महंगाई का कहर झेलता मध्यवर्गी समाज

महंगाई का कहर झेलता 

मध्यवर्गी समाज

कोविड काल ने दो वर्षों में हमारी अर्थव्यवस्था को अस्तव्यस्त किया है। कुछ बड़े कार्पोरेट घरानों को छोड़ सभी उच्च मध्य और निम्न आय के लोगों ने कोविड संक्रमण के दंश को भोगा है। श्रमिकों, निम्र आय के लोगों एवं मध्यम श्रेणी कोविड की मार को सहला ही रही थी कि महंगाई की सुरसा ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया। कोविड के दुष्प्रभाव के कारण भारत में गरीबी रेखा के नीचे जिसे अंग्रेजी में ´ below poverty line  कहते हैं के आंकड़ो में लगभग 4 करोड़ की बढ़ोतरी हो गयी। यानि मध्यम या निम्र मध्यम श्रेणी के लोगों में कोविड से उत्पन्न बदहाली केचलते चार करोड़ और नीचे घिसक कर गरीबी की रेखा के नीचे आ गये हैं। इसके पहले देश में लगभग 28 करोड़ से अधिक लोग इस गरीबी रेखा के नीचे गुजर करते थे अब वह बढ़कर 32 करोड़ हो गयी है। यह सरकारी आंकड़ा है जिस पर कितना भरोसा किया जाये कहना मुश्किल है फिर भी अगर इसे मान भी लियाजाय तो स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। गरीबी रेखा के नीचे होने का मतलब होता है कि जीने के लिये न्यूनतम पौष्टिकता भी उन्हें उपलब्ध नहीं होती।


अब कोविड का दौर खत्म हुआ और केन्द्र व राज्य सरकारों ने वे सभी बन्दिशें प्राय: हटा ली जिसके कारण कारोबार चौपट हो गया था। कुछ धंधे तो एकदम ही चौपट हो गये और कुछ सिसक सिसक कर जी रहे हैं। कोविड काल गुजरने के बाद, स्थिति स्वाभाविक होने की ओर बढ़ी और लगा अब अच्छे नहीं तो राहत के दिन आने वाले हैं। यह भ्रम इसलिये हुआ क्योंकि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव होने वाले थे। ऐसे समय में महंगाई के मनहूस चेहरे को दूर रखा गया। लेकिन ज्योंही चुनाव समाप्त हुई कन्यादान के बाद जैसे बेटी विदा होती है और साज सजावट समेटने के बाद घर-परिवार सब अपनी औकात पर आ जाते हैं। जिस स्प्रिंग को चुनाव अभियान के दो महीने से अधिक दबाकर रखा गया अचानक उस पर से हाथ उठा लिया गया और बाजार उछलने लगा। महंगाई डायन अपना मनहूस चेहरा दिखाने लगी। खाने पीने से लेकर जीवन यापन की अन्य सामग्रियों लोहा, सीमेंट, कागज आदि-आदि के दामों में तेजी शुरू हो गयी। गैस सिलेंडर ने धमाकेदार शुरुआत की और मध्यम श्रेणी के बजट पर पहला मिसलाइल दागा। घरेलू सिलेंडर के दाम 50 रुपये बढ़ गये, कमर्सियल एलपीजी की कीमत में  105 रुपये की बढ़ोतरी हुई। फिर आटा, चावल, दाल, तेल, मैदा जैसे रसोई के सारे सामानों में जैसे आग लग गयी। एक गृहिणी के लिये परिवार चलाने में पसीने आने लगे।

महंगाई का प्रजनन तेल के दामों में वृद्धि में होता है। गत दस दिनों में नौ बार पेट्रोल एवं डीजल के दाम बढ़ाये गये। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, सीएनजी की कीमतों में बढ़ोतरी से, विपक्ष के अनुसार सरकार हजारों करोड़ रुपये कमा रही है। लेकिन चोट गरीब और मध्यम श्रेणी पर पड़ती है। रसोई गैस की कीमत दोगुनी हो गयी है।

एक अप्रैल से एल्युमीनियम के अयस्क और कंसट्रेट पर 30 फीसदी आयात शुल्क लगा दिया है। इसके परिणामस्वरूप टीवी, एसी और फ्रिज के हार्डवेयर पर पड़ेगा। जाहिर है ये सभी सामान खरीददार मध्यम श्रेणी के लोग अपने जीवन में कुछ आनन्द की अनुभूति करते हैं। अब इस आनन्द में खलल पडऩा स्वाभाविक है। सरकार ने एलईडी बल्ब बनाने में उपयोग होने वाली सामग्री पर मूल सीमा शुल्क के साथ 6 फीसदी प्रतिपूर्ति शुल्क वसूलने की बात कही है। इससे एलईडी बल्ब भी महंगे हो जायेंगे। मोबाइल फोन में इस्तेमाल होने वाली सामग्री पर सीमा शुल्क लगा दिया है यानि आयात अब महंगा हो जायेगा तो कंपनियों की उत्पादन लागत बढ़ेगी। उधर होम लोन के ब्याज पर मिलने वाली सब्सिडी खत्म होने से घर खरीदना और महंगा होगा। टोल प्लाजा पर आना जाना महंगा होगा क्योंकि रेड 10 से 65 रुपये तक बढ़ जायेगी। कार और बाईक के लिए थर्ड पार्टी मोटर इंश्योरेंस 5 प्रतिशत तक महंगा हो जायेगा।

एक अप्रैल से 800 से अधिक जरूरी दवाइयां 10 फीसदी महंगी हो जायेगी। बुखार, हृदय रोग, ब्लड प्रशेर, त्वचा रोग और एनीमिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं के दाम बढ़ जायेंगे। वहीं उत्पादक कम्पनियां ब्रेड-बिस्किट से लेकर तम्बाकू और सिगरेट की कीमतें भी बढ़ाने की तैयारी में है।

दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई से ग्रस्त व्यक्ति को मजबूर होकर अपनी जरूरतों से समझौता करना पड़ता है। किन्तु पिछले कई वर्षों से महंगाई और बेरोजगारी के कारण टूटी हुई कमर अब और कितना झुकेगी? एक आम आदमी को अपने प्रतिदिन के जीवन में जरूरत वाली चीजों के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। ऊपर से महंगाई के थपेड़ों से साधारण आदमी का जीवन दूभर हो चला है।

भारत की विकासमान अर्थव्यवस्था में सामानों के दाम बढऩा वैसे एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। दाम नहीं बढ़ेंगे तो सरकार को राजस्व कहां से मिलेगा? दाम भी बढ़ते हैं तो उनकी क्रय क्षमता यानि आदमनी भी बढ़ती है। किन्तु पिछले कई वर्षों में आम आदमी की आमदनी यानि क्रय शक्ति काफी क्षीण हुई है और लगातार आसमान छूती महंगाई से उसके लिये जीना दूभर हो गया है।

1950 से सन् 2000 तक सामानों के दाम में बढ़ोतरी हुई है पर आम आदमी की आमदनी भी समानान्तर रूप से बढ़ी। किन्तु आज स्थिति यह है कि आमदनी के लाले पडऩे लगे हैं, किसी का रोजगार चौपट हो गया है तो किसी का बन्द हो गया है। ऐसे में जीवन की जरूरतों के सामानों में बेतहाशा मूल्य वृद्धि ने एक साधारण आदमी के लिये ऐसे हालात पैदा कर दिये हैं कि उसे समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे?

लेकिन मजे की बात यह है कि कोविड से कमर टूटी और महंगाई ने साधारण आदमी को एक ऐसे संकट में फंसाया है कि उसके लिये परिवार पालना लगभग असंभव हो गया है तो दूसरी तरफ शेयर बाजार में 2021-22 में निफ्टी और सेंसेक्स ने दिया 70' अधिक रिटर्न जो विश्व में सर्वाधिक है। वित्त वर्ष 2021-22 में रिटर्न देने के मामले में सेंसेक्स और निफ्टी दुनिया भर के टॉप 10 शेयर बाजारों में शीर्ष पर रहा। कई समस्याओं और कोविड के कहर के बावजूद सेंसेक्स 67000 और निफ्टी 20000 के स्तर को छू सकता है। लेकिन पूंजी निवेश के बाजार में भी असामानता की खाई और अधिक चौड़ी हो गयी है। खुदरा निवेशकों ने पिछले तीन हफ्तों में 15 लाख करोड़ रुपये गंवा दिये, इस नुकसान की वजह कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि, सुस्त अर्थव्यवस्था और यूक्रेन संकट है। कई निवेशकों ने पहली बार बाजार में अपनी बचत को लगाया था, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

यानि साधारण आदमी यदि महंगाई और जरूरत के सामानों की नित बढ़ती कीमतों से त्रस्त है तो आवश्यक सामानों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि बीमार पड़ी अर्थव्यवस्था ने छोटे निवेशकों को भी अधमरा कर दिया है।


Comments

  1. अति सुंदर सामयिक लेख

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  2. सही है ।मध्य म वर्ग के लिये रोजमर्रा की चीजे महंगी होने से बजट असंतुलित हो जाता है ।
    दरअसल किसी का भी ध्यान मध्यम वर्ग पर है भी नही ।सब पार्टियों का ध्यान गरीबों को मुफ्त बांट कर वोट प्राप्ति की तरफ है ।सब को काम दे कर मदद करनी चाहिये ।मुफ्त के बंटवारे का फल देश की तरक्की पर भी पडता है ।कोई शारीरिक रूप से अक्षम हो तो उसकी मदद करना गलत नहीं हैं पर सब कुछ मुफ्त बांट कर वोट बटोरने की नीति से बेचारा मध्यम वर्ग अपने को उपेक्षित पाता है ।

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  3. सच में मध्य वर्गीय समाज बढती महंगाई का कहर झेल रहा है ।यह वर्ग हमेशा से ही पिसता आ रहा है।कुछ कर भी नहीं पाता है ।यह सोचनीय विषय है।गरीबों को तो पूरा भत्ता मिल रहा है और उच्चवर्ग को कोई परेशानी नहीं है ।मध्यम वर्ग के लिए और विशेषत:सीनियर सिटीजन के लिए-जहाँ कि ब्याज-दरें भी कम कर दी गई है,भविष्य डगमगाने लगा है,उससे लोगो का तनाव बढ रहा है । सरकार को कोई हल निकालने का प्रयास करना चाहिए ।

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