अंदाज कुछ अलग है मेरे सोचने का
सबको मंजिल का शौक है
और मुझे सही रास्तों का
'मेरे लिए यह बहुत मुश्किल है कि मैं किसी की प्रशंसा करूं। इसके लिए मेरा जन्म नहीं हुआ....., मेरी पैदाइश ही व्यवस्था विरोधी थी।Ó इकोनामिक टाइम्स के पुरस्कार समारोह में बोलते हुए बजाज समूह के चेयरमैन राहुल बजाज ने कहा, जहां उन्होंने यह भी बताया कि उनका नामकरण पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था। यह सुनकर दर्शक दीर्घा में बैठे सैकड़ों सूटेड बूटेड संभ्रांत बगले झांकने लगे थे। राहुल बजाज ने पुणे में गत रविवार 12 फरवरी को कैंसर से मुकाबला करते हुए अंतिम सांस ली। स्वतंत्रता संग्राम के योद्धाओं में से एक जमुनालाल बजाज के पौत्र राहुल बजाज अपनी हाजिर जवाबी एवं अपनी बात भले ही किसी को कटु लागे, बेहिचक कहते थे। आमतौर पर उद्योगपतियों की सभा में विशेषकर जहां सरकार का कोई उच्च पदस्थ व्यक्ति मौजूद है, अक्सर आरती उतारने की होड़ लगती है। कम से कम सत्ता विरोधी बदजुबानी से तो पूरा परहेज रखा जाता है। राहुल बजाज तर्क के साथ जब अपनी बात बोलते थे तो कई उद्यमियों को नागवार गुजरता था क्योंकि उस श्रेणी के लोगों में हर बात सीमा के अंदर और मर्यादा के अंदर रहकर ही की जाने की सीख दी जाती है। इसे कॉरपोरेट कल्चर भी कहते हैं जहां मुस्कुराहट भी नपी तुली ही दी जाती।
'हमारा बजाजÓ नाम से घर-घर में बोला जाने वाला नाम एक तेज रफ्तार वाला युवा देश का प्रतीक बन गया था। कई वर्ष पूर्व संसद के सेंट्रल हॉल में पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री दिनेश त्रिवेदी ने राहुल जी से मेरा परिचय कराया था। खड़े-खड़े ही दो-चार मिनट उनसे बात की। एक छोटी सी मुलाकात में मैंने यह समझ लिया कि राहुल जी की पसंद और नापसंद दोनों फौलादी है। किसी भी व्यक्तिगत आलोचना से दूर रहकर व्यवस्था के विरुद्ध सीधी बात करते थे। उद्यमी के रूप में उनकी बड़ी उपलब्धि थी कि बजाज स्कूटर को भारत में तो शीर्ष पर पहुंचा ही दिया था, दुनिया के ऑटोमोबाइल्स बाजार में भी हमारा बजाज का सिक्का चल पड़ा था। स्कूटर की भारत जैसे देश में अहमियत पर उन्होंने आयरन लेडी इंदिरा गांधी से भी पंगा लिया था। पुणे को औद्योगिक हब में परिवर्तन करने में बजाज समूह की अहम भूमिका से कोई इनकार नहीं कर सकता। एक स्वतंत्रता सेनानी का खून उनकी रगों में दौड़ रहा था। तभी तो उनके प्रतिष्ठान में एक बार को छोड़कर कभी श्रमिक हड़ताल नहीं हुई और उन्होंने निजी जीवन में उस संस्कृति को पोषित किया जहां उनके बच्चे भी वहीं पढ़ते थे जहां उनके स्टाफ के बच्चे।
जमुनालाल बजाज के इस यशस्वी पौत्र ने व्यापार में सामाजिक दायित्व के साथ समझौता नहीं किया। स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सर्वजन हिताय के कार्यों को अपनी व्यक्तिगत देखरेख में संचालित करते थे। अपने पिता स्वर्गीय कमल नयन बजाज के नाम पर कैंसर चिकित्सा हेतु बड़ा चिकित्सा केंद्र स्थापित कर उसे चलाया भी। महाराष्ट्र में औरंगाबाद में कमलनयन बजाज चैरिटेबल हॉस्पिटल पूरे राज्य का सबसे विश्वसनीय स्वास्थ्य केंद्र बन गया है। इसके अलावा भी उन्होंने कई जन हिताय कार्यों में पहल की।
आज मीडिया में भी गोदी-मीडिया का नाम चल पड़ा है। सरकार की चाटुकारिता में समाज का हर तबका लबरेज है। स्वतंत्र लेखन की किसी दुर्लभ वस्तुओं में गिनती होने लगी। विपक्ष भी निडर होकर नहीं बोल पाता। सीबीआई और ईडी की तलवार लटकती हुई सबको दिखती है वहां इकोनामिक टाइम्स के मंच पर यह कह दिया कि देश में डर का माहौल है। कोई भी बोलने से डरता है। उनका यह कहना सर्द हवाओं के बीच गर्मी पैदा कर गया। कोई राजनीतिक नेता कह देता तो बात आई गई होती। किंतु बजाज ऑटो के चेयरमैन के मुंह से ऐसी बात दूर तक चली गई। 'अंदाज़ कुछ अलग है मेरे सोचने का, सबको मंजिल का शौक है और मुझे सही रास्तों का।Ó
मुझे याद है कई वर्षों पूर्व कला मंदिर के प्रेक्षागृह में श्री घनश्याम दास बिरला बोल रहे थे। उन्होंने अपने भाषण में उद्योग धर्मियों का आह्वान किया कि वे उत्पादन में सरकारी अंकुश की अवहेलना करते हुए उत्पादन बढ़ाए। उसके लिए भले ही जेल जाना पड़े। बिरला जी के भाषण की उन दिनों चर्चा हुई थी। ऐसे ही उन्हीं के अनुज बृजमोहन बिरला ने होटल हिंदुस्तान इंटरनेशनल में आयोजित इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल की एक सभा में यह कह दिया कि मैं युवा होता तो नक्सलवादी होता। उनके मुंह से यह सुनकर लोग हैरत में पड़ गए थे। इंडियन एक्सप्रेस के चेयरमैन श्री रामनाथ गोयनका ने ''प्रेस फ्रीडमÓÓ के लिये प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी से लड़ाई मोल ली। उनकी जूट मिल जो दुनिया की सबसे बड़ी जूट मिल थी, का सरकार ने राष्ट्रीयकरण कर लिया पर रामनाथ जी डिगे नहीं। आपातकाल के बाद इन्दिरा गांधी एवं उनकी कांग्रेस का उत्तर भारत में सूपड़ा साफ हो गया जिसके पीछे रामनाथ गोयनका की बड़ी भूमिका थी। यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि लोगों में यह भ्रम टूट जाये कि सभी उद्योगपति एवं व्यापारी सत्ता के पिछलग्गू होते हैं। अधिकांश लोग होंगे किंतु अपवाद भी होते हैं जो अपने मन की बात डंके की चोट पर कहते हैं। बड़ाबाजार के अपने समय के बड़े व्यापारी सुप्रसिद्ध सांवलराम गोयनका समाज हित साधने में डॉ. बी. सी. राय का कोप भाजन हो गये और उन्हें जेल जाना पड़ा। मैंने श्री अजय रुंगटा को भारत चेंबर की मीटिंग में मुख्यमंत्री ज्योति बसु के सामने उनकी सरकार की कटु आलोचना करते हुए सुना था, लेकिन आज हमारा व्यापारी समाज इतना भीतू बन गया है कि वह सिर उठाकर चलना भूल गया। उद्योग- व्यापार का देश के विकास में अहम योगदान है पर पता नहीं क्यों उद्यमी की नजर कभी ऊंची नहीं देखी। आत्मसम्मान को बनाकर रखते हुए व्यापार करना लगता है लोग भूल से गए हैं। इसलिए सत्तापक्ष उन्हें अपना यस मैन समझता है।
सच कहना सिर्फ धर्म उपदेश नहीं है, जीवन का अंग होना चाहिए। जिन्होंने भी बेपरवाह सच कहा है, वे पूजे गए हैं। दुर्भाग्य से आज तो यह स्थिति है कि पुलिस का एक साधारण कॉन्स्टेबल भी व्यापारी को हड़का देता है। लेकिन उसके लिए पहले अपना हाथ साफ रखना पड़ेगा। कुछ लोग यह कहकर हर अपराध को न्यायोचित ठहरा देते हैं कि ईमानदारी से व्यापार नहीं होता है, यह सही नहीं है। अधिकांश कारोबारी निष्ठा और ईमानदारी से अपना काम करते हैं। सरकार को टैक्स भी देते हैं। फिर उन्हें डर किस बात का?
राहुल बजाज की तरह अपनी आवाज को बुलंद करें। डर के माहौल से निकलें। राहुल बजाज इसलिए याद किए जाते रहेंगे क्योंकि वे अपने मन की बात खुलकर बोलते थे। संसद में भी और बाहर भी।
Beautiful article
ReplyDeleteआम लोगों के मन में व्यापारियों , विशेष रूप से मारवाड़ियों के प्रति जो भ्रांत धारणा व छवि है, उसे परिष्कृत करने के लिए ऐसे ही दिलेर साहसी व स्पष्टवादी व्यक्तियों की आवश्यकता है
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