काश! नूपुर शर्मा हिन्दू धर्म के मर्म को भी समझ लेती तो यह बवाल नहीं होता

 काश! नूपुर शर्मा हिन्दू धर्म के मर्म को भी समझ लेती तो यह बवाल नहीं होता

''बदनाम हुए तो क्या नाम ना होगा"- यह कहावत भारतीय जनता पार्टी से निष्कासित नूपुर शर्मा पर लागू होती है। कहने को नूपुर शर्मा भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता थीं, लेकिन उनकी पहचान कुछ खास नहीं थी। हां, यह अलग बात है कि वह टेलीविजन चैनलों पर डिबेट के दौरान भाजपा का पक्ष जोरदार ढंग से रखती है। आइये जानते हैं कि नूपुर शर्मा को, जिन्होंने अपने बयान से खुद को अर्श से फर्श पर पहुंचा दिया।


छात्र राजनीति में सक्रिय रही नूपुर शर्मा को बड़ी पहचान तब मिली, जब उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में आम आदमी पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल को टक्कर दी, तब उनकी पहचान राज्य स्तर के दिग्गज नेता के तौर बनी।
दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ की डिग्री हासिल करने वालीं नूपुर अपनी बात बड़ी बेबाकी से रखती हैं। नूपुर ने लंदन स्कूल आफ इकोनामिक्स के इंटरनेशनल बिजनेस ला में मास्टर्स किया है। 2011 में स्वदेश लौटीं नूपुर ने भारतीय जनता पार्टी में तेजी से जगह बनाई। वर्ष 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की मीडिया कमेटी में शामिल हुईं।
जोशीले अंदाज में अपनी बात रखने वालीं नूपुर शर्मा आधिकारिक तौर पर दिल्ली भाजपा की प्रवक्ता रही और फिर वर्ष 2020 में उन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता की जिम्मेदारी सौंपी गई। अपने बेबाक अंदाज के चलते ही नूपुर शर्मा ने टेलीविजन न्यूज चैनलों पर डिबेट के दौरान अपनी बातें जोरदार तरीके से रखीं। यूं तो पीएम नरेन्द्र मोदी की तारीफ भाजपा से जुड़ा नेता, विधायक और मंत्री सभी करते हैं, लेकिन नूपुर अपने खास अंदाज में तारीफ करती थीं। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी नूपूर शर्मा को शेरनी, बहादुर और निडर लड़ाका भी कह कर उसकी तारीफ कर चुके हैं।

नूपुर शर्मा ने इस बीच लगता है, इस्लाम के बारे में भी महारथ हासिल कर ली। वैसे भी भाजपा का सफल प्रवक्ता बनने के लिए इस्लामिक इतिहास से वाकिफ होना बहुत जरूरी होता है। इस जानकारी का उसने एक राष्ट्रीय टीवी चैनल की डिबेट में अपनी बेबाकी स्टाइल में प्रयोग कर लिया। नूपुर ने कह दिया कि इस्लाम धर्म के प्रोफेट ने नौ वर्ष की लड़की से शादी की थी। उसकी यह टिप्पणी दूर तक चली गयी। अरब देशों में व्यापक आक्रोश के बीच भारत को सफाई देनी पड़ी। विदेश मंत्रालय ने उसे व्यक्तिगत बयान बता कर कहा कि यह भारत सरकार की राय नहीं है। भारत की यात्रा पर आये ईरान के विदेश मंत्री के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सालहाकार अजित डोभाल की बैठक में ऐसी टिप्पणियां करने वालों पर कठोर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया गया। कार्रवाई के नाम पर नूपुर शर्मा को पार्टी प्रवक्ता पद से हटा दिया गया।
अब सारे प्रकरण पर निरंकुश ²ष्टि डाली जाये तो पहले सवाल उठता है कि भाजपा की प्रवक्ता तेज तर्रार उदीयमान नेता नूपुर ने पैगम्बर मोहम्मद पर जो टिप्पणी की क्या वह सच नहीं है? इस्लाम मजहब की जानकार नूपुर ने जो भी कहा उस पर इस्लामिक देशों का गुस्सा फूटा और भारत में कई जगह पर इस्लाम धर्मावलम्बियों ने उग्र प्रदर्शन किया। लेकिन क्या किसी मुसलमान ने यह कहा कि पैगम्बर के बारे में जो कहा गया गलत था। शायद नहीं। हां एक दो सिरफिरों ने नूपुर की जीभ काटकर तो किसी ने नूपुर का सिर काट कर लाने वाले को बड़ा ईनाम देने की घोषणा की। हालांकि ऐसे सिरफिरों एवं हिंसक तत्वों के विरुद्ध अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी शायद इसलिए कि ऐसे बड़बोलों की कोई अहमियत नहीं है। नूपुर शर्मा को पार्टी पद से हटा दिया गया, लेकिन प्रदर्शनकरियों ने यह मांग की कि नूपुर को गिरफ्तार किया जाना चाहिये।

नूपुर की टिप्पणी एक सच घटना है। लेकिन सच कहने वाली प्रवक्ता को फिर पद से हटाया क्यों गया? इसका जवाब भाजपा की आलाकमान ही दे सकता है। नूपुर शर्मा ने इस्लाम के पैगम्बर की सच्चाई उजागर की भले ही वह कड़वी क्यों न हो। फिर बवाल क्यों? उसे अपने पद से हाथ क्यों धोना पड़ा?

नूपुर ने इस्लाम मजहब की बारीकी से अध्ययन किया यह तो अच्छी बात है, इसके लिए नूपुर को बधाई। किसी भी धर्म के बारे में जानकारी बहुत अच्छी बात है। पर उसकी चूक यह हुई कि उसने हिन्दू धर्म या अपने सनातन धर्म की कुछ मूलभूत बातों की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक नहीं समझा।

मनु स्मृति के बारे में नूपुर की लगता है कोई जानकारी नहीं है। या उसने मनु स्मृति की जानकारी लेना उचित नहीं समझा। मनु स्मृति हिन्दुत्व का संस्कृत वाक्य है जिसके आधार पर हिन्दू धर्म की पूरी बुनियाद टिकी हुई है। मनु स्मृति का एक मूल सैद्धान्तिक वाक्य है- ''सत्यम ब्रूयात प्रियं बुयात, मा ब्रूयात सत्यम अप्रियम" यानि सत्य बोलो पर अप्रिय सत्य न बोलो। अप्रिय सत्य नहीं बोलना चाहिये।
नूपुर हिन्दुत्व की भी कुछ जानकारी प्राप्त कर लेती तो पैगम्बर के बारे में यह अप्रिय सत्य नहीं बोलती। अन्धे को हमारे यहां अन्धा नहीं कहा जाता। उसे सूरदास कह कर सत्य की रक्षा की जाती है। वैसे सभी धर्मों में चाहे वह इस्लाम हो या हिन्दू, ईसाई हो सिख हो या जैन, सभी धर्मों में बहुत सारे ऐसे तथ्य हैं जिनमें किसी दूसरे धर्मावलम्बी की टिप्पणी उचित नहीं है। बल्कि हम भी अपने धर्म की कुछ बातों को नहीं उजागर करते क्योंकि ऐसा करने पर किसी की भावना आहत हो सकती है।
इसीलिये धर्म का आधार तर्क नहीं आस्था माना गया है। पत्थर की पूजा होती है, हम भगवान मानते हैं। न माने तो वह पत्थर है। नूपुर की बस यही गलती है कि उसे अपने धर्म की मनुस्मृति के बारे में पता नहीं। अगर पता होता तो वह अप्रिय सत्य को एक राष्ट्रीय चैनल पर उजागर करने की धृष्टता नहीं करती।

हमारे देश की आज दुर्भाग्यजनक स्थिति है कि हिन्दुओं के एक बड़े वर्ग को पीड़ा है कि बहुसंख्यक होने के बावजूद उस पर हमले हो रहे हैं। दूसरी तरफ मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा मानता है कि इस्लाम खतरे में है। दोनों ही कौम के लोग परेशान हैं। इसका एक ही समाधान है कि लोग सोशल मीडिया से दूर रहें, टीवी चैनलों में धर्म पर आधारित बहस न देखें। अपने चारों और विभिन्न धर्म, जाति, भाषा भाषी लोगों पर नजर घुमायें तो उन्हें महसूस होगा कि दुनिया में सबसे शानदार देश में आप रहते हैं एवं इससे बेहतर कोई दूसरी व्यवस्था नहीं हो सकती।

Comments

  1. सत्य कहो लेकिन सारगर्भित अंदाज में ताकि सुनने वाला समझ भी जाए तथा आपके अंदाज से आपका कायल भी बन जाए.
    ऐसी विधा अटल जी चंद्रशेखर तथा अपने पुर्व नेताओं के पास थी. इसीलिए उदारवादी नेता कहलाते थे.
    दंगा एवं पंगा कब हो जाए कहना मुश्किल है

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  2. आपने शुश्री नुपुर को संयमित रहने की सलाह दी लेकिन उकसाने वाले मोलाना रहमानी के लिऐ एक शब्द नही बोला। रहमानी जी को समझना चाहिए कि जो आजादी आप को हिंदू धर्म पर टिप्पणी करने की है वही आजादी दुसरे को आपके संप्रदाय के लिए भी है। सत्य हमेशा सत्य ही होता है

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  3. नूपुर शर्मा ने जो कहा बिल्कुल उसी विषय पर सौ वर्ष इसी तरह का ववाल हो चुका है एवं कॉर्ट्सी गांधी जी महाशय राजपाल तक का कत्ल हो चुका है। रंगीला रसूल में भी यही बातें थी जिसे उस समय लाहौर कोर्ट ने कुछ गलत नहों लिखा कह कर कंप्लेंट खारिज कर दी थी। आज सबसे बड़ी गलती है जो भाजपा को इलुसके ही कार्यकर्ता से दूर कर रही यजी वह है भाजपा अपने लोगों के साथ खड़ी नहीं रहती। जो बात कड़वी है और नूपुर शरण ने कही वह बात आज भी अभी भी विकिपीडिया में ज्यों की त्यों लिखी है वे 57 डेढ़ विकिपीडिया से क्यों नहों हत्वायते। बात नूपुर शर्मा की नहीं वह तो मोहरा है खेल कुछ और यजी।

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  4. नुपूर शर्मा को अप्रिय सत्य बोलने से बचना चाहिए जबकि तथाकथित धर्माचार्यों, राजनीतिक नेताओं की अनगर्ल टिप्पणियों को चुपचाप झेलना चाहिए. तभी हम सहिष्णुता की परिभाषा को सार्थक करते हैं. क्यों? नुपूर शर्मा को पार्टी से निकालना व्यवहारिक मजबूरी है सैद्धांतिक नहीं

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