बिटिया के हाथ पीले कब करें?
देश में लड़कियों के लिए विवाह की उम्र को 18 साल से बढ़ाकर 21 किया जा रहा है। इस प्रस्ताव को कैबिनेट ने 16 दिसम्बर को मंजूरी दे दी है। इसके लिए सरकार मौजूदा कानूनों में संशोधन करेगी। पहले के कानून के अनुसार सभी पुरुषों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 और लड़कियों की 18 साल की है।
शारदा एक्ट के प्रणेता
रायसाहब हरबिलास शारदा
(माहेश्वरी-मारवाड़ी)
3 जून 1867-20 जनवरी 1952
केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020-21 के अपने बजट भाषण के दौरान टास्क फोर्स के गठन का जिक्र करते हुए कहा था- ''1929 के तत्कालीन शारदा एक्ट में संशोधन करके 1978 में महिलाओं की शादी की उम्र 15 साल से बढ़ाकर 18 साल कर दी गयी थी।ÓÓ गौरतलब है कि बाल विवाह रोकथाम कानून की शुरुआत शारदा एक्ट से शुरू हुई थी। आजादी से पहले कई बार लड़कियों की शादी की उम्र तय की गयी लेकिन इसके लिए कोई पुख्ता कानून नहीं था। सन् 1927 में शिक्षाविद्, न्यायाधीश, राजनेता और समाज सुधारक राय साहब हरबिलास शारदा ने बाल विवाह रोकने के लिए संसद में विधेयक पेश किया जिसमें लड़कों के लिए शादी की उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 तय की गयी। यह अपने आप में एक सामाजिक क्रान्ति की शुरुआत थी जिसके प्रणेता हरबिलास शारदा अजमेर- मारवाड़ से केन्द्रीय असेम्बली के सदस्य चुने गये थे। इसी सीट से 1924 और 1930 में उन्हें दोबारा निर्वाचित किया गया। उन्होंने कांग्रेस की कई बैठकों में भाग लिया जिनमें नागपुर, बम्बई, बनारस, कलकत्ता और लाहौर शामिल थे। शारदा जी जाने माने लेखक भी थे। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ-''हिन्दू सुपीरियॉरिटीÓÓ है जिसमें उन्होंने सप्रमाण सिद्ध किया है कि इतिहास काल में सभी क्षेत्रों में हिन्दू सभ्यता अन्य देशों से बहुत आगे थी। इसके अलावा भी उन्होंने कई ग्रन्थ लिखे। श्री शारदा ने समाज सुधार का ऐसा कार्य किया, जिसके लिए उनका नाम इतिहास में स्थायी हो गया। भारत में लड़कियों के बाल विवाह की बड़ी चिन्ताजनक प्रथा थी। इन्होंने केन्द्रीय असेम्बली से इसे रोकने के लिए 1925 में बिल पेश किया। ''शारदा बिलÓÓ के नाम से प्रसिद्ध यह बिल सितम्बर 1929 में पास हुआ और 1 अप्रैल 1930 में पूरे देश में लागू किया गया। समाज सेवा के कार्यों के लिए सरकार ने उन्हें ''राय बहादुरÓÓ और ''दीवान बहादुरÓÓ की पदवियों से अलंकृत किया। 20 जनवरी सन् 1950 में हरबिलास शारदा की मृत्यु हो गयी।
शारदा जी ने सामाजिक क्रान्ति की जो प्रक्रिया शुरू की वह भारत में महिला सशक्तिकरण का मूल मंत्र था। 1978 में इसमें संशोधन हुआ तो लड़कों के लिए न्यूनतम 21 और लड़कियों के लिए 18 तय की गयी फिर भी बाल विवाह पूरी तरह नहीं रुका तो इसकी जगह बाल विवाह रोकथाम कानून लाया गया। इसमें दंड का प्रावधान किया गया। अब कानून तोडऩे वाले को दो साल की सजा और 1 लाख रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
1978 के पश्चात् 43 साल बाद यह अहम् बदलाव होने जा रहा है। सरकार लड़कियों के विवाह की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने जा रही है। संभव है संसद के इसी सत्र में यह बिल आ जाये। लेकिन हाल में आये राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वेक्षण-5 के परिणाम बताते हैं कि अभी भी देश में 23.3 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रोंमें यह प्रतिशत 27 है। चार में से एक लड़की का विवाह 18 साल से कम उम्र में होता है। प. बंगाल में 48.1, बिहार में 43.1, झारखंड में 36.1 फीसदी लड़कियां 18 साल से पहले ब्याही जा रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में अक्षय तृतीया के दिन हजारों की संख्या में बाल विवाह की प्रथा अभी भी चल रही है और मजे की बात है कि ये सामूहिक विवाह कानून की रक्षक पुलिस की निगरानी में होती है और कई सरकारी गणमान्य लोग उसमें शरीक होते हैं।
विवाह की उम्र का कानून का स्वागत होना चाहिये। हालांकि कानून बनाना कोई समाधान नहीं है। फिर भी सरकार बाल विवाह या कम उम्र में विवाह परअंकुश लगाने के अपनेप्रयास में इन कानूनों को अस्त्र बना सकती है। बिना कानून के तो कम उम्र में विवाह बिना रोक-टोक के होंगे। आज असल चुनौती यह है कि लड़कियों को शिक्षित करना होगा, आर्थिक रूप से सक्षम बनाना होगा तथा समाज में लड़कियों के प्रति सुरक्षा का वातावरण पैदा करना होगा तभी कम उम्र में लड़कियों का विवाह रुकेगा। साथ-साथ में सामाजिक आंदोलन, सामाजिक शिक्षा एवं यौन शिक्षा नहीं दी जायेगी तो लोग शादियों को छुपाने लगेंगे।
हमारे देश में सामाजिक रूप से औरतों को अंधेरे में रखने की दिशा में आज भी कई संगठन खुले रूप से काम कर रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सरकार के नये निर्णय का विरोध शुरू हो गया है। यहां के खाप और जाट नेताओं ने केन्द्र की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे अपराध बढ़ता है। दलील दी कि जब वोट देने, लाइसेंस हासिल करने और सरकारी नौकरी करने की उम्र 18 साल है तो फिर शादी की उम्र क्यों 21 साल कर दी गयी। एक सांसद ने तो यहां तक कह दिया कि इस कानून के बाद तो लड़कियां आवारगी करेंगी। गठवाला खाप थाबा वाहवड़ी के चौधरी श्याम सिंह ने कहा, यह तो लड़कियों के साथ अपराध को बढ़ावा देना है। बालिग की जो उम्र है, उसके बाद शादी की उम्र में पाबंदी नहीं होनी चाहिये। देश का निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग सोचता है कि लड़की की शादी जल्द की जाये। केन्द्र का यह फैसला सही नहीं है। जाट महासभा मरेठ के पूर्व अध्यक्ष चौधरी कल्याण सिंह ने कहा कि कुछ लड़कियां पढ़ाई करती हैं और अपना कैरियर चुनती है। ऐसी लड़कियों को शादी के निर्णय का अपना अधिकार है। लोकतंत्र में 18 साल की लड़की को वोट देने का अधिकार है तो शादी करने का क्यों नहीं?
शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होने के लिए स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही 21 वर्ष की उम्र को सही माना गया है। कैबिनेट को अब बाल विवाह निषेध अधिनियम समेत दूसरे कानूनों में भी जरूरी संशोधन करने होंगे। लेकिन यह भी ख्याल रहे कि मां की सेहत से जुड़े सवाल सिर्फ कम उम्र में गर्भ धारण करने पर ही निर्भर नहीं होते बल्कि गरीबी और भेदभाव भी इसके लिए बहुत हद तक जिम्मेदार कारक हैं। यह भेदभाव शिक्षा और रोजगार तक में दिखता आया है। आज भी हालात यह है कि देश में 15 से 18 साल की उम्र के बीच पढ़ाई छोडऩे को मजबूर बेटियों की बड़ी संख्या है। हाल में आये राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वेक्षण के परिणाम बताते हैं कि अभी भी देश में 23.3 फीसदी लड़कियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत 27 फीसदी है। चार में से एक लड़की का विवाह 18 साल से कम उम्र में होता है। ऐसे में विशेषज्ञों की तरफ से नये कानून के औचित्य पर भी सवाल उठाये गये हैं।
लड़कियों के विवाह की उम्र 21 वर्ष के लिये कानून बनाना एक स्वागत योग्य कदम है किन्तु इसकी सफलता के लिए देश में वर्तमाम सामाजिक स्वरूप में मूलचूल परिवर्तन करना होगा। परिवार नियोजन के लिये कई वर्षों तक सरकार ने बहुत प्रयास किया किन्तु उसका कोई उल्लेखनीय नतीजा नहीं निकला। इसके पीछे भी हमारी लचर सामाजिक व्यवस्था है जिसकी तह में पुत्र प्रधान सामाजिक व्यवस्था है। कानून अपनी जगह है जिसकी आवश्यकता को कम आंकने की गलती नहीं की जानी चाहिये। किन्तु कानून के साथ-साथ इसे लोगों के बीच ग्रहणीय बनाने के लिए सामाजिक व्यवस्था में बड़े बदलाव की नितन्त आवश्यकता है।
सरकार की ये पहल एक साहसिक कदम है,परन्तु इस बात को भी झुठलाया नही जा सकता कि समाज मे नारी की शिक्षा ,आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर बिसेष ध्यान देना होगा।अगर नारी मानसिक,आर्थिक और सामाजिक स्थिति से मजबूत हो जाय तो अपने हक के लिए खुद ही फैसले ले सकती है।रही सरकार की पहल की बात तो ओ स्वीकारने योग्य है।
ReplyDeleteसरकार द्वारा उठाया गया कदम स्वागत योग्य और सराहनीय है, परन्तु इसका पूरा लाभ तभी होगा जब समाज जागरूक रहेगा।
ReplyDelete21 साल तक लड़कियां अपने पैरों पर खडी होने लायक बन जायें थोड़ी परिपक्वता भी उनमें आ जाये तभी विवाह करना चाहिये ।
ReplyDeleteयह भी देखा।गया है कैरियर के चक्कर में लडकियो की उम्र 30 ,35 तक चली जाती है उनके लिये वर ढूंढने में दिक्कत आती है।इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए सही समय पर ही शादी होनी चाहिये ।
सरकार ने युवतियों को समान अधिकार दिया है जो स्वागत योग्य है.
ReplyDeleteविचार एवं सहमति अलग अलग होना लोकतंत्र की खुबसुरती है.
कानून बनाने से पहले सरकार लोगों की भावना की पैमाइश करवाती है ताकि भविष्य में कोई नुक्ता चिनी कम करें