इस बार की होली में खुलेंगे बंद दरवाजे
दो वर्ष बाद रंगों का त्योहार कुछ बातों की याद दिलायेगा। हमें इस बात का स्मरण करायेगा कि ये दो साल हमने कैसे बिताये। कितने उधेड़बुन में हमने यह अन्तराल बिताया है। ठीक 2020 की होली के समय कोविड ने हमारे दरवाजे खटखटाने शुरू किये थे। तबसे हम सहमे बैठे थे। जैसे ही कोई आहट होती हमारी धड़कनें तेज हो जाती थी। पहली बार हमने घर की खिड़कियां बंद कर ली थी। हवा से भी परहेज था। पूरी दुनिया से अलग-थलग अपनों से बेखबर। अपनों से बेवफाई करने की नौबत आ गयी थी। किसी शायर ने ठीक ही कहा था - ''कोई मजबूरी रही होगी, वर्ना कोई यूं ही बेवफा नहीं होता''। यह सच है और आप जानते हैं हमारी क्या मजबूरी थी। बंद घरों में रामायण, महाभारत के सीरियल देख-देखकर हमारी हजारों वर्ष की पुरानी गाथायें दिखायी गयी पर अभी वर्तमान में क्या हो रहा है और क्या होने वाला है बताने वाला कोई नहीं था। घरों में अखबारों तक की इन्ट्री बन्द हो गयी थी। सुबह की चाय के साथ बिस्कुट चबाते थे पर आंखें तरस गयी थी अखबार की सुर्खियां देखने के लिये।
यह तो बानगी है शुरुआती दिनों की। अभी तो पिक्चर बाकी है जिसे हम याद नहीं करना चाहते। हमारी याददाश्त कमजोर नहीं हुई है पर हम उन दिनों को याद करके उस घुटन भरे दिनों का स्मरण नहीं करना चाहते। किसी ने खांसा, गला साफ किया तब तक एम्बुलेंस आकर ले गयी। इसकी जानकारी तो हमें अगले दिन लगी जब अस्पताल से दु:खद खबर मिली। पड़ोसी अपने पिता का अंतिम बार चेहरा भी नहीं देख पाया। अप्रत्याशित घटनाएं घटी जिन्हें दोहराकर आपके दिल पर बोझ नहीं डालना चाहता हूं।
खैर य्जादा वृतान्त लिखने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप सभी वारदातों से वाकिफ हैं। दो वर्ष में कितने ही हमसे हमेशा के लिये जुदा हो गये। शायद ही कोई ऐसा घर हो जिसका कोई अपना इस कोरोना काल में काल का ग्रास न बना हो। हां हमें शुद्ध पर्यावरण मिला। जीवन में पहली बार स्वच्छ आकाश देखने को मिला। मुजफ्फरनगर से हिमायल की बर्फीली चोटियां दिखने लगी और मेरे कमरे से पहला हावड़ा पुल तो लगा मकान की चारदिवारी से सटा हुआ है और दूसरा हुगली ब्रिज की लम्बी मोटी-तिरछी छड़ें साफ दिखाई देने लगी। मेरे घर के हर कमरे से साफ दिखाई देता था गंगा का दक्षिणोन्मुखी प्रवाह।
इन दिनों रूस-यूक्रेन का जो युद्ध चल रहा है, उसकी खबरें हमें उतनी उद्वेलित नहीं करती जितनी उस अदृश्य वायरस के तांडव ने किया। वैसे वह भी युद्ध था जो हममें हर व्यक्ति लड़ रहा था। युद्ध जैसी भयावह स्थिति से हमारा हर दिन गुजरा है। युद्ध संभवत: समाप्त हो जायेगा पर दो हफ्ते चलने वाले संघर्ष से उपजने वाली परिस्थितियों के बारे में जब खबर आती है तो हमें लगता है पता नहीं कौन ज्यादा खतरनाक साबित होगा। पेट्रोल सौ रुपये में ही इतना ज्वलनशील हो चुका है सवा सौ रुपयेमें आग की लपटों में हम कितना झुलसेंगे सिर्फ समय ही बतायेगा। खाने का तेल से लेकर जीवन की हर जरूरी चीज जब अपना दैत्य रूप दिखायेगी तो हमें पता लगेगा कि युद्ध जीते जी मार डालता है। युद्ध के इतने बुरे परिणाम निकलते हैं, जिसे सुनकर पसीना आ जाता है। युद्ध के बाद जो नुकसान होता है वह लड़ाईखोर देशों का तो होता ही है उसके दुष्प्रभाव सुदूर के देशों के शांतिप्रिय निहत्थे नागरिकों को भुगतना पड़ता है। कोविड गया तो युद्ध विभीषिता ने रही-सही कसर पूरी कर दी।
कुछ दिनों बाद ही होली है। होलिका दहन में अपने दो वर्षों के जमा जी के जंजालों को स्वाहा कर दें, यही बेहतर होगा। हर समय गुजरता है पर अपनी चुभन छोड़ जाता है जो हमें जीवन भर सताती रहती है। चलिये हमारे धैर्य की परीक्षा है और हम अपने धैर्य धारण के लिये पूरी दुनिया में जाने और माने जाते हैं।
होली रंगों का त्योहार है। रंग हमारे जीवन का दूसरा नाम है। अलग-अलग रंग वैसे ही जैसे हमारे जीवन की अलग-अलग परतें हों। रंग हमको भाते हैं क्योंकि जीवन की ही प्रतिछाया रंगों में है। हमारा देश वैसे भी विविधताओं का देश है। हर मामले में विविधता है। कहते हैं- ''घाट-घाट पर कपड़ा बदले, पांच कोस पर पानी, दस कोस पर बोली बदले बीस कोस पर बानी।'' बताने की जरूरत नहीं। भारतीय संस्कृति में विविधता उसका मेरूदंड है। ''अलग-अलग है वेष और भूषा-अलग अलग है बोली- किन्तु भावना एक हमारी- एक हमारी टोली।'' होली के रंग में अपने सभी गमों को डुबा दीजिये। अपने को तरबतर कर दीजिये। या फिर हर रंग के गुलाल इस तरह उड़ाइये कि आसमां और धरती कई रंगों मेंपट जाये। उफ मत कीजिये - खुश रहिये और खुश रखिये। हमारा ही देश है जहां हर मर्ज की दवा उपलब्ध है। यह भी खूब है कि दवा देने वाला कोई हकीम नहीं रास्ते चलने वाला आदमी भी जानता है इस मर्ज की दवा क्या है। हमारे देश की मस्ती भी निराली है। यहां हम हर फिक्र को धुएं में उड़ाते चलते हैं। दु:खों का पहाड़ टूट पड़े तो उसको भी लांघना भारतीयता की आत्मा में रचा बसा है। आइये होली मनायें और हमारी शानदार परम्परा और संस्कार को अपनी घुट्टी में आत्मसात कर लें। इस होली में खिड़कियां भी खोल कर रखें और दरवाजों को भी। प्रेम और सौहाद्र्र की बयार को बहने दें। अपने काम में जुट जायें - व्यस्त रहें- मस्त रहें।
Beautiful
ReplyDeleteईश्वर से यही प्रार्थना है कि हम सभी मानवीय मूल्यों को समझें और परंपरागत तरीके से त्योहार मनायें। जिन्होंने अपनों को खोया है उसकी भावनाओं का सम्मान करें। ऊर्जाप्रद आलेख !
ReplyDeleteशानदार लेख।दिल को छुने वाला लेख
ReplyDeleteभारतीय संस्कृति में विविधता उसका मेरूदंड है। ''अलग-अलग है वेष और भूषा-अलग अलग है बोली- किन्तु भावना एक हमारी- एक हमारी टोली।'' होली के रंग में अपने सभी गमों को डुबा दीजिये। अपने को तरबतर कर दीजिये। या फिर हर रंग के गुलाल इस तरह उड़ाइये कि आसमां और धरती कई रंगों मेंपट जाये। उफ मत कीजिये - खुश रहिये और खुश रखिये। हमारा ही देश है जहां हर मर्ज की दवा उपलब्ध है।
हमारा देश वैसे भी विविधताओं का देश है। हर मामले में विविधता है। कहते हैं- ''घाट-घाट पर कपड़ा बदले, पांच कोस पर पानी, दस कोस पर बोली बदले बीस कोस पर बानी।'' बताने की जरूरत नहीं।
शानदार आलेख।कई तथ्य दिल को छू गये. ...
ReplyDeleteघाट-घाट पर कपड़ा बदले, पांच कोस पर पानी, दस कोस पर बोली बदले बीस कोस पर बानी।''
भारतीय संस्कृति में विविधता उसका मेरूदंड है। ''अलग-अलग है वेष और भूषा-अलग अलग है बोली- किन्तु भावना एक हमारी- एक हमारी टोली।'' होली के रंग में अपने सभी गमों को डुबा दीजिये। अपने को तरबतर कर दीजिये। या फिर हर रंग के गुलाल इस तरह उड़ाइये कि आसमां और धरती कई रंगों मेंपट जाये। उफ मत कीजिये - खुश रहिये और खुश रखिये। हमारा ही देश है जहां हर मर्ज की दवा उपलब्ध है।
बहुत सुन्दर लेख !तमाम विभीषिका ओं के बाद भी जीवन में रंग हैं त्यौंहार हैं जिन का आनन्द हमेशा वक्त रह्ते उठाना चाहिये!बहुत प्रेरक!
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