द्रौपदी मुर्मू को रबर स्टाम्प राष्ट्रपति बनने से बचाया जा सकता था

द्रौपदी मुर्मू को रबर स्टाम्प राष्ट्रपति बनने से बचाया जा सकता था

यह तय है कि आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू भारत की 15वीं राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। 18 जुलाई को निर्वाचन होगा और 21 जुलाई तक इसका फैसला हो जायेगा। भारत एक संसदीय जनतांत्रिक देश है जिसमें बहुमत से फैसला होता है। संविधान में यह नहीं लिखा है कि सर्वसम्मत से निर्णय नहीं लिये जायेंगे। बल्कि होना यह चाहिये कि राष्ट्र के व्यापक हित के मामलों में पार्टियां सर्वसम्मत होकर निर्णय ले। ऐसे बहुत से ज्वलन्त मुद्दे हैं जहां सर्वसम्मति असम्भव नहीं है। लेकिन इसके लिए ऐसा पाक-साफ नेतृत्व चाहिये जिसके बारे में राजनीतिक मतभेदों के बावजूद भरोसा किया जा सके। राष्ट्रपति का चुनाव इस तरह के मुद्दों में एक है। राष्ट्रपति राजनीति से ऊपर उठकर अपना काम करता है। संसद में बहस और वोटिंग के बाद पारित विधेयकपर राष्ट्रपति की मोहर लगती है। वह विधेयक को सिर्फ पुनर्विचार हेतु वापस भेज सकता है। अर्थात् राष्ट्रपति चुचने हुए सांसदों की परामर्श का सम्मान करने के लिये प्रतिबद्ध है। फिर ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि सभी पार्टियां मिलकर कोई ऐसे व्यक्ति को चुने जो सर्वमान्य हो। हां, इसकी पहल लेकिन उस राजनीतिक दल को करनी चाहिये जो सत्ता में है।


द्रौपदी मुर्मू दूसरी महिला राष्ट्रपति लेकिन पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होंगी। झारखंड के राज्यपाल के रूप में वे किसी विवाद में नहीं उलझीं। मोटा मोटी तौर पर झारखंड में सभी राजनीतिक पार्टियों का भरोसा उन पर था। उनका महिला होना और उस पर आदिवासी होना ये दोनों उनके अति विशिष्ट होने का आधार हैं। राष्ट्रपति पद पर वे सिर्फ नीलम संजीव रेड्डी को छोड़कर सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति बनेंगी। विपक्ष ने कई नामों को आगे किया लेकिन गणित की कसौटी पर हार के डर से उन्होंने स्वीकृति नहीं दी हालांकि गोपाल कृष्ण गांधी, फारुख अब्दुल्ला, शरद पवार सभी इस पद की गरिमा बढ़ा सकते थे। यशवंत सिन्हा भी देश के सर्वोच्च संवैधानिक पीठ पर बैठने के योग्य हैं। वे देश के वित्त मंत्री रह चुके हैं, विदेश जैसे संवेदनशील मंत्रालय भी सम्हाल चुके हैं। आईएएस अधिकारी रहे हैं, परिणामस्वरूप प्रशासनिक दक्षता भी उनमें है। अटल जी के मंत्रिमंडल में वे एक योग्य मंत्री के रूप में जाने जाते थे। श्री चन्द्रशेखर के मंत्रिमंडल में भी अपनी कुशलता का यशवन्त जी ने परिचय दिया था। द्रौपदी मुर्मू में ये सारी बातें नहीं है। उनकी जीवन की कहानी बहुत ही लोमहर्षक है। वे बेहद गरीब आदिवासी परिवार में पैता हुई। झोपड़ी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक का उनका सफर अति प्रेरणादायक एवं रोमांचक होगा। राष्ट्रपति के रूप में वे निश्चित रूप से भारत के लिये गौरवपूर्ण इतिहास की साक्षी बनेंगी।

राष्ट्रपति चुनाव की जब सरगर्मी शुरू हुई तो सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी या प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं थे। पिछली बार राष्ट्रपति चुनाव के समय कई नामों पर कयास लगाये गये किन्तु अंत में मोदी जी ने तुरुप का पत्ता खोलकर सबको आश्चर्य में डाल दिया। इस बार भी धारणा थी कि प्रधानमंत्री अंतोतगत्वा कोई ऐसा नाम आगे करेंगे जो चर्चाओं के बाहर हों।

झारखंड की पूर्व राज्यपाल, उड़ीसा के दूरदराज की आदिवासी महिला के नाम पर शासक दल को सर्वसम्मति बनाने की कोशिश करनी चाहिये थी। विपक्ष द्रौपदी मुर्मू के नाम का विरोध इसलिए भी नहीं करता क्योंकि वे आदिवासी हैं। सभी प्रान्तों में आदिवासी समाज के लोग रहते हैं। विभिन्न अंचलों में उन्हें अलग-अलग नाम से जाना जाता है। प. बंगाल, बिहार में वे संथाल कहलाते हैं तो दक्षिण पश्चिमी हिस्सों- महाराष्ट्र, गुजरात आदि में उन्हें भील कहा जाता है। भारत में दुनिया के सर्वाधिक भांति के आदिवासी हैं। उनके नाम पर सभी पार्टियों का हित सधता था।

भाजपा ने रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष श्री जे पी नड्डा को यह भार दिया कि वे अन्य दलों से बात कर सर्वसम्मति चुनाव का प्रयास करें। मुर्मू के नाम पर नवीन पटनायक न सिर्फ सहमत थे बल्कि उत्साही भी थे। अगर राजनाथ सिंह और नवीन पटनायक को यह जिम्मेदारी दी गयी होती तो आसानी से काम बन सकता था।

ममता बनर्जी हालांकि विपक्ष में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सबसे अधिक सक्रिय थी किन्तु वह भी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करती। अब तो खैर शुक्रवार को उन्होंने कहा कि पहले नाम बताया होता तो उनके नाम पर हम विचार करते। टीएमसी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने यहां तक कहा कि द्रौपदी मुर्मू के नाम का सबसे पहले सुझाव उन्होंने ही दिया था। यही नहीं यशवन्त सिन्हा जब राष्ट्रपति पद हेतु नामांकन पेश करने गये तो ममता बनर्जी उनके साथ नहीं थी।

सभी दल मिलकर द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने की बात कोई ख्याली पुलाव नहीं ल्कि एक प्रबल सम्भावना थी। जब 1977 में संजीव रेड्डी को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति बनाया जा सकता था तो 2022 में मुर्मू को क्यों नहीं? जबकि रेड्डी का सबसे अधिक विरोध स्वयं श्रीमती इन्दिरा गांधी ने किया था। कांग्रेस के औपचारिक प्रार्थी होने के बावजूद श्रीमती गांधी ने वी वी गिरी को खड़ा कर एवं ''आत्मा की आवाजÓÓ के बल संजीव रेड्डी को हरा कर गिरी को राष्ट्रपति बनाने का इतिहास रचा। राजनाथ सिंह से विपक्ष ने पूछा कि उनका प्रार्थी कौन है तो वे नि:शब्द थे। विपक्ष द्वारा यशवन्त सिन्हा की उम्मीदवारी घोषित करने के बाद सत्ता पक्ष ने द्रौपदी मुर्मू का पत्ता चला। स्पष्ट है कि भाजपा नहीं चाहती थी कि राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसम्मत हो ताकि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसका लाभ मिल सके। इस प्रक्रिया में देश एक ऐसे राष्ट्रपति के चुनाव से वंचित हो गया जो किसी दल का रबर स्टाम्प नहीं बनता। अब जिस प्रक्रिया से द्रौपदी मुर्मू देश के सबसे बड़े सिंहासन पर विराजमान होंगी उन्हें शासक वर्ग का ''यस मैनÓÓ बनना ही होगा।


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