अपनी मूर्खताओं पर इतराने वाले दुर्लभ प्रजाति व्यक्ति हैं डीके सराफ

अपनी मूर्खताओं पर इतराने वाले दुर्लभ प्रजाति व्यक्ति हैं डीके सराफ

आनन्दलोक के श्री देवकुमार सराफ स्वयम्भू समाजसेवियों में हैं। वे आनन्दलोक नाम की सेवा संस्था के 'वन मैन शो' हैं। यह सामाजिक संस्था सोसाइटी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत है लेकिन अपने किसी भी विज्ञापन या वार्षिक रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख नहीं करते हैं। सोसाइटीज अधिनियम के अन्तर्गत सामाजिक संस्था का विधिवत चुनाव होना आवश्यक है किन्तु किसी को नहीं पता कि इस संस्था का कभी चुनाव हुआ भी था क्या? अभी इस संस्था के चेयरमैन श्री अरुण पोद्दार हैं। पहले इस पद पर श्री ओमप्रकाश धानुका थे। उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और सराफ जी के बहुत मनाने पर भी नहीं माने। अरुण जी पोद्दार भी चेयरमैन बनने के कुछ समय बाद अलग हो गये पर सराफ जी ने हाथ-पांव जोड़ कर उन्हें मना लिया और विज्ञापन के माध्यम से अरुण जी के त्यागपत्र वापस लेने की जानकारी दी। इस संस्था के पदाधिकारी और कौन-कौन हैं इसका किसी को नहीं पता, कोई है भी या नहीं इसकी जानकारी भी किसी को नहीं है। हाल ही में उनकी 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। ग्लोसी आर्ट पेपर पर बहुरंगी मुद्रित इस कीमती पुस्तिका में सराफ जी के चार बेहतरीन चित्र हैं। इसमें आनन्दलोक के 11 ट्रस्टियों के फोटो भी हैं किन्तु आनन्दलोक के किसी पदाधिकारी या कार्यसमिति का फोटो तो दूर की बात, जिक्र भी नहीं है।

सराफ जी के बड़े भरकम विज्ञापन लगभग प्रतिदिन अखबारों में प्रकाशित होते हैं। जिस दिन नहीं छपते कुछ लोग सराफ जी को फोन करने की धृष्टता भी करते हैं कि आज आपका फोटो नहीं देख रहे हैं...। खैर इससे सराफ जी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि विज्ञापनों के माध्यम से आत्म प्रशंसा के पुल बांधना एवं दूसरों को गाली देना उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। विज्ञापनों में अपनी बीमार मानसिकता का ढोल पीटते हैं इसलिए आनन्दलोक के करोड़ों रुपये की इस अक्षम्य विलासिता के बाद भी लोग इसे नहीं पढ़ते। यही कारण है कि अभी हाल ही में सराफ जी ने भारत की आजादी की लड़ाई को ही खारिज करने का दु:सासह किया और स्वतंत्रता संग्राम में हजारों भारतवासियों की कुर्बानी को ही बेकार बता दिया। विगत 7 अगस्त को उनके द्वारा दिये गये विज्ञापन में सराफ जी ने स्वंतत्रता संग्रामियों को ललकारा और बंदूक उठाने का आह्वान किया। अपनी सनक में वे भूल गये कि हिंसा के लिए उकसाना गंभीर कानूनी अपराध है। यहां तक कह दिया कि हमें स्वतंत्रता नहीं चाहिये। वे लिखते हैं-'अपनी स्वतंत्रता वापस ले लो। हमें हमारी पराधीनता और मूल्य बोध लौटा दे।' सिने तारिका कंगना रानावत ने बड़बोलेपन में कहा था कि हमें आजादी भीख में मिली है। सराफ जी तो उससे भी चार कदम आगे निकल गये और भगत सिंह जैसे हजारों नौजवानों की कुर्बानी से मिली आजादी को ब्रिटिश हुकूमत को वापस करने की मांग कर डाली। इस विज्ञापन को पढ़कर कुछ लोगों ने कहा- सराफ जी पागल हो गये हैं क्या? लेकिन मैं उन्हें बताना चाहूंगा कि देवकुमार सराफ पागल नहीं हुए हैं क्योंकि पागलपन में भी आदमी इस तरह का राष्ट्रविरोधी वक्तव्य नहीं देता। दरअसल कुछ लोग होते हैं जो अपनी मूर्खताओं पर इतराते हैं। सराफ जी इसी दुर्लभ प्रजाति के व्यक्ति हैं। विज्ञापनों में उलूल जुलूल बातें लिखकर वे आत्ममुग्ध हो जाते हैं एवं अपनी पीठ खुद ही थपथपाते हैं।


डीके सराफ

इस विज्ञापन के बाद मैंने आनन्दलोक के चेयरमैन अरुण जी पोद्दार को एक पित्र लिखा कि इस तरह के विज्ञापन में कम से कम आपका चित्र नहीं होना चाहिये था क्योंकि आपके परिवार का जिस राजनीतिक दल से सम्बन्ध रहा है (पिता स्व. बद्रीप्रसाद पोद्दार एवं उनके अग्रज स्वनामधन्य स्व. आनन्दीलाल पोद्दार) उसने देश की आजादी के संग्राम का नेतृत्व किया था। दूसरे दिन ही श्री पोद्दार ने मुझे फोन करके कहा कि इस तरह के विज्ञापन अब नहीं छपेंगे। मैंने अरुण जी की बात को गम्भीरता से लिया। लेकिन सराफ जी की पूंछ टेढ़ी की टेढ़ी ही रही। 10 अगस्त को उन्होंने पहले वाले से भी बड़ा विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित करवाया। उन्होंने सुर्खियों में छपवाया 'मृत्यु स्वीकार कर लूंगा पर झूठ को झूठ ही बोलता रहूंगा।Ó उल्टे उन्होंने अरुण जी को ही नसीहत दी कि 'अरुण बाबू, हम इसी तरह गलत आदमियों को प्रश्रय देते रहेंगे, तो तबाही हुई क्या है अब देखिये- क्या-क्या होता है।....Ó राष्ट्रविरोधी एवं बेहूदगी वाले विज्ञापन को देखकर सराफ जी को कई लोगों ने जब लताड़ा तो अपने निकृष्ट एवं राष्ट्र विरोधी वक्तव्य पर लीपापोती करते हुए 11 अगस्त को फिर उन्होंने एक बड़ा सा विज्ञापन छपवाया जिसमें अपनी कुंठित राष्ट्रभक्ति का बयान करते हुए वे फिर अपनी असली औकात पर आ गये और विज्ञापन में लिखा....मुझे नहीं चाहिये ऐसी आजादी। मैं अंतिम सांस तक ऐसी धोखाधडिय़ों का पुरजोर विरोध करता रहूंगा, चाहे जो सजा मिले। सराफ जी उन तथाकथित संग्रामियों में हैं जो सिर्फ समाज द्वारा प्राप्त चन्दे के करोड़ों रुपये खर्च कर विज्ञपन में ही ताल ठोकते हैं एवं तलवार भांजते हैं।

मैंने प्रारम्भ में ही कहा कि डी के सराफ अपनी मूर्खताओं एवं बेहूदगियों पर इतराने वाले दुर्लभ प्राणी हैं। उनको पता नहीं क्यों गुमान है कि चिकित्सा जगत में उन्होंने क्रान्ति कर दी है। 10 रुपये में चश्मा, 45 हजार रुपये में बाइपास सर्जरी, गरीबों के लिये पक्के घर आदि आदि कई झूठ बयानी की पोल खोलने के लिये कोई उनकी बैलेंस शीट, वार्षिक रिपोर्ट एवं ढेर सारे छपने वाले प्रतिदिन विज्ञापनों को लेकर बैठ जाये तो पता लग जायेगा कि यह सब सफेद झूठ का पुलिन्दा है। उनका दावा है कि 11 हजार पक्के मकान बनवा दिये, जरा आपकी बैलेंस शीट मं इस पर हुए खर्च को दिखाइये। मैंने 17 अक्टूबर 2021 मोयना ग्राम पंचायत का वह पत्र प्रकाशित किया था जिसमें आनन्दपुर ग्राम में 90 मकानों की रिपोर्ट में मात्र एक मकान के अस्तित्व का पता चलने का जिक्र है। यही नहीं सराफ जी ने कितने मकान बनवाये उसके सम्बन्ध में उनके विभिन्न प्रकाशनो में अलग-अलग संख्या दी हुई है। इसी तरह उनके द्वारा आनन्दलोक को दिये गये दान के आंकड़े, साथ ही व्यक्तिगत ऋण आदि-आदि के परस्पर विरोधी दावे किये गये हैं। कोई भी सीए आगे आये तो मैं वे सभी झूठ का पर्दाफाश कर सकता हूं।

सराफ जी की विकृत मानसिकता का ज्वलन्त उदाहरण है 17 जनवरी 2020 के अखबारों में उनका दिया हुआ विज्ञापन जिसमें वे लिखते हैं- ठाकुर जी से (मैंने) अंतिम इच्छा प्रकट की कि मरणोपरान्त उन्हें मनुष्य योनि मत देना। किसी पशु की योनि दे देना पर भूल कर भी मनुष्य जीवन मत देना। सराफ जी अपनी हर बात विज्ञापनों में आनन्दलोक का पैसा खर्च करवा कर करते हैं। एक बार तो हद ही कर दी। एक विज्ञापन के माध्यम से सराफ जी ने यह प्रचारित किया कि उनके पास खाने के पैसे भी नहीं है। अभी श्री पवन धूत के साथ जमीन को लेकर विवाद हुआ। आमतौर पर जमीन के विवाद का हल आपसी बातचीत से होता है या फिर अदालत का दरवाजा खटखटाकर। सराफ जी ने लेकिन धूत जी के खिलाफ एक दो नहीं पन्द्रह-बीस बार विज्ञापन छपवा कर कई लाख रुपये फूंक डाले। अपने बारे में भ्रम पालने वाले सराफ को बता दें कि हाल ही में एक डाक्टर सुशोभन बनर्जी का स्वर्गवास हुआ जो एक रुपये में चिकित्सा करता था उसे 'एक रुपये का डाक्टरÓ के नाम से पुकारा जाता था। उनको पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया था। मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी, श्री विशुद्धानन्द अस्पताल (बड़तल्ला स्ट्रीट), श्री विशुद्धानन्द मारवाड़ी अस्पताल (अम्हस्र्ट स्ट्रीट), प्रेम मिलन एवं ऐसे कई संस्थान हैं जहां उचित दाम में इलाज होता है एवं नि:शुल्क चिकित्सा भी की जाती है। पुष्करलाल केडिया मारवाड़ी समाज के पुरोधाओं में थे जिन्होंने ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता तैयार किये जो आज कई सेवा संस्थाओं को बखूबी चला रहे हैं। जबकि डीके सराफ ने समाज द्वारा आनन्दलोक को दिये गये दान का एक बड़ा हिस्सा विज्ञापनों में खर्च कर एक शर्मनाक उदाहरण पेश किया। उनके द्वारा एक भी ऐसा कार्यकर्ता तैयार नहीं किया गया जो सराफ जी के बाद उनके अस्पतालों की देखभाल कर सके।

और अन्त में- आनन्दलोक के चेयरमैन अरुण पोद्दार जी एक उद्योगपति ही नहीं सुलझे हुए व्यक्ति भी हैं। कई लोगों को इस बात का अचरज है कि डीके सराफ जैसे घटिया मानसिकता एवं अपने को ब्रह्मा समझने वाले आत्म केन्द्रित व्यक्ति के साथ अरुण जी क्यों जुड़े हुए हैं। 

'कोई तो मजबूरी होगी वर्ना यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।'




Comments

Post a Comment