राम नवमी पर रावण लीला
धर्म प्रधान भारत में रामनवमी का पर्व बड़ी ही मर्यादा एवं उत्साह के साथ मनाया जाता है। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा गया है। राम को पुरुषों में उत्तम इसलिए भी माना गया ताकि मानव मात्र में यह संदेश जाये कि सिर्फ ईश्वर का अवतार ही नहीं राम जैसा चरित्र ढाल कर ही हम बुराई पर अच्छाई की विजय प्राप्त कर सकते हैं। राम के जीवन को ही हम लें तो सभी जानते हैं मां की आज्ञा का पालन करते हुए राम जी बनवासी हो गये। सीता हरण के पश्चात रावण का वध राम जी के हाथों से हुआ किन्तु इस साहसिक कार्य में राम का साथ किसी राजा महाराजा ने नहीं दिया गया। सभी राजाओं में रावण का खौफ था किन्तु दानव संहार में राम की मदद की भील, वानर, पक्षी समाज ने। उत्तर भारत में संथाल की तरह दक्षिण भारत में भील जनजाति है। इन सबकी मदद से राम ने लंकेश का संहार किया। यह सत्य है कि रावण का संहार नहीं होता तो हम राम की पूजा नहीं करते। कंश का वध अगर नहीं किया होता तो क्या कृष्ण को पूजा जाता?
जन्म से लेकर मृत्यु तक हाम अगर किसी का नाम आपसी अभिनन्दन में लेते हैं तो वह है राम। संकट के क्षणों में किसी का स्मरण आता है तो वह है राम। यानि राम हमारे जीवन का पर्याय बन गया है। मुझे स्मरण है बचपन में राजस्थान में हमारे घर के नीचे से जब मुसलमान भाई गुजरते तो वे भी हमें राम राम कह कर ही संबोधित करते थे। राम ने आवाम् के सहयोग एवं उनके पराक्रम पर भरोसा कर उस वक्त के सबसे अत्याचारी शासक रावण का वध किया।
राम के इसी आदर्श का अनुसरण गांधी ने भी किया। ब्रिटिश हुकूमत जिसके राज में कभी सूर्यास्त नहीं होता था को हमारे देश से विदा किया एवं उनके इस कार्य में देश की जनता उनके पीछे-पीछे चली। गांधी ने ही देश के आम लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन हेतु अनुप्रेरित किया। अहिंसा एवं मर्यादा में रहकर दुनिया की इस बड़ी ताकत को भारत की भूमि से विदा होने हेतु बाध्य किया।
राम के चरित्र को हर भारतीय अपने दिल में समा कर रखता है। उसे राम का नाम ही स्मरण रहता है। हमने राम के मन्दिर नहीं बनाये। अगर पूरे देश पर ²ष्टिपात करें तो राम के मन्दिर नगण्य मिलेंगे। वृहत्तर कोलकाता शहर की एक करोड़ की जनसंख्या में 85 लाख हिन्दू हैं किन्तु राम मन्दिर हमारे महानगर में दो-चार ही हैं। भगवान शंकर, हनुमान जी, राधाकृष्ण के मंदिर हर शहर, गांव, कस्बे में मिलेंगे पर राम मन्दिर नहीं बनाये गये। राम हमारे मन में हैं, राम हमारे आदर्श हैं, भले ही मंदिर में हमने उनकी पूजा नहीं की हो।
कैसी विडम्बना है कि मप्र में मुख्यमंत्री द्वारा चलाया गया बुलडोजर इस पवित्र त्योहार पर हावी हो गया।
राम लीला गांव-गांव में होती रही है। दशहरे पर रावण वध का कार्यक्रम कहां नहीं होता? इसी राम के जन्म दिन रामनवमी पर इस बार जो रावण लीला की गयी वह दुर्भाग्यजनक ही नहीं शर्मनाक है। इस पर सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रकार डा. वेद प्रकाश वैदिक का एक छोटा आलेख मुझे मिला है जिसमें हू-बहू नीचे प्रकाशित कर रहा हूं।
रामनवमी या रावणनवमी?
इस बार भारत में हमने रामनवमी कैसे मनाई ? हमने रामनवमी को रावणनवमी में बदल दिया। देश के कई शहरों और गांवों में एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय से भिड़ गए। यहां तक कि जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र, जिन्हें देश में अत्यंत प्रबुद्ध माना जाता है, वे भी आपस में भिड़ गए। कई शहरों में लाठियां, ईंट और गोलियां भी चलीं। कुछ प्रदर्शनकारी पुलिस की ज्यादती के भी शिकार हुए। यह सब हुआ है, उसके जन्म दिन पर, जिसे अल्लामा इक़बाल ने 'इमामे हिंदÓ कहा है। इकबाल का शेर है- है राम के वजूद पे हिंदोस्तां को नाज़। अहले-नजऱ समझते हैं इसको इमामे हिंद!! राम को भगवान भी कहा जाता है और मर्यादा पुरुषोत्तम भी। लेकिन राम के नाम पर कौनसी मर्यादा रखी गई? राम को सांप्रदायिकता के कीचड़ में घसीट लिया गया। इसके लिए हमारे देश के वामपंथी और दक्षिणपंथी तथा हिंदू और मुसलमान, दोनों जिम्मेदार हैं। यदि रामनवमी का उत्सव मना रहे पूजा-पाठी छात्र कह रहे हैं कि पूजा-स्थल के तंबू के पास ही छात्रावास में मांस पकाया और खिलाया जा रहा है तो उससे हमें दुर्गंध आती है तो उनका दिल रखते हुए मांसाहार कहीं और भी उस समय करवाया जा सकता था और यदि मांसाहारी छात्र चाहते तो पूजा के घंटे भर पहले या बाद में भी भोजन कर सकते थे लेकिन यह झगड़ा तो न राम से संबंधित था और न ही मांसाहार से! इसके मूल में संकीर्ण राजनीति थी वामपंथ और दक्षिणपंथ की! मांसाहार का समर्थन करनेवालों में हिंदू छात्र भी थे। हिंदू मांसाहारी तो अपना औचित्य ठहराने के लिए भवभूति के ग्रंथ 'उत्तरराम चरित्रमÓ, प्रसिद्ध तांत्रिक मत्स्येंद्रनाथ और गोरखनाथ और चार्वाक के मद्यं, मांसं, मीनश्च, मुद्रा, मैथुनमेव च श्लोक तथा उपनिषदों के कई प्रकरणों को भी उद्धृत कर डालते हैं। वे वेदमंत्रों के भी मनमाने अर्थ लगा डालते हैं लेकिन वे वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों के उन तथ्यों और तर्कों को मानने के लिए कभी भी तैयार नहीं होते कि मांसाहार स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए घाटे का सौदा है। इसी तरह कुछ शहरों में मंदिरों और मस्जिदों के आगे भी बम फोड़े गए, पत्थर मारे गए और गोलियां तक चलीं। आप क्या समझते हैं कि यह काम किसी सच्चे ईश्वरभक्त या अल्लाह के बंदे का हो सकता है? बिल्कुल नहीं! यदि कोई सच्चा ईश्वरभक्त या अल्लाह का बंदा है तो उसके लिए ईश्वर और अल्लाह अलग-अलग कैसे हो सकते हैं? वह तो एक ही है। बस, उसकी भक्ति के रुप अलग-अलग हैं। ये रूप देश-काल और परिस्थितियों से तय होते हैं। यदि सारे विश्व में देश-काल और परिस्थितियां एक-जैसी होतीं तो इतने सारे धर्म, मजहब, रिलीजन होते ही नहीं। इस विविधता को धर्मांध लोग नहीं समझ पाते हैं। इसीलिए वे रामनवमी को रावणनवमी बना डालते हैं। किसी शायर ने क्या खूब लिखा है:
आए दिन होते हैं, मंदिरों-मस्जिद के झगड़े,
दिल में ईंट भरी हैं, लबों पर खुदा होता है।


लोगों को भङकाने तथा दंगा करवाने के लिए राजनीतिक छुटभैये हर जगह है इसमें उनका फायदा होता है.यह झगड़ा नहीं है षड्यंत्र होता है कि आप लोगो को नियत समय पर ऐसा करना होता है. उदारवादी एवं कट्टरपंथी दोनों दो किनारे है उनको मिलाने से हर समस्या का समाधान हो सकता है.
ReplyDeleteALLAH apko aur aap jaisay Emandar such likhnay wale nirbheek patrkaron ko zindagi ki sub Kushi day Varna to is desh ko angrayzon say kharab waqt may la diya hai jahan aadmi bhookh say marnay Kay kagar pay hai mahgai hai ki ruknay ka naam nahi lay rahi koi farq nahi padta in Andhbhakton ko sirf Hindu rashtr banana hai ab daikheya 19 ko Alighar may Hanuman chalisa Aazan Kay waqt shaam 5 baje loudspeaker pay karayngay
ReplyDeleteसच्चा देशभक्त वह होता है जो राम के चरित्र को अपनाता है।एक आदर्श राष्ट्र की कल्पना करता है। चाहे हम किसी भी जाति,धर्म, समुदाय के क्यों ना हो हमें मानवतावादी दृष्टिकोण का अभिनंदन करना चाहिए।
ReplyDeleteबेहतरीन चिंतन!
प्रणाम आदरणीय
ReplyDeleteहिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई
कहे कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ।
कबीर,और कबीर जैसे न जाने कितने समाज सुधार को ने अपना समस्त जीवन यही समझाने में समर्पित कर दिया कि आपस में घर्म- जाति के नाम पर हिंसा करना मानवता विरुद्ध आचरण है। मानवता से बढ़कर कोई धर्म नहीं है न जाने कब हम समझेंगे। समाज विरोधी तत्वों के कहने पर हाथों में पत्थर लेकर लोगों पर फेंकते हुए एक बार भी नहीं सोचते कि क्या कर रहे हैं हम। जनसाधारण कभी भी धर्म और जाति के नाम पर आपस में मारकाट करना पसंद नहीं करता पर उकसाने पर उत्तेजित होकर मानवता विरोधी कार्य करने में जरा भी नहीं झिझकता ,कब चेतना जगेगी, विवेक बुद्धि से कब सोचेंगे हम कि हमारा भला एक दूसरे को मारने में नहीं है बल्कि शांति पूर्वक सहयोग के साथ आपस में मिलकर रहने में ही हम सभी की समझदारी है। आस्था , विश्वास के साथ छेड़छाड़ करने का अधिकार किसी को नहीं है हम सभी स्वतंत्र हैं अपने धर्म का पालन करने के लिए। धर्म को गहराई से समझने वाले कभी भी रामनवमी को रावणनवमी में परिवर्तित नहीं होने देना चाहेंगे । रामनवमी में जो भी परिस्थितियां हुए वह अत्यंत सोचनीय, चिंतनीय विषय है कि हम आधुनिकता के इस दौर में आखिर किस ओर भटक रहे हैं, दो कदम आगे बढ़ रहे हैं या चार कदम पीछे चले आ रहे हैं।
सही सवाल उठाया है आपने। दरअसल अब भक्ति नहीं कट्टरता बची है। हम सौहार्द के अवसर को भी वैमनस्य में बदलने से नहीं कतराते। इसमें राजनीति भी अपना खेल खेलती है। थोड़ी सी जागरूकता और उदारता से इस तरह के झगड़े टाले जा सकते हैं
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