धर्म के बाद अब भाषा के नाम पर बांटने की कोशिश
भाषा है सांस्कृतिक बन्धन
हिन्दी है महागठबन्धन
भारत के गृहमंत्री श्री अमित शाह ने हाल ही में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने एवं हिन्दी में कामकाज की पेशकश की थी। वैसे भारत के संविधान के आठवें अनुच्छेद में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। राजभाषा यानि सेतु भाषा। भारत में विभिन्न भाषायें बोली जाती है। यही नहीं हमारे यहां भाषा के आधार पर प्रान्तों का गठन हुआ था ताकि सभी भारतीय भाषाओं को पनपने एवं पुष्पित-पल्लवित होने का अवसर मिले। भारतीय भाषाओं के बीच एक जोडऩे वाली कड़ी या सेतु भाषा भी होनी चाहिये जो अन्तर्भाषियों को सांस्कृतिक रूप से जोडऩे का काम कर सके। इसका स्थान हिन्दी ही ले सकती थी। हिन्दी न सिर्फ सरल एवं जैसा बोली जाती है, वैसी ही लिखी जाती है, बल्कि भारत में सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। देश के स्वतंत्रता संग्राम को भी हिन्दी को माध्यम बनाकर ही लड़ा गया था। आजादी की अलख जगाने हेतु राष्ट्र के मनीषियों ने हिन्दी में ही व्याख्यान देकर माहौल बनाया था। महात्मा गांधी से लेकर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस सभी के भाषण हिन्दी में ही स्वतंत्रता संग्राम का पाथेय बने।
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत को एक खुशहाल, जनतांत्रिक एवं प्रगतिशील देश बनाने हेतु भी अंग्रेजी के साथ हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में कामकाज करने का आह्वान किया गया। धीरे-धीरे अंग्रेजी का स्थान हिन्दी ले ले, इसके लिये कार्य करने की सरकारी घोषणाएँ की गयी। इन वर्षों में धर्म के नाम पर देश को बांटने का एक कुचक्र रचा गया। धार्मिक आगोश में हिन्दू-मुसलमान के जमकर वाक्युद्ध हुए। आज स्थिति यह है कि मस्जिद से लाउडस्पीकर हाटाने, हनुमान चालीसा वाचन पर अघोषित युद्ध छिड़ा हुआ है। देश में धार्मिक सरोकार का बोलवाला हो गया है। हिन्दू-मुसलमान के निजी विश्वास एवं मान्यताओं को लेकर अप्रिय बहस एवं जंग छिड़ गयी है। ऐसा माना जाता है कि गरीबी, बेरोजगारी की जड़ में आर्थिक अराजकता एवं दुरावस्था से ध्यान बंटाने के लिये कुछ ऐसे मुद्दे बनाये गये हैं ताकि साधारण आदमी के दिमाग में धर्म के अलावा बाकी सभी समस्याएं गौण हो जाये। हिन्दू के दिल में पूरी मुसलमान कौम के प्रति नफरत सी पैदा की जा रही है। इसके अपवाद हैं किन्तु नगण्य। उत्तर प्रदेश में मस्जिद से हजारों की संख्या में लाउडस्पीकर उतार दिये गये। ऐसे में एक घटना का स्मरण होता है जब श्रीमती इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री थी। इन्दिरा जी ने किसी समस्या को सुलझाने सर्वधर्म के प्रतिनिधियों को संसद भवन में बातचीत हेतु बुलाया। आने वालों में जैन धर्मावलम्बी दिगम्बरी साधु भी थे जो धर्म सम्मत मान्यताओं के कारण नग्नावस्था में ही संसद पहुंच गये। श्रीमती गांधी के निर्देश पर साधुओं को चारों ओर से कपड़े की चारदिवारी बनाकर लाया गया ताकि उनके धर्म का सम्मान हो सके एवं नग्न अवस्था में साधु किसी को दिखाई न दे। यानि हर व्यक्ति के धर्म का सम्मान किया जाता था।
भाषा विवाद पर भिड़े अभिनेता अजय देवगन व किच्चा सुदीप।
अब भाषा को लेकर एक नयी बहस शुरू हो गयी। देश में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के मामले में दूसरों का मान मर्दन करने की चेष्टा चल रही है। जब भी संविधान के आठवें अनुच्छेद के अनुसार हिन्दी को सम्पर्क भाषा के रूप में प्रचारित प्रसारित करने की बात होती है, दूसरी भाषाओं पर कथित अ²श्य खतरा मंडराने लगता है। इस स्थिति का भरपूर लाभ अंग्रेजी को मिल जाता है।
हिन्दी फिल्में न सिर्फ हिन्दी के प्रचार-प्रसार में सबसे अधिक सहायक रही है बल्कि हिन्दी को लोकप्रिय एवं ग्राह्य बनाने में फिल्मों का जबर्दस्त योगदान रहा है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन फिल्मों को भी हिन्दी के विरोध में ब्रह्मास्त्र बनाने की चेष्टा की जा रही है। कन्नड़ अभिनेता किच्चा सुदीप ने ट्वीट किया कि भाषा के आधार पर राज्यों का बंटवारा हुआ था, इसलिए क्षेत्रीय भाषाओं को महत्व मिलना ही चाहिये। और यहां तक कह दिया गया कि हिन्दी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है। इसका जवाब बॉलीवुड के जाने माने अभिनेता अजय देवगन ने यह कहकर दिया कि ह्दिी हमारी राष्ट्रभाषा थी है और हमेशा रहेगी। हिन्दी और कन्नड़ भाषा का फिल्मी विवाद कोई अहमियत नहीं रखता किन्तु हद तो तब हो गयी जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री बासवराज एस. बोम्मई इस बहस में कूद पड़े। उन्होंने कहा किच्चा सुदीप सच कह रहे हैं और सभी को इसका सम्मान करना चाहिये। मुख्यमंत्री का इस बहस में हिस्सा बनाना आश्चर्यजनक एवं दुर्भाग्यपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि वे जिस राजनीतिक पार्टी के नेता हैं उनकी नीति इस मामले में साफ रही है। हाल ही में भाजपा के गृहमंत्री अमित शाह ने भी हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की बात बड़ी जोर देकर कही। फिर उन्हीं के मुख्यमंत्री को हिन्दी राष्ट्रभाषा से परहेज क्यों?
राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हुआ है, यह सही है लेकिन अभिनेता सुदीप का यह कहना उचित नहीं है कि क्षेत्रीय भाषाओं को हिन्दी के कारण महत्व नहीं मिल पा रहा है। कड़वा सच तो यह है कि इंगलिश सभी भारतीय भाषाओं पर हावी हो रही है। मामूली औकात होते ही अपने बच्चों को इंगलिश माध्यम स्कूलों में भेजा जाता है। यही नहीं घर में भी अंग्रेजी संस्कारों में बच्चों का पालन पोषण होता है जिसके फलस्वरूप किशोरावस्था तक वह बच्चा हिन्दी और भारतीय संस्कारों से इतना दूर चला जाता है जहां से वह लौट नहीं पाता।
कोई भी भाषा एक स्वाभाविक रूप में ही अपना स्थान बनाती है। भाषा थोपी नहीं जा सकती। संस्कार भले ही थोप दें पर भाषा का आदमी के अंत:करण से उद्भव होता है। हिन्दी को गैर हिन्दी भाषियों ने भारत की राजभाषा बनाने की पैरवी की थी। उसी का परिणाम है कि हिन्दी को आठवें अनुच्छेद में राजभाषा का सरकारी ओहदा दिया गया। हिन्दी में जोडऩे की ताकत नहीं होती तो राजभाषा के संविधान पीठ पर नहीं बिठायी जाती। हिन्दी का विरोध कर सिर्फ इंगलिश के वर्चस्व को बढाने का उपक्रम नहीं रोका गया तो भारत की सांस्कृतिक पहचान गुम हो सकती है। धर्म के बाद भाषा को हथियार बनाकर बांटने की कोशिश दुर्भाग्यपूर्ण है। क्षेत्रीय भाषायें अपने-अपने प्रान्तों में सिरमौर बने तभी हिन्दी सही माने में राजभाषा बन सकती है। प्रान्तीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हिन्दी को सु²ढ़ एवं जनप्रिय बनाने का मूलमंत्र है। ऐसे में हमारी प्रान्तीय भाषायें ही अगर हिन्दी के विरोध में खड़ी हा जाये तो यह देश की बदकिस्मती होगी। मुझे विश्वास है कि फिल्मी दुनिया का हिन्दी विरोधी रवैया हिन्दी को प्रसारित करने में आड़े नहीं आयेगा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री अपनी पार्टी के हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में लोकप्रिय करने में देर से ही सही सहायक होंगे, ऐसी आशा है।

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है लेकिन विधवा विलाप करते लोगों के कारण किसी सरकार ने जोखिम नहीं उठाई.देश की सभी राज्यों की मातृभाषा ओर अधिक पनपने के लिए भी प्रयास किया जाना चाहिए लेकिन राष्ट्र भाषा का विरोध दुर्भाग्यपूर्ण है
ReplyDeleteभाषा पर सारगर्भित लेख पढ़ कर अच्छा लगा। यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि फिल्मों के माध्यम से गैर हिन्दी भाषी राज्यों के अभिनेता/अभिनेत्री अपनी फिल्मों को हिंदी में डब कराके करोड़ों रुपए कमाने में शान समझते हैं, परन्तु राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को अपनाने से परहेज़ करते हैं। गुड़ खाएं और गुलगुले से परहेज़।
ReplyDeleteसार गर्भित आलेख।
ReplyDeleteहिन्दी को सरकारी तौर पर राजभाषा का दर्जा मिला है, पर जमीनी वास्तविकता कितनी है?जब तक सरकारी काम काज हिन्दी नहीं में नहीं होगा ,शिक्षा के माध्यम की भाषा हिन्दी नहीं होगी देश अपने वास्तविक रूप को नहीं प्राप्त कर सकेगा ।उधार की भाषा पर सेवित देश विश्व गुरू नहीं बन सकता?।जब अंग्रेज यहाँ की शिक्षा और शासन की भाषा अंग्रेजी कर रहे थे तब तो कोई विरोध नहीं उठा ।।converted christianity अभी भी शासन पर बहुतायत से काबिज हैं।हमें India
Ko भारत बनाना होगा। को