देश का वर्तमान राजनीतिक संकट बनाम कांग्रेस का भविष्य

देश का वर्तमान राजनीतिक संकट बनाम कांग्रेस का भविष्य

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस में कोहराम है, मायूसी है और भविष्य की चिंता भी। विगत कई सालों से कांग्रेस लगातार चुनाव में हार रही है। जहां कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी है वहां भी उसकी प्रचण्ड हार हुई है और जहां क्षेत्रीय दल है, वहां भी। कांग्रेस के भीतर कितनी व्याकुलता है इसकी बानगी जल्द बुलायी गयी कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक है। इस बैठक के भी कोई परिणाम नहीं आये हैं पर एक बात साफ उभर कर सामने आयी है कि सिर्फ राहुल-प्रियंका बीजेपी और मोदी से नहीं निपट सकते। संघ परिवार के तंत्र और मानसिकता से लडऩा कांग्रेस के बूते की बात नहीं।

निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए यह संक्रमण काल है। एक तरफ जहां बीजेपी अमृतकाल मना रहा है, कांग्रेस रुदाली काल से गुजर रहा है। कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भरोसा है कि हम (सत्ता में) लौटेंगे पर इस लौटने का रोड मैप न उनके पास है और न ही नेताओं के पास। कटु सत्य यही है कि कांग्रेस लगातार अपनी जमीन और जनाधार खोती जा रही है। बात यहां तक पहुंच गयी है कि भाजपा के जिला स्तर के नेता भी इस राष्ट्रीय पार्टी पर तंज कसते हैं और राहुल-प्रियंका की राजनीति को हंसी में उड़ा देते हैं। नि:सन्देह प्रियंका ने उत्तर प्रदेश चुनाव के प्रभारी के रूप में मेहनत करने में कोई कसर नहीं उठायी पर चुनावी रणनीति के अभाव में उत्तर प्रदेश में वह मात्र दो सीटों पर सिमट कर रह गयी।


उत्तराखंड में भाजपा से उसका सीधा मुकाबला था। वहां बीते 22 सालों से हर चुनाव में सत्ता परिवर्तन का रुख रहा है लेकिन भाजपा ने इसे ध्वश्त करते हुए सत्ता में पुन: वापसी की भले ही उनके मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी हार गये। गोवा के पिछले चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी पर कांग्रेस नेतृत्व की बेरुखी के कारण वहां भाजपा ने जोड़तोड़ कर सरकार बना ली थी। लेकिन इस बार भी कांग्रेस के पासे तिरछे पड़े हैं और वहां भाजपा आसानी से सरकार बना लेगी।

सबसे शर्मनाक मामला पंजाब का है। वहां पार्टी ने खुद अपने हाथों सत्ता गंवायी है। कांग्रेस कल्चर में शीर्ष नेतृत्व को कटघरे में खड़ा करने का रिवाज नहीं है। पार्टी आलाकमान ने उस नवजोत सिंह सिद्धू पर दांव खेला जिसकी सियासी बेवफाई से पंजाब का हर इंसान वाकिफ है। चुनाव परिणाम ने यही साबित किया कि सिद्धू जैसे नेताओं की मुआफिक जगह लाफ्टर शो ही है। कांग्रेस की अंतहीन अन्तर्कलह का बकरा बेचारे चरणजीत सिंह चन्नी बने जिन्हें चुनाव के चार माह पूर्व सीएम बनाकर मानो पार्टी ने राजनीतिक कफन सिलने का काम सौंप दिया था। पंजाब में 31 फीसदी दलित वोटर हैं पर दलित नेता चन्नी को अपनी विरादरी से भी खाली हाथ लौटना पड़ा।

कांग्रेस नेतृत्व के लिए खतरे की घंटी (अगर सुने तो) यह है कि अधूरे मन और सशंकित भाव से किया गया काम अंजाम तक नहीं पहुंचता। चुनावों में हार के पश्चात् सौजन्यमूलक भाव भंगिमा से इस्तीफे की बात करना और बात है एवं पूरे उत्तरदायित्व के साथ पार्टी को मजबूती देना और बात। कांग्रेस अब कुल ढाई राज्यों (राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में आंशिक) में बची है, वहां भी उलटी गितनी शुरू हो हो सकती है।

अब पहले वाली राजनीति नहीं रही। क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को कमजोर किया लेकिन वही क्षेत्रीय दल बीजेपी के लिए वरदान बनी। आज भाजपा का जो मुकाम हासिल है उसमें क्षेत्रीय पार्टियों की बड़ी भूमिका है। क्षेत्रीय पार्टियों को कांग्रेस अपना शुत्रु मानती रही जबकि उन्हीं के साथ मिलकर बीजेपी अपना मकसद पूरा करती रही।

यहां यह भी सवाल उठता है कि हम या हमारे जैसे लोगों को कांग्रेस की बदहाली की चिन्ता क्यों खाये जा रही है। अगर जनता पाखंड में ही खुश है तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। झूठ, पाखंड, और धर्म के नाम पर खेल से जनता खुश है तो कोई क्या करेगा? यह भी सच है कि इस तरह के खेल भी ज्यादा समय नहीं चलता लेकिन यह जल्दी खत्म भी तो नहीं होता। कोई विकल्प भी तो सामने नहीं दिखता। आम पार्टी कांग्रेस का विकल्प बनेगी शायद अभी संभव नहीं है। हां आप का ग्राफ लगातार बढ़ा है और आगे बढ़ेगा। लेकिन यह कांग्रेस का विकल्प होगा, कहना ठीक नहीं है। इसके लिए अभी उसे कई साल आग में झुलसने होंगे। संभव है कि कांग्रेस का विकल्प बनने से पहले ही इसकी मौत बीजेपी के हाथ ही न हो जाये। कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी को अरविन्द केजरीवाल की पार्टी से परेशानी है। आप की राह में अभी टीएमसी है तो केसीआर भी। स्टालिन हैं तो बीजद भी। शिवसेना है तो एनसीपी-जदयू भी। बसपा और सपा भी इस सूची में है।

दो साल बाद लोकसभा चुनाव है। पांच राज्यों में कांग्रेस की हार हुई है लेकिन अगर पार्टी को नये सिरे से तैयार किया गया तो आने वाले एक साल में दस से ज्यादा राज्योंमें चुनाव है। इन राज्यों में हिमाचल, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य हैं जहां बीजेपी के साथ कांग्रेस की सीधी टक्कर होने वाली है।

गैर-भाजपा गठबंधन का कोई ढांचा तय नहीं है। ममता और केसीआर विपक्ष की ओर से मुख्य खिलाड़ी बनने का दावा ठोके हुए हैं। विपक्षी खेमे में अभी भी एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस ही है। वह अपना रुतबा यूं ही नहीं छोड़ देगी। भाजपा में मोदी जी भी इस बात को समझते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस को मिल रही करारी हार के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई कांग्रेस और उसके नेता राहुल पर रोज मिसाइल दागने से नहीं चूकते।

आज भी कांग्रेस के पास ही 20 फीसदी वोट बैंक है। आम आदमी पार्टी अभी तक विधानसभा के प्रदर्शनों को लोकसभा जीतों में बदलने में नाकाम रहीहै। दिल्ली प्रदेश में महापराक्र्मी साबित होने के बावजूद वह लोकसभा में एक भी सीट नहीं जीत पायी है। पंजाब में भी 2014 के चार से गिरकर यह 2019 में मात्र एक पर आ गयी। गुजरात विधानसभा पर नजर रखनी होगी। पिछले चुनाव में गुजरात में गोली कान के नीचे से निकल गयी थी। भाजपा को मात्र 8 सीटें ज्यादा मिली इसी आशंका में यूपी चुनाव खत्म होते ही मोदी जी ने गुजरात में अपना रोड शो किया। स्मरण रहे 2019 यानि गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा और 196 सीटों पर दूसरे नम्बर थी। 52 सीट पर जीत हासिल हुई।

आवश्यकता है कि कांग्रेस सभी तरह की जमात की राजनीतिक पार्टियों को एक मंच पर लाने का काम जरूर करे, लेकिन उसका नेतृत्व का मोह त्याग दें। संभव है कि ममता या कोई अन्य नेता विपक्षी एकता को बेहतर विकल्प देने में सफल हो जाये। कांग्रेस की इसी में भलाई है। समय के मुताबिक इसी में उसकी ताकत भी निहित है। नेतृत्व के नाम पर आपसी लड़ाई बीजेपी को मजबूत करेगी। साझी ताकत से बीजेपी को चुनौती दी जा सकती है और कांग्रेस खुद भी मजबूती पा सकती है। अगर कांग्रेस उदारतापूर्वक ऐसा कर लेती है और कांग्रेस समेत सभी मोदी पीडि़त पार्टियां मिलकर किसी गैर कांग्रेसी नेता के नेतृत्व में एकजुट होकर चुनौती देती है तो संभव है कि कांग्रेस का इकबाल लौट आये एवं देश को एक बेहतर विकल्प मिले। लोकतंत्र में विपक्ष का बेहतर और मजबूत होना सबसे ज्यादा जरूरी है। विशेषकर तब जब सत्ता पक्ष देश को धर्म केनाम पर बांटने में सफल हो रहा हो एवं वित्तीय राजशाही तैयार कर रही हां। आज का संकट सिर्फ कांग्रेस का ही नहीं देश की राजनीति का संकट भी है, और अगर  कांग्रेस भी यह मानती है तो फिर उसे अपने वर्चस्व की परवाह किये बिना विपक्ष में समन्वय-विन्यास के लिये काम करना पड़ेगा। याद रहे सोनिया ने जब अपने कदम पीछे कर मनमोहन सिंह को आगे किया तो उसका राजनीतिक स्ेचर एकाएक बढ़ गया।


Comments

  1. कांग्रेस जनता पार्टी एवं जनता दल की तरह बिखर रही है जबकि उनके पास अभी भी करिश्माई नेता भरे पड़े हैं लेकिन शीर्ष नेतृत्व भले ही कांग्रेस का बंटाधार हो लेकिन कुर्सी नहीं छोङना चाहता इसके पीछे के अज्ञात कारण है जो अभी तक मिडिया भी नहीं समझ रहा है.

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  2. Congress will see with in two years that they are not in country .due to Rahul/Sonia/prinka
    BAPOTY IS OF INDRAGANDHI FAMILY .

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  3. King of BHASTRACHAR is congress.

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  4. Kitna bhi samarthan Karen congrss will not came in power on any state in your honourable life.

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  5. आपका कहना की झूठ, पाखंड, और धर्म के नाम पर खेल से जनता खुश है एक दम गलत है! जात पात, ऊंच नीच, वंशवाद, भ्रस्टाचार, जोड़ तोड़,वोट बैंक की राजनीति सब कांग्रेस की देन है और जनता ये सब जान चुकी है! दुःख इस बात का है की इस बात को समझने मे देश को ७५ साल लगे और आप जैसे varisth पत्रकार आज भी नही समझे!

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  6. Speech me to sirf bjp ko dharm ki rajniti karta bataya gaya hai.kintu bjp jagane ka kam karti hai.bjp jo bat publick me le jati hai.majbuti se rakhati hai.publik ko samagh aata hai.or public sath deti hai.jo aalu se sona banate hai.is formula ko public samagh nahi pati.

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  7. जिसे मिट जाना था वो सिमट रहा है ! अर्थात हम तो डूबेंगे, तुझको भी ले डूबेंगे ? चरितार्थ हो रहा है । मोपला ,बंगाली नोयाखाली , कश्मीरी , , सिक्ख , हिंदू , रजाकार हत्यालीला सन् १९२०, १९४६, १९४७ , १९७१ , १९८०, १९८८, १९८९, १९९०, २००४, २००५,२०१३ कौन कबूतर बना और किसने शिकार किया।
    आज एक फिल्म की सच्चाई इन्हें झूठ दिखता है ? वाह ?

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  8. वरिष्ठ पत्रकार नहीं समझे, यह निर्णय आपकी उसी मानसिकता का परिचायक है जो कि आलेख की मूल भावना है। जनता धर्म और पाखंड से खुश है या भुलावे में है , समय स्वयं तय कर देगा।

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