महाभारत युद्ध की जड़ में भी थी आार्थिक विषमता
यह खाई तो पाटनी होगी
भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आर्थिक स्तर पर असमानता वाला देश बन गया है। यहां गरीब दिन प्रतिदिन कंगाली की ओर तो अमीर और अधिक रईस हो रहा है। औसत घरेलू संपत्ति 9,83,010 रुपये हैं। नीचे के 50 प्रतिशत यानि आधी आबादी के पास संपत्ति के नाम पर लगभग कुछ भी नहीं है। इनकी औसत संपंत्ति 66,280 रुपये हैं। शीर्ष 10 प्रतिशत अमीरों के पास देश की कुल आय का 57 प्र.श. है। यह खुलासा वल्र्ड इन इक्वैलिटी की ताजा रिपोर्ट से हुआ है।
हमारा देश दरिद्र तो है ही पर अब वह चरम आर्थिक विसंगति वाला देश भी है। पेरिस स्कूल ऑफ इकोनामिक्स के वल्र्ड इनेक्वेलिटी लैब- की इस रिपोट को तैयार करने का दायित्व फ्रांसिसी अर्थशास्त्री टोमास पिकेट को दिया हुआ है। रिपोर्ट की भूमिका में नोबेल पुरस्कार से नवाजे गये अर्थविद् अभिजीत विनायक बन्दोपाध्याय ने लिखा है विश्व में जिन देशों में आर्थिक विषमता चरम पर है उनमें भारत का विशिष्ट स्थान है। भारत की भयावह तस्वीर के बारे में वर्तमान सरकार के चेहरें पर कोई शिकन दिखाई नहीं दे रही।
कोविड का वरदान : अर्थशास्त्रियों की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड संकट में पूरे विश्व में धन-कुबेंरों की सम्पत्ति और बढ़ी है। भारत में भी शेयरबाजार पूरी उछाल पर था जबकि आम भारतीय कोविड के कारण बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा था। दुनिया भर के आर्थिक ग्राफ पर नजर डालें तो 2750 रइसों की झोली में पृथ्वी की 3.5 प्रतिशित सम्पत्ति आ चुकी है। 1995 में यह आंकड़ा 1 प्रतिशत था। कोविड काल इन विश्व-कुबेरों के लिए वरदान साबित हुआ। दरअसल कोरोना से जहां दुनियाभर में अब तक 10 करोड़ से ज्यादा व्यक्ति संक्रमित हो चुके हैं, वहीं 20 लाख से ज्यादा जान गंवा चुके हैं। इसके अलावा कोरोना संकट ने अमीरी-गरीबी के बीच की खाई को भी पहले के मुकाबले कई गुणा चौड़ा कर दिया है।
महामारी के इस दौर में एक ओर जहां करोड़ों लोगों के काम-धंधे चौपट हो गए, लाखों लोगों की नौकरियां छूट गईं और अनेक लोगों के कारोबार घाटे में चले गए, वहीं कुछ ऐसे व्यवसायी हैं, जिन्हें इस महामारी ने पहले से भी ज्यादा मालामाल कर दिया है। आंकड़े देखें तो विश्व के 60 फीसदी से भी ज्यादा अरबपति पिछले साल और ज्यादा अमीर हो गए।
भारत के संदर्भ में हाल ही में गैर सरकारी संस्था 'ऑक्सफैमÓ ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि लॉकडाऊन के दौरान ही भारतीय अरबपतियों की सम्पत्ति 35 फीसदी बढ़ गई। विश्व आर्थिक मंच के 'दावोस संवादÓ के पहले दिन जारी ऑक्सफैम की 'द इनइक्वलिटी वायरसÓ नामक रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाऊन की घोषणा के बाद भारत के शीर्ष 100 अरबपतियों की सम्पत्ति में 12.97 ट्रिलियन (1297822 करोड़) रुपए की वृद्धि हुई और कोरोना ने गरीबों तथा अमीरों के बीच असमानता को और गहरा करने का काम किया है। इस दौरान यह असमानता पूरी दुनिया में बढ़ी है।
सम्पत्ति के मामले में भारत के अरबपति अमरीका, चीन, जर्मनी, रूस, फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गए हैं और 2009 से आकलन करें तो यह 90 फीसदी बढ़ते हुए 423 अरब डॉलर तक पहुंच गई। विश्व के शीर्ष 10 अमीरों की सम्पत्ति में 540 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है और दुनियाभर के अरबपतियों की कुल सम्पत्ति 3.9 लाख करोड़ डॉलर से बढ़कर 11.95 लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच गई। भारत के 100 प्रमुख अरबपतियों की आय में जबरदस्त वृद्धि हुई। करीब डेढ़ साल पहले यह तथ्य सामने आया था कि कि देश की आधी सम्पत्ति देश के नौ अमीरों की तिजौरियों में बंद है और अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई पांच वर्षों में और ज्यादा गहरी हो गई है लेकिन अब स्थिति और भी बदतर हो चुकी है। महामारी और लॉकडाऊन के दौरान करीब 12.2 करोड़ लोगों ने अपने रोजगार खोए, जिनमें से करीब 75 प्रतिशत फीसदी (9.2 करोड़) अनौपचारिक क्षेत्र के थे। सरकार की गलत नीतियों का प्रतिफल कहें या कुछ और पर कटु सत्य यही है कि महामारी के दौर में अमीर जहां और अमीर हुए हैं, वहीं गरीबों का हाल और बुरा हो गया है तथा आर्थिक विषमता चिंताजनक स्थिति तक बढ़ गई है। इससे पूर्व 'रिफ्यूजी इंटरनैशनलÓ की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि कोरोना महामारी ने दुनियाभर में 16 करोड़ ऐसे लोगों के रहने का ठिकाना भी छीन लिया, जो भुखमरी, बेरोजगारी तथा आतंकवाद के कारण अपने घर या देश छोड़कर दूसरी जगहों पर बस गए थे।
रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी सामाजिक असमानताओं को और उभार रही है। संयुक्त राष्ट्र और डेनवर विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पिछले दिनों कहा जा चुका है कि महामारी के दीर्घकालिक परिणामों के चलते वर्ष 2030 तक 20.7 करोड़ और लोग बेहद गरीबी की ओर जा सकते हैं और यदि ऐसा हुआ तो दुनियाभर में बेहद गरीब लोगों की संख्या एक अरब को पार कर जाएगी।
विश्व खाद्य कार्यक्रम के एक आकलन के अनुसार 82.1 करोड़ लोग हर रात भूखे सोते हैं और बहुत जल्द 13 करोड़ और लोग भुखमरी तक पहुंच सकते हैं। सैंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमैंंट (सी.एस.ई.) की 'स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमैंट इन फिगर्स 2020Ó की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना से वैश्विक गरीबी दर में 22 वर्षों में पहली बार बढ़ौतरी होगी और भारत की गरीब आबादी में 1.2 करोड़ लोग और जुड़ जाएंगे, जो दुनिया में सर्वाधिक हैं।
1980 के दशक की शुरूआत में एक फीसदी धनाढ्यों का देश की कुल आय के 6 फीसदी हिस्से पर कब्जा था लेकिन बीते वर्षों में यह लगातार बढ़ता गया है और तेजी से बढ़ी आर्थिक असमानता के कारण स्थिति बिगड़ती गई है। आर्थिक विषमता आर्थिक विकास दर की राह में बहुत बड़ी बाधा बनती है। दरअसल जब आम आदमी की जेब में पैसा होगा, उसकी क्रय शक्ति बढ़ेगी, आर्थिक विकास दर भी तभी बढ़ेगी। अगर ग्रामीण आबादी के अलावा निम्न वर्ग की आय नहीं बढ़ती तो मांग में तो कमी आएगी ही और इससे विकास दर भी प्रभावित होगी। आर्थिक विकास के नाम पर किये गये उदारीकरण एवं भारतीय अर्थव्यवस्था के पट खोलने की महती क्रिया के पश्चात् विकास की दर बढ़ी है पर असमानता की खाई चौड़ी हो गई है। इनके परिणामस्वरूप जो आर्थिक परिदृश्य उभरा है वह भयानक और डरावना है और चेताने वाला भी। ओक्सफैम इंडिया ने भी भारतीय असमानता रिपोर्ट- 2018 में कहा है कि 2017 में भारत में अरबपतियों की कुल संपत्ति देश की जीडीपी की 15 फीसदी के बराबर हो गई। जबकि पांच वर्ष पहले यह दस फीसदी थी। इस रिपोर्ट का सार यह है कि भारत विश्व के सबसे अधिक आर्थिक असमानता वाला देशों में एक है। हैरत पैदा करनेवाली बात यह है कि वर्ष 2017 में भारत में जितनी संपत्ति बढ़ी, उसका 73 प्रतिशत हिस्सा देश के मात्र 1 फीसद धनकुबेरों के पास पहुंच गया।
ब्रिटिश राज के समय भरत में आदनी की खाई सबसे चौड़ी थी। 10 फीसद धनी लोगों का देश की आधी आमदनी पर कब्जा था। स्वाधीनता के पश्चात् सरकार ने समाजवादी समाज व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता घोषित की एवं उसके लिये पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश विकास की ओर अग्रसर हुआ। इसके परिणामस्वरूप असमानता की खाई कुछ हद तक पाटी गई। सबसे धनी 19 शतांश लोगों की आय 35 से 40 प्रतिशत कम हुई। कुछ वर्षोंं बाद जब आर्थिक उदारीकरण शुरू हुआ तो फिर विषमता बढ़ गई। ऊपर के 1 शतांश लोगों को इस उदारीकरण का ज्यादा लाभ मिला। किन्तु मध्यम एवं निम्र मध्यम श्रेणी के लोगों की आमदनी में तुलनात्मक कम बढ़ातरी हुई। अब तब निजीकरण का नया दौर शुरू हुआ है अमीर और बरीब की खाई बेतहाशा चौड़ी हो रही है।
यह अवस्था चिन्ताजनक इसलिए है कि जब विकास एवं आर्थिक अग्रगति का लाभ मुट्ठीभर लोगों को मिलेगा तो परिणामस्वरूप आर्थिक रूप से उपेक्षित लोग नीचे की ओर लुढ़कते जायेंगे। यह दृश्य प्राय: पूरी दुनिया में है। सोवियत संघ के बिखरने के पश्चात पूरी दुनिया में पंूजीवादी व्यवस्था अपना पांव बिना किसी हस्तक्षेप के फैला रही है।
स्वर्गीय कवि गोपाल सिंह नेपाली की एक कविता की पंक्तियां स्मरण हो आई-
धनवान बनो तुम सबके सब
या धर लो भेष फकीरी का
पर भेद मिटा दो भारत से
अमीरी और गरीबी का।
सरकार और उसके समर्थक आर्थिक क्षितिज पर होने वाले इस घटनाक्रम के प्रति उदासीन हैं। कुछ लोगों के विकास को ही राष्ट्र की प्रगति समझने की भूल कर रहे हैं। उन्हें महाभारत काल का स्मरण करा दंू। वह युद्ध कौरव-पांडवों के बीच नहीं आर्थिक विषमता से उपजा संग्राम था। जब पांडवों को अपने हक से वंचित किया गया और पांच गांव तो दूर की बात सूई की नोक की बराबर जमीन देने से भी इनकार कर दिया तो पांडवों के पास युद्ध के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था। उस वक्त पांडव भी अपने भाइयों के विरुद्ध युद्ध के लिए प्रस्तुत नहीं थे किंनतु कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्ध प्रंागण में अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर इस बात के लिए तैयार किया कि वह अन्याय व विषमता के विरुद्ध शंखनाद करे। आज की परिस्थिति में कौन कृष्ण बनेगा यह तो भविष्य ही बतायेगा पर इस भयंकर आर्थिक विषमता ने ही अतीत में फ्रेंच क्रांति या रूसी क्रांति को जन्म दिया था, यह नहीं भूलना चाहिये।
अति महत्व पूर्ण तथ्य अनदेखे नहीं किए जा सकते लेकिन इसके लिए सरकार की समीक्षा बैठक में ही विश्लेषण किया जा सकता है ताकि कारणों की जांच की जा सकें
ReplyDeleteThis is a very important topic which you talked about. It was very much meaningful..I am grateful that you shared such wonderful article with me. Thank You..
ReplyDeleteThis is a very important topic which you talked about. It was very much meaningful..I am grateful that you shared such wonderful article with me. Thank You.
ReplyDelete-Tapashi Bose
I completely agree with your opinion
ReplyDeleteबेहतरीन समीक्षा! इन विषयों पर चर्चा होनी चाहिए। इस देश की गरिमा को बनाए रखने के लिए सभी देशवासियों को समान सुख मिलना चाहिए।सभी का समान अधिकार मिलने चाहिए। विभिन्न वर्गों में बंटे हुए समाज में बराबरी को लाने के लिए समानता,एकता,मानवतावादी दृष्टिकोण को अपनाने होंगे ताकि हम विकास के मार्ग गतिशील हो सके।
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