घर-घर तिरंगा - देशभक्ति के उमड़े ज्वार की नेपथ्य कथा

 घर-घर तिरंगा

देशभक्ति के उमड़े ज्वार की नेपथ्य कथा

स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों से ''हर घर तिरंगा अभियान का आह्वान किया है। इस अभियान के तहत पीएम मोदी ने सभी देशवासियों से 13 से 15 अगस्त तक अपने-अपने घरों में तिरंगा फहराने की अपील की है। पीएम की इस अपील का देशभर में जबर्दस्त क्रेज भी देखने को मिल रहा है। झंडों की दुकानों में खरीददारों की भारी भीड़ है। आजादी की 75वीं सालगिरह को खास बनाने के लिए भारत सरकार ''आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है और हर घर तिरंगा अभियान भी इसी महोत्सव का ही एक हिस्सा है। केन्द्रीय गृहमंत्री श्री अमित शाह ने देश के सभी मुख्यमंत्रियों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल और प्रशासकों के साथ आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इस अभियान की तैयारी को लेकर समीक्षा की है। प्रधानमंत्री का कहना है कि इस अभियान के पीछे लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जागृत करना है।


केन्द्रीय सरकार ने 15 अगस्त से 20 करोड़ घरों में जनभागीदारी से तिरंगा झंडा फहराने के लिए राष्ट्रीय अभियन हर घर तिरंगा अभियान पहल शुरु की है। केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज से जुड़े कुछ नियम निकाले हैं। कोई व्यक्ति इस नियम के अनुसार तिरंगा झंडा नहीं फहराता है, तब उन पर सख्त से सख्त कड़ी कार्रवाई भी हो सकती है। नियमानुसार झंडे का प्रयोग किसी व्यवसयिक उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिये। किसी व्यक्ति या वस्तु को सलामी देने के लिए भी झंडे को नहीं झुकाया जायेगा। झंडे का प्रयोग किसी भी पोशाक, वर्दी के रूप में नहीं किया जायेगा, साथ ही झंडे को रुमाल, तकिये या अन्य कपड़े पर नहीं छापा जायेगा। वगैरह...वगैरह...।

भारत के राष्ट्रीय ध्वज को सम्मान दिलाने के लिए सन् 2016 में सभी सिनेमा हॉलों को फीचर फिल्म शुरू होने के पहले राष्ट्रीय झंडे के साथ राष्ट्रगान बजाने का निर्देश दिया था। फिर राष्ट्रीय ध्वज के साथ राष्ट्रीयगान के प्रति सम्मान दिलाने के लिए खड़े होने को बाध्यतामूलक बनाया गया। इस पर न्यायाधीश चन्द्रचूड़ ने चुटकी लेते हुए कहा था कि अगली बार फिल्म दर्शकों को टीशर्ट या शॉट्स नहीं पहनने का आदेश हो सकता है क्योंकि यह राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगीत का अनादर होगा।

1962 में चीन युद्ध के पश्चात् देश में राष्ट्रभक्ति जगाने हेतु सिनेमाघरों में राष्ट्रीय गीत का रिकार्ड बजाना शुरू किया गया। उस वक्त यह आदेश या फरमान नहीं था, मात्र एक सलाह थी। सरकार के फरमान में लिखा था कि राज्य सरकारों से अनुरोध है कि सिनेमा घरों को इस बात के लिए राजी करें कि वे राष्ट्र गान का रिकार्ड बजवाना शुरू करें। सिनेमा के ''दी ऐंडÓÓ के बाद वैसे भी दर्शक खड़े हो जाते हैं। चीन से युद्ध में हमारी पराजय की निराशा से उबरने के लिये भारत सरकार ने यह कदम उठाया था।

युद्ध के दौरान देशभक्ति पूरे ज्वार की तरह उफनती है लेकिन युद्ध के बाद सब कुछ पहले की तरह होने लगता है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि लोग राष्ट्रभक्ति को तिलांजलि दे देते हैं या वे राष्ट्रभक्ति शून्य हो जाते हैं। 1971 के बाद लम्बे समय तक कोई युद्ध नहीं लडऩा पड़ा था, इसलिए स्वत: यह व्यवस्था प्राकृतिक रूप से लुप्त हो गयी।

आजादी के पचास वर्ष यानि स्वर्ण जयन्ती 1997 में बड़े धूमधाम से मनायी गयी पर देशभक्ति का इतना बड़ा जज्बा नहीं देखा गया। रस्मी तौर पर पचास वर्ष का जश्न मनाया गया। देशप्रेम को उमडऩे-घुमडऩे के लिये कोई सरकारी आदेश नहीं था परामर्श नहीं दिया गया। देश प्रेम तो फिर भी था। अब 75 वर्ष आते-आते राष्ट्रीय झंडे को घर-घर फहराने के लिए जबर्दस्त अभियान को आवश्यक समझा गया। वैसे देखा गया है कि हर वर्ष पन्द्रह अगस्त के दिन अमूमन घर-घर राष्ट्रीय झंडा फहराया जाता है। मकान की छतों पर हो या सार्वजनिक स्थलों पर या अपने वाहनों पर तिरंगा रस्मी तौर पर फहराना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। बच्चे झंडा लेकर इधर-उधर बड़े उत्साह के साथ घूमते फिरते हैं। स्कूल, कॉलेज के प्रांगण हों या सरकारी या निजी प्रतिष्ठान, पार्क आदि पन्द्रह अगस्त को देश राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत दिखाई देता है। फिर हमारी केन्द्रीय सरकार ने 13 से 15 अगस्त यानि तीन दिवसीय अभियान के पीछे क्या केमेस्ट्री है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी को प्रादुर्भाव किया। लेकिन देश के स्वतंत्रता संग्राम एवं राष्ट्र को परतंत्रता की बेडिय़ों से मुक्त कराने हेतु जो संग्राम चला उसमें संघ परिवार की कोई भूमिका नहीं थी। इसके लिए गाहे-बगाहे भाजपा को ताने भी सुनने पड़ते हैं। विपक्ष के तीर चलते रहे। स्वतंत्रता संग्राम से पूर्णतया निर्लिप्त एवं विमुख होने के जवाब में उन्हें नि:शब्द ही रहना पड़ता है। संभव है इसके प्रायश्चित के रूप में या उन पुरानी कचोटती बेवफाई के दर्द को छिपाने की यह उनकी रणनीति हो। 1947 में आरएसएस के मुखपत्र आर्गनाइजर ने कहा था कि राष्ट्रीय तिरंगे का ''हिन्दू कभी भी सम्मान नहीं करेंगे क्योंकि तीन रंग अपने आप में एक अपशकुन है।ÓÓ तीन अंकों का टोटका देश के लिए हानिकारक बताया गया। हालांकि यह तर्क धर्मसंगत नहीं था क्योंकि हिन्दू धर्म में तीन देवता-ब्रह्मा, विष्णु महेश माने जेते हैं। आरएसएस ने हमेशा राष्ट्रीय तिरंगे पर भगवा ध्वज का समर्थन किया जो हिन्दू धर्म का प्रतीक माना जाता है। सरदार पटेल ने महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। गोलवलकर जी की गुहार के बाद एवं संघ के राजनीति से अपने को दूर रखने की शपथ लेने के पश्चात् यह बैन उठाया गया। भारत के संविधान और राष्ट्रीय झंडे के प्रति निष्ठा की बात माननी पड़ी। इस परिप्रेक्ष्य में आजादी के 75 साल बाद घर घर तिरंगे का अभियान की ताशीर में यह पीड़ा पल रही थी। तिरंगा फहराने के अभियान में पुराने नियम को खारिज कर दिया कि राष्ट्रीय ध्वज हमेशा खादी से बना होता है। खादी को बढ़ावा देने के लिये यह कानून बनाया गया था ताकि, ग्रामीण उद्योग को प्रोत्साहित किया जा सके जो गांधी का सपना भी था।

मोदी सरकार ने सस्ते पॉलिएस्टर से बने तिरंगे को लोकप्रिय बनाने के पीछे कहीं मोदी के ही गृह राज्य में इसके सर्वाधिक उत्पादन को सहारा देना तो नहीं है? जो भी हो देश का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा घर-घर फहरे यह हर भारतीय चाहता है इसमें दो राय नहीं है।




Comments

  1. समय समय जनता में देशभक्ति का जज्बा भरने के लिए ऐसे प्रयास किया जाना चाहिए जिससे वो स्वयं ही अगली बार प्रयास करें

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