुनौती देता हूं कि आप राष्ट्रपति महामहिम की वह पुस्तक दिखाइये जिसमें आपके दावों को उन्होंने स्वीकार या उसकी पुष्टि की है। किसी राष्ट्रपति के साथ फोटो खिंचवाने या उन्हें कोई किताब या स्मारिका सौंपने का यह अर्थ कतई नहीं कि वे उसमें लिखी बातों से सहमत है।
मुझे दिखाने में शर्म आती है तो अपने चेयरमैन अरुण पोद्दार जी को ही दिखा दीजिए कि आप अपने विज्ञापनों में कितना झूठ बोलते हैं। साथ ही मैं यह चुनौती देता हूं कि आप दो हफ्तों में 18 हजार ग्रामीण भाइयों के नाम पते आदि जाहिर कीजिये जिनको आपने मकान बनाकर दिये हैं। वर्ना आपकी इस झूठ के लिये सार्वजनिक क्षमा याचना करनी होगी।
-विश्वम्भर नेवर, सम्पादक

अच्छा धोया सर!👌
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