कार्पोरेशन चुनाव (19 दिसम्बर) के संदर्भ में
हमारा शहर कोलकाता...इस पर मिर्जा गालिब भी फिदा थे
कलकत्ता महानगर जिसे अब कोलकाता नाम दिया गया है, लगभग साढ़े 350 साल पुराना शहर है। गंगा कीप्रसारित हुगली नदी के किनारे बसा यह शहर तीन गांंवों को मिलाकर बनाया गया था जिसे कभी जहाजी जॉब चार्नाक ने खरीदा था। आगामी 19 दिसम्बर को कोलकाता शहर की देखभाल करने वाली पौर सभा का चुनाव होगा। इसके रखरखाव की सुविधा हेतु 144 वार्ड हैं। महानगर का अभिभावक कोलकाता कार्पोरेशन के पहले मेयर (महापौर) देशबन्धु चित्तरंजन दास के बाद बंगाल के कई सुप्रसिद्ध शिक्षाविद्, बैरिस्टर, देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे महान देशभक्त 1930 में हमारे महानगर के मेयर बने थे। कई हिन्दीभाषी भी इस ऐतिहासिक शहर के महापौर पद पर विराजमान थे। इनमें श्री आनन्दीलाल पोद्दार के बाद श्री श्याम सुन्दर गुप्ता के नाम उल्लेखनीय है। प. बंगाल के दूसरे अब तक के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री डा. विधानचन्द्र राय 1931 की अप्रैल से 1932 अप्रैल तक मेयर पद को सुशोभिद कर रहे थे। अबुल कासेम फजलूल हक जैसे सुप्रसिद्ध मुस्लिम नेता भी मेयर पद पर चुने गये थे जो बाद में अविभाजित बंगाल के मुख्यमंत्री भी बने। भारत-पाक विभाजन के बाद हक साहब पूर्वी पाकिस्तान चले गये।
ब्रिटिश भारत की राजधानी कलकत्ता भारत की कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा। भारत विभाजन का दंश हमारे इसी शहर ने झेला, पूर्वी पाकिस्तान बनने के बाद बड़ी संख्या में शरणार्थियों की शरण स्थली यही शहर था। भारत में बाम चरमपंथी नक्सलबाड़ी आंदोलन का बड़ा कहर कोलकाता को भोगना पड़ा। यानि विभाजन के पूर्व बड़े पैमाने पर हिन्दू-मुस्लिम दंगे और 1965 के आसपास नक्सल आंदोलन में निर्दोष लोगों के खून से लहूलुहान इस महानगर की लेकिन बड़ी उपलब्धियां भी है। भारत का सबसे बड़ा म्यूजियम, चिडिय़ाघर, पहली मेट्रो ट्रेन सेवा, पहला तारामंडल के साथ तीन बैंकों का मुख्यालय कलकत्ता में ही है। विश्व गौरव पाने वाले भारत में सर्वाधिक नोबेल पुरस्कार विजेता हमारे इसी शहर के थे। कोलकाता ने भारत को सबसे अधिक वैज्ञानिक, बैरिस्टर एवं शिक्षाविद् दिये तो वहीं स्वतंत्रता संग्राम में बंगाल की राजधानी के रूप में कलकत्ता शहर की भूमिका अव्वल रही। कोलकाता ही वह शहर है जहां भारत के हर प्रान्त के लोग पीढिय़ों से बसे हैं एवं दुनिया के हर धर्म के लोग यहां कमोबेश संख्या में बसे हुए हैं। अवध के नवाब वाजिद अली शाह लखनऊ से भागकर कलकत्ता ही आकर बसे थे। आज का गार्डेनरिच इलाका कभी इसी नवाब की धरोहर था।
हिन्दी का पहला समाचारपत्र उद्दन्त मार्तण्ड का प्रकाशन सन् 1826 में इसी शहर से शुरु हुआ। बंगला, अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, गुरुमुखी भाषाओं के पहले समाचार पत्र प्रकाशन का ऐतिहासिक गौरव कलकत्ता को ही है। यही शहर है जहां ट्राम आज भी शहर के बीचो बीच पटरियों पर दौड़ती है जबकि दिल्ली और मुम्बई शहर में ट्राम रानी को बहुत पहले ही विदाई दी जा चुकी है।
भूमिगत रेल यानि मेट्रो रेल सबसे पहले इसी शहर के गर्भ में दौड़ी थी। भारत के अधिकांश औद्योगिक घरानों की व्यवसायिक पहल इसी नगरी से हुई थी। भारत की पहली बिजली संचालित ट्रेन कलकत्ता के हावड़ा स्टेशन से शेवड़ाफुली तक शुरू हुई। सबसे अधिक स्पोट्र्स क्लब कलकत्ता शहर में हीं हैं- ईस्ट बंगाल, मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब, मोहन बगान, आर्यन्स आदि। अत्यधिक व्यस्तता एवं जनसंख्या की ²ष्टि से गहन आबादी वाले इस शहर में ही देश का सबसे लम्बा खुला मैदान है।
हिन्दीभाषियों की हिन्दी प्रदेश के बाद सबसे बड़ी जनसंख्या कोलकाता में बसती है। कहते हैं राजस्थान के किसी शहर में उतने राजस्थानी नहीं रहते जितने कोलकाता में आकर बसे हैं। पीढिय़ों से बसे राजस्थान प्रवासियों का कभी कलकत्ता सेकेण्ड होम था पर अब तो यह फस्र्ट होम बन गया है। राजस्थान में इनकी पहचान कलकत्तावासी के रूप में हो गयी है। इसी तरह उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा के बहुत से लोगों का रैन बसेरा अब कोलकाता ही हो गया है। शहर का वर्तमान गौरव 42 चौरंगी रोड पर 65 मंजिला गगन चुम्बी अट्टालिका देश की सबसे ऊँची इमारत है।
इसी महानगर के पौर पिता एवं पौर माता का चुनाव दो सप्ताह बाद ही होगा। इस चुनाव में शहर के 40.48 लाख मतदाता भाग लेंगे। हिन्दीभाषी भी बड़ी संख्या में इस बार उम्मीदवार हैं। कई प्रार्थी तो बंगलाभाषी बाहुल्य इलाको ंसे भी हैं। कम से कम 50 से 60 वार्ड ऐसे हैं जिन पर हिन्दीभाषी कम से कम 15 से 20 प्रतिशत है। 12 वार्ड ऐसे हैं जहां हिन्दीभाषी वोटर आधे से अधिक हैं।
हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकारों में शायद ही कोई ऐसा हो जिसका कलकत्ता से सम्बन्ध नहीं रहा हो। कविवर निराला जी का जन्म हुगली जिले में हुआ था और छायावाद के प्रखर कवि जयशंकर प्रसाद की कलकत्ता के हरिसन रोड में दुकान थी। मुंशी प्रेमचंद का भी सम्बन्ध रहा।
कोलकाता शहर पर बहुत सी रचनायें न्यौछावर की गयी हैं जो इस शहर की अन्र्तात्मा का दर्शन कराती है। बिहार में यह दोहा प्रचलित है- ''लगा झुलनिया का धक्का, बलम कलकत्ताÓÓ मतलब समझ गये होंगे। बिहारी युवक की शादी होते ही रोजगार के लिये उसे कलकत्ता ही आना होता है।
उर्दू के सबसे बड़े शायर मिर्जा गालिब ने अपना दिल ही निकाल कर रख दिया कलकत्ता के कदमों में-
कलकत्ते का जो जिक्र किया
तुमने हम नशीं,
एक तीर मेरे सीने में मारा
कि हाय हाय।
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