पैसे की खातिर नृशंस हत्या
क्या यह पारिवारिक हिंसा का ट्रेलर है?
कोलकाता के भवानीपुर में गुजराती दंपत्ति की हत्या के 72 घंटे के बाद कोलकाता पुलिस गुत्थी सुलझा पाई है हालांकि मुख्य आरोपी फरार है किन्तु घटना की मोटामोटी जानकारी का खुलासा हो गया है। गुजराती दंपत्ति अशोक शाह और उनकी पत्नी रश्मिता की निर्मम हत्या, जिसे कोलकाता डबल मर्डर केस कहा गया है, के मामले में पुलिस को आशंका है कि फ्लैट के सौदे को लेकर गुजराती दंपत्ति की हत्या की गई है। बता दें कि 6 जून को दोपहर के समय फ्लैट में आए हत्यारों ने तेज आवाज में टीवी चलाकर पॉइंट ब्लैंक रेंज से अशोक साह को पीछे से गोली मारी है। जबकि उनकी पत्नी को धारदार हथियार से मौत के घाट उतारा है। हत्यारे दंपत्ति का मोबाइल भी अपने साथ ले गए थे। सुबह लाल बाजार स्थित कोलकाता पुलिस मुख्यालय की ओर से बताया गया है कि उक्त मोबाइल फोन भवानीपुर से काफी दूर धर्मतल्ला के एक मैनहोल से बरामद कर लिया गया है।
मृत गुजराती दंपत्ति अशोक-रश्मिता शाह (फाईल फोटो)
पुलिस का कहना है कि उस पर मौजूद उंगलियों के निशान संरक्षित किए गए हैं और कॉल लिस्ट को भी खंगाला जा रहा है। खास बात यह है कि वारदात वाले दिन गुजराती दंपत्ति के आवासीय परिसर में लगा सीसीटीवी कैमरा काम नहीं कर रहा था। हालाकी सड़कों पर आसपास लगे 100 से अधिक कैमरे का फुटेज पुलिस देख रही है। करीब के एक सीसीटीवी कैमरे में कुछ गतिविधियां नजर आई हैं।
पुलिस दंपत्ति के घर काम करने वाली नौकरानी समेत कुछ रिश्तेदारों से भी पूछताछ कर चुकी है। पुलिस ने बताया है कि जिस कमरे में अशोक शाह को गोली मारी गई है वहां डाइनिंग टेबल पर पानी से भरे दो ग्लास और चाय के खाली कप मिले हैं। यानी वारदात को अंजाम देने वाले लोग गुजराती दंपत्ति से परिचित थे। हत्या से पहले उन लोगों की अशोक के साथ काफी धक्का-मुक्की और हाथापाई भी हुई है। साइलेंसर लगाकर उन्होंने गोली मारी है और आवाज को दबाने के लिए तेज आवाज में टीवी भी चला दी थी। हत्या की घटना के बाद वे घर से कुछ गहने और करीब 40 हजार रुपये नगद ले गए हैं। हालांकि कई अन्य महंगे आभूषण वहां अभी भी पड़े हुए हैं। इसलिए अंदाजा लगाया जा रहा है कि हत्यारे पुलिस को चकमा देने के लिए गहना ले गए हैं ताकि लूट के लिए हत्या का संदेह हो।
प्रारंभिक जांच में पता चला है कि अशोक साह अपना फ्लैट 60 लाख रुपये में बेचने के लिए तैयार हो गए थे। इसके लिए उन्होंने खरीददार से एक लाख रुपये का डाउन पेमेंट भी ले लिया था। संपत्ति की चाबी जिस स्टील की अलमारी में रहती थी उसे भी तोडऩे की कोशिश हत्यारों ने की है लेकिन सफल नहीं हो पाए हैं। इसीलिए अंदाजा लगाया जा रहा है कि संपत्ति के लिए ही दंपति की हत्या हुई है। उल्लेखनीय है कि वारदात के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने फोन कर पुलिस आयुक्त को मौके पर भेजा था और जल्द से जल्द हत्यारों को पकडऩे का आदेश भी दिया है।
घटना की नजाकत यह है कि हरीश मुखर्जी रोड मुख्यमंत्री के घर के पास है। यही नहीं यह ममता जी का चुनाव क्षेत्र भी है। ममता की भाभी इसी वार्ड से कार्पोरेशन में पार्षद भी हैं। अत: इस घटना को लेकर विरोधी, इसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करेंगे। और ऐसा हुआ भी। संयोग से मुख्य विरोधी दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोलकाता दौरे पर थे और उन्होंने बयान दिया कि बंगाल में मात्र सिंडिकेट का राज है, कानून का नहीं। खैर यह एक राजनीतिक बयानबाजी है जिसका तृणमूल ने राजनीतिक जवाब भी दिया किन्तु आम आदमी के दिल और दिमाग में यह हलचल थी कि घटना मुख्यमंत्री के इलाके में हुई है। जब मुख्यमंत्री का इलाका ही सुरक्षित नहीं तो आम आदमी का क्या हस्र होगा आदि आदि कानाफूसी हुई और सोशल मीडिया पर इस तरह के तर्कों को प्रचार भाजन बनाया गया।
अशोक शाह एक गुजराती व्यापारी है। व्यापारी समाज आम तौरपर धर्मभीरू भी होता है और झंझट झमेला से दूर रह कर शांति से रहना चाहता है। 1980-82 के आसपास दो लाख से अधिक गुजराती समाज के लोग इस महानगर में वास करते थे। पूरा भवानीपुर इलाका एवं बड़ाबाजार से हटा हुआ अमरतल्ला और अर्मेनियन स्ट्रीट गुजराती परिवारों का गढ़ था। सभी जानते हैं कि गुजराती मारवाडिय़ों की तरह शांतिप्रिय होते हैं। वे व्यापार में लाभ-नुकसान से ऊपर उठकर किसी तरह की अशांति से दूर रहते हैं। गुजरातियों ने भी जहां व्यवसायिक अवसर देखे वहां बस गये। बड़ी संख्या में गुजराती समाज के लोग यूरोप, अमेरिका में भी बसे हुए हैं। मुम्बई शहर पर तो महाराष्ट्र के स्थानीय लोगों पर भी गुजराती भारी हैं। कोलकाता छोड़कर वे वापस गुजरात नहीं गये अपितु भारत के अनेक हिस्सों में जाकर अपना कारोबार स्थापित किया। लेकिन भवानीपुर की घटना ने हमारी अब तक की धारणाओं में सेंध लगा दी। 1 लाख रुपये के लिये किसी की नृशंस हत्या पर अब भी विश्वास नहीं होता। व्यापारी अपनी कमाई के लिये तिकड़म करता है, यह सर्वविदित है। कानूनी छिद्रों का फायदा भी उठाता है। कभी-कभी कानून को ताक पर रख कर नोट गिनने में उसे हिचकिचाहट नहीं होती है। किन्तु अपराध जगत में अपनी हाई प्रोफाइल को अंजाम देने की कभी कल्पना भी नहीं की। पिछले कुछ समय में इस तरह की घटनायें बढ़ रही हैं कि पुत्र ने सम्पत्ति के लिये मां-बाप की हत्या कर दी या करवा दी। प्रॉपर्टी के लिये मां को मौत के घाट उतार दिया ऐसे घृणित घटनायें अब अपवाद नहीं रही। अखबार के पन्ने उलटिये इस तरह की शर्मनाक वारदातें पढऩे को मिलेंगी। अपने वृद्ध मां-बाप को ओल्ड एज होम में भर्ती कर दुनिया के किसी देश में बसना तो बड़ी आम बात हो गयी है। किन्तु घृणित अपराध को अंजाम देकर अपने माता-पिता को रास्ते से हटाने जैसे अविश्वसनीय घटनायें भी हो रही हैं। कभी पैसा साधन था, जीवन बसर करने का। अब पैसा साध्य हो गया है। यानि येन केन प्रकारेण पैसा चाहिये। क्या विडम्बना है कि व्यवसायी समाज चाहे वह गुजराती हो या मारवाड़ी या कोई समाज का, में धार्मिक आचरण तो बढ़ गया है। धार्मिक अनुष्ठान, भागवत कथामृत में व्यवसायी समाज के लोग ही सर्वाधिक आग्रही हैं किन्तु हमारी नैतिकता की एक झांकी है भवानीपुर की घटना जिसमें पारिवारिक आत्मीय व्यक्ति ही नृशंस हत्या का मास्टर माइंड निकला। कभी दस बड़े औद्योगिक घरानों में 6 मारवाड़ी, 3 गुजराती थे और एकाध ही इनसे अलग था अब मारवाड़ी घराना मात्र एक या दो रह गये हैं, गुजरातियों की संख्या बढ़ी है। एक गुजराती भाई तो ''विश्व विजयÓÓ के लिये निकल पड़ा है और उसे राजा की शह मिली हुई है इसलिए उसका अश्वमेध का घोड़ा रुकने वाला नहीं है। उद्योग बढ़े, व्यवसाय फैले, पैसा कमाये तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है किन्तु भवानीपुर जैसी घटना ने हमारी नैतिकता को इस तरह झकझोर दिया है जिसके लिये शायद हमारी भावी पीढ़ी भी हमें क्षमा नहीं करेगी। बढ़ते हुए घृणित अपराध एवं पारिवारिक हिंसा हमारी सदियों से बनी छवि को कितना विकृत करेगी, कहा नहीं जा सकता. नयी पीढ़ी को इस बारे में जरूर सोचना चाहिये। अभी कुछ घटनायों हे रही हैं, इनमें बेलगाम वृद्धि चिन्ता का विषय है।
Dardnak
ReplyDeleteचिन्तन मनन करने योग्य आलेख।
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